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मोदी का गुड मिक्स और हिस्ट्री टच

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on रविवार, 27 अक्तूबर 2013 | 4:22 pm

राहुल गांधी ने लोगों को भावुक करने के लिए जहां दादी, नाना, पापा के मरने के घिसे पिटे अस्त्र का इस्तेमाल किया, तो वहीं मोदी ने पुराने पड़े औजार को नए सिरे से पजा (धार बनाना) लिया। राहुल कह रहे थे, मेरी दादी मरी, पापा को मार डाला एक दिन मुझे भी मार डालेंगे। इसमें यह कहीं नहीं रिफ्लेक्ट हुआ हर मरने वाले को सत्ता मिलनी चाहिए। फिर कोई कसर रही तो आईएसआई के जरिए साधने के चक्कर में खुद भेद दिए गए।
इसके काउंटर के लिए नरेंद्र मोदी ने जो किया वह सबका था। पहले दिन झांसी की रानी का टच निकाला तो अगली पटना की रैली में सिंकदर को निपटाने वाले बिहारियों का सीना फुला दिया। इतना ही नहीं, बातों ही बातों में किंग मेकर चाणक्य का भी जिक्र कर दिया। यानी बिहार मोदी के लिए बेहद जरूरी है। फिर नीवनतम इतिहास जेपी और बीजेपी का जिक्र भी बड़ी ही सावधानी और आम आदमी से जुडऩे वाले लहजे में किया। 
साबित होता है, कि राहुल के लिए प्राग इतिहास मोतीलाल नेहरू हैं, तो आजादी का इतिहास जवाहरलाल नेहरू। देश में प्रगति का इतिहास इंदिरा गांधी हैं, तो तकनीकी विकास का इतिहास राजीव गांधी। देश को, चीत्कार करते हिंदू मुस्लिमों के आपसी टकराव से बचाने वाला इतिहास उनकी पार्टी है। अंत में देश की इतनी दुर्दशा के बावजूद अगर कोई आशा की किरण है, तो वे स्वयं हैं।
यह है राहुल का इतिहासबोध और उसका इस्तेमाल। इसके ठीक उलट, मोदी ने सार्वजनिक सीना फुलाऊ इतिहास को पकड़ा, जकड़ा और इस्तेमाल किया। सिंकदर जो विश्वविजयी था, उसे हराने पर किसका सीना न फूलेगा, चाणक्य जो हिंदुस्तान के स्वर्ण युग के महागुरु हैं, जिनकी सीखें हर कोई अंधा होकर मानता है, उनके बिहारी कनेक्शन से कौन हरजाई होगा, जो रूठेगा। जेपी जैसे आधुनिक समाजवाद के आधुनिक संस्करण पर कौन बिहार का नेता होगा जो न रीझेगा। ये सब वे बातें हैं, जो सबका सीना फुलाती हैं। यह अल्हदा बात है, कि नरेंद्र मोदी का इतिहास टच कोई नया नहीं है, यह 90 के दशक में भाजपाइयों ने खूब यूज किया है। बड़ी लंबी लच्छेदार बातें करके लोगों के सीने फुलाए और उनपर आज तक राज कर रहे हैं। अभी तो मोदी को प्राग इतिहास में जाना बाकी है, जहां से राजा, ऋषि, मुनि, वेद, शा, ग्रंथों से उद्धरण लिए जाते हैं। धार्मिक कथानकों का विज्ञानिक आधार दिया जाता है। जबकि राहुल फिर से कांग्रेसी बलिदान की खोल में घुसते नजर आ सकते हैं, लेकिन यह बहुत पुराना अ और उदाहरण हो चला है, अब कुछ नया करना पड़ेगा। अपने खास होने वाले चोले से बाहर आना एक कलावती के घर में खाने से संभव नहीं हैं, तो वहीं नरेंद्र मोदी ने  फिर से रेल के डिब्बे में चाय बेचने की बात कहकर आम लोगों से कनेक्शन स्थापित किया। तो अपनी इमेज के इतर, गुजरात में कच्छ और भरूंच का उदाहरण देते हुए मुसलमानों को भी साधा। गरीबी के नाम धागे से हिंदू मुस्लिमों को बांधने की देश में पहली और नायाब कोशिश भी की। चूंकि अब कोई यूं तो निबंधों से इकट्ठा होगा नहीं, कि हिंदू मुस्लिम भाई-भाई कह दो और सब एक हो जाएं। इसलिए परखा हुआ, जाना, समझा और 100 टका सही तरीका अपनाया।

यहां से मोदी के जरिए हम देश में आ रही सकारात्मक राजनीतिक बयार को भी महसूस कर सकते हैं। चूंकि एक दम से सबकुछ सतयुग जैसा हो जाए, आपस में विरोधी राजनेता कजलियों की तरह एक दूसरे को आप लीजिए वोट आप लीजिए कहने लगे यह मुमकिन नहीं है। इसलिए मोदी ने इक्का दुक्का बातें और विषय वस्तु आम भी रखी। नीतीश पर भी बहुत सख्त या खराब तरीके से नहीं बरसे, सामान्य विरोधी होने के नाते वैचारिक भिन्नता को दिखाया। ये सब कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें हम सकारात्मक सियासत का सूत्रपात कह सकते हैं। साथ ही मोदी का गुड मिक्स ऑफ हिस्ट्री टच कह सकते हैं।

-सखाजी

Life is Just a Life: जैसे कोई शीशा टूट गया हो Jaise Koi Sheesha Tut Gay...

Written By नीरज द्विवेदी on रविवार, 20 अक्तूबर 2013 | 12:15 pm

Life is Just a Life: जैसे कोई शीशा टूट गया हो Jaise Koi Sheesha Tut Gay...: एक छन्न की आवाज जैसे कोई शीशा टूट गया हो बिखर गया हो गिरकर आँखों की कोरों से कोई सपना कोई अपना गूंजता रहा एक सत्य कानों में ...

टिकट टिकट बस एक ही जुबां पर शब्द

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013 | 7:14 pm

वह कुनमुना रहा है, कुछ भी नहीं मुंह से निकलता। बस कह रहा टिकट टिकट। भारी ज्वर है, दर्द है, सिर में भी भारी तनाव और दबाव है। शरीर अकड़ा जा रहा है, वक्त निकला जा रहा है। बस एक ही शब्द जुबां पर टिकट टिकट। लोग आसपास जमा हैं, ऐसा मर्ज है जिसका कोई संसार में डॉक्टर नहीं होता, सो कोई डॉक्टर भी नहीं है, आसपास। सब अपने अनुभवों से उसे सलाह दे रहे हैं, कह रहे हैं टिकट लाओ। भाई। मगर कोई समझता नहीं, किसी ने कहा डाक टिकट लाकर दो। दी गई। मगर वह चुप नहीं हुआ। बस डाक टिकट में बनी देश के पहले प्रधानमंत्री की तस्वीर देखकर इशारा करता रहा। कोई नहीं समझा, किस नेता की बात कर रहा है। बुखार बढ़ता जा रहा है, दर्द भी चरम पर है, हाथ पैरों में तो सूजन भी आने लगी। फिर मुंह से निकला टिकट टिकट।
कुछ और भी विद्वान वहां जमा हैं, किसी ने कहा पगला गए हो, वह टिकट मांग रहा है, बस की टिकट लाकर दो। दी गई। वह चुप नहीं हुआ। फिर कोई भीड़ से बोला, भाई ट्रेन की टिकट की बात कर रहा है, फिर वह झल्लाया, चिल्लाया टिकट टिकट। कोई है नहीं जो समझ पाता। इंसान है तो यही सोच रहा है, अधिक बुखार होने से यह बड़ बड़ा रहा है। फिर एक बार लोगों ने कहा प्लेन की टिकट दो। फिर भी चुप नहीं हुआ। सब हार गए, परेशान हो गए, सरप्राइज हो गए। आखिर यह चुप कैसे होगा।
कुछ ने कहा इसे इसके हाल पर छोड़ दो, शायद कुछ दिन बाद ठीक हो जाए। मगर ऐसा कैसे होता, भीड़ थी, तो सलाह देगी ही। फिर एक सलाह दी गई। भीड़ से कोई चिल्लाया, भैया वह विधानसभा की टिकट मांग रहा है। इतना सुनना था, कि मरीज का कुनमुनाना बंद हुआ, थोड़ा आराम लगा। किसी ने कहा कौन देगा, वह फिर दहाड़ मारकर रोने लगा।
आखिर इलाज तो हर चीज का है, न। बस पहचान भर हो जाए, कि मर्ज क्या है। सियासी बीमारियों के डॉक्टर को बुलाया गया। उसने आते ही कहा-
मरीज का नाम?
जी कमल विहारी।
उम्र?
55 साल।
कब से राजनीति में है?
करीब 50 साल से।
ठीक है तो अभी तो वह नौजवान है। पार्टी कौन सी है?
जी ढिमकापा।
बहुत बढिय़ा। (डॉक्टर ने जांच की) फिर बोला, इनके पैरों में जकडऩ है, सिर में दर्द है, पेट भी ठीक नहीं है, बुखार बहुत तेज है, चलो में कुछ दवाएं लिखता हूं ये कैसे भी अरेंज करना होंगी, वरना प्रत्याशी घोषणा के बाद यह बागी हो जाएगा। दवाएं हैं, राज्य पार्टी प्रभारी पेट की खराबी के लिए, जल्द से जल्द इनकी उनसे मुलाकात करवाएं। पैरों के दर्द के लिए समर्थकों को बुलाएं। सिरदर्द के लिए विरोधियों को विभाजित बनाएं रखें, वे एक न हो पाएं। बुखार इनका नहीं उतरेगा, जबतक यह लड़ न लें। देखिए ये दवाएं न मिल पाएं, तो फिर प्रत्याशी घोषणा के बाद मिलिए। निर्दलीय, बागी, दूसरी छोटी मोटी पार्टी आदि में शामिल करवा कर इनका ऑपरेशन करना होगा। ये लड़ेंगे नहीं तब तक टिकट टिकट चिल्लाएंगे। चूंकि यह बीमारी इतनी बढ़ चुकी है, कि ऑपरेशन ही लगता है करना होगा।
सब सरप्राइज अरे ये क्या?
सखाजी

Life is Just a Life: भारत में गौहत्या - एक दंश

Written By नीरज द्विवेदी on सोमवार, 14 अक्तूबर 2013 | 11:36 pm

Life is Just a Life: भारत में गौहत्या - एक दंश: कल फिर अनगिन निरीह आहें निकलेंगी इसी भूमि पर फिर से धरती को सहना होगा अथाह संताप कातर चीत्कारें अस्पष्ट मार्मिक पुकारें बूचड...

Life is Just a Life: रेशे Reshe

Written By नीरज द्विवेदी on सोमवार, 7 अक्तूबर 2013 | 11:30 pm

Life is Just a Life: रेशे Reshe: रेशे कल शाम बिछुड़ गए मुझसे मेरे कई अधूरे शब्द, खो गए कुछ अस्पष्ट भाव बिखरे हुए अजन्में विचार और दूर हो गयीं मुझसे क...

(गीत) जाने कितने बेघर हो गए !

                             
                                                                 

                                                           जाने कितने बेघर हो गए ,कितने ही बेजान ,
                                                            फिर भी  सबक नहीं ले रहा  आज का इंसान !
                                                                     मिट गए सारे जंगल - पर्वत  
                                    ,                                क़त्ल हो गए झरने
                                                                     खेतों में  धुंए की बारिश ,
                                                                     फसल लगी है मरने !
                                                        खून का प्यासा युद्धखोर अब यह मानव बेईमान ,   
                                                        हिंसा-प्रतिहिंसा में जल कर  जग बनता श्मशान !
                                                                    समझे खुद को धरती और
                                                                    समन्दर का स्वामी ,
                                                                     इसीलिए तो धमका जाए
                                                                     बार-बार सुनामी !
                           
                                                      मिट जाएगा देख लेना सबका नाम-ओ-निशान
  ,                                                   कुछ लोगों की करनी से है यह दुनिया परेशान  !
                                                        
                                                                गंगा -जमुना मैली हो गयी
                                                                खुल  कर पापी मुस्काएं  ,     
                                                                पाप नहीं  मिट  पाएगा
                                                                 चाहे बार-बार   धुलवाए !
                                                  झूठ-फरेब की आदत और  एक झूठा अभिमान  ,
                                                  महासागर के रौद्र रूप से  मटियामेट  मकान  !
                                                            नदियों के  मीठे पानी को 
                                                            बना  दिया   ज़हरीला ,
                                                            सहज-सलोना गाँव मिटाया    
                                                            शहर बसा रंगीला !
                                                
                                                  महंगाई का खूनी मंज़र  रोज  निकाले प्राण ,
                                                  फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान  !
                             
                                                                                    --  स्वराज्य  करुण
                                             गीत 
                                                        जाने कितने बेघर हो गए !

                                                                                
                                                           जाने कितने बेघर हो गए ,कितने ही बेजान ,
                                                            फिर भी  सबक नहीं ले रहा  आज का इंसान !
                                                                     मिट गए सारे जंगल - पर्वत  
                                    ,                                क़त्ल हो गए झरने
                                                                     खेतों में  धुंए की बारिश ,
                                                                     फसल लगी है मरने !
                                                        खून का प्यासा युद्धखोर अब यह मानव बेईमान ,   
                                                        हिंसा-प्रतिहिंसा में जल कर  जग बनता श्मशान !
                                                                    समझे खुद को धरती और
                                                                    समन्दर का स्वामी ,
                                                                     इसीलिए तो धमका जाए
                                                                     बार-बार सुनामी !
                           
                                                      मिट जाएगा देख लेना सबका नाम-ओ-निशान
  ,                                                   कुछ लोगों की करनी से है यह दुनिया परेशान  !
                                                        
                                                                गंगा -जमुना मैली हो गयी
                                                                खुल  कर पापी मुस्काएं  ,     
                                                                पाप नहीं  मिट  पाएगा
                                                                 चाहे बार-बार   धुलवाए !
                                                  झूठ-फरेब की आदत औ एक झूठा अभिमान  ,
                                                  महासागर के रौद्र रूप से  मटियामेट  मकान  !
                                                            नदियों के  मीठे पानी को 
                                                            बना  दिया   ज़हरीला ,
                                                            सहज-सलोना गाँव मिटाया    
                                                            शहर बसा रंगीला !
                                                
                                                  महंगाई का खूनी मंज़र  रोज  निकाले प्राण ,
                                                  फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान  !
                             
                                                                                                 --  स्वराज्य  करुण

क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ,

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013 | 7:19 pm

क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ,
कुछ समझ आता नहीं,
जिन्दगी के यह हालात,
मैं किसी को बतलाता नहीं,

बड़ी बेबसी है,
बड़ी बेकसी है,
दिल में बहुत जगह है,
हर गम दिल की पनाह है,

हाज़िर न प्यार करूँ,
जाहिर न इनकार करूँ,
कैसे लिखूँ अपने मौजू को,
किस-किस का इंतज़ार करूँ,

कलम भी है, कागज़ भी है,
स्याही भी है, मेज भी है,
लिख न कुछ पा रहा हूँ,
हर गम आपसे छुपा रहा हूँ,

आँशु ही बह रहे हैं,
हालात वो सब कह रहे हैं,
पता आपका लिख रहे हैं,
चिट्ठी डाकखाने में डाल रहे हैं,

     ..........   पप्पू परिहार


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विज्ञान तो आना ही चाहिए....

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on बुधवार, 2 अक्तूबर 2013 | 2:41 am

आज के जमाने में विज्ञान आपको जरूर आना चाहिए। अगर विज्ञान नहीं आता तो, कम से कम विज्ञान समझना तो आना ही चाहिए। विज्ञान वैसा नहीं कि एक पौधे का अध्ययन करने लग गए। विज्ञान वैसा भी नहीं कि विज्ञानिक  बन गए। मुझे विज्ञान नहीं आता था। कभी नहीं आया, तो मैंने जिल्लत भी खूब झेली। इसलिए मैं चाहता हूं कि अब आने वाली हर पीढ़ी को विज्ञान आए।
एक बार तो मेरी दीदी के ससुर ने मुझे बिल्कुल ही बेज्जत कर दिया था। ऐसे नहीं कि यह कहा हो, तुम्हें विज्ञान क्यों नहीं आता, बल्कि दूसरे तरीके से। हुआ यूं कि हम लोग आंगन में बैठे थे, कि तभी बरामदे में टेलीफोन घनघनाया। तो वे गए उस पर बात करने लगे, थोड़ी देर बाद आए, तो बोले, रवि बड़े पीछे रह गए। रवि उनके छोटे भाई के छोटे बेटे हैं, उन्होंने आगे कहा, रवि ने बारहवीं तक तो मन लगाकर पढ़ाई की फिर भटक गए। बीए कर बैठे। आज कल विज्ञान के बिना होता है भला कुछ। अब मुझे काटो तो खून नहीं। क्या बोलता, इसलिए हूं...हूं करके मुस्कुराया कुछ यूं जैसे गरीब आदमी भव्यता देखकर स्माइली चेहरा लिए और दीन सा लगने लग जाता है।
इसलिए मैं कहता हूं विज्ञान जरूर समझो और सीखो। यह सोचते-सोचते मेरी आंख लग गई। यूं तो मुझे कभी सपने नहीं आते, मगर आज आ गया। यह सपना डरावना था, सुहावना था, मजेदार था, कह तो नहीं सकता। मगर देखने के बाद विज्ञान भाई का महत्व समझ लिया और यह भी जान लिया, कि विज्ञान भाई का भरपूर इस्तेमाल करने से भी वे खुश रहते हैं।
सपने में देखा, कि मैं मुंबई में हूं। वहां पहुंचने में मुझे 16 घंटों से भी ज्यादा का वक्त लगा है। वहीं मेरे साथ एक मेरे ही जैसी हैसियत वाले और भी गए थे, तो वे जरा में पंहुच गए। मुझे लगा, वे शायद फ्लाइट से आए होंगे। लेकिन मन मानने ही तैयार नहीं हुआ। चूंकि वे खटारा सी मोटरसाइकिल से ऑफिस आते हैं, और पत्रकारों की सेवा आजकल कौन करता है, अखबार मालिक ही सेवाएं लेने के लिए तत्पर हैं तो। फिर ऐसा हो कैसे सकता है, कि वे फ्लाइट से आएं।
तभी वहां किसी शख्स ने कहा वे कूदकर आए हैं। मुझे लगा ये कैसे आना हुआ। आजतक तो मैं बैलगाड़ी, घोड़े की पीठ, साइकिल, मोटरसाइकिल, ऑटो, बस, रेल या हवाई से ही सफर के बारे में सुनता आया हूं, यह कूदकर आना क्या हुआ। तब किसी ने कहा आपको नहीं पता? मैंने अज्ञानता में सिर हिलाया, ठीक वैसे ही जैसे 11वीं में रसायन पढ़ते वक्त हिलाता था। बस फर्क इतना था, कि 11वीं क्लास में जब रसायन नहीं समझ आती तो न में सिर हिलाने से भी मैडम दोबारा नहीं समझाती, बल्कि दीन, बुद्धिहीन सोचकर अगले चैप्टर की ओर बढ़ जाती। मैं भी अपनी राह पकड़ लेता, चलो अच्छा हुआ, वह समझाती भी तो कौन अपन को समझ में आने वाली थी। फिर कहीं वह यह पूछती कि क्या समझ में नहीं आया तब तो अपन मर ही जाते। क्या बताते?
किंतु यहां वाले विज्ञानी ने समझाया। उन्होंने कहा आज कल स्वप्न टेक्निक आ गई न। इसमें एक परोगराम होता है, दिमाग में। बस तो उसे एक्टिवेट कर दो फिर जैसे ही नींद लगेगी, जो कुछ भी आपने उस परोगराम में सेट किया है, उसके मुताबिक आप वहां पहुंचा जाओगे। बस इसे ही कूदना कहते हैं।
हमें यकीन नहीं हुआ, तो उन्होंने एक्सपैरीमेंट करके बताया। वे सोफे पर बैठे और हाथ माथे पर लगाकर कुछ करने लगे और अगले 5 मिनट में वैपोराइज होने लगे। बस क्या था, देखते ही देखते वहां सोफे पर बैठा वह पूरा खासा आदमी गायब हो गया। वह देखकर मैंने भी माथा रगड़ा, कुछ नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद वह भाई सामने रखे एक सोफे पर जमने लगा। मुझे याद आया जैसे धार्मिक धारावाहिकों में लोग गायब होते हैं, वैसे ही कुछ हुआ। तब वे पूरे आ चुके थे, तो बोले, देखा। इसे कोई चमत्कार न समझें, बस एक छोटा सा एप मैं दूंगा उसे आप कान में डराप की तरह डाल लेना, वह दिमाग में जाएगा और इंस्टॉल हो जाएगा। फिर मैं आपको ऑपरेटिंग बता दूंगा।
हमारा मुंह खुला है तो बंद नहीं हो रहा था। दिमाग मे एक एप्लीकेशन कान से डरॉप के जरिए भी इंस्टॉल हो सकती है।
हमने उन सज्जन से कहा आप तो महान हैं, तो वे बोले। इसमें महान कैसा? मैंने थोड़े ही बनाया है, यह तो बाजार में मिलता है। बस हमें यूज करना है। तब मुझे समझ में आया कि विज्ञान को यूज करना भी एक तरह का विज्ञानी बनने जैसा है। हमें इस एप के बारे में बताने वाला शख्स हमें कुछ पलों के लिए तो भगवान लगा, ठीक उसी तरह जैसे बॉयो पढ़ाने वाले व्यासजी लगते थे। चूंकि उन्हें वह आता था, जो हमें नहीं आता था और हमें जो आता था, वह उन्हें न आए यह हो नहीं सकता था। यानी गाली, क्लास बंक,बहाने, स्कूल न जाने के 100 तरीके आदि। व्यासजी के बारे में ऐसी ही किंवदंतियां थी, उस वक्त कि वे बहुत बड़े विज्ञानी होते, अगर स्टेशन पर सोए नहीं होते। हमें लगता था सही होगा, चूंकि उन्हें बॉयो आती भी थी। विज्ञानी और किसे कहते हैं? अब करीब 15 सालों बाद क्लियर हो रहा है, कि विज्ञान को मानना ही उसे समझना है, सीखना है, इस्तेमाल ही उसका सही ज्ञान है।
- सखाजी


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Saleem Khan