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ब्लोगिंग देश के दुश्मनों को सबक सिखाएं

Written By आपका अख्तर खान अकेला on सोमवार, 28 फ़रवरी 2011 | 6:26 pm

ब्लोगगिरी पांचवां स्तम्भ लेकिन भाईगिरी और उठाईगिरी से तंग हे यह स्तम्भ

देश में ही नही विश्व में इन दिनों ब्लोगिंग की दुनिया मिडिया के रूप में पांचवां स्तम्भ बन गयी हे , इस ब्लोगिंग को हमारे देश भारत में एक नई पहचान मिली हे और आज इसीलियें ब्लोगिंग की दुनिया में रंगा रंग भार हे प्यार हे अपनापन हे लेकिन यह समाज हे यहाँ कुछ बुरे भी लोग खुदा ने बनाये हें जो इस मिठास भरी दुनिया को जहर भरी बनाने के प्रयासों में जुटे हें लेकिन हम सभी अगर कोशिश करेंगे तो रूठे हुए हमारे भाई नाराज़ गुस्से में अलग हुए हमारे अपने फिर से एक साथ जुड़ जायेंगे और इस पांचवें स्तम्भ के जरिये हम देश को गिरने से बचा कर फिर से एकजुट कर विश्व स्तर पर खड़ा करने में कामयाब हो सकेंगे ।
दोस्तों यह मेरी एक परिकल्पना सपना नहीं हे एक कोशिश हे जो इंशा अल्लाह इश्वर की क्रपा से आप लोगों की महनत से जल्द अज जल्द पूरी होकर रहेगी । ब्लोगिंग की दुनिया का इन दिनों मिडिया में भी बोलबाला हो गया हे यहाँ रचनात्मक लेखन, खबरें,कहानी,कविता,लेख और एक से एक बहतरीन रचनात्मक लेखन से यह दुनिया मालामाल हो गयी हे इस ब्लोगिंग को सभी ब्लोगर भाइयों ने सम्मान देते हुए ताकतवर बनाया हे ख़ुशी की बात यह हे के हर वर्ग हर समाज हर आयु वर्ग के लोग इस ब्लोगिंग की दुनिया से जुड़ गये हें और पांचवें स्तम्भ को चारों स्तम्भ से पहला स्तम्भ बनाने में जुटे हें , यहाँ भाही चारा सद्भावना एक दुसरे की मदद का माहोल हे प्यार दो प्यार दो प्यार लो का नारा आम हे बहने और भाई मिलकर इस दुनिया को सजा संवार रहे हें , हालात यह हे के एक परिवार जब बचा होता हे तो फिर वोह अपना कमरा फिर किचन कर के दो परिवारों में बंट जाता हे कभी प्यार तो कभी तकरार का माहोल एक बढ़े परिवार में होता हे और यह सब इस दुनिया में होने लगा हे ब्लोगिंग को संवारने और जन जन तक पहुँचने के लियें आसान करने के लियें कई रचनात्मक लेखन वाले भाइयों ने ग्रुप हाँ ग्रुप यानि खेमे बना लिए हें लेकिन ख़ुशी की बात यह हे के सभी ग्रुप एक ही सोच रचनात्मक सोच राष्ट्रीयता की सोच भाईचारे और सद्भावना की सोच लिए चल रहे हें सभी ब्लोगर भाई बहने और ब्लोगिंग गुट देश में फेल रही अराजकता से दुखी हे , भ्रस्ताचार को देख कर इसे केसे दूर किया जाए इस पर चिन्तन कर रहे हें राजनीती के स्तर में गिरावट को लेकर सभी परेशान हे हेरान हें इसलियें दोस्तों ब्लगो गुट चाहे अलग अलग हों लेकिन भारत बचाओं का नारा सार्थक करने की सोच सभी ब्लोगरों की एक हे और यह ब्लोगिंग की इस दुनिया के लियें गोरव की बात हे ।
दोस्तों कहावत हे जहां अच्छाई होती हे वहां बुराई भी होती हे जहां राम होते हें वहां रावण भी होता हे जहां कृष्ण होते हें वहां कंस भी होता हे जहां हसन हुसेन होते हें वहां यज़ीद भी होता हे जहां पांडव होते हें वहां कोर्व भी होते हें इतिहास गवाह हे जब जब भी बुराई ने अच्छाई पर हमला किया हे बुराई ने मुंह की खाई हे और ब्लोगिंग की दुनिया में भी कुछ हे जो कंस,यज़ीद,रावण,कोरव के वंशज हे और वोह इस दुनिया में जहर घोलने की कोशिशों में जुट गये हें पहले तो हम और आप यह समझते थे हाथी निकलता तो कुत्ते भोंकते हें इसलियें चुप हो जाया करते थे लेकिन कहते हें एक मछली तालाब को गंदा कर देती हे लेकिन यहाँ इस ब्लोगिंग की दुनिया को बदनाम करने के लियें इसमें कडवाहट घोलने के लियें कुछ लोग हें जो एक मिशन बना कर काम पर जुटे हें दोस्तों उनसे घबराने की जरूरत नहीं यह सही हे कुछ बुरों का भी ग्रुप हे लेकिन मेरा उन सभी से आग्रह हे के ऐसे सभी भटके हुए भाई खुद को सम्भाले अपना गुस्सा त्यागे बेठ कर बात करें किसी का लेकन अगर पसंद नहीं तो उसे रचनात्मक सुझाव दें बेठ के बात करें लेकिन एक दुसरे को बुरा कहना एक दुसरे को गाली बकना नफरत और घ्रणा फेलाना इस ब्लोगिंग के लियें अच्छा नहीं हे वायरस आते हे लेकिन ज्यादा दिन ज़िंदा नहीं रहते इसलियें दोस्तों सब मिलजुल कर चलो बढा दिल रखो किसी से कोई गलती होती हे तो रचनात्मक सुझावों के साथ उसको सूधारने का मोका दो यूँ ब्लॉग गिरी को भाईगिरी ,गुंडागिरी और दादागिरी उठाई गिरी में मत बदलो प्लीज़ ........ दोस्तों में एक बात और याद दिलाऊं ब्लोगिंग की दुनिया कानून के जानकार इतने सक्षम हे के वोह छद्म नामों से ब्लोगिंग करने और संदेश भेजने वालों को साइबर कानून के प्रावधानों के तहत साइबर तकनीक जो हर ब्लॉग और संदेश हर आई डी को एक अंक देती हे और उससे क्तिना ही छुप कर कोई गंदगी फेलाए वोह पकड़ में आ जाता हे और ऐसे आदमी के खिलाफ गेर जमानती अपराध की कार्यवाही होती हे लेकिन खुदा करें किसी भी ब्लोगर को सूधारने के लियें इतना बढ़ा कदम कभी किसी को उठा ने की जरूरत न पढ़े तो दोस्तों,बहनों ,भाइयों और बुजुर्गों आओ हम सब मिलकर इस ब्लोगिंग की दुनिया को बुलंदियों पर पहुंचाए कुछ ऐसा लिखें कुछ ऐसा करें के देश के दुश्मन बने लोगों से इस देश को बचाएं । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

क्या भारत विश्व कप का दावेदार है ? ----- दिलबाग विर्क

भारतीय क्रिकेट टीम विश्व कप जीतने की प्रमुख दावेदार मानी जा रही है . यह बात भारतीय टीम को देखते हुए भी कही जा रही है और इसलिए भी कि विश्व कप का आयोजन भारतीय उपमहाद्वीप में हो रहा है . परिस्थितियाँ उसके पक्ष में हैं , इसमें दो राय नहीं . बल्लेबाजों ने ताकत दिखा भी  दी है . तीन बल्लेबाज़ शतक लगा चुकें हैं , दो अर्धशतकीय पारी खेल चुके हैं , लेकिन इंग्लैण्ड के साथ खेले गए मैच में भारतीय टीम का विशाल स्कोर की रक्षा न कर पाना चिंताजनक है . हालाँकि भारत हारा नहीं और मैच बराबरी पर छूटा फिर भी भारत को यह मैच जीतना चाहिए था . इस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद यह सवाल उठता है कि क्या भारतीय टीम वास्तव में विश्व कप जीतने की दावेदार है .
           विश्व कप जीतने के लिए टीम को संतुलित होना चाहिए . हर क्षेत्र में प्रभावी प्रदर्शन जरूरी है . भारतीय टीम सिर्फ बल्लेबाज़ी में मजबूत है . क्षेत्ररक्षण में कुछ खिलाडी अच्छे हैं , लेकिन पूरी टीम नहीं . गेंदबाजों की कमियां अभी तक हुए दोनों मैचों में दिखी हैं .पहले मैच में बंगलादेश तीन सौ के लगभग पहुंचा और दूसरे मैच में इंग्लैण्ड 338 रनों के वाबजूद मैच टाई करवाने में सफल रहा . एक क्षण तो यह मैच हाथ से निकलता हुआ लग रहा था . जहीर के एक ओवर ने मैच को पलटा , लेकिन चावला ने फिर मैच को हाथ से निकाल दिया . जहीर की गेंदबाज़ी इस मैच का सकारात्मक पहलू रही , लेकिन अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता . दूसरे गेंदबाजों को जहीर का साथ देना ही होगा .
         मैच में दो स्पिनर खेलें या तीन तेज़ गेंदबाज़ यह एक अन्य यक्ष प्रश्न है . यहाँ तक अन्य टीमें जिनके स्पिनर भारतीय टीम के स्तर के नहीं वे भी तीन स्पिनरों से खेल रही हैं , ऐसे में भारत का दो स्पिनरों से खेलना बुरा नहीं , लेकिन यदि दो स्पिनर अंतिम एकादश में खिलाने हैं तो रणनीति बदलनी होगी . जहीर के ओवर अंतिम ओवरों हेतु बचाने जरूरी हैं . इंग्लैण्ड के मैच को ही लें यदि जहीर का एक ओवर और बचा होता तो मैच का परिणाम कुछ और होना था . जहीर के ओवर बचाने के लिए प्रथम पावर प्ले में स्पिनर से गेंदबाज़ी करवानी होगी . जब बोथा गेंदबाज़ी की शुरुआत कर सकता है तो हरभजन प्रथम पावर प्ले में गेंदबाज़ी क्यों नहीं कर सकता ? टीम को इस बारे में सोचना होगा .
        भारत को झटका लग चुका है और यह झटका टीम के लिए लाभदायक हो सकता है , बशर्ते वे अपनी कमियों , अपनी गलतियों के बारे में सोचें . गेंदबाज़ी में अपनी सीमाओं को समझते हुए गेंदबाज़ों का बेहतर प्रयोग टीम को विश्व कप का दावेदार बना सकता है .  

                   * * * * *
              ----- dilbagvirk.blogspot.com

एक आग्रह अगर सभी माने

अभी अभी ब्लोग्स पर मैं एक लेख पढ़ कर आ रही हूँ कि "एल.बी.ए.ब्लोगर का सबसे बड़ा संगठन"और यह लेख मिथलेश जी ने लिखा है.इसमें कोई शक नहीं की एल.बी.ए.बड़ा संगठन है किन्तु इस तरह की बातें ब्लॉग जगत में अलगाव पैदा करने की कोशिश करती हैं.आज ब्लॉग जगत में बहुत सारे सामूहिक ब्लॉग हैं और सब पर लगभग सभी ब्लोगर जुड़ रहे हैं.कारण साफ है सभी देश के विभिन्न विवादस्पद मुद्दों पर अपनी राय दे रहे हैं और चाह रहे हैं कि हम किसी तरह इन स्थितियों में सुधार की सम्भावना पैदा कर दें .ऐसे में ऐसे लेख न ही आये तो शायद हम जैसे नवीन चिट्ठाकारों के प्रयासों को एक स्वच्छ दिशा मिल सकती है.हम सभी का मिल जुल कर यही प्रयास होना चाहिए कि हम एक जुट होकर देश की समस्याओं से लड़ें .हम सभी का कर्त्तव्य बनता है कि हम एक ऐसे मंच का संयोंजन करें जो सबको मिलजुल कर आगे बढ़ाये न कि आपस में दरारे पैदा करने की बातें करें.आज ब्लॉग जगत में भड़ास,हिंदुस्तान का दर्द,जौनपुर ब्लोगर एसोसिएशिअन ,आदि बहुत से सामूहिक ब्लॉग हैं और लगभग सभी ब्लोगर इनसे जुड़कर पाने विचारों से ब्लॉग जगत को लाभान्वित कर रहे हैं और सत्ता की शीशे की दीवारों पर प्रहार कर रहे हैं.आज देश में बहुत सी समस्याएँ हैं और हम "वसुधेव कुटुम्बकम "की धारणा को यहाँ बलवती कर सकते हैं .मिलजुल कर देश विरोधी ताकतों,bhrashtachariyon  , बेटी  -बहु के हत्यारों आदि के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं अत  ऐसे में मेरा आग्रह है यदि आप माने तो कि इन तुच्छ बातों की और ध्यान न देकर बड़ी-बड़ी समस्याओं की और ध्यान दें और देश के नव निर्माण में भागीदार बनें.बड़े बने मगर विचारों में -
"बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर."
        शालिनी kaushik

यूपीखबर ने कहा "एलबीए ब्लोगर का सबसे बड़ा संगठन"

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यूपीखबर ने कहा एलबीए ब्लोगर का सबसे बड़ा संगठन

anant ka dard

सपनो का संसार


 आज का युवा वर्ग काफी रचनात्मक और उत्साह से भरा हुआ है कभी २ वो विध्वंसकारी और अवसादग्रस्त भी हो जाता है | वो देश में अपनेआप को स्थापित करने के लिए अपने लिए जगह तलाश कर रहा है पर मिडिया हर मोड़ पर उसे दिशाहीन बना दे रही है | घर और बहार की दुनिया में जब वो काफी अंतर देखता है तो कोई भी निर्णय लेने में असमर्थ हो जाता है | देश के नेताओं  का भ्रष्टाचार में लिप्त  होना मिडिया के इतने प्रचार के बावजूद भी उनपर किसी प्रकार की कार्यवाही  न होना , आतंकवाद का खत्म  न हो पाना | कश्मीर में शहीद  होने वाले शहीदों की कवर स्टोरी न बनाने की जगह फ़िल्मी हस्तियों की कवर स्टोरी बनाना ये सब उसे अपने आपसे यह पूछने पर मजबूर कर देते हैं की आखिर वो किसे अपना हीरो माने | अपने दिल में वो बहुत से सपने लेकर चलता है की उसे लेकर वो उन ऊँचाइयों को छु सके जिनके वो सपने देखता है |
                       कितना सरल सा शब्द है ये सपना  ? लेकिन सही मायनो में ये अपने आप में बहुत बड़ा स्थान रखता है इसका सम्बन्ध मानव से एसे जुड़ा है जिसके बिना वो अधुरा सा हो जाता है | सपनों  के बिना तो उसका सफ़र आगे बढ ही नहीं सकता हर इन्सान सपने देखता है उनमें से कुछ तो हम पुरे कर देते हैं और कुछ  सपने ही रह जाते हैं | हर सपना उसे इन्सान के लक्ष्य की और आगे बड़ने में सहायता करता है उसे होंसला देता है और हम उन ऊँचाइयों  को छु लेते हैं जहां तक पहुँचने का हम सोचते भी नहीं हैं | सपने दो तरह के होते है एक जो हम बंद आँखों से देखते हैं और एक वो जो हम खुली आँखों से देखते हैं | खुली आँखों से देखे हुए सपनों  का हमारे जीवन से गहरा ताल्लुख  होता है |
                      आज का युवावर्ग तरल सतह पर टिके सपने देखती है क्षितिज के पार अनजाने भविष्य के सपने | आज के युवावर्ग में इतना जोश है की वह सिर्फ सपना देखती ही नहीं उसे पूरा करने के लिए वो कुछ भी कर  गुजरने को तैयार होती है |  उसके अन्दर इतना जोश है की उसे आगे बड़ने के बाद रोकना नामुमकिन है | जरूरत है तो सिर्फ उसे सही राह में बड़ने की दिशा दिखाने की जिससे वो अपने सपनों  को सही दिशा दिखा सके | सपने रंगों की तरह होते हैं ' संसार सपनो का केनवास ' हैं , बस मन में विश्वास ले कर उसे अपने रंगों से भरते जाना है | अगर हम कल्पना नहीं करेंगें  तो उसे हासिल कैसे  कर पाएंगे , सपने देखना खुशहाल जीवन को आगे बढ़ाने  की सीडी जैसा  है | अक्सर लोग सपने देखने वालों  पर पहले हँसते हैं पर जब उसे पूरा होने पर ये शब्द कहना की ये मेरा ' बचपन का सपना ' था तो सपनों  की महत्ता  पर यकीं करवा  ही देतें  है |
              जीवन में सबसे पहले कुछ पाने की चाह मन में उठती है उसे पूरा करने के लिए लगन परिश्रम और द्रिड निश्चय का होना बहुत जरुरी है | यही सब हमें सपनों  को साकार करने में मदद  करती है|ज्यादातर  सफल लोग इसी राह में चल कर आगे बड़ते हैं , उनके अलग - अलग  ढंग  से सोचने और कुछ कर गुजरने की चाह ही उसे उन बुलंदियों  तक ले जाती है | एक स्थान में बैठ कर खाली सपने देखने से कुछ  हासिल नहीं होता उसे पाने के लिए मेहनत करना बहुत जरुरी  है  एसा सपना तो पानी के बुलबुले के समान होता है जो कुछ ही देर में खत्म  हो जाता है | सपना देखो तो नदी के बहाव की तरह उस अंजाम तक पहुँचों  क्युकी  जब पानी जिस  जगह से शुरू होती है तो बहुत छोटे से स्थान से निकलती है और चलते - चलते  उसका विस्तार बढता चला जाता है ! सपने भी हमारे जीवन की एसी  ही मजबूत कड़ी है जो सब कुछ  बदलने की ताक़त रखती है अगर जरुरत है तो सिर्फ सही दिशा और हिम्मत से उसे पूरा  करने की |
                       "  आँखों में सपने मन में बंधन और आसमान में उड़ने की चाह "... यही है युवावस्था | युवा सपने गरम लहू के समान होते हैं , वे देश की धमनियों और शिराओं  में दौड़ते  हुए उसे भीतर ही भीतर बदल डालने की क्षमता रखते हैं | दुनिया की हर क्रांति  से पहले बेहतर  भविष्य की कल्पना ही लोगों  के शरीर  में गतिमान होते रहे होंगे | क्रांतिकारियों और रचनात्मक सपनो में फर्क  सिर्फ इतना है की क्रांतियाँ  गर्जना करती है और रचनात्मक सपने देश में बहुत धीरे से बदलाव लाती है | युवा मन के सपने बसंत की तरह होते हैं जो दबे पांव  आता है और देश के भविष्य को बदल डालता है , और सारा देश नई तकनीक नई समृधि और विकास के रंगों में रंग जाता है | युवा स्वपन  देश को अहिंसक  ढंग  से बदलने  का मादा रखता है जरुरत है सुकरात जैसे  एक एसे अच्छे मरगदर्शक की जो उन्हें सही राह दीखा सके जो उनके विचारों  को सही दिशा  दे सके क्युकी  मानव मन तो बंजर भूमि की तरह है उसमें  जेसा बीज हम बोयेंगे वेसा ही प्राप्त करेंगे | आज देश में एसे ही लोगों  की जरुरत है जो नई प्रतिभावों  को  सही राह में ले जाने के लिए ईमानदारी से प्रयास कर सके |
                              आज का नौजवान  एक सक्षम देश बनाने का सपना देखता है दरअसल हमारी युवा पीढ़ी  महज सपने देखती नहीं बल्कि रोज यथार्थ से लडती है उसके सामने भ्रष्टाचार , आरक्षण का बिगड़ता स्वरूप  और महंगी होती शिक्षा जैसी  ढेरों समस्याएँ   हैं इस चुनौती  से भरी दुनियां  में उसे अपने को स्थापित करने के लिए संकल्प के साथ आगे बढना है और अपने भविष्य को संवारना  हैं  | क्युकी हर आने वाला  वक़्त अपने साथ चुनौतियाँ   ले कर चला है कभी युद्ध तो कभी प्राक्रतिक आपदाएं  लेकिन कैसा  भी समय क्यु न आ जाये हमारे भीतर के सपनों  को हमसे कोई नहीं छिन सकता _________ में  धरती मै पैदा होने वाले हर इन्सान को प्रणाम  करती हु क्युकी हर इन्सान मै बरगद के पेड़ बनने की क्षमता नज़र आती है | जो अपनी मेहनत  के द्वारा  अपने सपनों को कभी भी साकार कर सकता है |   

क्या वाकई कल के मैच के भी हीरो सचिन ही हैं?


क्या वाकई कल के मैच के भी हीरो सचिन ही हैं?
सचिन एक महान खिलाड़ी हैं ,इसमें कोई शक नहीं.उन्होंने १२० रन का शानदार शतक लगाये बंगलौर में ,यह भी काबिले तारीफ़ है.मगर क्या स्ट्रास के १५८ रन उनपर भारी नहीं पड़े?
अगर आखिर में ज़हीर खान के ओवर में स्ट्रास का और उनके साथी का विकेट नहीं उड़ता तो कौन माई का लाल इस मैच को हारने से बचा सकता था.
मगर आज सुबह अखबारों में पहले पेज पर सचिन की तस्वीर देखकर उनके प्रायोजकों के मीडिया मेनेजमेंट की तार्रेफ़ करनी होगी,जो भारतीय क्रिकेट टीम की हर जीत का सेहरा सचिन के सर बंधवाने में सफल हो जाते है,
क्या आज इस जगह ज़हीर खा की तस्वीर नहीं होने चाहिए थी?मीडिया ईमानदारी से सोचे!

क्या विज्ञान ही ईश्वर है--लघुकथा----डा श्याम गुप्त....

                            आज रविवार है, रेस्ट हाउस की खिड़की से के सामने फैले हुए इस पर्वतीय प्रदेश के छोटे से कस्बे में आस पास के सभी गाँवों के लिए एकमात्र यही बाज़ार है। यूं तो प्रतिदिन ही यहाँ भीड़-भाड़ रहती है परन्तु आज शायद कोई मेला लगा हुआ है,कोई पर्व हो सकता है।यहाँ दिन भर रोगियों के मध्य व सरकारी फ़ाइल रत रहते समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। तीज, त्यौहार, पर्वों की बात ही क्या। आज न जाने क्यों मन उचाट सा होरहा है। मैं अचानक कमरे से निकलकर, पैदल ही रेस्ट हाउस से बाहर ऊपर बाज़ार की ओर चल देता हूँ, अकेला ही, बिना चपरासी, सहायक, ड्राइवर या वाहन के, मेले में।शायद भीड़ में खोजाना चाहता हूँ, अदृश्य रहकर, सब कुछ भूलकर, स्वतंत्र, निर्वाध, मुक्त गगन में उड़ते पंछी की भांति। क्या मैं भीड़ में एकांत खोज रहा हूँ? शायद हाँ। या स्वयं की व्यक्तिगतता (प्राइवेसी) या स्वयं से भी दूर... स्वयं को। एक पान की एक दूकान पर गाना आ रहा है ..'ए दिल मुझे एसी जगह ले चल ...' सर्कस में किसी ग्रामीण गीत की ध्वनि बज रही है।  ग्रामीण महिला -पुरुषों की भीड़ दूकानों पर लगी हुई है। महिलायें श्रृंगार की दुकानों से चूड़ियाँ खरीद-पहन रहीं हैं, पुरुष -साफा, पगड़ी, छाता, जूता आदि। नव यौवना घूंघट डाले पतियों के पीछे-पीछे चली जारहीं हैं, तो कहीं कपडे, चूड़े, बिंदी, झुमके की फरमाइश पूरी की जा रही है। तरह तरह के खिलोने--गड़-गड़ करती मिट्टी की गाड़ी, कागज़ का चक्र, जो हवा में तानने से चक्र या पंखे की भांति घूमने लगता है। कितने खुश हैं बच्चे ...।  मैं अचानक ही सोचने लगता हूँ....किसने बनाई होगी प्रथम बार गाड़ी, कैसे हुआ होगा पहिये का आविष्कार...! ये चक्र क्या है, तिर्यक पत्रों के मध्य वायु तेजी से गुजरती है और चक्र घूमने लगता है....वाह ! क्या ये विज्ञान का सिद्धांत नहीं है? क्या ये वैज्ञानिक आविष्कार का प्रयोग-उपयोग नहीं है...?आखिर विज्ञान कहाँ नहीं है...? मैं प्रागैतिहासिक युग में चला जाता हूँ, जब मानव ने पत्थर रगड़कर आग जलाना सीखा व यज्ञ रूप में उसे लगातार जलाए रखना, जाना।  क्या ये वैज्ञानिक खोज नहीं थी। हड्डी व पत्थर के औज़ार व हथियार बनाना, उनसे शिकार व चमडा कमाने का कार्यं लेना, लकड़ी काटना-फाड़ना सीखना, बृक्ष के तने को 'तरणि' की भांति उपयोग में लाना, क्या ये सब वैज्ञानिक खोजें नहीं थीं?  पुरा युग में जब मानव ने घोड़े, बैल, गाय आदि को पालतू बना कर दुहा, प्रयोग किया, क्या ये विज्ञान नहीं था। मध्य युग में लोहा, ताम्बा, चांदी, सोना की खोज व कीमियागीरी क्या विज्ञान नहीं थी? कौन सा युग विज्ञान का नहीं था? चक्र का हथियार की भांति प्रयोग , बांसुरी का आविष्कार। विज्ञान आखिर कब नहीं था, कब नहीं है, कहाँ नहीं है..? सृष्टि का, मानव का प्रत्येक व्यवहार, क्रिया, कृतित्व , विज्ञान से ही संचालित, नियमित व नियंत्रित है। तो हम आज क्यों चिल्लाते हैं..विज्ञान-विज्ञान..वैज्ञानिकता, वैज्ञानिक सोच...;  आज का युग विज्ञान का युग है, आदि ? विश्व के कण कण में विज्ञान है, सब कुछ विज्ञान से ही नियमित है..। विचार अचानक ही दर्शन की ओर मुड़ जाते हैं। वैदिक- विज्ञान, वेदान्त दर्शन कहता है- 'कण कण में ईश्वर है, वही सब कुछ करता है, वही कर्ता है, सृष्टा है, नियंता है।' तो क्या विज्ञान ही ईश्वर है? विज्ञान क्या है? भारतीय षड दर्शन- सांख्य, मीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, वेदान्त का निचोड़ है कि -प्रत्येक कृतित्व तीन स्तरों में होता है- ज्ञान, इच्छा, क्रिया --पहले ब्रह्म रूपी ज्ञान का मन में प्रस्फुटन होता है; फिर विचार करने पर उसे उपयोग में लाने की इच्छा; पुनः ज्ञान को क्रिया रूप में परिवर्तित करके उसे दैनिक व्यवहार -उपयोग हेतु नई-नई खोजें व उपकरण बनाये जाते हैं। ज्ञान को संकल्प शक्ति द्वारा क्रिया रूप में परिवर्तित करके उपयोग में लाना ही विज्ञान है, ज्ञान का उपयोगी रूप ही विज्ञान है , उसका सान्कल्पिक भाव --तप है, व तात्विक रूप--दर्शन है।  ज्ञान, ब्रह्म रूप है; ब्रह्म जब इच्छा करता है तो सृष्टि होती है, अर्थात विज्ञान प्रकट होता है। विज्ञान की खोजों से पुनः नवीन ज्ञान की उत्पत्ति, फिर नवीन इच्छा, पुनः नवीन खोज--यह एक वर्तुल है, एक चक्रीय व्यवस्था है... यही संसार है... संसार चक्र ...विश्व पालक विष्णु का चक्र...जो कण कण को संचालित करता है। ....'अणो अणीयान, महतो महीयान'.... जो अखिल (विभु, पदार्थ, विश्व ) को भेदते भेदते अणु तक पहुंचे, भेद डाले, ...वह विज्ञान; जो अभेद (अणु, तत्व, दर्शन, ईश्वर) का अभ्यास करते करते अखिल (विभु, परमात्म स्थित, आत्म स्थित ) हो जाए वह दर्शन है...।  

           ......अरे ! देखो डाक्टर जी ...। अरे डाक्टर जी.... आप ! अचानक सुरीली आश्चर्य मिश्रित आवाजों से मेरा ध्यान टूटा....मैंने अचकचाकर आवाज़ की ओर देखा, तो एक युवती को बच्चे की उंगली थामे हुए एकटक अपनी ओर देखते हुए पाया ...।  "आपने हमें पहचाना नहीं डाक्टर जी, मैं कुसमा, कल ही तो इसकी दबाई लेकर आई हूँ, कुछ ठीक हुआ तो जिद करके मेले में ले आया।  "ओह ! हाँ,...हाँ,  अच्छा ..अच्छा ..."  मैंने यंत्रवत पूछा। "अब ठीक है?"  जी हाँ,  वह हंसकर बोली।,   अरे सर , आप .. अचानक स्टेशन मास्टर वर्मा जी समीप आते हुए बोले..  अकेले.., आप ने बताया होता, मैं साथ चला आता। "कोई बात नहीं वर्मा जी," मैंने मुस्कुराते हुए कहा। "चलिए स्टेशन चलते हैं।"




हमारी भावुकता को भुनाना बंद कीजिये !

हमारे जीवन के हर दिन पर आज बाजार की नजर है .नव वर्ष का प्रथम दिन हो या वेलेंटाइन डे ,होली हो या दीपावली ,रक्षाबंधन दशहरा हो या ईद हो या लोहड़ी-क्रिसमस सब दिन बाजार के निशाने पर.मोबाइल कम्पनियां हों या टी.वी.,कार,वाशिंग मशीन की कम्पनियां लोगों को त्यौहार के बहाने लुभाने में कसर नहीं छोडती.हद तो तब हो जाती है जब ये कम्पनियां अपने विज्ञापन कानूनों का उल्लंघन करते हुए विवाह उत्सव पर अपनी वस्तु को खरीदने का खुलेआम प्रचार करती है.देखिये-

ये  कौन नहीं जानता की मोटरसायकिल से लेकर कार तक की डिमांड वर पक्ष वधु पक्ष से करता है और इस डिमांड ने लाखों वधुओं को असमय कालका ग्रास बना डाला .एक ओर जहाँ  सुधि
वर्ग यह मांग करता रहा है कि विवाह आदि उत्सव सादगी के साथ संपन्न किये जाये वहीँ ये कम्पनियां इस पवित्र संस्कार को भी भुनाने में लगी हुई है .
                शैम्पू के विज्ञापन   देखिये - छोटी बच्चियों को बाल बढाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है .विज्ञापन में बच्ची लम्बे बाल खोलकर स्कूल जाती हुई दिखाई जाती है .ऐसे जाते है बच्चे स्कूल ?ऐसे विज्ञापन बच्चों को भ्रमित करते हैं औए माता-पिता के सिर का दर्द बन जाते हैं .
               हमारी भावनाओं का व्यावसायिक लाभ उठाने में चतुर ये कम्पनियां हर उस शख्स को अपना ब्रांड एम्बेसडर बना देती है जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने क्षेत्र में 
नाम कमा लिया हो .अमिताभ बच्चन से लेकर सुशील कुमार तक -

      
एक सिर का तेल ए. सी.  से ज्यादा ठंडक देता है और एक वाशिग पाउडर कपडे को नए से भी ज्यादा चमकदार बना देता है -ऐसे विज्ञापन क्या साबित करते हैं ?ये कम्पनियां आखिर हमे मानसिक तौर पर इतना कमजोर क्यों मानती हैं ?भावुक बनाकर -बेवकूफ बनाकर --इन्हें अपना माल बेचना है चाहे इससे हमारा -हमारे समाज का कितना भी अहित हो !
                              हमे अब इनसे सजग रहना होगा .जब भी कोई विज्ञापन हमारी भावनाओं को भुनाना चाहे -हमे उसका पुरजोर विरोध कर अपना पक्ष रखना ही होगा वर्ना ऐसे विज्ञापनों के लिए तैयार हो जाइये -
                ''माँ की ममता  से मीठी है अपनी घुट्टी ;
             ले लो ये साईकिल करती गाड़ी की छुट्टी ;
             पत्नी से ज्यादा हितकारी कार हमारी ;
            इस टैबलेट से मिट जाएगी हर बीमारी ;
       विज्ञापन ऐसे सबको हैरान करेंगे ,
    विज्ञापन की दुनिया की चलो सैर करेंगे .'' 
        शिखा कौशिक

All India Bloggers' Associationऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन

जय हो बाबा जी की

योग से भोग और फिर भोग से राजनीति तक

जी हाँ दोस्तों जिन साधू संत मोलवियों और योग गुरुओं का देश में नेतिक शिक्षा देना देश को स्वास्थ शिक्षा देने का काम था आज वोह अ मोह मायाजाल में फंस कर राजनीति में आ गये हें चाहे साधू हों चाहे संत हो क्गागे मोलाना हों चाहे योग गुरु हों सभी लोग देश को उकसाकर कोई मुद्दा भुना कर राजनीती में लगे हें और हर बार जो भी पार्टी विपक्ष में होती हे वही इस विपरीत कालीन व्यवस्था को बढ़ावा देते हें ।
अभी हाला ही में देश में भ्रस्ताचार और काले धन के मुद्दे पर योग गुरु बाबा रामदेव ने एक रेली करी बाबा रामदेव का मुद्दा भ्रस्ताचार के खिलाफ बोलना काले धन को उजागर कर दोषियों को दंडित कर इस धन को वापस देश में लाना पुरे देश को अच्छा लगा हे में भी इसका समर्थक हूँ और खुदा करे बाबा रामदेव इस देश के भ्रष्ट बेईमान लोगों को सज़ा दिलवाएं लेकिन अगर इस राजनीति हो इस नाम पर ब्लेकमेलिंग हो तो ऐसे मुद्दों को जनता में भ्रम फेला कर माहोल बिगड़ने वालों को सरे आम फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए सारा देश जानता हे बोफोर्स,फेयरफेक्स का तमाशा क्या हुआ था लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात आज भाजपा के रामदेव को सपोर्ट हे तो भाजपा रामदेवजी को राज्यसभा में क्यूँ नहीं लेजाती क्यूँ राज्यसभा में एक इमानदार योगगुरु को लेजाकर भ्रष्ट और बेईमान लोगों के खिलाफ बोलने का अवसर नहीं दिया जाता ।
अभी बाबा रामदेव ने रेली करी सारा देश जानता हे किसी भी नेता का नाम लेकर उसे भर्स्ट नहीं कहा गया लोग सोचते थे भ्रस्ताचार के बढ़े बढ़े सबूत उजागर होंगे देश के कई नेता नंगे होंगे लेकिन क्या हुआ कोन भर्स्ट हे काला धन किसके पास हे सबूत कहाँ हे बाबा रामदेव कहते हें वक्त आने पर बताऊंगा वोह कहते प्रधानमन्त्री ईमानदार हे दोहरी बात एक भ्रस्ताचार फेलाने वाला कोई भी व्यक्ति या भ्रस्ताचार होता हुआ देख कर चुप रहने वाला कोई भी व्यक्ति अगर इमानदार कहा जाये तो कहने वाले की मानसिकता क्या हे समझ लेना चाहिए एक व्यक्ति कहे देश के नेता भ्रष्ट हें देश में कला धन हे और मेरे सबूत हें और वोह सबूत जनता को नहीं बताये जाएँ जनता से छुपाये जाएँ तो फिर इसे ब्लेकमेलिंग नहीं तो क्या कहेंगे सारे नेता भ्रष्ट हें प्रधानमन्त्री मनमोहन इमानदार हें और भ्रष्ट कोन हे उसका नाम किसी को नहीं बताया जा रहा हे नाम नहीं लिया जा रहा हे तो फिर क्या यह मुहीम भ्रस्ताचार के खिलाफ हे नहीं न तो दोस्तों भ्रस्ताचार की किसी भी लड़ाई में आप हो चाहे में हूँ सब मिलकर लड़ने को तय्यार बेठे हें लेकिन सबूत जो आपके पास हें छुपा कर मत रखो जनता को बताओ और अगर सबूत आप अपने पास रखते हो मांगने पर भी नहीं बताते नाम किसी का लेते नहीं हो तो फिर सारा देश जानता हे के ब्लेकमेलिंग की कला क्या हे और यह देश इस देश का आसमान ना जाने कहा गयी ब्लेक्मेल्रों को केसे केसे जनता कुछ क्षण कुछ पल के लियें बेवकूफ बन सकती हे लेकिन सबूत नहीं मिले तो फिर सडकों पर तुम्हारे खिलाफ भी आ सकती हे इसलियें देश के भ्रष्ट लोगों के खिलाफ बाबा सबूत पेश करों और इस लड़ाई में हमें भी शामिल करो ।
दोस्तों यह अपना देश हे यहाँ की जनता जनार्दन अपना सबकुछ त्याग कर जिसे सर पर बता कर घुमती हे उसकी पोल खुलने पर उसको सरे राह पीट पीट कर लहुलुहान भी करती हे इसलियें जय भारत जय जनता । अख्तर कहाँ अकेला कोटा राजस्थान

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अपमान

देश में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष बालकृष्ण के रिश्तेदारों पर काले धन के आरोपों के बाद इस मान सम्मान को बचाने के लियें देश के सभी शीर्ष लोग उन्हें इस्तीफे की सलाह दे रहे हें इस सलाह देने वालों में खुद सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश भी शामिल हें ।
वेसे तो इस मामले में सारे कुए में भांग घुटी हे इसलियें सलाह देने का नेतिक अधिकार किसी को भी नहीं हे लेकिन जो आरोप लगते हें अगर उन्हें साबित नहीं किया जाता हे और केवल अफवाहों के आधार पर नेतिकता की बात की जाती हे तो ऐसी राजनितिक नेतिकता से देश का भला होने वाला नहीं हे अगर ऐसा होता रहा तो देश में इस्तीफों का सिलसिला चल जाएगा क्योंकि देश के इस हमाम में हर शख्स नंगा बेठा हे । बालकृष्ण अकेले से नेतिकता की बात करने वाले जरा येह बताएं के क्या औन्होने कभी प्रधानमन्त्री जी से यह बात कही हे क्या उन्होंने कभी किसी धर्म गुरु कभी किसी योग गुरु से यह बात कही हे क्या किसी ने किसी अधिकारी किसी खिलाड़ी से यह बात कही हे थोमस का मामला तो जग ज़ाहिर हे तो दोस्तों सो कोल्ड नेतिकता की बात ठीक नहीं हे फिर निजी स्वार्थों के खातिर किसी की टोपी उछालना यहाँ आम बात हे सारा देश जानता हे के इन दिनों मानवाधिकार आयोग को पंगु बना दिया गया हे और इस आयोग की प्रासंगिकता ही खत्म हो गयी हे कोन लोग इस आयोग के पद के लियें दावेदार हें यह भी किसी से छुपा नहीं हे सब जानते हें के अगर बालकृष्ण हटे तो दुसरा कोन इन्तिज़ार में हे के यह ताजपोशी उसके नाम हो , अमेरिका ने इराक पर जेविक हथियार के आरोप लगाये इराक को तबा कर दिया गया सद्दाम को फंसी दे दी गयी विश्व खामोश तमाशा देखता रहा लेकिन आज तक जेविक हथियार जो इराक पर हमले की बुनियाद थे वोह नहीं मिल पाए हे तो जनाब पदों से हटाने और उन पर लगाने के मामले में आरोप लगाकर नेतिकता की बात पुराणी हो गयी हे अब तो सबूत बाज़ार में लाओ जिसे चाहो ह्त्वाओं का सिद्धांत चल गया हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

anant ka dard

Written By Anurag Anant on रविवार, 27 फ़रवरी 2011 | 5:37 pm


anant ka dard


क्या करें जाये कहाँ ,
राह  कोई दिखती नहीं है ,
ये भूँख की दीवार  है ,
पानी से गिरती नहीं है ,
रात में सोते है हम ,
दाब के घुटनों से पेट ,
बिक रहें हैं आज हम ,
लोग लगा रहें हैं आज रेट ,
१० रू ० रोज में हम बचपन बेच रहें हैं 
झरना बने हुयें  हैं परिवार सींच रहें हैं ,
हम अपने नन्हें हाँथों कचरा ढोते हैं ,
हम भूंख के मारे भैया जी  रिक्शा खीँच रहे हैं ,
बाबू जी हमे बचा लो वरना,
हम सब विद्रोही हो जायेंगें  ,
या नक्सलवादी  हो जायेंगे,
या फिर आतंकवादी हो जायेंगे ,
 बाबू  जी हमे बचा लो वरना ,
हम सब विद्रोही हो जायेंगे ,
''तुम्हारा -- अनंत ''
anantsabha.blogspot.com/  anuraganant.blogspot.com

नेता जी को अफसोस


महंगाई  डायन करे हम पर अत्याचार ;
जनता देती गालियाँ , घटता जन आधार ;
ब्लोगर खोलें ब्लॉग पर हमरी सारी पोल ;
घोटाले जो थे किये पिट गया उनका ढोल .
          शिखा कौशिक http://netajikyakahtehain.blogspot.com/

ब्लॉग जगत के अनुभव --- दिलबाग विर्क

वर्तमान युग इंटरनेट का युग है . इंटरनेट पर हिंदी के ब्लॉग लेखक दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं . ब्लॉग लेखकों के बारे में लोगों की अलग-अलग राय है .कुछ इन्हें कुंठित मानसिकता का मानते हैं तो कुछ इन्हें लेखक मानने को ही तैयार नहीं . ब्लॉग लेखकों के खुद के नजरिए को देखें तो वो समाज में फैली बुराइयों , कुरीतियों को सुधारने में लगे हुए हैं . ब्लॉग लेखक क्या हैं , इनका स्थान क्या है , ये तो समय ही बताएगा .
ब्लॉग लेखन मेरी नजर में :----
      यहाँ तक मेरी निजी मान्यता है , हिंदी का ब्लॉग लेखन विकासशील अवस्था में है और इसमें पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है . हाँ . अच्छे और सार्थक ब्लोग्स की कमी नहीं . एकल और सांझे ब्लॉग हैं , साहित्यिक और सामाजिक ब्लॉग हैं , विचार-विमर्श के ब्लॉग हैं .संक्षेप्त: प्रत्येक रंग है , लेकिन कमी है तो यही कि टांग खींच प्रतियोगिता इसमें भी है . असहमतियां हर जगह होती हैं . भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में असहमति की कद्र की जानी चाहिए , लेकिन जब असहमतियां विवाद का रूप धारण कर लें तब समझना चाहिए कि कुछ-न-कुछ गलत है . जब मुद्दों की बजाए निजी टीका-टिप्पणी होने लगे तब समझना चाहिए कि अभी सभ्य होना बाकि है , अभी शालीनता सीखना शेष है .
मेरा निजी अनुभव :---
         मैं अपनी बात करूं तो मुझे इस संसार में आए जुम्मा-जुम्मा चार दिन हुए हैं . इन दिनों में मुझे भरपूर सहयोग मिला है .उत्साहवर्धक टिप्पणियाँ मिल रही हैं , काबिल लोग अनुसरण कर रहे हैं , सुधार हेतु सुझाव मिल रहे हैं और चाहिए क्या ? इस जगत के कटु अनुभव मेरे निजी नहीं हैं , यही मेरा सौभाग्य है लेकिन जब समाज में कडवाहट व्याप्त हो तो डरना भी जरूरी है और सुधार के प्रयास करना भी क्योंकि आग कब घर तक आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता .
मैं और ब्लॉग :---
     जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि मैं थोड़े दिन पहले ही ब्लॉग जगत से जुड़ा हूँ . इंटरनेट संबंधी मेरा ज्ञान मामूली है . ब्लॉग बनाना इतेफाकन था , लेकिन एक के बाद एक चार एकल ब्लॉग बना डाले , दो सांझे ब्लॉग की सदस्यता ले ली . इसके पीछे कारण यही था कि मैं पंजाबी-हिंदी दोनों में लिखता हूँ  . पंजाबी के लिए sandli pairahn ( dilbag-virk.blogspot.com ) ब्लॉग बना लिया . हिंदी साहित्य में रूचि है . साहित्यकार तो खुद नहीं कहूँगा लेकिन साहित्य सृजन की कोशिश करता हूँ . दो पुस्तकें प्रकाशित हैं --
   1. चंद आंसू , चाँद अल्फाज़ ( अगज़ल संग्रह )
   2 . निर्णय के क्षण ( हरियाणा साहित्य अकादमी की अनुदान योजना के अंतर्गत चयनित कविता संग्रह )
अत: शुद्ध साहित्यिक ब्लॉग " साहित्य सुरभि "  (sahityasurbhi.blogspot.com ) बनाया . क्रिकेट लेख पत्र - पत्रिकाओं के लिए लिखता रहा हूँ अत: square cut ( dilbagvirk.blogspot.com ) ब्लॉग बनाया . अन्य विचारों को , चर्चाओं को शब्दों में ढालने के लिए virk's view ( dsvirk.blogspot.com ) ब्लॉग बनाया . अलग-अलग ब्लॉग बनाने के पीछे यह सोच भी रही कि सबकी पसंद अलग-अलग होती है , फिर क्यों सबको सब कुछ पढने के लिए विवश किया जाए . सांझे ब्लॉग में AIBA  और HBFI का सदस्य बनकर बेहद्द खुश हूँ क्योंकि इससे मैं खुद को ब्लॉग परिवार से जुड़ा महसूस करता हूँ .
मेरे लक्ष्य 
    हालाँकि कुछ विशेष लक्ष्य लेकर नहीं चला हूँ , फिर भी अच्छा लिखने , सद्भाव-स्नेह बढाने की आकांक्षा है . ख़ुशी फ़ैलाने में योगदान दे सकूं और जहाँ तक हो सके दूसरों के गम बाँट सकूं , ऐसी मन में धारणा है . इन लक्ष्यों को पाने में कितना सफल रहूँगा ये भविष्य के गर्भ में है . आखिर में बस इतना 
            अंजाम की बात खुदा जाने 
            कोशिश तो है  इंसां होने की .

क्या यही प्यार हे

क्या यही प्यार हे ..... हाँ यही प्यार हे ...

दोस्तों जिंदगी और दुनिया का एक सच प्यार सीमाओं को नहीं देखता हे प्यार तोड़ता नहीं हे प्यार जोड़ता हे प्यार न धर्म,ना जाती , न समाज , न अमीरी गरीबी को देखता हे यह तो बस हो जाता हे और जो इस प्यार को निभा लेता हे वोह अम्र हो जाता हे बहुत जोड़े हें जो प्यार में विरह के कारण अमर हो गये लेकिन कुछ खुश नसीब ऐसे भी हें जिन्हें जद्दो जहद और अपने समर्पण के कारण प्यार नसीब होता हे और शायद यही प्यार हे ।
दोस्तों मेरे एक अधीनस्थ सहयोगी साथी वकील नईमुद्दीन काजी हें दो वर्ष पूर्व उन्होंने एक निधि शर्मा नामक लडकी से प्यार की बात जब मुझे बताई तो मेने उनको इस आग से दूर रहने की सलाह दी नईमुद्दीन को निधि शर्मा की मान बहुत प्यार करती थी और आखरी वक्त में जब वोह केंसर से पीड़ित थीं तो एक पुत्र की तरह नईमुद्दीन ने उनकी सेवा की मान की इच्छा थी की उनकी इकलोती बेटी का ख्याल उनके प्रति समर्पित नोजवान नईमुद्दीन ही रखे इसके लियें उन्होंने इच्छा भी ज़ाहिर की । कुदरत निष्ठुर होती हे परीक्षाएं लेती हे निधि शर्मा जिस फेक्ट्री में अधिकारी थे वोह फेक्ट्री जे के बंद हो गयी मां केसर के बाद खुदा को प्यारी हो गयी और भाई अचानक ट्रेन के नीचे आने से दोनों पैर गंवा बेठे भाई अंकुर हिम्मत वाले थे खुदा ने उन्हें बचा लिया इस वक्त भी हर कदम पर नेम इस परिवार के साथ डटे रहे खून देने से लेकर पसीना बहाने तक सभी काम इस नोजवान ने किये और बस प्यार हो गया , मेने मेरे सहयोगी नईमुद्दीन को समझाया के असम्भव हे इसलियें इस रिश्ते को भूल जाओ क्योंकि तुम दोनों के परिजन मानेंगे नहीं और अपराध हम करने नहीं देंगे । यकीन मानिये नईमुद्दीन ने भरोसे से कहा के अगर मेरे और निधि के परिजन राज़ी नहीं होंगे तो हम समाज को बदनाम नहीं करेंगे लेकिन कहते हें के प्यार के आगे सब नत मस्तक होते हें और फिर समर्पित प्यार तो भगवान का दुसरा भरोसा होता हे निधि शर्मा के पिता और नईमुद्दीन के पिता दोनों मिले दोनों ने पहले तो स्पेशल मेरिज एक्ट में कोर्ट मेरिज की बात कही जब दोनों के पिता मेरे पास आये तो मुझे अजीब सा लगा में नईमुद्दीन, निधि शर्मा ,और दोनों के पिता जब कोटा कलेक्टर टी रविकांत के पास पहुंचे तो उन्हें खुद को ताज्जुब हुआ उन्होंने निधि के पिता से अकेले में बातें की सच और झूंठ जान लेकिन जब वोह संतुष्ट हुए तो दोनों को आशीर्वाद देकर मेरिज रजिस्टर्ड कर दी ।
यह तो हुई चोरी छुपे प्यार और विवाह की बात लेकिन निधि शर्मा समाज से मुंह चुराने वाले नहीं थे उन्होंने और नईमुद्दीन काजी के पिता ने संकल्प लिया के कार्यक्रम सार्वजनिक करेंगे एक तरफ ब्राह्मण परिवार दूसरी तरफ काजी परिवार लेकिन चारों तरफ प्यार ही प्यार बस कल २७ फरवरी तारीख तय हुई नईमुद्दीन और निधि के परिजनों ने शादी के कार्ड छापे और उनमें नाम नईमुद्दीन वेड्स निधि शर्मा और निधि शर्मा वेड्स नईमुद्दीन काजी छपने के बाद जब रिश्तेदारों और मित्रों तक पहुंचाए गये तो सब भोच्क्के रह गये एक बार तो लोगों को यकीन नहीं आया के प्यार में इतना साहस भी होता हे जो सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार कर ले फिर कल शादी में सभी वर्ग सभी धर्म के लोग मिल जुल रहे थे और गंगा जमनी संस्क्रती के इस विवाह को आशीर्वाद दे रहे थे आज नईमुद्दीन का रिसेप्शन हे कल विदाई हुई हे , तो दोस्तों कोई काम नहीं हे मुश्किल जब क्या इरादा पक्का और शायद यही प्यार हे ...... ऐसे में इश्वर खुदा का पैगाम के विवाह तो अर्श पर तय होते हें लेकिन रस्में फर्श पर निभाई जाती हे तो जनाब यह वही विवाह हे जो कोटा के इतिहास में पहला विवाह बन गया हे वरना मुंबई फ़िल्मी दुनिया में तो यह आम बात हे दोनों मोहब्बत करने वालों को सलाम खुदा दोनों को सलामत और जीवन भर खुश रखे आमीन आमीन आमीन । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

अदालतों में जजों की दरकार फिर भी त्वरित न्याय की झूंठी पुकार

Saturday, February 26, 2011

वैकल्पिक विवाद निस्तारण केंद्र का शिलान्यास

राजस्थान में राष्ट्रीय विधिक न्यायिक प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश ने दोसा में पहले वैकल्पिक विवाद निस्तारण केंद्र का शिलान्यास किया ,उक्त समारोह में राजस्थान के मुख्य न्यायधीश ऐ के मिश्र और मुख्यमत्री अशोक गहलोत भी शामिल थे ।
वैकल्पिक विवाद निस्तारण में अदालत के अलावा दुसरे माध्यमों से जनता के विवादों के निस्तारण के प्रयास शामिल हें जिनमें पंच फेसले, राजीनामे से फेसले और विवाद के पूर्व समझाइश से मामलों का निस्तारण शामिल हे राजस्थान के मुख्य न्यायधीश ने कहा के इस पहल में हमने राजस्थान में अब तक ७० हजार से भी अधिक मामलों का निस्तारण मेघा लोक अदालत के माध्यम से कर डाला हे । राजस्थान में ग्रामीण न्यायालय और दुसरे माध्यमों से मुकदमों के निस्तारण का भी बखान किया गया यहाँ ऐसे १८ केंद्र खोलने की योजना हे , मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस अवसर पर प्रकरणों के त्वरित निस्तारण पर जोर दिया ।
सुप्रीम कोर्ट , हाईकोर्ट और सरकार सभी मिलकर अनावश्यक रुपया खर्च करने में लगे हें लेकिन धरातल पर आगर हम देखते हें तो सेठी आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक मजिस्ट्रेट जजों की नियुक्ति नहीं हे राजस्थान में सेकड़ों मजिस्ट्रेट और जजों के पद रिक्त पढ़े हें हालात यह हें के हाईकोर्ट में भी एक दर्जन जज के पद रिक्त पढ़े हें जो जज हे उनकी हालत सब जानते हें निचली अदालतों में मजिस्ट्रेट और जज चेम्बर में बेठे रहते हें अदालत में सुनवाई में कितना वक्त देते हें यह तो अगर सभी न्यायालयों में कमरे लगा दिए जाएँ तो खूद ही पता चल जाएगा के कोनमजिस्ट्रेट कोन जज कितना काम कर रहा हे हाईकोर्ट के हाल यह हे के यहाँ एक मामला अगर पेश हो जाए तो फिर सालों उसकी सुनवाई नहीं होती जो लोग जेल में बंद हें उनके हाल बहुत बुरे हें हाल यह हें के कई बरसों तक उनकी सुनवाई नहीं हे जबकि जजों को हिदायत होता चाहिए के एक अपील जिसमें मुलजिम जेल में हें उसका जो भी निस्तारण हो वोह प्राथमिक सुनवाई के दोरान तुरंत किया जाए लेकिन ऐसा होता नहीं हे सरकार की स्थिति यह हे के यहाँ न्यायालयों के लियें बजट नहीं हे और सेकड़ों न्यायालयों में जजों के पद रिक्त हे राजस्थान में हर जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और कार्यपालक मजिस्ट्रेट में एस डी एम और ऐ डी एम प्रशासनिक कार्यों में लगे रहते हें और हालात यह हें के इन पद वाले अधिकारीयों के पास जो काम होते हे वहां तारीख पर तारीख ही पद्धति रहती हे ऐसे में इन पदों पर भी एक प्रशासनिक और एक न्यायिक दो अधिकारीयों की नियुक्ति होना चाहिए ताकि मुकदमों का त्वरित निस्तारण हो सके लेकिन देश में स्थायी लोक अदालत का बोलबाला किया जा रहा हे हालात यह हें के इस स्थायी लोक अदालत की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लियें हमारे देश में जो अल्तमश कबीर राष्ट्रीय अध्यक्ष हें वही चेक के मामले में चेक के कानून से अलग हट कर समझोते के दोरान अनावश्यक १५ प्रतिशत स्थाई लोक अदालत में जमा करने का पक्षकारों पर भार डाल देते हें ऐसे में केसे पक्षकारों को सस्ता सुलभ और त्वरित न्याय मिल सकेगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

'ममता महान क्यों ?' एक संवाद महान ममता मंडल से ANWER JAMAL

महान ममता मंडल की स्थापना एक स्वागत योग्य क़दम है । हिंदी ब्लाग जगत में यह अभूतपूर्व है लेकिन हिंदी ब्लाग जगत के नर-मठों के कर्मठों की ओर से इसे नज़र अंदाज़ कर दिया गया क्योंकि उनका मानना है कि अच्छा काम केवल हम कर सकते हैं या फिर यूं कह लें कि जो काम वे करते रहते हैं , उनकी नज़र में बस वही काम अच्छा है । जब ये अपने वर्ग के ही सदस्यों की, दूसरे पुरुषों के अच्छे कामों की सराहना से बचते हैं तो ये नारी की कुर्बानियों को क्या समझ पाएँगे ?
भूख जब बच्चों की आँखों से उड़ा देती है नींद
रात भर क़िस्से कहानी कह के बहलाती है माँ

सबकी नजरें जेब पर हैं , इक नज़र है पेट पर
देख कर चेहरे को हाले दिल समझ जाती है माँ

.....और यही वजह है कि ममता महान है और ममता के कारण ही नारी भी महानता की उन ऊँचाइयों पर है कि उसके सामने मर्द की बड़ी से बड़ी ऊँचाई सिर्फ गहराई ही नज़र आती है ।

वंदना गुप्ता जी को इस ब्लाग का चार्ज देकर और महान ममता मंडल की स्थापना करके मेरी नज़र में जनाब सलीम ख़ान साहब ने एक ब्लाग प्रवर्तक का दर्जा हासिल कर लिया है ।
अब अगर किसी को विरोध करना है तो वह जल्दी से अपना विरोध दर्ज करा दे अन्यथा वह सहमत समझ लिया जाएगा ।

आडवाणी कि 'बिटिया' ने ही उन्हें भुला दिया!

Written By IRFAN on शनिवार, 26 फ़रवरी 2011 | 11:56 pm

रमन सिंह के हम्‍माम में नेता पत्रकार सब नंगे...!


छत्‍तीसगढ के मुख्‍यमंत्री और राजनांदगांव के विधायक डा रमन सिंह का पिछले कुछ सालों पहले लिया इंटरव्यू मुझे खूब याद आ रहा है। मुझे याद आ रहा है, उस वक्‍त डाक्‍टर साहब ने केन्‍द्र में मंत्री पद से इस्‍तीफा दिया था और छत्‍तीसगढ में ‘कोमा’ की हालत में आ चुकी पार्टी भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष का पद संभाला था। एक ‘डाक्‍टर’ के अध्‍यक्ष बनने के बाद कोमा में जा चुकी पार्टी में जान आने लगी और  इसके बाद इस पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाई और यही डाक्‍टर सरकार का मुखिया बना।
खैर मैं बात कर रहा हूं, प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष और सांसद डाक्‍टर रमन सिंह से लिए एक इंटरव्यू का। मुझे जहां तक याद है एक सवाल के जवाब में डाक्‍टर साहब ने कहा था, ‘मैं इकलौता ऐसा दुस्‍साहसी सांसद हूं, जो अपनी निधि के वितरण की सूची पुस्‍तक के रूप में प्रकाशित करता हूं।’(यह इंटरव्यू 3 अगस्‍त 2003 को हरिभूमि अखबार में प्रकाशित हुआ है और वर्ष 2004 में डाक्‍टर साहब पर लिखी मेरी किताब ‘मेरी स्‍याही में डाक्‍टर रमन’ में भी शामिल है।) इस इंटरव्यू को याद मैंने इसलिए किया क्‍योंकि अब यदि मुख्‍यमंत्री बनने के साढे सात साल बाद यदि डाक्‍टर साहब अपने मुख्‍यमंत्री स्‍वेच्‍छानुदान के वितरण को लेकर यदि पुस्‍तक के रूप में प्रकाशित करते तो शायद इस पुस्‍तक का नाम ‘डा. रमन के हम्‍माम में नेता पत्रकार सब नंगे’  ही होता।
सूचना के अधिकार के तहत मुख्‍यमंत्री स्‍वेच्‍छानुदान के बंटवारे की जानकारी जब मैंने निकाली और इस सूची का अवलोकन किया तो मुझे डाक्‍टर साहब का बरसों पुराना इंटरव्यू याद आ गया और साथ ही जेहन में इसका शीर्षक भी आ गया। मैं बता दूं कि मुख्‍यमंत्री स्‍वेच्‍छानुदान की जो सूची मेरे पास है उसमें वर्ष 2003 से लेकर 2009 तक के वितरण की जानकारी है। पूरे प्रदेश भर की जानकारी है लेकिन उसमें से मैंने राजनांदगांव जिले के कुछ प्रमुख और चर्चितनेताओं और पत्रकारों की सूची को ही छांटी है।  शेष प्रदेश की सूची भी यदि यहां मैं दे दूं तो कई पन्‍ने भर जाएंगे और इसमें एक दिक्‍कत यह भी है कि प्रदेश भर के लोगों में कौन किस पार्टी का है, किस पद पर है इस पर काफी ‘होमवर्क’ करना पडेगा। पत्रकारों के अखबारों को लेकर भी तगडा होमवर्क करना पडेगा। इस लिए मैंने सिर्फ ‘ट्रेलर’ के तौर पर सिर्फ राजनांदगांव के पत्रकारों, नेताओं की सूची तैयार की है। अब ट्रेलर देखकर ही पूरी फिल्‍म का अंदाजा लगा लिया जाए।
जहां तक मेरी समझ है, किसी भी मंत्री या मुख्‍यमंत्री को ‘स्‍चेच्‍छानुदान’ का अधिकार दिया जाता है, क्षेत्र की जनता की  मदद के लिए। चाहे वह  इलाज के लिए हो या जीविकोपार्जन के लिए। जनता भी ऐसी जो सक्षम न हो, गरीब हो, जिसे वास्‍तव में मदद की दरकार हो। पर मुख्‍यमंत्री साहब की निधि के वितरण को देखकर ऐसा कतई नहीं लगता। मालदार नेता जिनमें कुछ तो दो तीन हजार रूपए की मदद लेने के बाद अब विधायक भी बन गए हैं। लालबत्‍ती धारी हो गए हैं। पत्रकार भी ऐसे जो सक्षम हैं। जिनकी पारिवारिक पृष्‍ठभूमि आर्थिक रूप से मजबूत है।
अब चलिए नाम भी दे ही देता हूं। पहले नेताओं का उसके बाद पत्रकारों का। मई 2004 में संघ से जुडे नेता रामेश्‍वर जोशी को हृदय रोग के उपचार के लिए 25 हजार रूपए, श्री जोशी को जून 2007 में फिर से जिला सहकारी केन्‍द्रीय बैंक के अध्‍यक्ष शशिकांत व्दिवेदी इलाज के लिए 25 हजार रूपए,  जुलाई 2004 में राजनांदगांव नगर निगम में पार्षद रहीं डा  रेखा मेश्राम को इलाज के लिए 20 हजार रूपए, अगस्‍त 2004 में मौजूदा जिला सहकारी केन्‍द्रीय बैंक के अध्‍यक्ष शशिकांत व्दिवेदी की पत्‍नी विदया व्दिवेदी को हृदय रोग के इलाज के लिए 25 हजार रूपए, श्री  व्दिवेदी को इससे पहले जून 2004 में पुत्री रानू के इलाज के लिए 15 हजार रूपए,  जून 2005 में भाजपा नेता योगेश दत्‍त मिश्रा को दुर्घटना में घायह होने पर इलाज के लिए 20 हजार रूपए, अगस्‍त 2005 में भाजपा नेता और कृषि उपज मंडी के उपाध्‍यक्ष कोमल सिंह  राजपूत को पुत्र के इलाज के लिए 10 हजार रूपए, डोंगरगढ क्षेत्र के जनपद सदस्‍य रहे राजकुमार व्दिवेदी को स्‍वयं के इलाज के लिए 25 हजार रूपए, मई 2005 में डोंगरगढ के मौजूदा विधायक रामजी भारती को इलाज के लिए 10 हजार रूपए, मार्च 2006 में डोंगरगांव के मौजूदा विधायक खेदूराम साहू को पुत्र खेमचंद के मानसिक रोग के इलाज के लिए 5 हजार रूपए, इसी काम के लिए खेदूराम साहू को  मई 2006 में 10 हजार रूपए, अगस्‍त 2007 में 3 हजार रूपए और फरवरी 2008 में पांच हजार रूपए, फरवरी 2008 में भाजपा नेता गुलाब गोस्‍वामी जिला सहकारी केन्‍द्रीय बैंक के अध्‍यक्ष शशिकांत व्दिवेदी को पत्‍नी अनिता के इलाज के लिए 50 हजार रूपए, जून 2008 में भाजपा उपाध्‍यक्ष धनराज शर्मा को पत्‍नी निर्मल के इलाज के लिए 30 हजार रूपए, जून 2008 में भाजपा नेता मुकेश बघेल को इलाज के लिए 25 हजार रूपए, जुलाई 2008 में भाजपा पार्षद सलमा बेगम को पुत्र की शादी के लिए 10 हजार रूपए मुख्‍यमंत्री स्‍वेच्‍छानुदान से जारी किए गए। समाजिक संस्‍थाओं से जुडे लोगों की बात की जाए तो राजनांदगांव में चक्रधर कत्‍थक कल्‍याण केन्‍द्र के नाम से संस्‍था चलाने वाले कृष्‍ण कुमार सिन्‍हा को  दिसम्‍बर 2008 में हृदय रोग के इलाज के लिए 20 हजार रूपए और फिर मई 2009 में पुस्‍तकालय और वादय यंत्र के लिए 50 हजार रूपए दिए गए। रघुवीर रामायण समिति के उपाध्‍यक्ष गुरूचरण मखीजा को मानस गान प्रतियोगिता के लिए 10 हजार रूपए दिए गए। स्‍टेट बैंक में अधिकारी और लोक सांस्‍कृतिक संस्‍था चलाने वाली  कविता वासनिक को वाष्‍प यंत्र हेतु 11 हजार रूपए जुलाई 2003 में दिया गया। जून 2003 में शैक्षणिक इंस्‍टीटयूट चलाने वाले सुशील कोठारी को उच्‍च शैक्षणिक  योग्‍यता के लिए 11 हजार रूपए दिए गए।(यह आबंटन अजीत जोगी के मुख्‍यमंत्रित्‍व काल में हुआ)
अब पत्रकारों की बात की जाए तो जुलाई 2005 में खुद का  अखबार निकालने वाले सुरेश सर्वेद  को दुर्घटना में घायल होने पर 10 हजार रूपए, अगस्‍त 2005 में डोंगरगढ के पत्रकार नैनकुमार जनबंधु को अत्‍यंत गरीब बताते हुए 5 हजार रूपए, दिसम्‍बर 2005 में जागरण के पत्रकार रवि मुदिराज को पैर की हडडी के उपचार के लिए 15 हजार रूपए,  दिसम्‍बर 2006 में स्‍वयं का अखबार निकालने वाले श्रीपाल शर्मा को पौत्र ध्रुव के इलाज के लिए 20 हजार रूपए, अप्रैल 2007 में सबेरा संकेत की पत्रकार प्रेरणा तिवारी को 25 हजार रूपए, अगस्‍त 2007 में हरिभूमि के पत्रकार आलोक तिवारी को फूफा  के हृदय रोग के इलाज के लिए 25 हजार रूपए, जनवरी 2008 में हरिभूमि के पत्रकार सचिन अग्रहरि को चाचा  के इलाज के लिए 1 लाख रूपए, जून  2008 में सबेरा संकेत के पत्रकार प्रेम प्रकाश साहू को भाई उपेन्‍द्र के इलाज के लिए 30 हजार रूपए, जनवरी 2009 में साहित्‍यकार आभा श्रीवास्‍तव को इलाज के लिए 10 हजार रूपए, आभा को ही फरवरी 2007 में कविता संग्रह के प्रकाशन के लिए 10 हजार रूपए, अप्रैल 2007 में पत्रकार लालाराम सोनी को पत्‍नी के इलाज के लिए 10 हजार रूपए दिए गए।
ये सूची तो महज एक उदाहरण है। राजनांदगांव जिले भर के भाजपा के छोटे औ बडे नेताओं को इलाज या फिर दिगर कामों के लिए मुख्‍यमंत्री स्‍वेच्‍छानुदान से जारी की गई राशि का उल्‍लेख किया जाए या फिर पूरे पत्रकारों का, सामाजिक संस्‍थाओं का नाम  लिखा जाए तो मैंने पहले ही कहा कई पन्‍ने भर जाएंगे। ये तो प्रतीक भर हैं, ये दिखाने के लिए कि ऐसी निधियों का क्‍या हाल होता है।
क्‍या कहेंग आप ? और क्‍या जवाब है इसका सांसद रहने अपनी निधि के किताब के रूप में प्रकाशित कराने का दंभ भरने वाले मुख्‍यमंत्री डा रमन सिंह का। जवाब का इंतजार रहेगा।

- शूर्पणखा काव्य उपन्यास----पूर्वा पर.. .....रचयिता -डा श्याम गुप्त


   शूर्पणखा काव्य उपन्यास-- नारी विमर्श पर अगीत विधा खंड काव्य .....रचयिता -डा श्याम गुप्त  
                                              
                                 विषय व भाव भूमि
              स्त्री -विमर्श  व नारी उन्नयन के  महत्वपूर्ण युग में आज जहां नारी विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों से कंधा मिलाकर चलती जारही है और समाज के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति की  ओर उन्मुख है , वहीं स्त्री उन्मुक्तता व स्वच्छंद आचरण  के कारण समाज में उत्पन्न विक्षोभ व असंस्कारिता के प्रश्न भी सिर उठाने लगे हैं |
             गीता में कहा है कि .."स्त्रीषु दुष्टासु जायते वर्णसंकर ..." वास्तव में नारी का प्रदूषण व गलत राह अपनाना किसी भी समाज के पतन का कारण होता  है |इतिहास गवाह है कि बड़े बड़े युद्ध , बर्बादी,नारी के कारण ही हुए हैं , विभिन्न धर्मों के प्रवाह भी नारी के कारण ही रुके हैं | परन्तु अपनी विशिष्ट क्षमता व संरचना के कारण पुरुष सदैव ही समाज में मुख्य भूमिका में रहता आया है | अतः नारी के आदर्श, प्रतिष्ठा या पतन में पुरुष का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है | जब पुरुष स्वयं  अपने आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, धार्मिक व नैतिक कर्तव्य से च्युत होजाता है तो अन्याय-अनाचार , स्त्री-पुरुष दुराचरण,पुनः अनाचार-अत्याचार का दुष्चक्र चलने लगता है|
                 समय के जो कुछ कुपात्र उदाहरण हैं उनके जीवन-व्यवहार,मानवीय भूलों व कमजोरियों के साथ तत्कालीन समाज की भी जो परिस्थिति वश भूलें हुईं जिनके कारण वे कुपात्र बने , यदि उन विभन्न कारणों व परिस्थितियों का सामाजिक व वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण किया जाय तो वे मानवीय भूलें जिन पर मानव का वश चलता है उनका निराकरण करके बुराई का मार्ग कम व अच्छाई की राह प्रशस्त की जा सकती है | इसी से मानव प्रगति का रास्ता बनता है | यही बिचार बिंदु इस कृति 'शूर्पणखा' के प्रणयन का उद्देश्य है |
                   स्त्री के नैतिक पतन में समाज, देश, राष्ट्र,संस्कृति व समस्त मानवता के पतन की गाथा निहित रहती है | स्त्री के नैतिक पतन में पुरुषों, परिवार,समाज एवं स्वयं स्त्री-पुरुष के नैतिक बल की कमी की क्या क्या भूमिकाएं  होती हैं? कोई क्यों बुरा बन जाता है ? स्वयं स्त्री, पुरुष, समाज, राज्य व धर्म के क्या कर्तव्य हैं ताकि नैतिकता एवं सामाजिक समन्वयता बनी रहे , बुराई कम हो | स्त्री शिक्षा का क्या महत्त्व है? इन्ही सब यक्ष प्रश्नों के विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक तथ्य प्रस्तुत करती है यह कृति  "शूर्पणखा" ; जिसकी नायिका   राम कथा के  दो महत्वपूर्ण व निर्णायक पात्रों  व खल नायिकाओं में से एक है , महानायक रावण की भगिनी --शूर्पणखा | अगीत विधा के षटपदी छंदों में निबद्ध यह कृति-वन्दना,विनय व पूर्वा पर शीर्षकों के साथ  ९ सर्गों में रचित है |
               पिछली पोस्टों में वन्दना व विनय के आगे...यहाँ ..प्रस्तुत है....पूर्वापर-- जिसमें मानव का, व्यक्ति मात्र का मूल-स्वरुप क्या होता है , कोइ क्यों बुरा बन जाता है व बुराई भाव समाज से कैसे दूर या कम हो..शूर्पणखा के माध्यम से इस काव्य-उपन्यास में क्या कहा गया है इसकी पूर्व -भूमिका का वर्णन किया गया है ....कुल १६ छंद.....
१-
"विधि वश सुजन कुसंगति परहीं -
फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं१|"
सच ही है कि आत्मतत्व और-
जीव सदा निर्मल होता है  |
शास्त्र मान्यता यही रही है,
व्यक्ति तो सुजन ही होता है || 
२-
हो विधि बाम विविधि कारण से,
सामाजिक पारिवारिक स्थिति;
राजनीति की जटिल परिस्थिति |
पूर्व जन्म के संचित कर्म व,
सुदृड़ नैतिक-शक्ति की कमी;
से कुकर्म करने लगता है ||

३-
 तब वह बन जाता है दुर्जन,
फनि-मनि सम निज गुन दिखलाता|
यद्यपि अंतःकरण में यही,
सदा जानता, अनुभव करता;
कि वह ही है असत-मार्ग पर,
सत का मार्ग लुभाता रहता ||
४-
 और समय आने पर कहता,
'तौ मैं जायि बैर हठि करिहौं२ |'
इच्छा अंतर्मन में रहती,
प्रभु के बाणों से तर जाऊं |
सत्य रूप है यही व्यक्ति का,
शिवं सुन्दरं आत्मा-तत्व यह ||
५-
इसी तथ्य को रखें ध्यान में,
घृणा बुरे से ही न करें बस;
अपितु बुराई मात्र से बचें,
और उसी का नाश करें हम |
मिटे बुराई यदि समाज से ,
बुरे पात्र उत्पन्न न होंगे ||
६-
 समय आगया, न्याय करें हम,
जो बहु ज्ञात कुपात्र समय के|
यदि झांकें उनके अंतर में ,
और जानलें कारण उनके;
विविध कुकर्म क्रिया कलाप के ,
ताकि बच सकें उन कर्मों से ||
७-
रोक सकें उन कुरीतियों को,
स्थितियों को,परिस्थितियों को;
उत्पन्न और विकसित होने से,
देश समाज राष्ट्र में, जग में |
ताकि सुजन, दुर्जन न बन सकें ,
मिटे बुराई भाव जगत से ||
८-
यद्यपि इसके लिए, व्यक्ति वह,
स्वयं ही है उत्तरदायी ;
है दायित्व पर राज्य,धर्म का ,
साहित्यिक बौद्धिक जग का भी |
सम्मानित-संभ्रांत जनों का ,
होता है दायित्व अधिक ही ||
९-
अति-भौतिक अभिलाषा से ही,
मनुज दूर हो जाता प्रभु से |
श्रृद्धा औ विशवास न रहता ,
अनासक्ति का भाव न रहता;
 घिर जाता है लोभ-मोह में ,           
नैतिक बल भी गिर जाता है || 
१०-
नैतिक बल जिसमें होता है,
हर प्रतिकूल परिस्थिति में वह;
सदा सत्य पर अटल रहेगा |
किन्तु भोग-सुख लिप्त सदा जो,
दास परिस्थिति का बन जाता,
निज गुन ,दुष्ट कर्म दिखलाता ||
११-
यह विचार ही सार-भाव है,
इस कृति की अंतर्गाथा का;
कृति-प्रणयन उद्देश्य यही है |
भाव सफल तब ही होता है,
ईश्वर की हो कृपा,अन्यथा-
विधिवश३पर वश किसका चलता ||
१२-
शूर्पणखा भी एक पात्र है,
जग विजयी रावण की भगिनी |
बनी कुपात्र परिस्थितियों वश,
विधवा किया स्वयं भ्राता ने,
राज्य-मोह, पद-लिप्सा कारण ;
पति, रावण विरोध पथ पर था ||
१३-
यद्यपि वह विदुषी नारी थी,
शूर्प मनोहारी नख-शिख थे |
पर अन्याय अनीति व्यवस्था,
के प्रति घृणा-द्वेष के कारण;
अनाचार में लिप्त हुई थी,
भाव राक्षसी अपनाया था ||
१४-
सुख-विचरण, स्वच्छंद आचरण,
असुर वंश की रीति-नीति युत;
नारी की ही प्रतिकृति थी वह |
भोगी संस्कृति में नारी-नर,
शारीरिक सौन्दर्य विलास को;
ही  हैं , जीवन-भाव मानते ||
१५-
परित्यक्ता, पतिहीना नारी,
अधिक आयु जो रहे कुमारी;
पति पितु भ्राता अत्याचारी,
पति विदेश यात्रा रत रहता ;
भोग रीति-नीति में पली हो,
अनुचित राह शीघ्र अपनाती ||
१६-
जन-स्थान४ की स्वामिनि थी वह,
था अधिकार दिया रावण ने |
वही बनी थी मुख्य भूमिका,
लंका-पति के पतन का कारण |
विडम्बना थी शूर्पणखा की,
अथवा विधि का लेख यही था ||      ----आगे क्रमश:...सर्ग एक ...चित्रकूट ....

(कुंजिका - १ व २--तुलसी कृत रामचरित मानस से ;  ३=ईश्वर इच्छा ;  ४=विन्ध्याचल वन-प्रदेश के दक्षिण में समुद्र तक का विभिन्न जनपदों में बंटा आबादी वाला भाग |)

भीषण सड़क दुर्घटना दो की मौत

दुर्घटना में मृत दोनों युवक

चक्काजाम करते नागरिक 

कातिल बनी एम्बुलेंस
भदोही/उत्तरप्रदेश---संत रविदास नगर भदोही के नेशनल हाइवे न 2 पर लालानगर के पास शनिवार को  एक भीषण सड़क दुर्घटना हो गयी जिसमे दो    लोगो की मौके पर ही जान चली गयी ! इलाहबाद से वाराणसी की तरफ जा रही एम्बुलेंस लालानगर के पास आकर अपना संतुलन खो बैठी और सामने से आ रही साईकिल को अपनी चपेट में लिया जिससे साईकिल पर सवार दो युवको की मौत हो गयी और नियंत्रण खो कर एम्बुलेन्स सड़क के किनारे गड्डे में जा गिरी ! वही आक्रोशित ग्रामीणों ने NH 2 को जाम कर हंगामा कर दिया ! काफी जिद्दोजहत के बाद प्रशासन ने मुआवजे का आश्वाशन देकर जाम खुलवाया !

 घटना भदोही के लालानगर की है जहा चंडीगढ़  से बिहार  की तरफ तेज रफ़्तार से एम्बुलेन्स जा रही थी और अचानक वह अपना नियंत्रण खो बैठी और सामने की तरफ से आ रहे दो साईकिल सवारों को टक्कर मार दी ! टक्कर इतनी तेज थी की साईकिल सवार काफी दूर जाकर गिरे और किशोर कुमार ,रवि शंकर जो की लालानगर के निवासी है उनकी मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गयी ! वही आक्रोशित ग्रामीणों ने NH 2 पर जाम लगा दिया और मांग करने लगे की म्रतक के परिजनों को उचित मुआवजा दिया जाये ! ग्रामीणों का कहना है की NH 2 पर रोजाना तेज रफ़्तार से आती गाड़िया निर्दोष लोगो की जान ले लेती है पर प्रशासन धयान ही नहीं देता है यहाँ तक की चौराहों पर ट्रेफिक पुलिस की व्यवथा तक नहीं है !
- वही घंटो के जाम के बाद आलाधिकारी भारी पुलिस बल के साथ मौके पर आये और पहले तो हल्का बल प्रयोग किया गया पर ग्रामीणों का गुस्सा थमने का नाम ही नहीं ले रहा था ! तब कही जाकर SDM औराई जयनाथ यादव   ने उचित मुआवजा का आश्वाशन दिया और जाम खुलवाया ! हलाकि गाँव में बने तनाव को देखते हुए NH 2 पर  भारी सुरक्षा बल तैनात कर दिया गया है ! SDM ने बताया की शव को पोस्ट मार्टम के लिए भेजा जा रहा है और म्रतक के परिजनों को उचित मुआवजा भी दिया जायेगा ! और दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी !
 बता दे उक्त स्थान पर अक्सर दुर्घटना घटने के बावजूद प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है.

"साया"

मेरे साये ने कल मुझसे कहा
किसको खोजता फिरता है तू
इधर उधर
मैं तो तेरे साथ हूँ
यहाँ कोई नही है तेरा
बाहर अपना कोई नही
जो तुझे समझ सके
फिर क्यूँ ढूंढता फिरता है
तू इन परायों में अपनों को
जब मैं तो तेरे साथ हूँ
यहाँ जीवन दो दिन का मेला है
कोई न किसी का साथी है
इस परायी बस्ती में
सिर्फ़ अपना ही मिलता नही
जो है तेरा अपना
उसको तू अपनाता नही
जो है तेरे साथ हर पल
उसको तू पहचानता नही
क्या कभी कोई अपने
साये से जुदा हो पाया है
फिर क्यूँ तू
अपने साये को पुकारता नही
यहाँ सब छोड़ जायेंगे
कोई न साथ निभाएगा
एक तेरा साया ही
सिर्फ़ तेरे साथ जाएगा
फिर क्यूँ किसी को खोजता है
मैं तो तेरे साथ हूँ

कविता ----- दिलबाग विर्क

                 बिटिया
                   "बेटी न कहो मुझे 
             मैं आपका बेटा हूँ पापा ."
             - यह जिद्द 
             बिटिया करती है अक्सर 
             पता नहीं 
             क्यों और कैसे 
             लड़का होने की चाह
             घर कर गई है 
             उसके मन में .

             वैसे मान सकता हूँ मैं 
             बेटा - बेटी एक समान होते हैं 
             बेटी भी बेटा ही होती है 
             मगर नहीं मान पाता 
             बेटी को बेटा .
             कैसे मानूं  ?
             क्यों मानूं  ?
             बेटी को बेटा 
             बेटा होना कोई महानता तो नहीं 
             बेटी होना कोई गुनाह तो नहीं 
             बेटी का बेटी होना ही 
             क्या काफी नहीं  ?
             क्यों पहनाऊँ मैं उसे 
             बेटे का आवरण  ?

              नासमझ 
              नन्हीं बिटिया को 
              जिद्द के चलते 
              भले ही मैं 
              कहता हूँ बेटा उसे 
              मगर मेरा अंतर्मन 
              मानता है उसे 
              सिर्फ और सिर्फ 
              प्यारी-सी बिटिया .....

                     ***** 


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Founder

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Saleem Khan