नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

ब्लॉगिंग के नकारात्मक प्रभाव

Written By DR. ANWER JAMAL on गुरुवार, 30 जून 2011 | 11:48 pm

शिखा कौशिक जी के कई साइट्स पर बहुत से ब्लॉग हैं और वह एक रिसर्च स्कॉलर भी हैं। इसीलिए उनकी नज़र में भी उनके दिल की तरह गहराई बहुत है। वह हरेक चीज़ के उजले पक्ष के साथ उसके काले पहलू पर भी पूरी तवज्जो देती हैं। यही वह तरीक़ा है जिसके ज़रिए इंसान ख़ुद को नुक्सान से बचा सकता है। नए ब्लॉगर्स को नुक्सान से बचाने के लिए ही उन्होंने ‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ के लिए यह लेख लिखा है। इसके ज़रिए उन्होंने संक्षेप में यह बता दिया है कि ब्लॉगिंग को नशे की लत की तरह न अपनाया जाए बल्कि इसे होशमंदी के साथ बरता जाए और भलाई के लिए इसका इस्तेमाल किया जाए।
आपकी क्या राय है ?

पूर्णाहुति ...कविता ...डा श्याम गुप्त....

कितनी  गरिमामयी हो गयी हो तुम ,
नारीत्व का उच्चतम रूप पाकर |

मातृत्व की महान पदवी,
नारी जीवन की चिर आकांक्षा ,
विश्व की किसी भी-
"पद्मश्री"   से बढ़ कर है |

यह उपनिषद् के  महान मन्त्र  को ,
जीवन के  महान सत्य को,
सबसे उज्जवलतम रूप में -
प्रस्तुत करती है,  जहां--
आत्म से आत्म मिलकर,
आत्ममय होजाता है ; और--
पुनः आत्म से --
नए आत्म का जन्म होता है ;
आत्म फिर भी आत्म रहता है |
यथा --पूर्ण से पूर्ण मिलकर ,
पूर्ण ही रहता है |
पूर्ण  से पूर्ण घटने पर भी-
पूर्ण ही शेष रहता है |

ब्रह्म सदैव पूर्ण है  |
आत्म सदैव पूर्ण है |
जीव से मिलने से पहले भी,
जीव से मिलने के बाद भी ;
जीव स्वयं पूर्ण है |

अतः --पूर्णाहुति के बाद भी ,
वही पूर्ण रहकर,
कितनी गरिमामयी होगई हो तुम |
कितनी महिमामयी होगई हो तुम |
कितनी  सम्पूर्ण  होगई  हो तुम  ||

लोकार्पण शुरू 'हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ का

शालिनी कौशिक एडवोकेट हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक जाना पहचाना नाम है। 
शालिनी जी ‘हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल‘ की लीगल एडवाइज़र भी हैं। बहुत सी प्रतियोगिताओं में आपने भाग लिया है और सफलता भी पाई है। हरेक सकारात्मक काम में यह शरीक रहती हैं और यही वजह है कि हर जगह इन्हें सम्मान हासिल है और इनकी बात पर ध्यान दिया जाता है।
‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ की तैयारी में भी आपने हर तरह सहयोग दिया है और एक लेख भी इस गाइड के लिए लिखा है। आज वही आपके लिए पेश किया जा रहा है। उम्मीद है कि आप भी उसे मुनासिब ध्यान देंगे।

ब्लॉगिंग के फ़ायदे hindi Blogging Guide (2)

दुनिया की पहली हिंदी ब्लॉगिंग गाइड

अरे भई साधो......

Written By devendra gautam on बुधवार, 29 जून 2011 | 11:40 pm

स्कूल की स्पेलिंग क्या होती है? एससीएचओओएल या फिर एसकेयूएल? पहली स्पेलिंग किताबी है और दूसरी इंटरनेट पर प्रचलित यूनिकोड फौंट में ट्रांसलिटरेशन की. इंटरनेट पर किताबी स्पेलिंग नहीं चलती. यह पूरी तरह शब्दों के उच्चारण से उत्पन्न होने वाली ध्वनि पर आधारित होती है. यह पूरी तरह वैज्ञानिक है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य भी. लेकिन कल रांची के जिला शिक्षा पदाधिकारी की मौजूदगी में एडमिशन टेस्ट के दौरान जब एक बच्ची ने पूछे गए शब्दों की स्पेलिंग इंटरनेट की भाषा के आधार पर बताई तो डीईओ साहब पूरी तरह उखड गए. उन्होंने शिक्षकों को बेतरह फटकार लगायी. नप जाने की धमकी डी. बच्ची को भी पढाई पर ध्यान देने को कहा. हांलाकि उसका एडमिशन ले लिया गया. रांची के एक सम्मानित दैनिक अखबार ने इस प्रकरण पर खूब चटखारे ले-लेकर छः कॉलम की एक खबर बनायीं. उसमें एक कार्टून भी डाला.

अन्ना हजारे की अक्ल आ गई ठिकाने


सारे राजनीतिज्ञों को पानी-पानी पी कर कोसने वाले, पूरे राजनीतिक तंत्र को भ्रष्ट बताने वाले और मौजूदा सरकार को काले अंग्रेजों की सरकार बताने वाले गांधीवादी नेता अन्ना हजारे की अक्ल ठिकाने आ ही गई। वे समझ गए हैं कि यदि उन्हें अपनी पसंद का लोकपाल बिल पास करवाना है तो लोकतंत्र में एक ही रास्ता है कि राजनीतिकों का सहयोग लिया जाए। जंतर-मंतर पर अनशन करने से माहौल जरूर बनाया जा सकता है, लेकिन कानून जंतर-मंतर पर नहीं, बल्कि संसद में ही बनाया जा सकेगा। कल जब ये कहा जा रहा था कि कानून तो लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए जनप्रतिनिधि ही बनाएंगे, खुद को जनता का असली प्रतिनिधि बताने वाले महज पांच लोग नहीं, तो उन्हें बड़ा बुरा लगता था, मगर अब उन्हें समझ में आ गया है कि अनशन और आंदोलन करके माहौल और दबाव तो बनाया जा सकता है, वह उचित भी है, मगर कानून तो वे ही बनाने का अधिकार रखते हैं, जिन्हें वे बड़े ही नफरत के भाव से देखते हैं। इस कारण अब वे उन्हीं राजनीतिज्ञों के देवरे ढोक रहे हैं, जिन्हें वे सिरे से खारिज कर चुके थे। आपको याद होगा कि अपने-आपको पाक साफ साबित करने के लिए उन्हें समर्थन देने को आए राजनेताओं को उनके समर्थकों ने धक्के देकर बाहर निकाल दिया था। मगर आज हालत ये हो गई है कि समर्थन हासिल करने के लिए राजनेताओं से अपाइंटमेंट लेकर उनको समझा रहे हैं कि उनका लोकपाल बिल कैसे बेहतर है?
इतना ही नहीं, जनता के इस सबसे बड़े हमदर्द की हालत देखिए कि कल तक वे जनता को मालिक और चुने हुए प्रतिनिधियों को जनता का नौकर करार दे रहे थे, आज उन्हीं नौकरों की दहलीज पर मालिकों के सरदार सिर झुका रहे हैं। तभी तो कहते है कि राजनीति इतनी कुत्ती चीज है कि आदमी जिसका मुंह भी देखना पसंद करता, उसी का पिछवाड़ा देखना पड़ जाता है। ये कहावत भी सार्थक होती दिखाई दे रही है कि वक्त पडऩे पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है।
आइये, अब तस्वीर का एक और रुख देख लें। जाहिर सी बात है कि विपक्षी नेताओं से मिलने के पीछे अन्ना का मकसद ये है कि यदि उनका सहयोग मिल गया संसद में उनकी आवाज और बुलंदी के साथ उठेगी। मगर अन्ना जी गलतफहमी में हैं। माना कि सरकार को अस्थिर करने के लिए, कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने के लिए विपक्षी नेता अन्ना को चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं, मगर जब बात सांसदों को लोकपाल के दायरे में लाने की आएगी तो भला कौन अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगा। यह तो गनीमत है कि अन्ना जी जिस मुहिम को चला रहे हैं, उसकी वजह से उनकी जनता में इज्जत है, वरना वे ही राजनीतिज्ञ बदले में उनको भी दुत्कार कर भगा सकते थे कि पहले सभी को गाली देते थे, अब हमारे पास क्यों आए हो?
जरा अन्ना की भाषा और शैली पर भी चर्चा कर लें। सभी सियासी लोगों को भ्रष्ट बताने वाले अन्ना हजारे खुद को ऐसे समझ रहे हैं कि वे तो जमीन से दो फीट ऊपर हैं। माना कि सरकार के मंत्री समूह से लोकपाल बिल के मसौदे पर मतभेद है, मगर इसका अर्थ ये भी नहीं कि आप चाहे जिसे जिस तरह से दुत्कार दें। खुद को गांधीवादी मानने वाले और मौजूदा दौर का महात्मा गांधी बताए जाने पर फूल कर कुप्पा होने वाले अन्ना हजारे को क्या ये ख्याल है कि गांधीजी कभी घटिया भाषा का इस्तेमाल नहीं करते थे। उनके सत्य-आग्रह में भाषा का संयम भी था। यदि कभी संयम खोया भी होगा तो उनकी मुहिम अंग्रेजों के खिलाफ थी, इस कारण उसे जायज ठहराया जाता सकता है। मगर अन्ना ने तो मौजूदा सरकार को काले अंग्रेजों की ही सरकार बता दिया। ऐसा कह के उन्होंने अनजाने में पूरी जनता को काले अंग्रेज करार दे दिया है। जब ये सरकार हमारी है और हमने ही बनाई है तो इसका मतलब ये हुआ कि हम सब भी काले अंग्रेज हैं। मौजूदा सरकार कोई ब्रिटेन से नहीं आई है, हमने ही लोकतांत्रिक तरीके से चुनी है। हम पर थोपी हुई नहीं है। कल हमें पसंद नहीं आएगी तो हम दूसरों को मौका दे देंगे। पहले भी दे ही चुके हैं। सरकार से मतभेद तो हो सकता है, मगर उसके चलते उसे अंगे्रज करार देना साबित करता है कि अन्ना दंभ में आ कर भाषा का संयम भी खो बैठे हैं। असल बात तो ये है कि वे दूसरी आजादी के नाम पर जाने-अनजाने देश में अराजकता का माहौल बना रहे हैं।
वे पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ईमानदार बता कर इज्जत दे रहे थे, मगर अब जब बात नहीं बनी तो उन्हें ही सोनिया की कठपुतली करार दे रहे हैं। हालांकि यह सर्वविदित है कि सरकार का रिमोट कंट्रोल सत्तारुढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथ में है, उसमें ऐतराज भी क्या है, फिर गठबंधन का अध्यक्ष होने का मतलब ही क्या है, मगर अन्ना को अब जा कर समझ में आया है। तभी तो कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो सीधे और ईमानदार आदमी हैं लेकिन रिमोट कंट्रोल (सोनिया गांधी) समस्याएं पैदा कर रहा है। कल उन्हें आरएसएस का मुखौटा बताए जाने पर सोनिया से ही उम्मीद कर रहे थे कि वह कांग्रेसियों को ऐसा कहने से रोकें और आज उसी सोनिया से नाउम्मीद हो गए।
बहरहाल, मुद्दा ये है कि उन्हें अपना ड्राफ्ट किया हुआ लोकपाल बिल ज्यादा अच्छा लगता है, और हो भी सकता है कि वही अच्छा हो, मगर उसे तय तो संसद ही करेगी। कम से कम अन्ना एंड कंपनी तो नहीं। यदि संसद नहीं मानती तो उसका कोई चारा नहीं है। ऐसे में यदि वे 16 अगस्त से फिर अनशन करते हैं तो वह संसद के खिलाफ कहलाएगा। सरकार की ओर से तो इशारा भी कर दिया गया है। उनके अनशन के हश्र पर ही टिप्पणियां आने लगी हैं। खैर, आगे-आगे देखिए होता है क्या?
आखिर में एक बात और। जब भी इस प्रकार अन्ना अथवा बाबा के बारे में तर्कपूर्ण आलोचना की जाती है तो उनके समर्थकों को बहुत मिर्ची लगती है। उन्हें लगता है कि लिखने वाला या तो कांग्रेसी है या फिर भ्रष्टाचार का समर्थक या फिर देशद्रोही। जिस मीडिया के सहारे आज देश में हलचल पैदा करने की स्थिति में आए हैं, उसी मीडिया को वे बिका हुआ कहने से भी नहीं चूकते। ऐसा प्रतीता होता कि अब केवल अन्ना व बाबा के समर्थक ही देशभक्त रह गए हैं। उनसे वैचारिक नाइत्तफाक रखने वालों को देश से कोई लेना-देना नहीं है।
-तेजवानी गिरधर, अजमेर

सोचा था एक शेर मै पा-लूं

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on मंगलवार, 28 जून 2011 | 4:01 pm


सोचा था एक शेर मै पा-लूं
बड़े जिगर वाला जो होगा
बचपन से मै प्यार करूँगा
पाल पोष कर बड़ा करूँगा
दूध -हमारा पी कर -पल कर
रीति -नीति मेरी -में घुलकर
एक इशारे में आएगा
चुटकी मेरे बजाते सुनकर
मेरा जिगर वो पढ़ जायेगा
आँख झपकते भाई मेरे
मंशा पूरी कर जायेगा
बड़े जिगर वाला जो होगा
सोचा था एक शेर मै पा-लूं !!
————————————-
जोश होश जब अधिक हुआ तो
करतब छल बल सब दिखलाता
कुछ मेरी जब सुनता था वो
मेरे इशारे दौड़ा जाता
उससे भी आगे बढ़ चढ़ कर
मार झपट्टा फिर वो आता
रोक सकूँ -ना-ताकत मुझमे
बड़े जिगर वाला जो था
सोचा था एक शेर मै पा-लूं
——————————-
मुझसे प्यारे उसके आये
आगे पीछे कुछ मंडराए
पेट भरे-गुण दांव पेंच जो
कुछ मैंने थे उसे सिखाये
धार रखे पैना कुछ करते
“पुडिया” उसको कोई खिलाये
सब्ज बाग़ उसको दिखलाये
हमदर्दी हमजोली देखे
शेर मेरा उस ओर खिंचा था
बेबस मै रोता बैठा था
बड़े जिगर वाला वो जो था
सोचा था एक शेर मै पा-लूं
बड़े जिगर वाला जो होगा
———————————
सोचा था एक शेर मै पा-लूं
बड़े जिगर वाला जो होगा
खुला छोड़ गलती मैंने की
ना पिजरा ना कुछ बंधन था
अब जो उसको आँख दिखाता
चढ़ बैठे छाती गुर्राता
मुझसे प्यारे उसके आते
खिला -पिला संग भी ले जाते
निशा -निशाचर उसको भाते
दिन में मुझको नजर ना आता
आज हमारे छाती चढ़कर
पंजा गाड़े हैं गुर्राता
बहलाऊँ -फुसलाऊँ सारा प्यार दिखाऊँ
पिल्लै से जो शेर बना था -राज बताऊँ
कुछ ना सुनता ..
पंजा उसका चुभता जाता
मन कहता है मार उसे दूं
या उस पर मै बलि बलि जाऊं ??
भ्रमर कहें ये प्रश्न बड़ा है
उत्तर इसका लेकर आओ
चीख हमारी गले दबी जो
आ सब मिल -कुछ तो -सुलझाओ !!
सोचा था एक शेर मै पा-लूं
बड़े जिगर वाला जो होगा …
शुक्ल भ्रमर ५

Debunking Indian Godmen - News 24 India - Ep 1 - Part 2

Debunking Indian Godmen - News 24 India - Ep 1 - Part 5

Debunking Indian Godmen - News 24 India - Ep 1 - Part 4

Debunking Indian Godmen - News 24 India - Ep 1 - Part 3

Debunking Indian Godmen - News 24 India - Ep 1 - Part 1

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अरे भई साधो......: भ्रष्टाचार: पूंजीवादी लोकतंत्र का सह उत्पाद

बाबा रामदेव अभी विदेशी बैंकों में जमा काला धन की वापसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाये हुए हैं तो अन्ना हजारे एक सशक्त लोकपाल बिल के लिए सर पर आसमान उठाये हुए हैं. सवाल यह है कि खुदा न ख्वाश्ते यह दोनों अपनी जंग को जीत लेते हैं तो क्या सरे नज़ारे बदल जायेंगे ?...भ्रष्टाचार पर रोक लग जाएगी और काले धन की सल्तनत पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी ?....हम आप क्या खुद बाबा रामदेव और अन्ना हजारे भी दिल पर हाथ रखकर यह गारंटी नहीं दे सकते. सच यह है कि उनके आंदोलन से जनता में जागरूकता आ सकती है लेकिन समस्या का निदान नहीं हो सकता. भ्रष्टाचार तो दरअसल पूंजीवादी लोकतंत्र की व्यवस्था का सह उत्पाद है. और काला धन हमारी अर्थ व्यवस्था की नसों में दौड़ता लहू. दुनिया का ऐसा कौन सा पूंजीवादी लोकतंत्र की व्यवस्था से संचालित देश है जहां काले धन और भ्रष्टाचार का संक्रामक रोग मौजूद नहीं है. यह एक लाइलाज रोग है. जब तक यह व्यवस्था रहेगी रोग भी रहेगा. इसके संक्रमण का प्रतिशत घट बढ़ जरूर सकता है.

अगज़ल ----- दिलबाग विर्क

Written By दिलबागसिंह विर्क on सोमवार, 27 जून 2011 | 8:12 pm

http://sahityasurbhi.blogspot.com/2011/06/21.html 

                                                   * * * * *

जाने क्यों अब कलम मेरी....ड़ा श्याम गुप्त....

जाने क्यों अब ये कलम मेरी,
चलते चलते रुक जाती है |
तुम होती हो तो लिखने की ,
फुर्सत ही किसे मिल पाती है ||

इस दाल -भात के भावों ने ,
सारी स्याही को सोख लिया |
जब कभी उठाकर कलम चला,
तेरी   बाहों   ने रोक लिया ||

तेरे ना होने  पर  सब कुछ ,
यह  सूना सूना  लगता है |
मन  कैद है  तेरे ख्यालों में,
फिर भला कौन क्या लिखता है ||

तेरी  यादों में    कभी कभी ,
मन बुझा बुझा सा रहता है |
और कभी तुम्हारे ख्वाबों से,
मन महका महका लगता है ||

ख्यालों के इन अम्बारों से,
तेरी  ही  सूरत   ढलती  है  |
मन कैद है  तेरे सवालों में,
फिर कलम कहाँ चल सकती है ||

दूरभाष  ने  प्रिये , तुम्हारी -
स्वर सरिता जब सुनवाई |
ख्वाबों के इन्हीं झरोखों से,
बह आई शीतल पुरवाई ||

तेरे आने के ख्यालों से ,
कुछ चेतनता सी छाई है |
इसलिए उठाकर कलम आज,
लिखने की हिम्मत पाई है ||

ये क्या हो रहा है ?

ये क्या हो रहा है ? . भारत और चीन की सीमा पर चीनी कंपनियां धड़ल्ले से निर्माण कर रही हैं। लेकिन चीन के साथ पिछले साल विवाद के बाद भारत ने लद्दाख में सीमा से सटे इलाकों में सभी तरह के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है। लेकिन भारत सरकार के इस रुख को लेकर लद्दाख के डेमचोक इलाके के लोगों में जबर्दस्त नाराजगी है। लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंटल काउंसिल के प्रतिनिधि गुरमेत दोर्जी का कहना है कि स्थानीय लोग भारत सरकार के इस रुख से ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।दोर्जी ने कहा, ‘चीन सीमा पर निर्माण कार्य कर रहा है, लेकिन हम नहीं कर सकते। इस आदेश का मतलब क्या है? नई दिल्ली में एसी कमरों में बैठने वाले यह तय नहीं कर सकते कि हमारे लिए क्या सही है।’  स्थानीय लोगों का कहना है कि भारत सरकार के आदेश के बाद ग्रामीण विकास से जुड़े काम रोक दिए गए हैं। साथ ही स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े निर्माण भी थम गए हैं।हम कब तक कहते रहेंगे हिंदी-चीनी भाई भाई और हमारे सेंटीमेंट्स के साथ ये कब तक खिलवाड़ करते रहेंगे? भारत के खिलाफ जासूसी करने में हो या ब्रह्मपुत्र के स्रोत पर बाँध बनाने की योजना हो...चीन ने हमेशा तत्परता दिखाई है |क्या हम इतने मजबूर है हम इसके खिलाफ एक शब्द तक नहीं निकल सकते?ऐसे में रचनाकार: उदयप्रताप सिंह जी की कविता बिलकुल फिट बैठता है ...
ना तीर न तलवार से मरती है सचाई 
जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई 

ऊँची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फ़रेब 
आख़िर में उसके पंख कतरती है सचाई 


ग़ज़लगंगा.dg: फिर उमीदों का नया दीप....

Written By devendra gautam on रविवार, 26 जून 2011 | 11:25 am

फिर उमीदों का नया दीप जला रक्खा है.
हमने मिटटी के घरौंदे को सजा रक्खा है.

खुश्क आंखों पे न जाओ कि तुम्हें क्या मालूम
हमने दरियाओं को सहरा में छुपा रक्खा है.

एक ही छत तले रहते हैं मगर जाने क्यों
हमने घरबार पे घरबार उठा रक्खा है.

वक़्त की आंच में इक रोज झुलस जायेगा
जिसने सूरज को हथेली पे उठा रक्खा है.

कितने पर्दों में छुपा रक्खा है चेहरा उसने
जिसने हर शख्स को उंगली पे नचा रक्खा है.

ग़ज़लगंगा.dg: फिर उमीदों का नया दीप....

महंगाई तो मार ही गयी पर हमारी महत्वाकांक्षा का क्या....


महंगाई तो मार ही गयी पर हमारी महत्वाकांक्षा  का क्या. आप सोच रहे होंगे की मैं फिर उलटी बात करने बैठ गयी आज सभी समाचार पत्रों में गैस ,डीजल और केरोसिन के दाम बढ़ने की सूचना  प्रमुखता से प्रकशित है .सरकार की जिम्मेदारी जनता जनार्दन के बजट की बेहतरी देखना है ये मैं मानती हूँ और यह भी मानती हूँ की सरकार इस कार्य में पूर्णतया विफल रही है किन्तु जहाँ तक सरकार की बात है उसे पूरी जनता को देखना होता है और एक स्थिति एक के लिए अच्छी तो एक के लिए बुरी भी हो सकती है किन्तु हम हैं जिन्हें केवल स्वयं को और अपने परिवार को देखना होता है और हम यह काम भी नहीं कर पाते.
       आज जो यह महंगाई की स्थिति है इसके कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं .मेरी इस सोच के पीछे जो वजह है वह यह है की मैं देखती हूँ कि  हमारे क्षेत्र में जहाँ पैदल भी बहुत से कार्य किये जा सकते हैं लोग यदि सुबह को दूध लेने भी जाते हैं तो मोटर सायकिल पर बैठ कर जाते हैं जबकि वे  यदि सही ढंग से कार्य करें तो  मोर्निंग वाक के साथ दूध लाकर अपनी सेहत भी बना सकते हैं.सिर्फ यही नहीं कितने ही लोग ऐसे हैं जो सारे दिन अपने स्कूटर .कार को बेवजह दौडाए फिरते हैं .क्या इस तरह हम पेट्रोल का खर्चा नहीं बढ़ा  रहे और यह हमारी आने वाली पीढ़ी को भुगतना होगा जब उसे वापस साईकिल और बैलगाड़ी पर सवार होना होगा.
ये तो हुई छोटी जगह की बात अब यदि बड़े शहरों की बात करें तो वहां भी लोगों के ऑफिस एक तरफ होने के  बावजूद वे  सभी अलग अलग गाड़ी से जाते हैं और इस तरह पेट्रोल का खर्चा भी बढ़ता है और सड़कों पर वाहनों  की आवाजाही भी जो आज के समय में दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है.
     अब आते है गैस के मुद्दे पर जबसे गाड़ियाँ गैस से चलने लगी हैं लोगों का सिलेंडर घर में खर्च होने के साथ साथ गाड़ी में भी लगने लगा है और गैस की आपूर्ति पर भी इसका बहुत फर्क पड़ा है.अब बहुत सी बार घर में चुल्हा जलने के लिए गैस मिलना मुश्किल हो गया है और सरकार के द्वारा गाड़ी के लिए अलग सिलेंडर उपलब्ध करने के बजूद घरेलू गैस ही इस कार्य में इस्तेमाल हो रही है.क्योंकि गाड़ी के लिए मिलने वाले सिलेंडर घरेलू गैस के मुकाबले ज्यादा महंगे होते हैं.
    हम हर कार्य में अपनी जिम्मेदारी से ये कहकर की ये सब हमारी जिम्मेदारी नहीं है अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते क्योंकि हम भी इस सब के लिए उत्तरदायी हैं .आजकल ये स्थिति आ चुकी है की बच्चा पैदा बाद में होता है उसके हाथ में वाहन  पहले आ जाता है.व्यापार आरम्भ बाद में होता है और गोदाम में भण्डारण पहले आरम्भ हो जाता है क्या ये हमारी जिम्मेदारी नहीं है कि हम भी अपनी ऐसी आदतों पर अंकुश लगायें और देश में समस्याओं से निबटने में सरकार को सहयोग करें.
                              शालिनी कौशिक 

बाघ के मुह में खून लग गया !!

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on शनिवार, 25 जून 2011 | 11:16 pm


मात पिता से सीखी संस्कृति
सीधा सरल सुहाया मुझको !
लाल बहादुर -गाँधी जैसे कितने सारे
खोज -खोज आदर्श बनाया !!
—————————————
ईमां -धन -की गठरी बांधे
लिए पोटली निकल पड़ा
जीवन पथ दुर्गम इतना था
चोर उचक्के ठग ही मिलते
माया मोह लालसा दे- दे
दोस्त बनो -या -आ-कह देते
——————————
पोटली उन्हें अगर ये दे दूं
तो भूखे मर जाऊं !
दोस्त अगर इनका बन जाऊं
जीवन सारा – चोर कहाऊँ !!
……………………………………..
मै ईमां- धन लेकर बढ़ता
घायल- रोज -शिकार -हुआ
बाघ चढ़े सब छाती मेरे
lion_zebra
(फोटो साभार गूगल /नेट से )
बाघ के मुह में खून लग गया !!
______________________
अब गुर्राते मुझे डराते
खून चूस लेंगे सारा !
धन्य मनाओ मूरख मेरी
अब तक तुझे नहीं मारा !!
————————————-
इक्के दुक्के जो भी अब तो
राह में मेरी आये !
जख्म लिए- चीखें- चिल्लाएं
इनको राम बचाए !!
——————————
बाघ के मुह अब खून लगा है
कौन हाथ डाले जबड़े पे !
पीड़ा सब के दिल अब होती
चाहे भी – तो कौन बचाए !!
——————————–
ले मशाल गर साथ बढ़ सको
लाठी डंडे हाथ !
बाघ से भैया बच पाओगे
राम भी देंगे साथ !!
————————
बाघ की शक्ति बहुत बढ़ गयी
ताल ठोंक चिल्लाये !
इस रस्ते पर जो आएगा
छोडूं ना बिन खाए !!
—————————
सत्य अहिंसा सत्य की डोरी
जो जबड़ा ना बाँधा !
कल को सारा खून पिएगा
अभी है चूसा आधा !!
—————————
भेद भाव में बँट या मूरख
कुछ दिन मौज मनाओ !
चक्की में कल पिस ही जाना
एक अभी हो जाओ !!
—————————–
शुक्ल भ्रमर ५

आपात काल का मनहूस दिन और आज के मनहूस हालात

आपात काल का मनहूस दिन और आज के मनहूस हालात

दोस्तों आज देश १९७५ के दोर से गुजर रहा है , निरंकुश सरकार और लोकतंत्र की हत्या फिर जनता और नेताओं पर ज़ुल्म बाद में सरकार के नाम पर कुछ नेताओं और अधिकारीयों के घर भरने की परम्परा और फिर जनता पर लगाम कसने के लियें २५ जून १९७५ की रात्री ११बज कर ५५ मिनट पर देश में आपात स्थिति की घोषणा यह सब एक लम्बी कहानी है जिसने कोंग्रेस को कमजोर किया और फिर कोंग्रेस को लोग तलाशते रह गए सफेदी पर दाग की तरह कोंग्रेस गायब थी फिर कोंग्रेस जिंदा हुई और फिर इंदिरा जी की शहादत , राजिव जी की शहादत , सोनिया जी और इंदिरा जी की पद ठुकराने की कुर्बानी के बाद कोंग्रेस इस हालात पर पहुंची है लेकिन कोंग्रेस के कुछ लोग हैं जो कोंग्रेस को तबाह और बर्बाद करने की कसम लिए बेठे हैं उनके लियें संगठन का भविष्य , देश का भविष्य और जनता के हित कोई खास अहमियत नहीं रखते हैं वोह तो बस जो चाहते हैं वाही कर रहे है देश की जनता को लुट कर विदेशों को धन के से दिया जाए ..देश की जनता को नीबू की तरह से निचोड़ कर उसकी कमर केसे तोड़ी जाए इसके सरकार में बेठे लोगों द्वारा नए नए तरीके इजाद किये जा रहे हैं हालात यह हैं के आज जनता और सरकार की हालत बन्दर और सांप की कहानी की तरह हो गयी है जी हाँ दोस्तों बन्दर और सांप की कहानी तो अपने सुनी ही होगी .......बन्दर काले सांप को हाथ में लपेट कर उसका मुंह अपने हाथ में ले लेता है और जमीन पर रगड़ता रहता है वोह सांप के मुंह को फिर उठाता है देखता है और उसे जानब यह अहसास होता है के सांप में अभी जान बाक़ी है तो फिर उसका मुंह वोह जमीन पर रगड़ने लगता है और जब तक रगड़ता रहता है जब तक सांप तड़प तड़प नहीं मर जाता ..कुछ इस तरह का ही खेल यह सरकार हमारी जनता के साथ खेल रही है ..महंगाई भ्रष्टाचार ने तो देश की कमर तोड़ ही दी है ..कालाबाजारियों के पास मॉल जमा है कानून ताक में रखे हैं और जो कानून हैं उनकी पालना अमीरों के खिलाफ नहीं हैं हाँ अगर देश में कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ बोला तो उसकी हालत बाबा रामदेव की तरह दडबे मेंघुसा कर मरने पीटने की हो रही है ..बाबा रामदेव का उत्साह खामोश कर दिया गया है वोह अपनी लंगोटी और धोती संभालने में लगे हैं इधर लोकपाल की बात करने वाले बाबा आमटे का हाल  तो सब ही जान रहे हैं उनके बुढापे में कोंग्रेस धूल डालने लगी है जो बोल रहा है उसके लठ पढ़ रहे हैं और आज देश  सरकार में बेठे लोगों की हठधर्मिता और तानाशाही के हिसाब से फिर से एक आपात काल की तरफ जा रहा है यह संयोग है के यह दिन वाही २५ जून का है ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

पवित्र क़ुरआन का चमत्कार

Written By DR. ANWER JAMAL on शुक्रवार, 24 जून 2011 | 2:53 pm


786 वीं पोस्ट मुबारक हो AIBA  के सभी सदस्यों को !
वक्त तेज़ी से गुज़र जाता है। अभी अभी की तो बात है जब ‘आल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन‘ की स्थापना हुई थी। 3 फ़रवरी 2011 को जनाब सत्यम शिवम जी ने इसकी पहली पोस्ट लिखी थी और आज इस ब्लॉग की 786 वीं पोस्ट मैं लिख रहा हूं। पहली और इस पोस्ट के दरम्यान 173 दिन का फ़ासला है। प्रतिदिन 4.5 पोस्ट का औसत आ रहा है जो कि एक साझा ब्लॉग की सफलता का सुबूत है।
जो लोग इस ब्लॉग के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं, उन्हें इस सफलता के लिए ढेर सारी बधाईयां !
यहां यह जान लेना भी दिलचस्प होगा कि फ़िल्म क़ुली से मशहूर होने वाला अंक 786 आखि़र है क्या ?
इसका ताल्लुक़ ‘बिस्मिल्लाहिर्-रहमानिर्-रहीम‘ से है। अरबी में हरेक अक्षर का एक मान होता है। बिस्मिल्लाह के तमाम अक्षरों को जोड़ा गया तो इसका कुल मान 786 आया। किसी भी काम के शुरू में मालिक को याद करना और बिस्मिल्लाह कहना इस्लाम की तालीम है लेकिन बहुत जगह ऐसी भी होती हैं जहां कि बिस्मिल्लाह कहने के बजाय लिखा जाता है जैसे कि ख़त वग़ैरह और उसमें यह डर भी रहता है कि पढ़ने वाला न जाने किस मिज़ाज का हो ?
वह पवित्र क़ुरआन की इस आयत का अदब कर पाए या नहीं ?
कहीं उसकी लापरवाही से इस आयत की बेअदबी न हो जाए।
यही सोचकर कुछ लोग बिस्मिल्लाह न लिखकर अपने पत्र आदि के शुरू में 786 लिखने लगे ताकि पढ़ने वाले को मालिक के नाम की स्मृति भी बनी रहे और आयत की बेअदबी भी न हो।
‘बिस्मिल्लाहिर्-रहमानिर्-रहीम‘ का अर्थ है ‘(कहो !) शुरू अल्लाह के नाम से जो अनंत दयावान और सदा करूणाशील है।‘
बिस्मिल्लाह में कुल 19 अक्षर हैं। 19 की यह गिनती पवित्र क़ुरआन में एक ऐसी गणितीय योजना के तौर पर इस्तेमाल हुई है जिसका पता अभी हाल के वर्षों में ही चला है। क़ुरआन के इस गणितीय चमत्कार को जो भी देखता है वह आश्चर्य चकित रह जाता है। जो लोग चमत्कार में विश्वास नहीं रखते, उन्हें भी यह देखकर ताज्जुब होता है कि यह चमत्कार घटित कैसे हआ ?
आप निम्न लिंक पर जाएंगे तो आप भी इस चमत्कार को देख सकते हैं।
और इसका दूसरा भाग देखें
और संक्षेप में थोडा सा यहाँ भी पेश किया जा रहा है .
पवित्र कुरआन का आरम्भ ‘बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर रहीम’ से होता है। इसमें कुल 19 अक्षर हैं। इसमें चार शब्द ‘इस्म’(नाम), अल्लाह,अलरहमान व अलरहीम मौजूद हैं। परमेश्वर के इन पवित्र नामों को पूरे कुरआन में गिना जाये तो इनकी संख्या इस प्रकार है-
इस्म-19,
अल्लाह- 2698,
अलरहमान -57,
अलरहीम -114

अब अगर इन नामों की हरेक संख्या को ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’ के अक्षरों की संख्या 19 से भाग दिया जाये तो हरेक संख्या 19, 2698, 57 व 114 पूरी विभाजित होती है कुछ शेष नहीं बचता।
है न पवित्र कुरआन का अद्भुत गणितीय चमत्कार-

# 19 ÷ 19 =1 शेष = 0
# 2698 ÷ 19 = 142 शेष = 0
# 57 ÷ 19 = 3 शेष = 0
# 114 ÷ 19 = 6 शेष = 0

पवित्र कुरआन में कुल 114 सूरतें हैं यह संख्या भी 19 से पूर्ण विभाजित है। 
पवित्र कुरआन की 113 सूरतों के शुरू में ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम’ मौजूद है, लेकिन सूरा-ए-तौबा के शुरू में नहीं है। जबकि सूरा-ए-नम्ल में एक जगह सूरः के अन्दर, 30वीं आयत में बिस्मिल्लाहिर्रमानिर्रहीम आती है। इस तरह खुद ‘बिस्मिल्ला- हर्रहमानिर्रहीम’ की संख्या भी पूरे कुरआन में 114 ही बनी रहती है जो कि 19 से पूर्ण विभाजित है। अगर हरेक सूरत की तरह सूरा-ए-तौबा भी ‘बिस्मिल्लाह’ से शुरू होती तो ‘बिस्मिल्लाह’ की संख्या पूरे कुरआन में 115 बार हो जाती और तब 19 से भाग देने पर शेष 1 बचता।
क्या यह सब एक मनुष्य के लिए सम्भव है कि वह विषय को भी सार्थकता से बयान करे और अलग-अलग सैंकड़ों जगह आ रहे शब्दों की गिनती और सन्तुलन को भी बनाये रखे, जबकि यह गिनती हजारों से भी ऊपर पहुँच रही हो?

पवित्र कुरआन का चमत्कार
हज़रत मुहम्मद (स.) आज हमारी आँखों के सामने नहीं हैं लेकिन जिस ईश्वरीय ज्ञान पवित्र कुरआन के ज़रिये उन्होंने लोगों को दुख निराशा और पाप से मुक्ति दिलाई वह आज भी हमें विस्मित कर रहा हैै।

एक साल में 12 माह और 365 दिन होते हैं। पूरे कुरआन शरीफ में हज़ारों आयतें हैं लेकिन पूरे कुरआन शरीफ में शब्द शह् र (महीना) 12 बार आया है और शब्द ‘यौम’ (दिन) 365 बार आया है। जबकि अलग-अलग जगहों पर महीने और दिन की बातें अलग-अलग संदर्भ में आयी हैं। क्या एक इनसान के लिए यह संभव है कि वह विषयानुसार वार्तालाप भी करे और गणितीय योजना का भी ध्यान रखे? ‘मुहम्मद’ नाम पूरे कुरआन शरीफ़ में 4 बार आया है तो ‘शरीअत’ भी 4 ही बार आया है। दोनों का ज़िक्र अलग-अलग सूरतों में आया है।‘मलाइका’ (फरिश्ते) 88 बार और ठीक इसी संख्या में ‘शयातीन’ (शैतानों) का बयान है। ‘दुनिया’ का ज़िक्र भी ठीक उतनी ही बार किया गया है जितना कि ‘आखि़रत’ (परलोक) का यानि प्रत्येक का 115 बार। इसी तरह पवित्र कुरआन में ईश्वर ने न केवल स्त्री-पुरूष के मानवधिकारों को बराबर घोषित किया है बल्कि शब्द ‘रजुल’ (मर्द) व शब्द ‘इमरात’ (औरत) को भी बराबर अर्थात् 24-24 बार ही प्रयुक्त किया है।

ज़कात (2.5 प्रतिशत अनिवार्य दान) में बरकत है यह बात मालिक ने जहाँ खोलकर बता दी है। वही उसका गणितीय संकेत उसने ऐसे दिया है कि पवित्र कुरआन में ‘ज़कात’ और ‘बरकात’ दोनों शब्द 32-32 मर्तबा आये हैं। जबकि दोनांे अलग-अलग संदर्भ प्रसंग और स्थानों में प्रयुक्त हुए हैं।

पवित्र कुरआन में जल-थल का अनुपात
एक इनसान और भी ज़्यादा अचम्भित हो जाता है जब वह देखता है कि ‘बर’ (सूखी भूमि) और ‘बह्र’ (समुद्र) दोनांे शब्द क्रमशः 12 और 33 मर्तबा आये हैं और इन शब्दों का आपस में वही अनुपात है जो कि सूखी भूमि और समुद्र का आपसी अनुपात वास्तव में पाया जाता है।

सूखी भूमि का प्रतिशत- 12/45 x 100 = 26.67 %
समुद्र का प्रतिशत- 33/45 x 100 = 73.33 %

सूखी जमीन और समुद्र का आपसी अनुपात क्या है? यह बात आधुनिक खोजों के बाद मनुष्य आज जान पाया है लेकिन आज से 1400 साल पहले कोई भी आदमी यह नहीं जानता था तब यह अनुपात पवित्र कुरआन में कैसे मिलता है? और वह भी एक जटिल गणितीय संरचना के रूप में।

क्या वाकई कोई मनुष्य ऐसा ग्रंथ कभी रच सकता है?

क्या अब भी पवित्र कुरआन को ईश्वरकृत मानने में कोई दुविधा है?

कविता ----- दिलबाग विर्क


                       महत्वाकांक्षा                   

                      भाग - 1
                      भाग - 2
                      भाग - 3
                      भाग - 4

                        * * * * *

नैन मिल ही गए बात हो जाने दो

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on गुरुवार, 23 जून 2011 | 7:40 pm



जंग जीतेंगे हम आप जो संग हैं -लोकपाल बिल तो बनाना ही है -आइये आज आप का मन कुछ हल्का करें -लीक से हट
नैन मिल ही गए बात हो जाने दो


बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइये –जाइए जाइए
मूर्ति बन मै गया एक झलक के लिए
सर पे बांधे कफ़न एक नजर के लिए
नाग जैसे फंसा एक मणि के लिए
आग जैसे जला उर्वशी के लिए
राख बनने से पहले ही छा जाइये
आंसू छलके ख़ुशी के जो बरसाइये
जाइए जाइए ———
नैन मिल ही गए बात हो जाने दो
बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइए –जाइए जाइए
प्यार दिल में जो पनपा वो कब तक छिपे
लाख बादल ढंके चाँद क्या छिप सके ?
कैद बुल बुल जकड आह मत लीजिये
नैन मूंदे प्रिये आंसू मत पीजिये
फूटती जो कली कितना पर्दा करे
देख उसको जरा तो सकुचाइए
जाइए जाइए ———
नैन मिल ही गए बात हो जाने दो
बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइए –जाइए जाइए –
फूल अरमान दिल तेरे स्वागत बिछे ना कुचल जाइये
गूंथ माला प्रिये बिखरे मोती सभी आज चुन लीजिये
साँसे उखड़ी भले प्राण प्रिय में बसा ना दफ़न कीजिये
बाँहे उठ ही गयी मन मचलने लगा पग को बल दीजिये
सूख पथराये ना दिल की सुन लीजिये
सींच उसको सनम ना प्रलय ढाइए – न कुम्हलाइए
जाइए जाइए ———
नैन मिल ही गए बात हो जाने दो
बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइए –जाइए जाइए –
जंग जीतेगे हम आप जो संग हैं
द्वार खुल जायेंगे आज जो बंद हैं
काया है एक ही पांच ही तत्व हैं
रक्त ले हम खड़े देख लो एक है
होके मायूस ना हार पहनाइए
दिल को जीतेंगे हम आस मन में लिए
आज मुस्कुराइए –
जाइए जाइए ———
नैन मिल ही गए बात हो जाने दो
बेरहमी से यूं ना पर्दा गिराइए –जाइए जाइए –
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

ज्ञान गंगा की ओर...डॉ श्याम गुप्त...

प्रिये!
उस रात तुम चली गयी थीं ,
बिना कुछ कहे ही, बोले ही ;
और मैं भी चुप ही रह गया था ,
अजान सा, अनजान सा |

तब,
वैरागी सा मन लिए -
चल पडा था मैं,
ज्ञान गंगा की ओर;
और , वैश्वानर-
उपनिषद् का वह विराट-विश्वपुरुष ,
छ गया था मेरे मन पर-
धीरे धीरे |

मैं, तुम, वह, यह,
सभी उसी के रूप हैं |
ये हवा, प्रकृति, रूप, रस, गंध -
आकाश,पदार्थ ,अपदार्थ -
मन, बुद्धि, प्राण -
तुम और मैं ,
मैं और तुम ,
उसी विराट में निहित हैं |

उसी क्षण,
मैं और तुम का मोह जाता रहा,
और मैंने पाया कि, तुम-
सशरीर मेरे पास ही हो ,
विश्व रूप में ,मेरे ही रूप में ,
मेरे अंतर में ,
सदा सदा की तरह,
जन्म जन्मान्तरों की भाँति |
मैं तुम और वह विराट ,
एक साथ, एक रूपाकार -
थे,  हैं और रहेंगे |
मैं ही तुम हो,  तुम ही तुम हो,
तुम ही मैं हूँ,  मैं ही मैं हूँ |
बस वैराग्य टूट गया,
और संसार जाग गया |

मैं खाता हूँ, पीता हूँ,सोता हूँ-
तुम खाती हो, पीती हो, सोती हो-
सारा जग खाता है, पीता है, सोता है |
जैसे द्रौपदी के एक  'तंदुल'  से-
समस्त विश्व का पेट भर गया था |

यही संसार है,
यही महावैराग्य है,
सब कुछ एकाकार है |
भेद सिर्फ मन में है,
भेद सिर्फ बुद्धि में है,
ब्रह्म भेद रहित है ,
अनादि, सत्य या  विराट -विश्वपुरुष ;
भेद सिर्फ ख्याली-पुलाव है |

और, मन में फिर-
वही पुलाव पकने लगता है, कि-
उस रात तुम चली गयीं थीं ,
बिना कुछ कहे ही, और-
मैं भी चुप ही रहगया था ,
अजान सा,
अनजान सा ||

आत्महत्या का अधिकार-

Written By Vibhor Gupta on बुधवार, 22 जून 2011 | 6:52 pm

ना चहिये मुझे सूचना का अधिकार,
ना ही चहिये मुझे शिक्षा का अधिकार
गर कर सकते हो मुझ पर कोई उपकार
तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

क्या करूँगा मैं अपने बच्चों को स्कूलों में भेजकर
जबकि मैं खाना भी नही खिला सकता उन्हें पेटभर
भूखा बचपन सारी रात, चाँद को है निहारता 
पढ़ेगा वो क्या खाक, जिसे भूखा पेट ही है मारता

और अगर वो लिख-पढ़ भी लिए ,तो क्या मिल पायेगा उन्हें रोजगार
नही थाम सकते ये बेरोजगारी तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

मेरे लिए, सैकड़ो योजनाये चली हुई है, सरकार की
सस्ता राशन, पक्का मकान, सौ दिन के रोजगार की
पर क्या वास्तव में मिलता है मुझे इन सब का लाभ
या यूँ ही कर देते हो तुम, करोड़ो-अरबो रुपये ख़राब

अगर राजशाही से नौकरशाही तक, नही रोक सकते हो यह भ्रष्टाचार,
तो उठाओ कलम, लिखो कानून, और दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.

कभी मौसम की मार, तो कभी बीमारी से मरता हूँ
कभी साहूकार, लेनदार का क़र्ज़ चुकाने से डरता हूँ
दावा करते हो तुम कि सरकार हम गरीबों के साथ है
अरे सच तो ये है, हमारी दुर्दशा में तुम्हारा ही हाथ है 

मत झुठलाओ इस बात से, ना ही करो इस सच से इंकार 
नहीं लड़ सकता और जिन्दगी से, दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

मैं अकेला नही हूँ, जो मांगता हूँ ये अधिकार,
साथ है मेरे, गरीब मजदूर, किसान और दस्तकार
और वो, जो हमारे खिलाफ आवाज उठाते है
खात्मा करने को हमारा, कोशिशें लाख लगाते है

पूर्व से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, मचा है हाहाकार
खत्म कर दो किस्सा हमारा, दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

क्यों कर रहे हो इतना सोच विचार
जब चारो और है बस यही गुहार
खुद होंगे अपनी मौत के जिम्मेदार
अब तो दे ही दो, आत्महत्या का अधिकार.
 
- विभोर गुप्ता (9319308534)

दर्द देख जब रो मै पड़ता  
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बूढ़े जर्जर नतमस्तक हो
इतना बोझा ढोते
साँस समाती नहीं है छाती
खांस खांस गिर पड़ते !
दुत्कारे-कोई- लूट चले है
प्लेटफार्म पर सोते !
नमन तुम्हे हे ताऊ काका
सिर ऊंचा रख- फिर भी जीते !!
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वंजर धरती हरी वो करते 
 खून -पसीने सींचे !
 कहें सुदामा -श्याम कहाँ हैं ?
पाँव विवाई फूटे !
सूखा -अकाल अति वृष्टि कभी तो
अंत ऐंठती बच्चे सोते भूखे !
कर्ज दिए कुछ फंदा डाले
कठपुतली से खेलें !
नमन तुम्हे हे ताऊ काका
पेट -पीठ से बांधे हो भी
पेट हमारा भरते !!
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बैल के जैसे घोडा -गाडी
जेठ दुपहरी खींचे !
जीभ निकाले  पड़ा कभी तो
दो पैसे की खातिर कोई
गाली देता पीटे
बदहवास -कुछ-यार मिले तो
चले लुटाये -पी के !!
नमन तुम्हे हे ताऊ काका
दो पैसों  से बच्चे तेरे
खाते -पढ़ते-जीते !!
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काले -काले भूत सरीखे
मैले कुचले फटे वस्त्र में
बच्चे-बूढ़े होते !
ईंट का भट्ठा-खान हो चाहे
मिल- गैरेज -में डटे देख लो
दिवस रात बस  खटते !
नैन में भर के- ढांक -रहे हैं
इज्जत अपनी -रही कुंवारी
गिद्ध बाज -जो भिड़ के !
नमन तुम्हे- हे ! - तेज तुम्हारा
कल - दुनिया को जीते !!
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बर्फीली नदियों घाटी में
बुत से बर्फ लदे जो दिखते !
रेगिस्तान का धूल फांक जो
जलते - भुनते - लड़ते !
भूख प्यास जंगल जंगल
जान लुटाते भटकें !
कहीं सुहागन- विरहन -बैठी
विधवा- कहीं है रोती !
होली में गोली संग खेले 
माँ का कर्ज चुकाते !
तुम को नमन हे वीर -सिपाही 
दर्द देख -- जब रो मै पड़ता 
तेरे अपने - कैसे -जीते !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२२.०६.२०११ जल पी बी 

Founder

Founder
Saleem Khan