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शब्द नहीं कहने को.....

Written By PRIYANKA RATHORE on गुरुवार, 31 मार्च 2011 | 10:53 pm




शब्द नहीं कहने को ,
आत्मा अकुलाई है !
क्या भूलूं क्या याद करूं ,
सब मन की गहराई है !
टूट - टूट कर साँस बढ रही
फिर भी -
आस की डोर
ना , डगमगाई है !
अंत नहीं जीवन का ,
सब बंधन है -
सब बंधन है !
कोमल - कोमल सुख का बंधन ,
तृषित - तृषित दुःख का बंधन ,
पार निकल जाने को ,
आत्मा छटपटाई है !
शब्द नहीं कहने को .............





प्रियंका राठौर




आख़िर क्यों

क्यों आज इंसान खुद ही एक वेहेशी जानवर बन गया है।
क्यों वो आज भी मज़हब के नाम पे लड़ता रह गया है॥
क्या सच में यहाँ कोई मुस्लिम या कोई हिन्दु रह गया है।
क्या एक दुसरे को मारना काटना धर्म का मतलब यही रह गया है॥
क्या यह गीता में लिखा है,
कि जो हिन्दू है वही इंसान रह गया है।
क्या यह कुरान में लिखा है,
कि मुस्लिम कौम ही बस एक मज़हब रह गया है॥
क्या इस्सू मसि ने यह कहा है,
कि रोटी की जगह गोलियाँ ही बांटना रह गया है।
क्या गुरु नानक ने सिखाया है,
कि दुसरे के घर घुस वहां दहशत बचाना रह गया है॥
कितना कत्ले आम किया अब तो लड़ना छोडें हम,
अब एक दुसरे को फिर से गले लगना रह गया है।
शान्ति बनाये एकजुट हो जाए एक मानव धर्म निभाए,
फिर इस धरती माँ को गले लगना ही रह गया है॥
उन वीर जवानों ने अपना धर्म निभाया है,
अब उनकी इस अनकहीं कुर्बानी का क़र्ज़ निभाना रह गया है।
धरती माँ के वो पूत कुछ करने आए थे,
जिस मिटटी संग खेले बचपन में उसी में समाना रह गया है॥ 


~'~hn~'~
(One of the poems written by me after Mumbai Attack-26 Nov 08 .....)


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थेंक्स पाकिस्तान,कुछ मीठा हो जाएं ?

थेंक्स पाकिस्तान,कुछ मीठा हो जाएं ?

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स्पष्टता- यह  केवल  व्यंग्य-वार्ता  है, किसी भी जाति विशेष का दिल दुखाने का, लेखक का कतई इरादा नहीं है । कृपया  लेख के तत्व को, अपने माथे पर न ओढें..धन्यवाद ।

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सोहेब (सहवाग से)," छक्का लगा के दिखा?"


सहवाग (सचिन की ओर इशारा करके)," सामने तेरा बाप खड़ा है, उसे जाकर बोल..!!"


कमेन्टेटर- " और, सोहेब की गेंद पर, सचिन का ये बेहतरीन छक्का..!!"


( सभी दर्शक,खड़े होकर - `हो..हो..हो..हो.ओ..ओ..!!`)

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चम्पक और चम्पा  नाचते-गाते हुए, स्टेज पर प्रवेश करते हैं ।

"लगा सचिन का छक्का,देखो गीलानी के माथे..!!
 भागा शाहिद  दुम   दबाकर  `शहीदों`  से   आगे..!!
 हे..ई,  ता..आ,  थै..ई..या, थैया,   ता...आ..आ  थै..!!"

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चम्पा,"  हे..ई, चम्पक, हिंदुस्तान-पाकिस्तान का सेमी फ़ाइनल मैच तुने देखा क्या?"

 चम्पक," ऐसा क्यों पूछती हैं, हमने साथ बैठ कर तो  देखा था..!! भूल गई क्या?"

चम्पा," अरी बुद्धु, मैं तो ये पूछ रही थीं की, क्या तुमने मैच ध्यान से देखा था?"

चम्पक," हाँ भाई हाँ, ध्यान से ही देखना चाहिये ना?"

चम्पा," अच्छा? बोल, क्या-क्या देखा था?"

चम्पक,"हैं ना..आ..आ, पाकिस्तान की आख़िरी विकेट गिरी तब, वो, केटलकांड वाले शशीभाई, देश भ्रमण-मस्त राहुल बाबा, परम आदरणीय गंभीर-वदन सोनियाजी और दूसरे कई गणमान्य बड़े-बड़े महानुभवों को, नन्हे मुन्ने बच्चों को, खड़े होकर ताली बजाते देख, मुझे बहुत मज़ा आया ।"

चम्पा,"चम्पक, तुम  तो, बुद्धु के बुद्धु ही रहे..!!  ताली-ढोल-नगाड़ा-फटाकों का आनंद तो, खुशी से सारा देश एक साथ मना  रहा था । इसमे नयापन क्या है?"

चम्पक," चम्पा-चम्पा, अब तु ही बता दे ना? मेच में, तुने क्या खास देखा?"

चम्पा,"हमारे गाँव में, बहुत पुराना  भगवान श्रीभोलेनाथजी का एक मंदिर है । उस..में...!!

चम्पक,(चम्पा की बात काटते हुए ।)" मैच की बातों में मंदिर कहाँ से आ गया?"

चम्पा, " अगर बीच में बोला तो, मैं कुछ भी न बताउंगी..हाँ..!!"

 चम्पक," अच्छा बाबा, बीच में नहीं टोकूंगा, अब तो बता?"

चम्पा," हमारे गाँव के मंदिर के पुजारी ४० साल के हो गये मगर बेचारे कुँवारे ही रह गये थे । उनको, पैसों के बदले में, शादी कराने वाला, कोई  दलाल मिल गया और उसने ढेर सारे रुपये के बदले में पुजारी की शादी एक `दिग्विजया` नामक, बड़ी ही सुंदर कन्या से शादी करवा दी, पुजारी की शादी के जुलुसमें सारा गाँव उल्लासपूर्वक शरीफ़ हुआ ।"


चम्पक," फिर..,फि..र, क्या हुआ?"


चम्पा," फिर क्या? सुहाग रात को पुजारी को पता चला की, दलाल ने उन्हें ठग लिया था और सुंदर कन्या से शादी रचाने के नाम पर, सुंदर `छक्का` हाथ में थमा दिया था..!!"

चम्पक," ही..ही..ही..ही.. ये तो.. ही..ही..ही..,बहुत बुरा हुआ..!! फिर क्या हुआ?"


चम्पा," सब गाँव वालों को जब पता चला, तब कई लोग अपनी हँसी न रोक पाए और  तो समझदार लोगों ने  अफसोस व्यक्त किया । किसी ने पुजारी से पूछा की वह अब क्या ये छक्के को तलाक दे देगा? तब पुजारी ने सिर्फ इतना ही कहा की, ये जो भी है, जैसा भी है..!!  मेरे लिए रोटी बना देंगा तो, कम से कम मेरे पेट की भूख तो शांत होगी?"


चम्पक," ही..ही..ही, ये सब तो ठीक है पर,  मेच की बात में पुजारी कहाँ से आ गया?"

चम्पा," अरी,मूर्ख, देख हमारे प्रधानमंत्रीजीने, पाकिस्तान के प्रधानमंत्रीजी को बैंड-बाजा-बारात के साथ `दिविजया` नामक सुंदर कन्या से शादी के लिए आमंत्रित किया?"

चम्पक," हाँ  किया, तो..ओ..!!"

चम्पा," क्या, तो.ओ..!! फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्रीजी की शादी `दिग्विजया` नामक सुंदर कन्या के बजाय `पराजय` नामक  बेहतरीन `छक्के`  से  करवाई  ना..?"

चम्पक," हाँ..आँ..यार, तेरी बात तो बिलकुल सही है?"

चम्पा," ओर सुन, ३० मार्च की सेमी फ़ाइनल मेच के दो दिन बाद कौन सी तारीख आती है?"

चम्पक," पहली अप्रैल..!!"

चम्पा," अब  पाकिस्तान के प्रधानमंत्रीजी, बैंड-बाजा-बारात से साथ, हिंदुस्तान में,`दिग्विजया` से शादी करने के,बडे अरमान लेकर आएं हो और यहाँ सबने उनको एडवांस में अप्रैल फूल बनाकर,शादी के नाम पर,`पराजय` नामक छक्का गले बांध दिया हो, ऐसे में पुरे देश में ढोल-नगाडे-फटाके और आनंदोत्सव का माहौल का होना स्वाभाविक ही तो है..!!"

चम्पक," वाह..रे..मेरी चम्पाकली, तुम तो बहुत ही अक़्लमंद गई हो ना..!! वाह..भाई..वाह..!!"

चम्पा," चम्पक, तुमने क्या, किसी देशवासी ने, ग़लती से भी, श्रीमती सोनियाजी को दोनों हाथ उपर करके कूदते हुए, राहुलबाबा को खुशी से चीखते हुए, और श्रीमनमोहनसिहजी को दंतावली दिखा कर हँसते, तालियाँ बजाते हुए, इतने बरसों में कभी देखा है?"

चम्पक," नहीं जी, कभी नहीं? सब खुश थे ।"

चम्पा,"तभी तो..!! हमारे क्रिकेट के सारे खिलाड़ियों ने पाकिस्तान को समझा दिया है की, अगर हमारा लाडला सचिन ज़िद करें की, यह मेरा आखिरी वर्ल्ड कप है और मुझे चाहिए । तो बिना ज्यादा प्रयत्न किए, हम सचिन के बच्चों को खेलने के लिए, वर्ल्ड कप का खिलौना भी आसानी से दिला सकते हैं । तो फिर..?"

चम्पक," फिर..? फिर क्या?"

चम्पा," सचिन की ज़िद पर हम उसे वर्ल्ड कप दे सकते हैं तो, हिंदु,मुस्लिम,सीख,ईसाई सारे देशभकत हिंन्दुस्तानीओं की ज़िद पर हम कश्मीर की एक इंच ज़मीन भी पाकिस्तान को लेने नहीं देंगे ।"

चम्पक," सही है,पर चम्पा ये तो बता?अब `पराजय` नामक छक्के से शादी तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्रीजीने कर की, मगर उसे पाकिस्तान ले जाकर उसका क्या करेंगे?""


चम्पा," हाँ, बात तो सोचने वाली है..!! अब श्री युसूफ़ रझा गीलानीजी, `पराजय` को अपने घर में तो नहीं रखेंगे । शायद पाकिस्तान जाकर उनकी सुप्रसिद्ध `हिरामंडी` बाजार में में दलालों के हवाले कर देंगे ।"

चम्पक," ही..ही..ही..ही..ई..ई..ई..!!"

चम्पा," इतना हँस क्यों रहा है?"

चम्पक," अब मैं  तूझे राज़ की एक बात बताऊं?"

चम्पा, "क्या?"

चम्पक," पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ़ रझा गीलानीजी के हाथ में `छक्का` थमाने की साज़ीश में, सारे पाकिस्तानी ख़िलाडी शादी करानेवाले दलाल के साथ मिले हुए थे?"


चम्पा," हें..ई..ई..ई, शाबाश चम्पक, ये क्या कह रहा है?"

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" ANY COMMENT?"

मार्कण्ड दवेः दिनांक- ३१ मार्च २०११.
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दिया तो तुमने जला दिया है- अब "दीवाली" लाना


दिया तो तुमने जला दिया है- अब "दीवाली" लाना

जियो खिलाडी -एक- पटखनी देकर 
भईया जता दिया है  
दिया तो तुमने जला दिया है-
अब "दीवाली" लाना 
 




खुशियों से भर -माँ का दिल
‘उछल’-‘नाच’ कर आना
लिए हाथ में -वही-"विश्व-कप"
‘सन तिरासी’ हमें यद् है
तुम भी -जोश-जगाना !!!


गले मिलो तुम -'तेज' करो -कुछ
पैना अब 'हथियार'
बड़ा 'तेज' हैदुश्मन’ तेरा
देख चुका 'संसार' !!!


 यहाँ से "लंका" तक का
सफ़र कठिन था
गजब-जमायायार’
धोनी धुन दो -सबको लेकर
सचिन करो -कुछ- गुन देकर
आस हमें है -सौ- के सौ की 


यही "सुनहरी" अवसर भाई 
सोच अभी ले -प्लान अभी कर
नींद  आये तुम्हे अंत तक 
डटे रहो मैदान !!!!! 


समय नहीं है खेलो जमकर
रोज मान ले -आज "वर्ल्ड -कप"
सहवाग लगा देना तुम -"आग"
कोहली युवी बनो गंभीर
ले मुनाफ -'रैना' जहीर


नेहरा नेह टूटे भाई
हर को लेकर 'भजनकरो
एकाग्र चित्त -कुछ-जतन करो

मेरी "वाणी" की 'पति' रखना
हमने "माँ" को वचन दिया है
लिए "विश्व-कप फोटो चलो खिंचायें"
यारा-जैसे भी हो सच कर आयें


गाँव -गली-घर-शहर-हहर कर
सब को गले मिलाएं
इसी बहाने
दुनिया जाने
"भारत" अपना
क्या है "सपना-
सच कर आना"


"वंशी" फिर से बजाना
दूध-मलाई-छाछ -दही सब
'गुड'-मीठा खाना


"छवि' -"एक"- संग ले ही आना
"माँ" को रोज दिखाना
लिए खड़े हैं "हार" यहाँ हम
आकर जल्दी गले पहन !!!!!!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रम्र५
प्रतापगढ़ .प्र.
अब हम जीत के आयेंगे >>>>>

धुंध में गुम एक लंबे खौफ के.....


धुंध में गुम एक लंबे खौफ के पहरे में था.
उम्र भर मैं गर्दिशे-हालात के कमरे में था.

कांपते थे पांव और आंखें भी थीं सहमी हुईं 
हर कदम पर वो किसी अनजान से खतरे में था. 

ढूंढती फिरती थी दुनिया हर बड़े बाज़ार में  
वो गुहर आंखों से पोशीदा किसी कचरे में था.

मुन्तजिर जिसके लिए दिल में कई अरमान थे
उम्र भर वो तल्खिये-हालात के कुहरे में था.

गौर से देखा तो आंखें बंद कर लेनी पड़ीं
गम का एक सैलाब सा हंसते हुए चेहरे में था. 
----देवेंद्र गौतम 

आओ 'होली' जल्दी आओ -जियरा जरा जुड़ाई-

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on बुधवार, 30 मार्च 2011 | 8:03 pm

आओ 'होली' जल्दी आओ -जियरा जरा जुड़ाई-
“HOLI CONTEST”      

होली आई मेरे भाई बनठन के  
रंगीली जैसे नारि हो .....
पिया के स्वागत तत्पर बैठी 
छप्पन भोग बनाये 
गुलगुलाल हर फूल बटोरे 





छनछन  सेज संवारे
घूंघट उठा उठा के ताके 
घर आँगन क्षन-क्षन में भागे 
हवा बसंती -कोंपल-हरियाली 
तन में आग लगाये 
खिले हुए हर फूल वो सारे 
मुस्काएं -बहुत - चिढ़ाएं
कोयल भी अब कूक-कूक कर 
"कारी" -  करती जाये 
सुबह 'बंडेरी' -  'कागा' बोले  
'नथुनी' हिल-हिल जाये 
होंठों को फिर फिर चूमि -चूमि के
दिल में आग लगाये
कहे सजन चल पड़े तिहारे
जागे- गोरी 'भाग' रे
आँगन तुलसी खिल-खिल जाये
हरियाली 'पोर' - 'पोर' में छाये
रंग - बिरंगी तितली जैसी
भौंरो को ललचाये
रंग गुलाल से डर-डर मनवा
छुई -मुई हो जाये
पवन सरीखी -  पुरवाई सी  
गोरी उड़ -उड़ जाये
चूड़ी छनक -छनक 'रंगीली'-
होली याद दिलाये
सराबोर कब मनवा होगा
मोर सरीखा नाचे
पपीहा -पिया -पिया तडपाये
बदरा उडि -उडि गए "कारगिल"
"काश्मीर"-"लद्दाख"
गोरिया विरहा -"रैना" मारी
भटके कोई सागर तीरे 
कोई कन्या - कुमारी
बंडवा - नल -'सुख' -'सोख' ले  रहा
फूल रहा -कुम्हिलाई
आओ 'होली' जल्दी आओ
कान्हा को लई आओ
सावन के बदरा से बरसो
जियरा जरा जुडाई

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
३०..२०११ प्रतापगढ़ .प्र . 

Founder

Founder
Saleem Khan