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महाशिव पुराण

Written By Shikha Kaushik on रविवार, 31 जुलाई 2011 | 10:42 pm


महाशिव पुराण 


सूत जी बोले  -सुनाता हूँ तुम्हे मैं एक कथा 
शिव भक्ति से विरत जीवन तो है एक व्यथा 
है पुरानी बात  ये समुद्र तट प्रदेश की
जिसके  निवासी मूर्ति थे दुष्टता के रूप की .

पशु प्रवर्ति पुरुष थे ,स्त्री व्यभिचारिणी
पुण्यहीन पुरुष और स्त्री पुण्य हारिणी
यहीं बसा था एक विदुंग  नाम ब्राह्मन
छोड़ सुन्दर भार्या वेश्या  से करता था रमण .

धीरे धीरे भार्या से उसकी विमुखता थी बढ़ी
पत्नी चंचुला पे भी काम की गर्मी चढ़ी
कामावेग से विवश धर्म-भ्रष्ट हो गयी
एक अन्य पुरुष के प्रेम में वो खो गयी .

जानकर ये बात विदुंग क्रोधाग्नि में जला
मारपीट करने को हो गया उत्सुक बड़ा
चंचुला ने तब उसे ये उलाहना था दिया
छोड़ मुझसी रूपसी क्यूँ वेश्या में था तू रमा ?

कैसे रोक सकती थी मैं कामना तूफ़ान को ?
काम पीड़ा नाग बन डस रही थी प्राण को
सुन चंचुला व्यथा विदुंग  के थे ये विचार
धन कमाने के लिए अब तुम करो उनसे बिहार .

पति की अनुमति पा व्यभिचार करने लगी
अधर्म को धर्म मान कुमार्ग पर चलने लगी
आयु पूर्ण होने पर विदुंग की मृत्यु  हो गयी
कुकर्म के फलस्वरूप पिशाच की योनि मिली .

चंचुला के रूप की धूप भी थी ढल गयी
गोकर्ण -प्रदेश में एक दिन थी वो गयी
एक मंदिर में कथा संत मुख से थी सुनी
दुष्कर्म के परिणाम  सुन मन में ग्लानि भर गयी .

                           [जारी ...]
            शिखा कौशिक




जिन्दगी इश्क की



हुश्न ऐसा हो, जो नुमाइश ना भी हो, तो दिखता हो,
जश्न ऐसा हो, जो साकी... जिन्दगी इश्क की (Complete)


हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल HBFI: हरेक समस्या का अंत आप कर सकते हैं तुरंत Easy Solution

Easy Solution: "सद्-प्रेरणा लेना-देना और सत्कर्म करना अब आपकी ज़िम्मेदारी है। देखिए कि आप क्या कर रहे हैं ?"

स्वर्ग.....कविता...ड़ा श्याम गुप्त.....


घुसते ही घर में कानों में ,
सरगम स्वर में सुर-ताल बही |

खिड़की के एक झरोखे से ,
झन झन पायल झनकार रही |
कमरे में झांका तो देखा,
थी राजकुमारी नाच रहीं ||

बैठक के एक किनारे से ,
सप्तम कानों में टकराया |
झांझर तबला, मटका गिटार -
का मिला जुला सा स्वर आया ||

देखा तो कुंवर कन्हैया जी,
अपनी ही धुन में खेल रहे |
चिमटा थाली,चम्मच गिलास,
पर वे रियाज़ थे पेल रहे ||

लो अहा ! किचन से ये कैसी,
खुशबू सी तिरती आई है |
साथ साथ उनके स्वर की-
मृदु-वीणा सी लहराई है ||

कोई पूछे मुझसे आकार ,
इस दुनिया में स्वर्ग कहीं है ?
यह सुनकर लगता है ऐसा,
स्वर्ग यहीं है स्वर्ग यही है ||

अमन का पैग़ाम: क्यों साऊथ अफ्रीका मैं बलात्कार इंडिया से अधिक होत...

अमन का पैग़ाम: क्यों साऊथ अफ्रीका मैं बलात्कार इंडिया से अधिक होत...: "क्यों साऊथ अफ्रीका मैं बलात्कार इंडिया से अधिक होते हैं? यह सवाल उस समय मेरे दिमाग मैं आया जब मैं दुनिया मैं हो रहे अपराधों की तुलना करने व..."

ख़ुशी और दर्द

Written By नीरज द्विवेदी on शनिवार, 30 जुलाई 2011 | 8:37 am



ये दोस्त भी कभी कभी, अजीब सी बातें किया करते हैं,
लिखो तो ख़ुशी पर लिखा करो, अक्सर कहा करते हैं ,
उन्हें पता है की कोशिश तो, हम भी यही किया करते हैं,
पर क्या करें हम भी, जो ये पन्ने बस दर्द बयां करते हैं॥


Bezaban: क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे?

Written By एस एम् मासूम on शुक्रवार, 29 जुलाई 2011 | 10:01 pm

Bezaban: क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे?: "क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे? परेशान ना हों भाई आप को तो केवल अपनी पसंद बतानी है. अभी इस सप्ताह मैंने दो पोल (POLL) किये और आश्चर्य जन..."

क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे? परेशान ना हों भाई आप को तो केवल अपनी पसंद बतानी है. अभी इस सप्ताह मैंने दो पोल (POLL) किये और आश्चर्य जनक रूप से टिप्पणिओं से अधिक इमानदार नतीजे सामने आये.
उन विषयों पे जहाँ लोग कम बोलना चाहते हैं पोल (POLL) वैसे भी एक कामयाब तरीका हुआ करता है हकीकत जानने का.
आज हम जिस समाज मैं रह रहे हैं वहाँ शादी के पहले सेक्स या शादी के बाद पति या पत्नी के अलावा सेक्स स्वीकार नहीं किया जाता. लेकिन ऐसा होता है यह भी सत्य है और बहुत से परिवारों मैं शादी के पहले सेक्स की इजाजत तो नहीं लेकिन बहुत बुरा नहीं समझा जाता. और कई जगह तो बिना शादी जीवन साथ गुजरने मैं भी आपत्ति नहीं होती लोगों को.

इस श्रेणी का पहला POLL

1) आप को क्या लगता है?



2) शादी के बाद परायी स्त्री या पराये पुरुष से सेक्स


बाबा और उनका राज़दार बालकृष्ण तनाव दूर करने के लिए ख़ुद योग का सहारा क्यों नहीं लेते ?


बरसों पहले जब दुनिया बाबा की दीवानी थी। तब भी हमने लोगों को बताया था कि योग के नाम पर बिज़नैस किया जा रहा है। पश्चिम में योग की मूल आत्मा वैराग्य को ग्रहण नहीं किया जा रहा है बल्कि वहां की औरतें अपने नितम्ब आकर्षक बनाने के लिए बाबाओं से योग सीखती हैं और इसी मक़सद से वहां के पुरूष भी योग सीख रहे हैं। तनाव से मुक्ति के लिए भी वे योग को एक एक्सरसाइज़ के तौर पर ही लेते हैं। लेकिन हमारे कहने पर तब उचित ध्यान ही नहीं दिया गया बल्कि हमें कह दिया गया कि आप तो हैं ही देश के ग़द्दार ।
जिन्हें राष्ट्रवादियों का अग्रदूत माना जा रहा था, उनका कच्चा चिठ्ठा आज सबके सामने है तो समझा जा सकता है कि जो लोग इनके साथ थे या इनके पीछे थे, उनके कर्म कैसे होंगे ?
आज बाबा और उनका राज़दार बालकृष्ण दोनों ही चिंतातुर नज़र आते हैं। वे तनाव दूर करने के लिए ख़ुद योग का सहारा क्यों नहीं लेते ?
गद्दी पर क़ब्ज़े के लिए गुरू जी को ऊर्ध्वगमन  करा देने वाले शिष्य कुछ भी कर सकते हैं। अपने ही जैसे राजनीतिज्ञों से अगर वह भी दूसरे बाबाओं की तरह सैटिंग कर लेते तो आज उनके आभामंडल पर यूं आंच न आती। जो अफ़सर कल तक पांव छूते थे वे आज गला पकड़ रहे हैं।
ये बाबा तो लोक व्यवहार की नीति तक से अन्जान निकले।
आदरणीय श्री महेंद्र श्रीवास्तव जी का लेख इन सभी बातों को बेहतरीन अंदाज़ में बयान करता है और यह तारीफ़ दिल से निकल रही है। 
इस मंच को एक बेहतरीन लेख देने के लिए आपका शुक्रिया !
उनके लेख का लिंक नीचे दिया जा रहा है

अविनाश वाचस्पति जी का लेख भी इसी विषय पर एक करारा व्यंग्य है। उसका लिंक यह है

'ब्लॉगर्स मीट वीकली' के ज़रिये ब्लॉग पर मीट आयोजित करने वाला पहला ब्लॉग भी यही  है .

शायद गुरूर होगा



कभी थोड़े भाव बढ़ाकभी आसमान पर पहुंचा दिया करते हैं,
सपने देख नहीं पाता कोईऔर वे तोड़ पहले दिया करते हैं,
शायद गुरूर होगा इस परकी उन पर हम लिखा करते हैं,
तरश नहीं आया उन्हें हम परजो वो रोज किया करते हैं॥


खबरगंगा: हीरा भी है सोना भी लेकिन किस काम का

Written By devendra gautam on गुरुवार, 28 जुलाई 2011 | 4:05 pm

जहांगीर के शासन काल में झारखंड में एक राजा दुर्जन सिंह थे. वे हीरे के जबरदस्त पारखी हुआ करते थे. वे नदी की गहराई में पत्थर चुनने के लिए गोताखोरों को भेजते थे और उनमें से हीरा पहचान कर अलग कर लेते थे. एक बार मुग़ल सेना ने उनका राजपाट छीनकर उन्हें कैद कर लिया. जहांगीर हीरे का बहुत शौक़ीन था. एक दिन की बात है. उसके दरबार में एक जौहरी दो हीरे लेकर आया. उसने कहा कि इनमें एक असली है एक नकली. क्या उसके दरबार में कोई है जो असली नकली की पहचान कर ले. कई दरबारियों ने कोशिश की लेकिन विफल रहे. तभी एक दरबारी ने बताया कि कैदखाने में झारखंड का राजा दुर्जन सिंह हैं. उन्हें हीरे की पहचान है. वे बता देंगे. जहांगीर के आदेश पर तुरंत उन्हें दरबार में बुलाया गया. उनहोंने हीरे को देखते ही बता दिया कि कौन असली है कौन नकली. जहांगीर ने साबित करने को कहा. उनहोंने दो भेड़ मंगाए एक के सिंघ पर नकली हीरा बांधा और दूसरे के सिंघ पर असली दोनों को अलग-अलग रंग के कपडे से बांध दिया. फिर दोनों को लड़ाया गया. नकली हीरा टूट गया. असली यथावत रहा. दरबार की इज्ज़त बच गयी. जहांगीर इतना खुश हुआ कि दुर्जन सिंह तो तुरंत रिहा कर उसका राजपाट वापस लौटा दिया.
यह कहानी इसलिए याद आ गयी कि केंद्रीय खान मंत्रालय देश के विभिन्न राज्यों में हीरे और सोने की बंद पड़ी खदानों में उत्खनन के लिए निजी क्षेत्र के निवेशकों को प्रोत्साहित करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है. झारखंड में हीरा भी है और सोना भी लेकिन खान मंत्रालय की इस योजना का लाभ इस सूबे को मिलने की संभावना नहीं के बराबर है. इसका कारण है इसके व्यावसायिक उत्पादन की अल्प संभावना. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने अपने सर्वेक्षण में सिंहभूम, गुमला, लोहरदगा आदि जिलों में कई जगहों पर सोने और हीरे की उपलब्धता के संकेत दिए हैं. विभिन्न कालखंडों में इन स्थलों पर उत्खनन के प्रयास भी किये गए हैं लेकिन अलाभकारी पाए जाने के कारण अभी तक व्यावसायिक स्तर पर उत्खनन नहीं किया जा सका. स्थानीय ग्रामीणों द्वारा अल्प मात्रा में इन्हें चुनकर कर औने-पौने भाव में बेच देने का सिलसिला जरूर चलता रहा है. भूतत्ववेत्ता डा.नीतीश प्रियदर्शी के मुताबिक स्वर्णरेखा, संजई कोयल आदि नदियों की रेत में स्वर्णकण और हीरे मिलते हैं लेकिन उसकी मात्रा इतनी कम है कि व्यावसायिक स्तर पर इसे निकालना घाटे का सौदा होगा. 1913 से 1919 के बीच मनमोहन मिनिरल उद्योग ने सिंहभूम के पोटका ब्लॉक के कुंडरकोचा में करीब 50 एकड़ में फैले निजी क्षेत्र के प्रथम स्वर्ण खदान में 30 मीटर तक खुदाई की थी लेकिन अंततः उसने अपने हाथ खींच लिए थे.
वर्ष 2003 में झारखंड सरकार ने स्वर्ण खनन क्षेत्र की विश्व विख्यात कंपनी डीवियर्स को स्वर्ण और हीरक उत्खनन का जिम्मा दिया था लेकिन कंपनी के सर्वे की रिपोर्ट निराशाजनक रही. इसके बाद उसने अपने हांथ खींच लिए. डा. प्रियदर्शी ने सरकार को सुझाव दिया है कि सोने और हीरे के कण एकत्र करने के काम में स्थानीय ग्रामीणों की सोसाइटी को लगाया जाये और उन्हें इसकी वाजिब कीमत दिलाने की व्यवस्था की जाये तो यह स्वरोजगार का एक माध्यम बन सकता है. अभी तो सबसे बड़ी समस्या विधि-व्यवस्था की है. जिन इलाकों में इनकी उपलब्धता है वहां माओवादियों का दबदबा है. कोई निजी कंपनी उन इलाकों में काम करने के लिए शायद ही तैयार हो.

---देवेंद्र गौतम

दुनिया की बातें, होती हैं सच्ची

हमको पता था जिन्दगी के फसाद का |
पहले ही तैयार था, तरीका निजाद का || 1 ||

मुश्किलों से न भागना कभी |
मकसद न बदलना कभी |
रास्ता न छोड़ना कभी |
मंजिलें मिल जाती हैं सभी  || 2 ||

हर समंदर का साहिल नहीं होता |
हर गंवार जाहिल नहीं होता |
हर इंसान काहिल नहीं होता |
हर मामा माहिल नहीं होता || 3 ||

दुनिया की बातें, होती हैं सच्ची, भले ही वह, क्यूँ न लगें अच्छी |
चोट कर जाती हैं, आदमी को बदल जाती हैं, भले ही वह, क्यूँ न लगें अच्छी || 4 ||

खुशवार, हो जाती है, जिन्दगी थोड़े-से प्यार से |
दुशवार, हो जाती है, जिन्दगी थोड़ी-सी तकरार से |
गर बात समझ लो इतनी सी |
तो खुशियों से भर जाती है जिन्दगी || 5 ||

रास्ता पता नहीं तो किसी को बताया मत करो |
गलत रास्ता बता कर किसी को भटकाया मत करो |
रास्ते जिन्दगी के एक न एक दिन मिल ही जाते हैं |
पर रास्ते रूहानी के भटक गये तो बस भटक ही जाते हैं || 6 ||

                                                   ------- बेतखल्लुस

.

ऐसे तो रोज़ निकल जाती थी

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on बुधवार, 27 जुलाई 2011 | 10:07 pm



ऐसे तो रोज़ निकल जाती थी,
यूँ न देर लगाती थी,
पर आज पता नहीं,
अभी तक क्यूँ आयी नहीं,

देखता हूँ, जाता हूँ,
पता लगाता हूँ,
क्या बात है,

पहुंचा वहाँ,
क्या देखता हूँ,
अपनी सहेलियों के साथ,
हो रही उसकी बात है |

चिड़ा रहीं हैं उसे,
चुहुल बाज़ी हो रही है,
शायद किसी दावत की बात हो रही है,
उसकी तरफ से भी हाँ हो रही है,

मुझे जो देखा, आँख फेर ली,
सहेली के काम में कुछ कहा,
सहेली ने इशारा में कहा,
कुछ दूर चलने को कहा,

न आना अब इसके पीछे.
ये जा रही किसी और के पीछे,
खैर अगर चाहो,
दूर अब भागो,

अब क्या बचा था,
मुँह मेरा लटका था,
उन्ही बैठ गया,
न उठा गया,

.

दष्ठौन...कविता...डा श्याम गुप्त.....


पुत्री के जन्म दिन पर,

दष्ठौन, पार्टी !

कहा था आश्चर्य से ,

तुमने भी ।

मैं जानता था पर -

मन ही मन ,

तुम खुश थीं ,

हर्षिता, गर्विता |


दर्पण में,

अपनी छवि देखकर,

हम सभी प्रसन्न होते हैं ;

तो , अपनी प्रतिकृति देखकर ,

कौन हर्षित नहीं होगा |


पुत्र जन्म पर ये सवाल -

क्यों नहीं पूछा था तुमने ?

मैंने भी पूछ लिया था-

अनायास ही |

इसका उत्तर -

लोगों के पास तो था,पर-

नहीं था तुम्हारे पास ही |


प्रकृति-पुरुष,

विद्या-अविद्या,

ईश्वर-माया,

शिव और शक्ति;

युग्म होने पर ही -

पूर्ण होती है,

यह संसार रूपी प्रकृति |

अतः, गृहस्थ रूपी संसार की

पूर्णाहुति में ही है

यह पार्टी ||






Bezaban: महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिल...

महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिल...: "महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं अतनी आम हो गयी हैं की आज किसी भी दिन के अखबार को उठा लें २-४ खबरें तो मिल ही जाएंगे. इसके बहुत से कारण है..."

महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं का एक कारण महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिलाओं का इसमें सहयोग है.


आज गलियों में, बेरुखी सी छाई थी

न हुश्न था, न हुश्न की नुमाइश थी |
आज गलियों में, बेरुखी सी छाई थी |
उसका दर भी, आज, बन्द लग रहा था |
उसके मिलने को, आज, जी कर रहा था |

बस यूँ गुमसुम-सा, घूम रहा था |
दोस्त न आज कोई, मिल रहा था |
टहलते-टहलते यूँ ही, दूर तक निकल गया |
वही पास एक चाय की दुकान पर बैठ गया |

चुस्कियां चाय की अब चल रही थीं |
आखें अब भी उसके दर पर लगी थीं |
बेसब्री-सी यूँ बढ रही थी |
दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी |

तभी न जाने कोन निकला |
दिल धक् से यूँ बिकला |
ये क्या कातिल बला थी |
अरे ये तो अपनी ही दिला थी |

किसी की कलाकारी ने इसे और हसीन कर दिया था |
सुबह-सुबह इसको किसी ने इतना रंगीन कर दिया था |
बाद में पता चला चाय की दुकान पर |
आज इसको देखने आने वाले हैं, घर पर |

दिल बैठ गया, मैं भी बैठ गया |
मुझको ये क्या सिला दिया |
किसी और की उसे बना दिया |
मैंने ऐसा क्या गुनाह किया |

उठा धीरे-से चल पड़ा घर की ओर |
पड़ा बिस्तर पर, कर पीठ उसके घर की ओर |
तभी घंटी बजी, सामने खड़ी थी सजी |
मुस्करा रही थी, बुलावा आने का भेजी |

साथ में कुछ सामान ले गयी |
आना ज़रूर जाते-जाते कह गयी |
सब घर जाने की तैयारी में लग गया |
मैं भी कोई बहाना ढूढने में लग गया |

अब कैसे जाना होगा |
कैसे मुँह दिखाना होगा |
बस जिन्दगी को भुलाना होगा |
आंसू पीकर शादी में इसकी जाना होगा |

.

ये तेरा दरबार न था

Written By नीरज द्विवेदी on मंगलवार, 26 जुलाई 2011 | 8:09 pm


यूँ जीने की ख्वाहिस ना थी,
यूँ हँसने का एतबार न था,
बस इक पगली के जाने पर,
मुझे रोने से इनकार...ये तेरा दरबार न था (Complete)


खुदा मेरा खुदा है



खुदा मेरा खुदा है, मेरी हर फ़रियाद पूरी करता है |
जहन में बात आने से पहले, मेरी हर बात सुनता है |

हर हर्फ़, हर लफ्ज़, बाखुदा एकदम सही है |
आपका शुक्रिया, बाखुदा क्या बात कही है |

मेरे मकाँ के दरीचों से, रौशनी खुदा की आती है |
रोशन पूरा घर हो जाता है, स्याही भाग जाती है |

सजदा अब कर लेने दो, खुदा का |
शुक्रिया अब कर लेने दो, खुदा का |

बड़ा नसीब पाया, जो खुदा मिल गया |
उसको और क्या चाहिए जिसको खुदा मिल गया |

खुद्दारी, खुदा से आती है |
उसे, हर कौम भाती है |
कोई काम न, छोटा होता है |
खुदा का हाथ, जो सर पे होता है |

खुदा कहता है, खुद्दार बन |
खुद्दारी को दे अपना पन |
काम कोई भी हो कर |
छोटा-बड़ा न देखा कर |

अब खुदा के सजदे में, सर झुका दिया है |
दुआ मांग ली, आरजू को अर्ज़ कर दिया है |

मुकीम तेरे प्यार का, खुदा पूरी कर देगा |
न कर चिंता, वो तुझे तेरी हूर लाकर देगा |

मुफ्लिश तेरा, मुस्तकबिल खुदा के हाथ में है |
तू क्यूँ चिंता करता है, जब खुदा तेरे साथ में है |

है जोर खुदा का दुनिया में, बात ये मान ले |
उसके बिना पत्ता भी नहीं हिलता, बात ये जान ले |

है दूर नहीं तू खुदा से, है तू करीब |
खुदा का बन्दा है तू, नहीं तू गरीब |

न खोज है, न खबर है
बस तेरी दुआ का असर है |
बात यूँ बन गयी |
जैसे जिन्दगी यूँ गुज़र गयी |

                                       ------- बेतखल्लुस



.

तवा अभी ठंडा है

तवा अभी ठंडा है, अभी कुछ पका नहीं सकते |
लकडियाँ अभी गीली हैं, अभी जला नहीं सकते || १ ||

चल पड़ो तो, रास्ता बताती है, जिन्दगी | 
रुक जाओ तो, ऊपर उठाती है, जिन्दगी || २ ||

देख लो इस जिन्दगी में गम बहुत भरा है | 
यूँ ख़ुशी अगर चाहो तो, उसमें क्या बुरा है || ३ ||

बंज़र हो गयी जमीं, आसमानों को उतर आने दो | 
सोख लेने दो पानी, फिर से हरा-भरा हो जाने दो || ४ ||

गौर करो मुसाफिरों का, कैसे ये चलते हैं | 
राह अभी छोड़ी नहीं, मंजिल पर मिलते हैं || ५ ||

मकसद यूँ जिन्दगी का कोई बदलता नहीं |
राह में रोड़े यूँ, कोई अटकाता नहीं |
ज़माने में दुश्मनी, यूँ कोई निभाता नहीं | 
दोस्त न भी करो तो, दुश्मनी यूँ कोई करता नहीं || ६ ||

                                                       ------- बेतखल्लुस

.

Arun Kumar Sharma has such a cool profile!

एक तोहफा - 2

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on सोमवार, 25 जुलाई 2011 | 2:49 pm


सुगंधा मिश्रा को एक तोहफा
Sugandha Mishra

बात जज्बातों की सुरों में पिरोना |
आवाज़ से सजाना, उसको गाना |
अंदाज़ ये तुम्हारा, दिल पे छाना |
सबको है भाता तुम्हारा यूँ  गाना || १ ||

हुश्न भी पाया है, आवाज़ भी पायी है |
अदा भी पायी है, अदाकारी भी पायी हैं || २ ||

सबसे बड़ी बात है की, जज्बातों की कदर करती हो |
दूसरों के दिल की बात को, अपने दिल से सुनती हो || ३ ||

ये नवाजिस खुदा सबको नहीं देता है |
किसी खास को ही यह तोहफा देता है || ४ ||

तुम पर खुदा की मेहर बनी रहे |
हम पर तुम्हारी नज़र बनी रहे || ५ ||

इदरिसे हसन्नुम, उसका तरन्नुम, क्या सुना |
वक्त-ए-हाल, मुनासिब ख्याल, उसका क्या सुना |
आदि-से-हलक, उसका हलकान क्या सुना |
सुर-ए-नाज़ुक, गले-ए-सुरमाई, उसका क्या सुना || ६ ||
नाभि से सुर उठा, नाद होकर |
छुआ दिल को, अहसास होकर |
कंठ से निकला, सुरीला होकर |
सुगंधा ने गाया,  सुगन्धित होकर |
सबने ने सुना, आनंदित होकर || ७ ||

खता माफ़ करना, यूँ अब रुका जाता नहीं है |
बरबस तेरी तारीफ़ में, शेर निकल आता है || ८ ||

क्या करून तू है ऐसी, तेरी खूबसूरती तेरी शोखी |
तारीफ़ तेरी करून, ऐसा एक जोश-सा देती तोखी || ९ ||

तारीफ़ करता हूँ, तू वफादार है अपने हुनर से |
रोज़ करती है रियाज़, बिना किसी न नुकर से || १० ||
खुसबू बिखेरती हो, सभी के आँगन में, सुगंधा नाम है, तुम्हारा |
आवाज़-ए-सुगन्ध और फुहार-ए-हंसी पर इख्तियार है, तुम्हारा || ११ ||
.

मुझे मेरा मेरे परिजनों सी बिछड़ने का जमाना याद आया .........

Written By आपका अख्तर खान अकेला on रविवार, 24 जुलाई 2011 | 10:34 pm

मुझे मेरा मेरे परिजनों सी बिछड़ने का जमाना याद आया .........

में श्रीमती रिजवाना अख्तर मेरे शोहर अख्तर खाना  अकेला के साथ मेरे बेटे शाहरुख़ खान को अमिति युनिवेरसीटी नोयडा में एडमिशन दिलवाने गये थे ..२३ जुलाई को हम दिल्ली हमारी ननद  के यहाँ से रवाना हुए और शाहरुख को लेकर अमिति पहुंचे ..अमिटी में देश के दूरदराज़ इलाकों से कई बच्चे अपने माता पिता के साथ आये थे हर माँ बाप का दिल अपने बच्चों में अटका हुआ था ..कहते है के तोते में जादूगर की जन  होती है लेकिन आजकल कलियुग में बच्चों में माँ बाप की जान होती है ..खेर मेरे बच्चे शाहरुख का एडमिशन हुआ अनाउंस हुआ के अब बच्चे हमारे हुए कोई बच्चा होस्टल छोड़ कर नहीं जायेगा ..खेर हम बच्चे को होस्टल छोड़ने गए लेकिन अब मुझ से सहा नहीं जा रहा था मेरे आंसू थे के उबल कर उफान कर बाहर आ रहे थे में अपनी सिसकियाँ नहीं  दबा पा रही थी ..मेरे बच्चे ने मुझे भांप लिया और मुझ से कहा के मम्मी पढाई में यह तो होता ही है आप फिकर क्यूँ करती हो आना जाना लगा रहेगा ..मेरे शोहर मुझ पर थोड़ा इस वक्त भावुक होने पर नाराज़ हुए लेकिन फिर मेने दिल को मजबूत किया और बच्चे को कहा के बेटा मुझे ही मेरा तीस साल पहले का मंजर याद आ गया मुझे भी ऐसे ही मेरे मम्मी पापा टोंक से अजमेर होस्टल पढने के लियें छोड़ कर गए थे और तब मेने भी भावुक हुए रोते बिलखते मेरे माँ बाप से यही अल्फाज़ कहे थे ......................श्रीमती रिजवाना अख्तर कोटा राजस्थान

अगज़ल ----- दिलबाग विर्क

http://sahityasurbhi.blogspot.com/2011/07/22.html

                                       * * * * *

ग़ज़लगंगा.dg: खुदी के हाथ से निकला........

खुदी के हाथ से निकला तो फिर हलाक हुआ.
कफे-गुरूर में हर शख्स जेरे-खाक हुआ.

हरेक तर्ह की आबो-हवा से गुजरा हूं
ये और बात तेरी रहगुजर में खाक हुआ.

वो रातो-रात चमकने लगा सितारों सा
उसे तराशने वाला भी ताबनाक हुआ.

ये कच्चे धागों का बंधन है या तमाशा है
अभी-अभी हुई शादी अभी तलाक हुआ.

मैं उससे अपनी तबाही का सबब पूछुंगा
अगर कभी मुझे मिलने का इत्तिफाक हुआ.

तलब की आखिरी मंजिल अजीब मंजिल है
की इस मुकाम पर जो पहुंचा वो हलाक हुआ.

मुहब्बतें मिलीं मुझको न नफरतें गौतम
अजीब रंग में दामन जुनू का चाक हुआ.

-----देवेंद्र गौतम

दिल न लगाती हैं वो

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on शनिवार, 23 जुलाई 2011 | 5:21 pm



झूठी मुस्कुराहट का भी, अपना असर है |
लगता है हमको, कुछ हमारी भी कदर है || 1 ||

उसकी मुस्कान का, कुछ मतलब न लगा लेना |
वो परी है जहाज़ की, दिल न उससे लगा लेना || 2 ||

सही कहा है, परियाँ जन्नत में होती हैं, जन्नत आसमान में होती है |
तो, आसमान के जहाज़ की ये सुंदरियाँ, क्या परियों से कम होती हैं || 3 ||

चेहरा मुस्कुराता है, दिल न लगाती हैं वो |
बस दूर से ही, इंसान से नज़रें चुराती हैं वो || 4 ||

खुदा ने हुश्न भी तो आसमान में लटका दिया है |
इस गरीब को इस हाल में एक फटका दिया है || 5 ||

इतनी ख़ूबसूरती, जमीं पर पैर न धरती है |
नज़रों से लगता है, किसी और पर मरती है || 6 ||

कितना बेदर्द नज़ारा था, हुश्न होते हुए बेदारा था |
बस एक तकल्लुफ था, हुश्न भी किये किनारा था || 7 ||

कितना सहती हैं रोज़, किनके-किनके आखों कि बेहहाई |
गर पूछ लो इनसे, पता चल जाए सबके नज़र कि सफाई || 8 ||

शायद ही किसी ने, नज़रें न मिलाई हों इनसे |
नजर से दिल मिलाने की आरज़ू की हो इनसे || 9 ||

इन हसीनों को भी काम करना पड़ता है |
दूसरों का कितना ख्याल रखना पड़ता है || 10 ||

गर वक्त होता, थोडा अभी पीछे |
दीदार न होता, इनका यूँ दरीचे |
होती ये किसी, सूबे की मल्लिका |
न देख पाते यूँ, इनका ये सलीका || 11 ||

पहरे में रहतीं, हर वक्त किसी के |
न गौर से देख पाते, यूँ जी भर के |
खुदा ने हम पर, मेहरबानी की है |
इनको न यूँ, किसी की रानी की है || 12 ||

सहमी सी जिन्दगी का, चेहरे से झलक आता है |
किसी और के सामने, चेहरा यूँ जो मुस्कुराता है || 13 ||

दिल में यूँ कितनी कसमसाहट होती है तब |
कोई अनजान हसीना, मुस्कुरा देती है जब |
कई तो आदि हैं इसके, न देखते हैं उनकी तरफ |
कैसे छिपाए, दिल का अरमाँ देखें उनकी तरफ || 14 ||

बड़ा अजीब लगता है, हलचल सी मच जाती है |
समझ न पड़ता, दिल में झंकार से बज जाती है || 15 ||

इस तरह शायद बहुत किस्से बने होंगे |
इन हसीनाओं के बहुत दीवाने बने होंगे || 16 ||

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उन्नत - जन्नत - जमानत -

उन्नत
उन्नत वही होते हैं, जो नत होते हैं |
नत वो होते हैं, जो अति पर नहीं जाते हैं |
तो जो अति पर नहीं जाते और नत हो जाते हैं वही उन्नत होते हैं, और उन्नति को पाते हैं |

जन्नत
जन जहाँ नत होते हैं उसे जन्नत कहते हैं |

जमानत
जमा करके जहाँ नत होते हैं उसे जमानत कहते हैं |

अमानत
आम तौर पर जहाँ नत होते हैं उसे अमानत कहते हैं |

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आजकल ज़मीनों और कमीनों का ज़माना है, AIBA condemns Forbesganj killing, demands suspension of police officers.

6 महीने के बच्चे को भी गोलिओं
का शिकार बना डाला  
फ़ोर्ब्सगंज में 90 लाख की ज़मीन के लिए बिहार सरकार ने 4 करोड़ की चहारदीवारी लगवा दी वो भी मुफ़्त में ! और तो और बिहार पुलिस ने हद तो तब कर दी जब इसी ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख्त के विरोध करने पर एक मासूम और गर्भवती महिला समेत 4 लोगों गोलिओं से सरेआम भून भी डाला और ये सब होता रहा हमारे बिहार के सुशासन बाबू कहलाने वाले मुख्यमंत्री नितीश कुमार जी की नाक के नीचे. सबसे अफ़सोसनाक तो यह रहा कि इस मसअले पर न तो मानवाधिकार आयोग ने कोई तत्परता दिखाई और न ही महिला संगठनों ने कोई हलचल.... क्यूँ? आगे बताता हूँ कि क्यूँ?







भारत में तो कोई कुछ न बोला मगर सात समंदर पार अमेरिका के एक इंडियन मुस्लिम संगठन ने इस बात की सुध ली और यह जागरण किया कि मुख्यमंत्री नितीश कुमार जी के फ़ोन नम्बर पर कॉल करके इस मुद्दे के बाबत कोई फ़ैसला लेने पर मजबूर किया जाए.



बताते चलें कि पूरे देश ने IBN7 न्यूज़ चैनल के ज़रिये ये जाना कि किस तरह से ज़मीन को गैर कानूनी तरीके से कानून के नुमाइंदों ने हथिया लिया और विरोध करने पर जवाब में गोलिओं से भून डाला. अब सुशासन का डंका पीटने वाले नीतीश कुमार की सरकार से और क्या अपेक्षा की जा सकती है. बीजेपी MLC सौरभ अग्रवाल ने अरारिया ज़िले के फ़ोर्ब्सगंज इलाके के भजनपुर गाँव में 33 एकड़ ज़मीन को 90 साल के लिए मात्र 90 लाख में ले लिया. यही नहीं हमारे सुशासन बाबू की सरकार ने सरकारी खर्चे से इसके चारो ओर 4 करोड़ की लागत लगा कर चहारदीवारी खिंचवा दी और सौरभ अग्रवाल को यूँ ही दे दी, उनसे एक भी पैसा नहीं लिया. ये ज़मीन बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डेवेलपमेंट अथोरिटी (BIADA) जो कि बिहार सरकार की एक बॉडी है ने दिया.


यही वह ज़मीन है जिसने भजनपुर गाँव की रोड को हड़प लिया जिसके विरोध में भजनपुर गाँव के वासियों ने 3 जून 2011 को आवाज़ उठाई तो उन्हें इस दुनिया से ही उठा दिया गया. 4 लोग मारे गए-- चारों के चार मुसलमान - उनमें एक मासूम बच्चा और एक गर्भवती महिला !!! प्रदेश के मुख्यमंत्री नितीश कुमार न तो मरने वालों को एक भी पैसा देने का ऐलान किया और न ही उस गाँव ही गए. हाँ मुख्यमंत्री होने के नाते उन्होंने न्यायिक जांच का आदेश तत्परता से दिया.


कहते है कि कुर्बानी कभी व्यर्थ नहीं जाती और यही हुआ भी अब नितीश सरकार अपनी जदयू-भाजपा सरकार के मंत्रियों के क़रीबी रिश्तेदारों को ज़मीन औने-पौने दाम में देने के मामले में बुरी तरह से फंसती दिखाई दे रही है. फ़ोर्ब्सगंज की उक्त ज़मीन भी नितीश कुमार के क़रीबी रिश्तेदार को दिए जाने के कारण भी विवाद में आयी, नितीश कुमार ने निजी रूप से विरोध के विरोध गोलियां चलवा दीं.


इस भूमि घोटाले के खुलासे के बाद सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता इस बात की चुगली कर रही है बिहार सरकार सिर्फ घोटालेबाज़ ही नहीं बल्कि मुस्लिम विरोधी भी है क्यूंकि चार निर्दोष मुसलामानों के खून से नहाने के बावजूद नितीश कुमार एक भी इन्च ज़मीन वापस करने के मूड में नहीं दिखाई दे रही है.

मैं AIBA के माध्यम से आप सभी से अनुरोध करता हूँ कि बेहद सभ्य व शालीन और नायाब तरीके से बिहार पुलिस के इस अमानवीय कृत्य की निंदा करें और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के निम्न  नम्बर पर सधे व सही शब्दों में अपना विरोध दर्ज कराएं. आपके विरोध में निम्न तथ्य होने चाहिए:::



  • 3 जून 2011 को फ़ोर्ब्सगंज के नरसंहार में शामिल पुलिसवालों का तत्काल बर्ख़ास्त किया जाए.
  • तत्काल प्रभाव से मारे गए लोगों के परिवार को आर्थिक सहायता प्रदान करना.
  • CBI जांच की मांग करना.
कोई भी फ़ोन उठाये आप अपनी बात रखें, हो सके तो अपना नाम पता व नम्बर भी दें ताकि शिकायत वास्तविक व वाजिब नज़रिए की लगे. भावावेश में कदापि न आये.


मुख्यमंत्री नितीश कुमार का नम्बर है-

  • +91-612-2201000
  • +91-612-2222079
हो सके तो निम्न चित्र पर क्लिक कर इसे अपने दोस्तों को ईमेल के ज़रिये से सूचित करें.




सम्बंधित खबरें:::

TwoCircles.net:
Forbesganj Firing: Police killed women, infant at pointblank range
Rediff:
Forbesganj firing: A tale of police brutality
IBN Live:
Sharad Yadav says judicial probe in Forbesganj firing “discourages private investment”
http://ibnlive.in.com/generalnewsfeed/news/sharad-disapproves-judicial-probe-in-forbesganj-police-firing/731444.html
Ummid.com:
Indian Muslim leaders' apathy towards Forbesganj killing painful.
http://www.ummid.com/news/2011/June/18.06.2011/indian_muslims_n_forbesganj_killing.htm
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सलीम ख़ान
संस्थापक
ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोशियेशन 

Founder

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Saleem Khan