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Life is Just a Life: संवेदन Samvedan

Written By नीरज द्विवेदी on सोमवार, 13 मई 2013 | 7:51 am

Life is Just a Life: संवेदन Samvedan: मैं प्यार मोहब्बत तब    लिखता हूँ जब जीना मुश्किल हो जाता है, बोझ हक़ीकत का सपनों की छाती पर  ढोना मुश्किल हो जाता है। कुछ मर जाते ...

Life is Just a Life: बँटवारा Bantwara

Written By नीरज द्विवेदी on शनिवार, 11 मई 2013 | 9:36 pm

Life is Just a Life: बँटवारा Bantwara: चलो समेटो टुकडे हर घर से हर कोने से हर मंदिर से महलों से झोपड़ियों से हर गली मोहल्ले गाँव शहर से फुटपाथों से पुल के नीचे से...

अमन का पैग़ाम: इस्लाम के खिलाफ नहीं है वंदे मातरम् शफीकुर्रहमान ब...

Written By एस एम् मासूम on शुक्रवार, 10 मई 2013 | 3:14 pm

अमन का पैग़ाम: इस्लाम के खिलाफ नहीं है वंदे मातरम् शफीकुर्रहमान ब...: बुधवार को लोकसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने से पहले सदन में 'वंदे मातरम्' की धुन बजने के दौरान संभल से बीएसपी सांसद ...
kroyaaa is aalekh ko pura pdhen or prtikriya avshy de shukriyaa
अख्तर खान अकेला
9 hours ago
Girish Pankaj
सबसे पहला धर्म हमारा, वन्दे मातरम
देश हमारा सबसे न्यारा, वन्दे मातरम

देश है सबसे पहले, उसके बाद धर्म आये
सोचो इस पर आज दुबारा, वन्दे मातरम

हिन्दू मुस्लिम, सिख, ईसाई बातें हैं बेकार
देश हमें हो प्राण से प्यारा, वन्दे मातरम

जहां रहें, हम जहां भी जाएँ रखे वतन को याद
जिसने अपना आज संवारा, वन्दे मातरम

देश विरोधी लोगों को हम सिखलाएँ यह बात
सुबह-शाम बस एक हो नारा, वन्दे मातरम

देश हमारी आन-बान है देश हमारी शान
लायेंगे घर-घर उजियारा, वन्दे मातरम

भारत मटा तुम्हें बुलाती लौटो अपने देश
घर आओ ये कितना प्यारा, वन्दे मातरम

जातिधर्म की ये दीवारे कब तक कैद रहें?
तोड़ो-तोड़ो अब ये कारा, वन्दे मातरम

ध्वज अपना है, भाषा अपनी, राष्ट्रगान का मान
राष्ट्र प्रेम की सच्ची धारा, वन्दे मातरम

देश प्रेम ही विश्व प्रेम की है सच्ची शुरुआत,
बिन इसके न होय गुजारा, वन्दे मातरम
अख्तर खान अकेला
3 hours ago
फिर दिल से कहो हम इस मिटटी से प्यार करते है इसी मिटटी में मिलकर फना हो जाना चाहते है और वन्देमातरम कहते ही नहीं वन्देमातरम करके भी दिखाते है वन्देमातरम वन्देमातरम
दोस्तों कल संसद में बसपा के एक मुस्लिम सांसद ने वन्देमातरम गीत का बहिष्कार किया उस पर देश भर में बहस छिड़ी हुई है बात भी सही है के जिसे हम राष्ट्रगीत कहते है उसे हमे बोलने सुनने में दिक्क़त है लेकिन जरा हम अपने सीने पर हाथ रख कर देखे क्या हम इस गीत का सम्मान करते है या फिर इस गीत के नाम पर राजनीति कर वोट कबाड़ने और एक दुसरे को नीचा दिखने की सोचते है ..देश की संसद में इस मामले में चुनाव हुआ और बहुमत के आधार पर राष्ट्रगान जन गन मन सुना गया ..बस वोह राष्ट्रगान हो गया देश के मान सम्मान का प्रतीक होने के कारन इस गायन को सम्मान देने के लियें राष्ट्रिय सम्मान कानून बनाया गया और इस गान के अपमान करने वाले को सजा देने का प्रावधान रखा गया लेकिन चाहे कोंग्रेस सत्ता में रही हो चाहे भाजपा सत्ता में रही हो किसी ने भी वन्दे मातरम गीत को गाने और इसका सम्मान करने के मामले में कोई आचार संहिता कोई कानून नही बनाया केवल ऐच्छिक रखा गया अब ऐच्छिक अगर कोई चीज़ है तो उस मामले में की जीद काम नहीं देती खेर यह तो अलग बात हो गयी है लेकिन जरा सोचिये अपने दिल पर हाथ रखिये जो लोग संसद में राष्ट्रगीत वन्देमातरम गा रहे थे क्या उन्हें इस ईत को गाने का हक है क्या वोह लोग देश से प्यार करते है क्या संसद में बेठे लोगों का चरित्र उन्हें इस गीत को गाने की इजाज़त देता है जो लोग बलात्कारी हो ..बेईमान हो ..मक्कार हो ..फरेबी हो ..रिश्वतखोर हो ..भ्रष्ट हो देश के कानून का मान सम्मान नहीं करते हो दश की सीमाओं का सम्मान नहीं करते हो जिनके दिलों में गीता ..कुरान .बाइबिल ...गुरुवाणी या किसी भी द्र्ह्मे का सम्मान नहीं हो तो क्या वोह लोग उनकी नापाक जुबान से वन्देमातरम जेसा गीत गाने के हकदार है क्या संसद में बेठे बेईमान लोग शपथ लेकर देश के संविधान की धज्जियां उढ़ा कर इस गीत को गाने के हकदार है नहीं न तो फिर यह तमाशा क्यूँ वन्देमातरम पर राजनीति क्यूँ ..एक कट्टर हिन्दू वन्देमातरम पर मुसलमानों को इस गीत का दुश्मन बताकर अपने कट्टरवादी वोट मजबूत करने की कोशिशों में जुटा रहता है तो एक मुसलमान सांसद सिर्फ मुस्लिम वोटों को प्रापत् करने के लियें संसद में इस गीत के गायन के वक्त इस गीत का बहिष्कार करता है हमे शर्म आती है दिल में तो बेईमानी और जुबान पर राजनीति वोह भी पवित्र गीत के नाम पर इस गीत का अहसास कोई समझ नहीं सकता मुख्तलिफ शायरों और मुख्तलिफ विचारधाराओं के लोगों ने इस गीत की व्याख्या अपने आने तरीके से की है मुसलमान कहते है के देश की मिटटी से प्यार करने और इसी मिटटी में फना हो जाने को वन्देमातरम कहते है मुसलमानों का तर्क है के यह उन लोगों के लियें संदेश है जो लोग जुबान से देशभक्ति का दिखावा करते है और इस देश की मीट्टी में मिलने की जगह नदी के जरिये विदेशों के समुन्द्र में समां जाते है ..मुसलमान कहते है के हम जब नमाज़ पढ़ते है तो इस देश की मिटटी पर सर झुका कर अपने खुद तक पहुंचने का रास्ता बनाते है ..मुसलमान कहते है के जब नमाज़ के पहेल उन्हें पानी नहीं मिलता या बीमारी के कारण उनका पानी से परहेज़ होता है तो इसी देश की मिटटी से तहममुम यानी सूखा वुजू कर खुद को पाक कर लेता है और फिर खुद के दरबार में नमाज़ के जरिये इसी सर जमीन पर सजदा कर अपनी हाजरी लगाता है ...इतना ही नहीं मुसलमान इस धरती पर पैदा होता है बढ़ा होता है और मरने पर इसी मिटटी में दफन होकर खुद को फना कर लेता है जबके दुसरे समाज के लोग दिखावे को तो इस मिटटी से दिखावे का नाटक करते है लेकिन जिस धरती में सीता मय्या ने समाकर इस धरती की पवित्रता और मिटटी में मिलजाने का संदेश दिया था वही लोग राख बनकर नदी में भाये जाते है और नदी इनको बहा कर दूर विदेशी समुन्द्रों में लेजाती है ऐसा क्यूँ होता है मुसलमान तो इस मिटटी से अपना रिश्ता मरने के बाद भी रखता है लेकिन दुसरे लोग मरने के बाद इस मिटटी से अपना रिश्ता क्यूँ तोड़ कर दूर विदेशी समुन्द्रों में चले जाते है ........दूसरी तरफ दुसरे समाज का कहना है के मुसलमान वन्देमातरम का अपमान करते है धरती भारत की धरती पर अपना शीश नहीं झुकाते है ..उन्हें भारत से प्यार नहीं और वोह भारत को माँ नहीं मानते भारत माँ का सम्मान नहीं करते इसीलियें इस गीत का अपमान करते है अब वक्त आ गया है के गीतों के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों को पकड़ा जाए उनसे सवाल किये जाए उनकी राष्ट्रीयता को परखा जाए और कम से कम मुंह में राम बगल में छुरी रखें वाले चोर बेइमान नेताओं से तो इस गीत को गाने का हक छीन लिया जाए इस गीत को गाने ..इसके सम्मान ..इसके गाने के तरीके स्थान और गीत गाने के हकदारों और इसकी उपेक्षा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही को लेकर कोई आचार संहिता बनाने की जरूरत है इस गीत के नाम पर राजनीति करने वालों को रोकने की भी आचार संहिता बनाने की जरूरत है और जुबान से नहीं दिल से कर्म से मन से वचन से वन्देमातरम कहने वालों की जरूरत है इसलियें एक बार फिर दिल से कहो हम इस मिटटी से प्यार करते है इसी मिटटी में मिलकर फना हो जाना चाहते है और वन्देमातरम कहते ही नहीं वन्देमातरम करके भी दिखाते है वन्देमातरम वन्देमातरम ..............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

Life is Just a Life: प्यार और शब्द का रिश्ता Pyar aur Shabd ka rishta

Written By नीरज द्विवेदी on शनिवार, 4 मई 2013 | 12:33 pm

Life is Just a Life: प्यार और शब्द का रिश्ता Pyar aur Shabd ka rishta: हरिवंश राय बच्चन जी की एक कविता "एक नया अनुभव" में कवि चिड़िया से कहता है कि मुझे तुझसे प्यार है मैं तुझ पर कविता लिखना चाहता ह...

रानी

Written By Sadhana Vaid on गुरुवार, 2 मई 2013 | 10:59 pm


वह रोज आती है मेरे यहाँ अपनी माँ के साथ ! छोटी सी बच्ची है पाँच छ: साल की ! नाम है रानी ! माँ बर्तन माँज कर डलिया में रखती जाती है वह एक-एक दो-दो उठा कर शेल्फ में सजाती जाती है ! छोटे-छोटे हाथों से बड़े-बड़े भारी बर्तन कुकर कढ़ाई उठाती है तो डर लगता है कि कहीं गिरा न ले अपने पैरों पर ! कितनी चोट लग जायेगी !
मैं उसे प्यार से अपने पास बिठा लेती हूँ अक्सर ! बिस्किट, रस्क या कुछ खाने को दे देती हूँ कि उसकी माँ उसे काम ना बता पाये ! लेकिन ज़रा देर में ही उसकी पुकार लग जाती है ! कभी पुचकार के साथ तो कभी खीझ भरी झिड़की के साथ !
चल रानी ! जल्दी-जल्दी डला खाली कर दे बेटा ! फिर झाडू भी तो लगानी है ! ज़रा जल्दी हाथ चला ले !
मेरे मन में मरोड़ सी उठती है ! मेरे परिवार में भी बच्चियाँ हैं ! अच्छे स्कूल में पढती हैं ! क्या इस बच्ची को पढ़ने का हक नहीं है ! क्या उसका बचपन इसी तरह अपनी माँ के साथ बर्तन माँजते और झाडू लगाते ही बीत जायेगा ! अगर यह नहीं पढ़ा पा रही है तो मैं उसके स्कूल की फीस भर दूँगी ! कम से कम उसका भविष्य तो बन जायेगा ! मैं उसकी माँ मीरा को बुलाती हूँ ! उसे अपने मन की बात बताती हूँ ! लेकिन मेरी बात सुन कर जब उसके चहरे पर कोई अपेक्षित प्रतिक्रिया दिखाई नहीं देती है तो मुझे आश्चर्य के साथ कुछ निराशा भी होती है !
मैं तो उसका स्कूल में एडमीशन करवाना चाहती हूँ और तुम कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रही हो ! इतनी ज़रा सी बच्ची से घर का काम करवा रही हो पता है यह अपराध होता है ! बच्चों से काम नहीं कराते ! किसीने रिपोर्ट कर दी तो हमें भी सज़ा हो जायेगी और तुम भी लपेटे में आ जाओगी ! इसे अपने साथ मत लाया करो !
 तो कहाँ छोड़ कर आऊँ इसे आप बताओ ! मीरा जैसे फट पड़ी ! सारा दिन तो मेरा आप लोगन के घर के काम करने में निकल जाता है ! इसे घर में किसके पास छोड़ूँ ! इसका बाप सुबह से ही कारखाने चला जाता है काम पर ! लड़के भी दोनों अभी बच्चा ही हैं ! स्कूल से आकर बाहर दोस्तों में डोलने चले जाते हैं ! उनके ऊपर इसकी जिम्मेदारी कैसे डाल सकू हूँ ! लड़की जात है इसीके मारे साथ लेकर आती हूँ ! सबका काम निबटाते-निबटाते मुझे संजा के सात बज जाते हैं ! कैसा बुरा बखत चल रहा है आजकल ! अकेली छोरी चार पाँच बजे संजा को स्कूल से घर लौटेगी तो कौन इसे देखेगा ! इसीलिये इसका नाम नहीं लिखवाया ! मेरी आँख के सामने रहेगी तो बची तो रहेगी ! नहीं तो आजकल तो हर जगह बस एक ही बात सुनाई देत है ! कैसा बुरा ज़माना आ गया है !
मुझे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था ! वाकई मीरा जैसे लोगों की समस्या गंभीर है ! यह भी कामकाजी महिला है ! लेकिन अपने बच्चों को क्रेच में नहीं डाल सकती ! लड़कों को पढ़ा रही है लेकिन लड़की को स्कूल में सिर्फ इसलिए नहीं भर्ती कराया कि उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किस पर डाले ! कैसे विचित्र नियम और क़ानून हमने बनाये हैं ! श्रम दिवस के गुणगान बहुत गाये जाते हैं लेकिन जो वास्तव में श्रमजीवी हैं उनके लिये ये क़ानून कितने सुविधाजनक एवँ फलदायी हैं और कितने समस्याएँ बढ़ाने वाले और दिक्कतें पैदा करने वाले हैं इसका आकलन करने की ज़हमत कौन उठाता है ! जबकि सबसे ज्यादह ज़रूरत इसी बात की है !
 स्वयंसेवी संस्थायें जो निर्धन बस्तियों में इनकी सहायता के लिये काम कर रही हैं उन्हें इन बच्चों के लिये नि:शुल्क क्रेच खोलने चाहिये जहाँ इन्हें प्रारम्भिक शिक्षा भी मिल सके, इनके खेलकूद, मनोरंजन एवँ उम्र के अनुसार इनकी कलात्मकता को बढ़ावा देने वाली ट्रेनिंग की भी समुचित व्यवस्था हो और ये एक सुरक्षित एवँ स्वस्थ माहौल में रह सकें ! मँहगाई इतनी बढ़ी हुई है कि इस वर्ग के परिवार में एक व्यक्ति की कमाई से सबका पेट भर जाये यह कल्पना भी असंभव है ! और माता पिता जब दोनों ही काम पर निकल जाते हैं तो नासमझ बच्चे गली मोहल्लों में असुरक्षित यहाँ वहाँ घूमते रहते हैं जिन्हें समाज में व्याप्त नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग आसानी से मिठाई, चॉकलेट्स या खिलौने इत्यादि का लालच देकर आसानी से फुसला लेते हैं और फिर हृदय विदारक पाशविक घटनाओं को अंजाम देने में सफल हो जाते हैं !
बच्चों के यौन शोषण की समस्या की जड़ें कहाँ पर हैं उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है यह तो बहुत ही पेचीदा सवाल है ! सबकी मानसिकता में रातों रात सुधार आ जाये, फिल्मों, टीवी, या सेंसर बोर्ड के सारे कायदे कानूनों में बदलाव कर दिया जाये, लोगों को नैतिक शिक्षा और संस्कारों की घुट्टी पिलाना शुरू कर दी जाये ये सब बातें कहने सुनने में भले ही अच्छी लगें पर व्यावहारिकता के स्तर पर अमल में लाना असंभव हैं ! लेकिन अगर हम सचमुच गंभीरता से कोई निदान ढूँढना चाहते हैं तो इतना तो कर ही सकते हैं कि नासमझ छोटे बच्चे सड़कों पर लावारिस घूमते ना दिखें इसके लिये कुछ ऐसी व्यवस्था की जाये कि माता पिता पर बिना कोई अतिरिक्त भार डाले हुए बच्चों की बुनियादी शिक्षा और सुरक्षा का दायित्व उठा लिया जाये ! और ज़रूरी नहीं है कि प्रोफेशनल एन जी ओज़ ही इस तरह के काम को अंजाम दे सकते हैं ! शहरों में कुछ इस तरह की व्यवस्था होती है कि जहाँ सम्भ्रांत लोगों की रिहाइशी कॉलोनीज़ होती हैं उन्हीं के आस पास उनके घरों में तरह तरह से अपनी सेवाएं देने वाले वर्ग के लोगों की बस्तियाँ भी होती हैं ! सम्भ्रांत लोग अपनी और अपने बच्चों की सुरक्षा तो चाक चौबंद रखते हैं लेकिन दरिंदों की लपेटे में ये बच्चे आ जाते हैं जिनके पास उनके घर वालों की रहनुमाई उपलब्ध नहीं होती क्योंकि वे उस समय आपको घरों में आपकी सेवा में उपस्थित होते हैं और जिनके बिना आपका एक वक्त भी काम नहीं चल सकता ! तो क्या हम इनकी सेवाओं के बदले इतना भी नहीं कर सकते कि इनके बच्चों को कुछ समय देकर उनकी सुरक्षा, शिक्षा और खुशी के लिये थोड़ा सा वक्त दे दें ! इससे कितनी ही रानी, गुड़िया, मुनिया, बिटिया तो बच ही जायेंगी हमें भी खुद पर नाज़ करने के लिये एक पुख्ता वजह मिल जायेगी !
साधना वैद     




Founder

Founder
Saleem Khan