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अद्भुत भारत तुझे नमन। घटना एक, नजरिए अनेक।

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on बुधवार, 18 दिसंबर 2013 | 5:53 pm

भारतीय राजनयिक की अमेरिका में तलाशी और उन पर केस दर्ज।
एक असली कमेंट----
बसपा: वह शिड्यूल कास्ट की हैं, इसलिए भारत सरकार कुछ नहीं कर रही। (असली कमेंट)
अब काल्पनिक
आआपा: वह न्यूयॉक में बिजली कनेक्शन काट रही थी।
भाजपा: वह अमेरिका में रामलला का मंदिर बनवा रही थी।
कांग्रेस: वह सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ रही थी।
वाम दल: अमेरिकी पूंजीवादी हैं होता ही है ऐसा, राजनयिक को चीन जाना चाहिए था।
अन्ना: वह अमेरिका में लोकपाल के लिए अनशन पर जाने वाली थी।
बॉलीवुड: उनका अमेरिकी सीनेटर से चक्कर था।
सपा: वह कंप्यूटर शिक्षा का विरोध कर रही थी।
एनसीपी: वह अमेरिकी शुगर मिलों के साथ काम नहीं कर पा रही थी।
टीआरएस: वह पृथक छोटा टैक्सॉस मांग रही थी।
शिवसेना: वह अमेरिका से ब्रिटिश भैया को भगाने का काम कर रही थी।
आरजेडी: वह अमेरिका में चारागाहों पर कब्जा कर रही थी।
जदयू: वह भाजपा के साथ मिलकर अराजकता फैला रही थी।
डीएमके: उसे अमेरिकी सेतु समुद्रम का ठेका नहीं मिला था।
एआईडीएमके: वह तमिलों का साथ दे रही थी।
जय भारत, जय हिंद।
-सखाजी

कांग्रेस की एक और परीक्षा

AAP interacting with media.
देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस की सेहत पर दिल्ली नतीजों से ज्यादा असर नहीं पड़ता। चूंकि वह इतनी बड़ी और इतनी पुरानी पार्टी है कि उसे आप नहीं मिटा सकते। बहरहाल एक परीक्षा हुई, जिसके नतीजों में कांग्रेस पूरी तरह से तहत नहस सी नजर आई। इससे अभी वह उबरी भी नहीं थी, कि दूसरी परीक्षा उसके सामने है। कांग्रेसी पहली परीक्षा में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में सफाए के बाद थोड़ा आत्म चिंतन की मुद्रा में जरूर दिख रही है, लेकिन अभी भी अपनी 127 सालों पुराने तजुर्बे को वह कमतर नहीं मान रही। अभी दूसरी परीक्षा फिर उसकी होने जा रहा है। शकील अहमद इसे परीक्षा भले न मानें, सोनिया तो खैर क्या मानेंगी। मगर है तो कांग्रेस की ही परीक्षा। अब आआपा ने दिल्ली की जनता से पूछने के लिए २५ लाख लोगों तक सीधे पहुंचने की बात की है। उनसे एक बार फिर से यह पूछा जाएगा, कि वे सरकरा कांग्रेस के साथ बनाएं या नहीं। अगर इसमें बिल्कुल उल्टे नतीजे आते हैं, जिनमें जनता मना कर देती है। ऐसा हो भी रहा है, कई मीडिया, टीवी, अखबारों ने ऐसे सर्वे करवाएं हैं, जिनमें सरकार बनाने के लिए मना किया गया है। अगर ऐसे ही नतीजे आआपा के इस सर्वे में आते हैं, तो समझिए कांग्रेस एक और परीक्षा में फैल हो गई। वह कांग्रेस प्री पोल सर्वे में फैल होती है, वह एग्जिट पोल में फैल होती है, संवैधानिक चुनावी प्रक्रिया में फैल होती है, वह लोगों की आशाओं पर फैल होती है, वह कांग्रेस एक बार फिर से अगर इस सर्वे में भी फैल होती है, तो फिर क्या कांग्रेस को गंभीरता से सोचना नहीं चाहिए। आआपा ने भले ही सरकार बनाने के इस मसले को बेहद रोचक, गंभीर और नाटकीय बना दिया हो, लेकिन मसला सिर्फ सरकार बनाने का नहीं है न। इस पूरी प्रक्रिया में जहां भाजपा आआपा को दिल्ली से बाहर निकलने नहीं देना चाहती, ताकि वह देश में दिल्ली का सक्सेस कार्ड दिखाकर मोदी का रथ न रोके, तो वहीं कांग्रेस इन्हें हर शर्त पर एक्पोज करना चाहती है। आआपा से यूं तो कोई बड़ी भूल नहीं हुई, लेकिन एक भूल हो गई, वह यह कि 28 सीटों के साथ विपक्ष में बैठने की। उसे यह कहना था, कि हम सरकार बनाएंगे। लोगों में उत्साह जगता और जिन्होंने इन्हें वोट दिया है वह खुश होते, जिन्होंने नहीं दिया वह भी सोचते अबकी बार देंगे। मगर वह थोड़ा घूम गई, चूंकि उसके सामने थी ही इतनी बड़ी और तजुर्बेदार पार्टियां सामने।
- सखाजी

Life is Just a Life: कविता (मुक्तक) पाठ - दिल्ली में Reciting my poem i...

Written By नीरज द्विवेदी on मंगलवार, 17 दिसंबर 2013 | 8:30 pm

Life is Just a Life: कविता (मुक्तक) पाठ - दिल्ली में Reciting my poem i...: नीरज द्विवेदी, गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के तत्वाधान में आयोजित सन्निधि संगोष्ठी में दोहा सम्राट नरेश शांडिल्य जी और वरिष्ठ साहित्यकार हरेन्द्र प्रताप जी की उपस्थिति में कविता पाठ करते हुए. — at गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, राजघाट, नयी दिल्ली. सन्निधि संगोष्ठी (दोहा,मुक्तक). ....

Life is Just a Life: जग रही है या सो रही है जिंदगी Jag rahi hai ya So r...

Written By नीरज द्विवेदी on गुरुवार, 12 दिसंबर 2013 | 9:32 pm

Life is Just a Life: जग रही है या सो रही है जिंदगी Jag rahi hai ya So r...: शब्द का विन्यास धरती का रुदन इतिहास, केवल चल रही है या लड रही है जिन्दगी? स्नेह आंचल का आंख काजल का परिहास, केवल हंस रही है या रो ...

Life is Just a Life: कुछ तेरे हत्यारे हैं Kuch tere hatyarein hain

Written By नीरज द्विवेदी on मंगलवार, 10 दिसंबर 2013 | 7:50 pm

Life is Just a Life: कुछ तेरे हत्यारे हैं Kuch tere hatyarein hain: संसद चौपाटी में बैठे जुगनू बन कर तारे हैं, कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं। जंगल से निकल कर चोर उचक्के दरबारों में जा बैठे...

फिर वही ढाक के तीन पात

Written By Sadhana Vaid on सोमवार, 9 दिसंबर 2013 | 12:39 am



चार राज्यों में चुनाव के परिणामों ने आज सच में भारत में महोत्सव का माहौल बना दिया है ! वर्षों की मायूसी, मोह भंग एवँ जद्दोजहद की ज़िंदगी जीने के बाद आज भारत की जनता के मुख पर अरसे के बाद एक सच्ची मुस्कान दिखाई दी है ! सत्ता परिवर्तन के साथ देश में राहत का वातावरण भी तैयार हो सकेगा जनता इसके लिये आशान्वित हो उठी है ! अन्याय, अराजकता, भ्रष्टाचार, मँहगाई, असुरक्षा और आतंक की चक्की में पिसते-पिसते आम जनता की मनोदशा इतनी दुर्बल हो गयी थी कि उसके लिये आस्था, विश्वास, निष्ठा, भरोसा जैसे शब्द अपना अर्थ खो चुके थे ! इतने वर्षों तक आकण्ठ भर चुका पाप का घड़ा एक दिन तो फूटना ही था ! आज के चुनाव परिणाम के साथ यह शुभ दिन भी आ गया ! आज सच में उत्सव मनाने का दिन है !
इन चुनावों में कॉंग्रेस पार्टी की हार होगी और भारतीय जनता पार्टी की जीत होगी इसके लिये तो जनता मानसिक रूप से तैयार थी ही लेकिन अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी इतने ज़ोरदार तरीके से अपनी आमद दर्ज करायेगी यह अवश्य ही अप्रत्याशित था ! सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई एवँ शुभकामनायें !
जिस तरह से दिल्ली में सीटों के आँकड़े सामने आये हैं उनके अनुसार दिल्ली में पुन: त्रिशंकु विधान सभा बनने के आसार दिखाई दे रहे हैं ! ३१ सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत ना मिलने के कारण सरकार बनाने के लिये ना तो भारतीय जनता पार्टी ही उत्सुक दिखाई दे रही है ना ही २८ सीटें जीतने के बाद आम आदमी पार्टी ! बदलाव होना चाहिये लेकिन इस तरह का जनादेश जनता का कोई भला नहीं कर सकता यह भी विचारणीय है ! जनता ने अपना समर्थन देकर कॉंग्रेस पार्टी को करारी हार दिलाई सिर्फ इसी आशा में कि अब साफ़ सुथरी सरकार सत्ता सम्हालेगी और आम जनता की चिंताओं और फिक्रों को विराम लग जायेगा ! लेकिन जो परिणाम सामने आये उसमें कोई भी पार्टी अकेली सरकार बनाने के लिये समर्थ नहीं ! और आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों मिल कर सरकार बनाने के लिये तैयार नहीं ! दोनों ही विपक्ष में बैठने की बात कर रहे हैं जिसका सीधा अर्थ है राष्ट्रपति शासन अर्थात परदे के पीछे से फिर कॉंग्रेस का ही शासन ! यानी कि फिर वही ढाक के तीन पात ! यदि ऐसा होता है तो जनता फिर छली जायेगी ! चुनाव खाली हार जीत का ही खेल नहीं है यह जनता द्वारा सरकार बनाये जाने की एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है ! चुनाव में खड़े होना का अर्थ देश के प्रति अपने समर्पण एवं त्याग को स्थापित करना है यह मात्र अहम तुष्टि का साधन नहीं है ! इन परिणामों ने फिर से चिंतित कर दिया है ! तो क्या अब भी दिल्ली के भविष्य पर अनिश्चय के बादल ही मँडराते रहेंगे ?
जनता ने चुनाव में मतदान करके अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया ! अब फ़र्ज़ अदायगी का नंबर नेताओं का है कि वे आपसी मतभेद भूल कर अपने अपने प्रदेशों को साफ़ सुथरी, निष्ठावान एवँ कर्तव्यपरायण सरकार दें जो आम आदमी की दिक्कतों को समझे, उन्हें दूर करने के लिये प्रयासरत रहे और भ्रष्टाचार, स्वार्थ और अकर्मण्यता की पुरानी प्रचलित परम्पराओं को तोड़ कर अपनी साफ़ सुथरी छवि जनता के सामने स्थापित करे !

साधना वैद  

Founder

Founder
Saleem Khan