नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

अद्भुत भारत तुझे नमन। घटना एक, नजरिए अनेक।

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on बुधवार, 18 दिसंबर 2013 | 5:53 pm

भारतीय राजनयिक की अमेरिका में तलाशी और उन पर केस दर्ज।
एक असली कमेंट----
बसपा: वह शिड्यूल कास्ट की हैं, इसलिए भारत सरकार कुछ नहीं कर रही। (असली कमेंट)
अब काल्पनिक
आआपा: वह न्यूयॉक में बिजली कनेक्शन काट रही थी।
भाजपा: वह अमेरिका में रामलला का मंदिर बनवा रही थी।
कांग्रेस: वह सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ रही थी।
वाम दल: अमेरिकी पूंजीवादी हैं होता ही है ऐसा, राजनयिक को चीन जाना चाहिए था।
अन्ना: वह अमेरिका में लोकपाल के लिए अनशन पर जाने वाली थी।
बॉलीवुड: उनका अमेरिकी सीनेटर से चक्कर था।
सपा: वह कंप्यूटर शिक्षा का विरोध कर रही थी।
एनसीपी: वह अमेरिकी शुगर मिलों के साथ काम नहीं कर पा रही थी।
टीआरएस: वह पृथक छोटा टैक्सॉस मांग रही थी।
शिवसेना: वह अमेरिका से ब्रिटिश भैया को भगाने का काम कर रही थी।
आरजेडी: वह अमेरिका में चारागाहों पर कब्जा कर रही थी।
जदयू: वह भाजपा के साथ मिलकर अराजकता फैला रही थी।
डीएमके: उसे अमेरिकी सेतु समुद्रम का ठेका नहीं मिला था।
एआईडीएमके: वह तमिलों का साथ दे रही थी।
जय भारत, जय हिंद।
-सखाजी

कांग्रेस की एक और परीक्षा

AAP interacting with media.
देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस की सेहत पर दिल्ली नतीजों से ज्यादा असर नहीं पड़ता। चूंकि वह इतनी बड़ी और इतनी पुरानी पार्टी है कि उसे आप नहीं मिटा सकते। बहरहाल एक परीक्षा हुई, जिसके नतीजों में कांग्रेस पूरी तरह से तहत नहस सी नजर आई। इससे अभी वह उबरी भी नहीं थी, कि दूसरी परीक्षा उसके सामने है। कांग्रेसी पहली परीक्षा में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में सफाए के बाद थोड़ा आत्म चिंतन की मुद्रा में जरूर दिख रही है, लेकिन अभी भी अपनी 127 सालों पुराने तजुर्बे को वह कमतर नहीं मान रही। अभी दूसरी परीक्षा फिर उसकी होने जा रहा है। शकील अहमद इसे परीक्षा भले न मानें, सोनिया तो खैर क्या मानेंगी। मगर है तो कांग्रेस की ही परीक्षा। अब आआपा ने दिल्ली की जनता से पूछने के लिए २५ लाख लोगों तक सीधे पहुंचने की बात की है। उनसे एक बार फिर से यह पूछा जाएगा, कि वे सरकरा कांग्रेस के साथ बनाएं या नहीं। अगर इसमें बिल्कुल उल्टे नतीजे आते हैं, जिनमें जनता मना कर देती है। ऐसा हो भी रहा है, कई मीडिया, टीवी, अखबारों ने ऐसे सर्वे करवाएं हैं, जिनमें सरकार बनाने के लिए मना किया गया है। अगर ऐसे ही नतीजे आआपा के इस सर्वे में आते हैं, तो समझिए कांग्रेस एक और परीक्षा में फैल हो गई। वह कांग्रेस प्री पोल सर्वे में फैल होती है, वह एग्जिट पोल में फैल होती है, संवैधानिक चुनावी प्रक्रिया में फैल होती है, वह लोगों की आशाओं पर फैल होती है, वह कांग्रेस एक बार फिर से अगर इस सर्वे में भी फैल होती है, तो फिर क्या कांग्रेस को गंभीरता से सोचना नहीं चाहिए। आआपा ने भले ही सरकार बनाने के इस मसले को बेहद रोचक, गंभीर और नाटकीय बना दिया हो, लेकिन मसला सिर्फ सरकार बनाने का नहीं है न। इस पूरी प्रक्रिया में जहां भाजपा आआपा को दिल्ली से बाहर निकलने नहीं देना चाहती, ताकि वह देश में दिल्ली का सक्सेस कार्ड दिखाकर मोदी का रथ न रोके, तो वहीं कांग्रेस इन्हें हर शर्त पर एक्पोज करना चाहती है। आआपा से यूं तो कोई बड़ी भूल नहीं हुई, लेकिन एक भूल हो गई, वह यह कि 28 सीटों के साथ विपक्ष में बैठने की। उसे यह कहना था, कि हम सरकार बनाएंगे। लोगों में उत्साह जगता और जिन्होंने इन्हें वोट दिया है वह खुश होते, जिन्होंने नहीं दिया वह भी सोचते अबकी बार देंगे। मगर वह थोड़ा घूम गई, चूंकि उसके सामने थी ही इतनी बड़ी और तजुर्बेदार पार्टियां सामने।
- सखाजी

Life is Just a Life: कविता (मुक्तक) पाठ - दिल्ली में Reciting my poem i...

Written By नीरज द्विवेदी on मंगलवार, 17 दिसंबर 2013 | 8:30 pm

Life is Just a Life: कविता (मुक्तक) पाठ - दिल्ली में Reciting my poem i...: नीरज द्विवेदी, गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के तत्वाधान में आयोजित सन्निधि संगोष्ठी में दोहा सम्राट नरेश शांडिल्य जी और वरिष्ठ साहित्यकार हरेन्द्र प्रताप जी की उपस्थिति में कविता पाठ करते हुए. — at गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, राजघाट, नयी दिल्ली. सन्निधि संगोष्ठी (दोहा,मुक्तक). ....

Life is Just a Life: जग रही है या सो रही है जिंदगी Jag rahi hai ya So r...

Written By नीरज द्विवेदी on गुरुवार, 12 दिसंबर 2013 | 9:32 pm

Life is Just a Life: जग रही है या सो रही है जिंदगी Jag rahi hai ya So r...: शब्द का विन्यास धरती का रुदन इतिहास, केवल चल रही है या लड रही है जिन्दगी? स्नेह आंचल का आंख काजल का परिहास, केवल हंस रही है या रो ...

Life is Just a Life: कुछ तेरे हत्यारे हैं Kuch tere hatyarein hain

Written By नीरज द्विवेदी on मंगलवार, 10 दिसंबर 2013 | 7:50 pm

Life is Just a Life: कुछ तेरे हत्यारे हैं Kuch tere hatyarein hain: संसद चौपाटी में बैठे जुगनू बन कर तारे हैं, कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं। जंगल से निकल कर चोर उचक्के दरबारों में जा बैठे...

फिर वही ढाक के तीन पात

Written By Sadhana Vaid on सोमवार, 9 दिसंबर 2013 | 12:39 am



चार राज्यों में चुनाव के परिणामों ने आज सच में भारत में महोत्सव का माहौल बना दिया है ! वर्षों की मायूसी, मोह भंग एवँ जद्दोजहद की ज़िंदगी जीने के बाद आज भारत की जनता के मुख पर अरसे के बाद एक सच्ची मुस्कान दिखाई दी है ! सत्ता परिवर्तन के साथ देश में राहत का वातावरण भी तैयार हो सकेगा जनता इसके लिये आशान्वित हो उठी है ! अन्याय, अराजकता, भ्रष्टाचार, मँहगाई, असुरक्षा और आतंक की चक्की में पिसते-पिसते आम जनता की मनोदशा इतनी दुर्बल हो गयी थी कि उसके लिये आस्था, विश्वास, निष्ठा, भरोसा जैसे शब्द अपना अर्थ खो चुके थे ! इतने वर्षों तक आकण्ठ भर चुका पाप का घड़ा एक दिन तो फूटना ही था ! आज के चुनाव परिणाम के साथ यह शुभ दिन भी आ गया ! आज सच में उत्सव मनाने का दिन है !
इन चुनावों में कॉंग्रेस पार्टी की हार होगी और भारतीय जनता पार्टी की जीत होगी इसके लिये तो जनता मानसिक रूप से तैयार थी ही लेकिन अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी इतने ज़ोरदार तरीके से अपनी आमद दर्ज करायेगी यह अवश्य ही अप्रत्याशित था ! सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई एवँ शुभकामनायें !
जिस तरह से दिल्ली में सीटों के आँकड़े सामने आये हैं उनके अनुसार दिल्ली में पुन: त्रिशंकु विधान सभा बनने के आसार दिखाई दे रहे हैं ! ३१ सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत ना मिलने के कारण सरकार बनाने के लिये ना तो भारतीय जनता पार्टी ही उत्सुक दिखाई दे रही है ना ही २८ सीटें जीतने के बाद आम आदमी पार्टी ! बदलाव होना चाहिये लेकिन इस तरह का जनादेश जनता का कोई भला नहीं कर सकता यह भी विचारणीय है ! जनता ने अपना समर्थन देकर कॉंग्रेस पार्टी को करारी हार दिलाई सिर्फ इसी आशा में कि अब साफ़ सुथरी सरकार सत्ता सम्हालेगी और आम जनता की चिंताओं और फिक्रों को विराम लग जायेगा ! लेकिन जो परिणाम सामने आये उसमें कोई भी पार्टी अकेली सरकार बनाने के लिये समर्थ नहीं ! और आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों मिल कर सरकार बनाने के लिये तैयार नहीं ! दोनों ही विपक्ष में बैठने की बात कर रहे हैं जिसका सीधा अर्थ है राष्ट्रपति शासन अर्थात परदे के पीछे से फिर कॉंग्रेस का ही शासन ! यानी कि फिर वही ढाक के तीन पात ! यदि ऐसा होता है तो जनता फिर छली जायेगी ! चुनाव खाली हार जीत का ही खेल नहीं है यह जनता द्वारा सरकार बनाये जाने की एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है ! चुनाव में खड़े होना का अर्थ देश के प्रति अपने समर्पण एवं त्याग को स्थापित करना है यह मात्र अहम तुष्टि का साधन नहीं है ! इन परिणामों ने फिर से चिंतित कर दिया है ! तो क्या अब भी दिल्ली के भविष्य पर अनिश्चय के बादल ही मँडराते रहेंगे ?
जनता ने चुनाव में मतदान करके अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया ! अब फ़र्ज़ अदायगी का नंबर नेताओं का है कि वे आपसी मतभेद भूल कर अपने अपने प्रदेशों को साफ़ सुथरी, निष्ठावान एवँ कर्तव्यपरायण सरकार दें जो आम आदमी की दिक्कतों को समझे, उन्हें दूर करने के लिये प्रयासरत रहे और भ्रष्टाचार, स्वार्थ और अकर्मण्यता की पुरानी प्रचलित परम्पराओं को तोड़ कर अपनी साफ़ सुथरी छवि जनता के सामने स्थापित करे !

साधना वैद  

राष्ट्र-धर्म का रक्षक संस्कृति रक्षक दल (साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा रजि. द्वारा संचालित)

Written By Bharat Swabhiman Dal on शुक्रवार, 29 नवंबर 2013 | 4:27 pm

संस्कृति रक्षक दल, साम्प्रदायिकता विरोधी मोर्चा रजि. द्वारा संचालित एक गैर सरकारी सामाजिक स्वयंसेवी संगठन है । इस संगठन का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति की रक्षा व संवर्द्धन करना तथा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व आध्यात्मिक सभी प्रकार की व्यवस्थाओं का परिवर्तन कर स्वस्थ, समृद्ध एवं शक्तिशाली भारत का पुनर्निर्माण करना है । भारत व भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए संगठन की ग्यारह सूत्री कार्य योजना निम्नलिखित है :-

1. वर्तमान में चल रही समस्त गलत नीतियों व भ्रष्ट व्यवस्थाओं का राष्ट्र हित में पूर्ण परिवर्तन कराना । भ्रष्टाचार, बलात्कार, दहेज हत्या, गौहत्या, आतंकवाद व मिलावट करने वालों के खिलाफ मृत्युदंड का कानून बनवाकर 127 करोड़ भारतीयों को सुरक्षा प्रदान करवाना । इसके लिए देश में फास्ट ट्रेक कोर्ट बनवाकर एक से तीन माह में तुरन्त न्याय की व्यवस्था कराना, जिससे कि अपराधियों को तुरन्त दंड मिल सके और इन भ्रष्टाचार व बलात्कार आदि करने वालों के मृत्युदंड के कानून को राष्ट्रपति के क्षमादान के अधिकार से मुक्त करवाना तथा शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून, अर्थ व कृषि व्यवस्था आदि का पूर्ण भारतीयकरण व स्वदेशीकरण करना ।

2. देश के संविधान से अपमानजनक शब्द इंडिया को हटाकर भारत की पुर्नस्थापना करना, विवादस्पद शब्द 'राष्ट्रपिता' को प्रतिबंधित कराकर भारत माँ के सम्मान की रक्षा करना, भारतीय नागरिकों में साम्प्रदायिक आधार पर भेदभाव उत्पन्न करने वाली नीतियों, कानूनों आदि को भंग करके देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की व्यवस्था कर समानता का अधिकार प्रदान करना, हज सब्सिडी व इमामों को सरकारी कोष से वेतन देना बंद करना तथा शत्रु संपत्ति व बक्फ संपत्ति का राष्ट्रीयकरण करना । आरक्षण का आधार आर्थिक स्थिति को बनाना, जाति - धर्म के आधार पर आरक्षण बन्द करना ।

3. काले धन की अर्थ-व्यवस्था को समाप्त करने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने, काले धन को वापस मंगाने, भ्रष्टाचारियों की संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने व भ्रष्टाचारियों को कठोर दंड का प्रावधान कराने के लिए कठोर कानून बनवाना ।

4. गौवंश की हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना, गौवंश के हत्यारों को मृत्युदंड का प्रावधान कराना तथा गौवंश पर आधारित अर्थ-तंत्र की व्यवस्था करना, गौवंश आधारित कृषि, ऊर्जा, उद्योग आदि का तंत्र विकसित कराना ।

5. विद्यालयों में चरित्र निर्माण, व्यवसायिक शिक्षा व सैन्य शिक्षा अनिवार्य करना । तथ्यों के आलोक में भारतीय इतिहास का पुर्नलेखन कराकर ताजमहल, कुतुब मिनार आदि प्राचीन भवनों के वास्तविक निर्माताओं को उनका श्रेय देकर भारत का सुप्त स्वाभिमान जगाना । केन्द्रीय परीक्षाओं में अंग्रेजी प्रश्नपत्र की अनिवार्यता समाप्त करना तथा संस्कृत, हिन्दी व क्षेत्रीय भाषाओं को वैकल्पिक आधार प्रदान करना । काल गणना के लिए युगाब्ध को अपनाकर राष्ट्रीय पंचांग के रूप में लागू करना ।

6. संस्कृत भाषा को प्रोत्साहित करना, उसे द्वितीय राजभाषा का दर्जा देना, संस्कृत माध्यम से संस्कृत शिक्षा देना, प्रत्येक राज्य में एक - एक केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना करना, संस्कृत में व्यवसायिक, रोजगार उन्मुख पाठ्यक्रमों का निर्माण करना व संस्कृत में रोजगार के अधिक अवसरों को उपलब्ध कराना, दूरदर्शन संस्कृत की स्थापना करना ।

7. मुस्लिम समाज का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त कर उन्हें भारत की मुख्यधारा बहुसंख्यक समाज की श्रेणी में शामिल करना । 1947 में हिन्दुस्थान विभाजन के पश्चात भारत में मुस्लिम जनसंख्या 7.88 प्रतिशत बची थी जो जनगणना 2011 में बढ़कर संभावतः 17.80 प्रतिशत हो चुकी है, जो कि बहुसंख्यक समाज है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार किसी भी देश में 10 प्रतिशत से कम जनसंख्या वाले धार्मिक समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने का प्रावधान हैं, 10 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या होने पर वह समाज बहुसंख्यक की श्रेणी में आता है ।

8. जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना तथा कश्मीर के मूल निवासियों का जम्मू-कश्मीर में सुरक्षित पुर्नवास कराना ।

9. स्वदेशी उत्पादनों को प्रोत्साहित करना, आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति घोषित करना ।

10. मांस निर्यात बन्द करना, जैविक कृषि एवं पशुपालन को प्रोत्साहित करना तथा राष्ट्रीय किसान आयोग का पुनर्गठन करना । बडे बांधों की योजनाओं को निरस्त कर पर्यावरण के अनुकूल छोटे - छोटे बांधों की योजना पर कार्य करना ।

11. बेरोजगारी, गरीबी, भूख, अभाव व अशिक्षा से मुक्त स्वस्थ, समृद्ध, संस्कारवान व शक्तिशाली भारत का पुनर्निर्माण करना और भारत को विश्व की महाशक्ति तथा विश्वगुरू के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करना ।

साम्प्रदायिकता के विनाश एवं भारतीय संस्कृति के विकास के लिए संगठन की ग्यारह सूत्री कार्य योजना को पसंद करने वाले मित्रों, भारत माता, गौ माता, गंगा माता के पुजारियों, भगवान राम, कृष्ण के भक्तों, विश्वविजेता सम्राट विक्रमादित्य, अखण्ड भारत के सृजनकर्ता आचार्य चाणक्य, मेवाड़ केसरी महाराणा प्रताप, हिन्दुत्व रक्षक छत्रपति शिवाजी, महर्षि दयानन्द सरस्वती, गुरू गोविन्द सिंह, स्वामी विवेकानन्द, संत रविदास के अनुयायीयों, क्रांतिधर्मी बिरसा मुण्डा, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, वीर सावरकर, भगत सिंह, पं. नाथूराम गोडसे, रानी लक्ष्मीबाई, वीर गोकुल सिंह, चन्द्रशेखर आजाद के आदर्शवादियों, वेद, शास्त्र, रामायण, गीता के श्रद्धालुओं, साम्प्रदायिक एवं भ्रष्ट आसुरी शक्तियों के विनाश एवं राष्ट्र धर्म की रक्षा हेतु अधिक से अधिक संख्या में तन - मन - धन के साथ संगठन से जुड़ें ।
संस्कृति रक्षक दल आपका हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन करता है ।
http://www.svmbharat.blogspot.com/
E-mail: svmbharat@gmail.com mob.09412458954

विश्वजीत सिंह 'अनंत' 09412458954

विपिन कुमार सुराण 09997967204

बालकिशन 'किशना जी' 09827714551

चन्द्रभान मिन्हास 09625569953

देशपाल सिंह चौधरी 07351828972

हरीश कुमार शर्मा 09868354451

हरीओम सिंह 08126941201

प्रमोद यादव 09917648983, 09826558741

श्रीमती शशी शर्मा 09456680640

राष्ट्र-धर्म रक्षा के जन आन्दोलन संस्कृति रक्षक दल से जुड़ने के लिए कृपया मोबाईल नम्बर 09412458954 पर अपना नाम, उम्र, ई-मेल आईडी & पिन कोड़ SMS करें ।

e.g: kavita chaudhary, 23, kavitachaudhary172@gmail.com, 250001

Life is Just a Life: सियासत Siyasat

Written By नीरज द्विवेदी on गुरुवार, 14 नवंबर 2013 | 9:21 am

Life is Just a Life: सियासत Siyasat: वो हैं कि देशभक्ति का अजीब शौक रखते हैं ये हैं सियासी भेड़िए , कुत्तों की फौज रखते हैं ... दहशतजदा हिमालय कोई कर नह...

उसे पता भी न चला

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on रविवार, 10 नवंबर 2013 | 6:12 pm

उसे पता भी न चला,
उसके लिए,
कितने,
लड़ गये,
मर गए,
कट गए,
कितनों का खून बहा,
कितनों को चोटें लगीं,

उसे पता भी न चला,
उसके लिए,
दोस्त-दोस्त से लड़ा,
छोटा बड़े से भिड़ा,
हर कोई एक-दुसरे से चिड़ा,
दोष दुसरे पर मढ़ा,

उसे पता भी न चला,
उसके लिए,
दीवानगी किस-किस की,
दाव-पर-दाव,
उसके नाम पर लगे,
शहर पर सहर,
उसके नाम से बसे,

उसे पता भी न चला,
उसके लिए,
कितनों ने उसे सपनों में बुलाया,
सपनों में सजाकर,
सपनों कि रानी बनाया,
सपनों ही सपनों में,
ब्याह रचाया,
उसे पता भी न चला,

...

Life is Just a Life: जलते भारत की चीखें Jalte Bharat ki Cheekhein

Written By नीरज द्विवेदी on शनिवार, 9 नवंबर 2013 | 10:34 am

Life is Just a Life: जलते भारत की चीखें Jalte Bharat ki Cheekhein: जलते भारत की चीखें सड़कों पर पड़ी दरारें जब से बन गयी दिलों की खाई है, मंदिर से मस्जिद तक केवल मानवता कुम्हलाई है। बिगड़ गए खड़...

मोदी का गुड मिक्स और हिस्ट्री टच

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on रविवार, 27 अक्तूबर 2013 | 4:22 pm

राहुल गांधी ने लोगों को भावुक करने के लिए जहां दादी, नाना, पापा के मरने के घिसे पिटे अस्त्र का इस्तेमाल किया, तो वहीं मोदी ने पुराने पड़े औजार को नए सिरे से पजा (धार बनाना) लिया। राहुल कह रहे थे, मेरी दादी मरी, पापा को मार डाला एक दिन मुझे भी मार डालेंगे। इसमें यह कहीं नहीं रिफ्लेक्ट हुआ हर मरने वाले को सत्ता मिलनी चाहिए। फिर कोई कसर रही तो आईएसआई के जरिए साधने के चक्कर में खुद भेद दिए गए।
इसके काउंटर के लिए नरेंद्र मोदी ने जो किया वह सबका था। पहले दिन झांसी की रानी का टच निकाला तो अगली पटना की रैली में सिंकदर को निपटाने वाले बिहारियों का सीना फुला दिया। इतना ही नहीं, बातों ही बातों में किंग मेकर चाणक्य का भी जिक्र कर दिया। यानी बिहार मोदी के लिए बेहद जरूरी है। फिर नीवनतम इतिहास जेपी और बीजेपी का जिक्र भी बड़ी ही सावधानी और आम आदमी से जुडऩे वाले लहजे में किया। 
साबित होता है, कि राहुल के लिए प्राग इतिहास मोतीलाल नेहरू हैं, तो आजादी का इतिहास जवाहरलाल नेहरू। देश में प्रगति का इतिहास इंदिरा गांधी हैं, तो तकनीकी विकास का इतिहास राजीव गांधी। देश को, चीत्कार करते हिंदू मुस्लिमों के आपसी टकराव से बचाने वाला इतिहास उनकी पार्टी है। अंत में देश की इतनी दुर्दशा के बावजूद अगर कोई आशा की किरण है, तो वे स्वयं हैं।
यह है राहुल का इतिहासबोध और उसका इस्तेमाल। इसके ठीक उलट, मोदी ने सार्वजनिक सीना फुलाऊ इतिहास को पकड़ा, जकड़ा और इस्तेमाल किया। सिंकदर जो विश्वविजयी था, उसे हराने पर किसका सीना न फूलेगा, चाणक्य जो हिंदुस्तान के स्वर्ण युग के महागुरु हैं, जिनकी सीखें हर कोई अंधा होकर मानता है, उनके बिहारी कनेक्शन से कौन हरजाई होगा, जो रूठेगा। जेपी जैसे आधुनिक समाजवाद के आधुनिक संस्करण पर कौन बिहार का नेता होगा जो न रीझेगा। ये सब वे बातें हैं, जो सबका सीना फुलाती हैं। यह अल्हदा बात है, कि नरेंद्र मोदी का इतिहास टच कोई नया नहीं है, यह 90 के दशक में भाजपाइयों ने खूब यूज किया है। बड़ी लंबी लच्छेदार बातें करके लोगों के सीने फुलाए और उनपर आज तक राज कर रहे हैं। अभी तो मोदी को प्राग इतिहास में जाना बाकी है, जहां से राजा, ऋषि, मुनि, वेद, शा, ग्रंथों से उद्धरण लिए जाते हैं। धार्मिक कथानकों का विज्ञानिक आधार दिया जाता है। जबकि राहुल फिर से कांग्रेसी बलिदान की खोल में घुसते नजर आ सकते हैं, लेकिन यह बहुत पुराना अ और उदाहरण हो चला है, अब कुछ नया करना पड़ेगा। अपने खास होने वाले चोले से बाहर आना एक कलावती के घर में खाने से संभव नहीं हैं, तो वहीं नरेंद्र मोदी ने  फिर से रेल के डिब्बे में चाय बेचने की बात कहकर आम लोगों से कनेक्शन स्थापित किया। तो अपनी इमेज के इतर, गुजरात में कच्छ और भरूंच का उदाहरण देते हुए मुसलमानों को भी साधा। गरीबी के नाम धागे से हिंदू मुस्लिमों को बांधने की देश में पहली और नायाब कोशिश भी की। चूंकि अब कोई यूं तो निबंधों से इकट्ठा होगा नहीं, कि हिंदू मुस्लिम भाई-भाई कह दो और सब एक हो जाएं। इसलिए परखा हुआ, जाना, समझा और 100 टका सही तरीका अपनाया।

यहां से मोदी के जरिए हम देश में आ रही सकारात्मक राजनीतिक बयार को भी महसूस कर सकते हैं। चूंकि एक दम से सबकुछ सतयुग जैसा हो जाए, आपस में विरोधी राजनेता कजलियों की तरह एक दूसरे को आप लीजिए वोट आप लीजिए कहने लगे यह मुमकिन नहीं है। इसलिए मोदी ने इक्का दुक्का बातें और विषय वस्तु आम भी रखी। नीतीश पर भी बहुत सख्त या खराब तरीके से नहीं बरसे, सामान्य विरोधी होने के नाते वैचारिक भिन्नता को दिखाया। ये सब कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें हम सकारात्मक सियासत का सूत्रपात कह सकते हैं। साथ ही मोदी का गुड मिक्स ऑफ हिस्ट्री टच कह सकते हैं।

-सखाजी

Life is Just a Life: जैसे कोई शीशा टूट गया हो Jaise Koi Sheesha Tut Gay...

Written By नीरज द्विवेदी on रविवार, 20 अक्तूबर 2013 | 12:15 pm

Life is Just a Life: जैसे कोई शीशा टूट गया हो Jaise Koi Sheesha Tut Gay...: एक छन्न की आवाज जैसे कोई शीशा टूट गया हो बिखर गया हो गिरकर आँखों की कोरों से कोई सपना कोई अपना गूंजता रहा एक सत्य कानों में ...

टिकट टिकट बस एक ही जुबां पर शब्द

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013 | 7:14 pm

वह कुनमुना रहा है, कुछ भी नहीं मुंह से निकलता। बस कह रहा टिकट टिकट। भारी ज्वर है, दर्द है, सिर में भी भारी तनाव और दबाव है। शरीर अकड़ा जा रहा है, वक्त निकला जा रहा है। बस एक ही शब्द जुबां पर टिकट टिकट। लोग आसपास जमा हैं, ऐसा मर्ज है जिसका कोई संसार में डॉक्टर नहीं होता, सो कोई डॉक्टर भी नहीं है, आसपास। सब अपने अनुभवों से उसे सलाह दे रहे हैं, कह रहे हैं टिकट लाओ। भाई। मगर कोई समझता नहीं, किसी ने कहा डाक टिकट लाकर दो। दी गई। मगर वह चुप नहीं हुआ। बस डाक टिकट में बनी देश के पहले प्रधानमंत्री की तस्वीर देखकर इशारा करता रहा। कोई नहीं समझा, किस नेता की बात कर रहा है। बुखार बढ़ता जा रहा है, दर्द भी चरम पर है, हाथ पैरों में तो सूजन भी आने लगी। फिर मुंह से निकला टिकट टिकट।
कुछ और भी विद्वान वहां जमा हैं, किसी ने कहा पगला गए हो, वह टिकट मांग रहा है, बस की टिकट लाकर दो। दी गई। वह चुप नहीं हुआ। फिर कोई भीड़ से बोला, भाई ट्रेन की टिकट की बात कर रहा है, फिर वह झल्लाया, चिल्लाया टिकट टिकट। कोई है नहीं जो समझ पाता। इंसान है तो यही सोच रहा है, अधिक बुखार होने से यह बड़ बड़ा रहा है। फिर एक बार लोगों ने कहा प्लेन की टिकट दो। फिर भी चुप नहीं हुआ। सब हार गए, परेशान हो गए, सरप्राइज हो गए। आखिर यह चुप कैसे होगा।
कुछ ने कहा इसे इसके हाल पर छोड़ दो, शायद कुछ दिन बाद ठीक हो जाए। मगर ऐसा कैसे होता, भीड़ थी, तो सलाह देगी ही। फिर एक सलाह दी गई। भीड़ से कोई चिल्लाया, भैया वह विधानसभा की टिकट मांग रहा है। इतना सुनना था, कि मरीज का कुनमुनाना बंद हुआ, थोड़ा आराम लगा। किसी ने कहा कौन देगा, वह फिर दहाड़ मारकर रोने लगा।
आखिर इलाज तो हर चीज का है, न। बस पहचान भर हो जाए, कि मर्ज क्या है। सियासी बीमारियों के डॉक्टर को बुलाया गया। उसने आते ही कहा-
मरीज का नाम?
जी कमल विहारी।
उम्र?
55 साल।
कब से राजनीति में है?
करीब 50 साल से।
ठीक है तो अभी तो वह नौजवान है। पार्टी कौन सी है?
जी ढिमकापा।
बहुत बढिय़ा। (डॉक्टर ने जांच की) फिर बोला, इनके पैरों में जकडऩ है, सिर में दर्द है, पेट भी ठीक नहीं है, बुखार बहुत तेज है, चलो में कुछ दवाएं लिखता हूं ये कैसे भी अरेंज करना होंगी, वरना प्रत्याशी घोषणा के बाद यह बागी हो जाएगा। दवाएं हैं, राज्य पार्टी प्रभारी पेट की खराबी के लिए, जल्द से जल्द इनकी उनसे मुलाकात करवाएं। पैरों के दर्द के लिए समर्थकों को बुलाएं। सिरदर्द के लिए विरोधियों को विभाजित बनाएं रखें, वे एक न हो पाएं। बुखार इनका नहीं उतरेगा, जबतक यह लड़ न लें। देखिए ये दवाएं न मिल पाएं, तो फिर प्रत्याशी घोषणा के बाद मिलिए। निर्दलीय, बागी, दूसरी छोटी मोटी पार्टी आदि में शामिल करवा कर इनका ऑपरेशन करना होगा। ये लड़ेंगे नहीं तब तक टिकट टिकट चिल्लाएंगे। चूंकि यह बीमारी इतनी बढ़ चुकी है, कि ऑपरेशन ही लगता है करना होगा।
सब सरप्राइज अरे ये क्या?
सखाजी

Life is Just a Life: भारत में गौहत्या - एक दंश

Written By नीरज द्विवेदी on सोमवार, 14 अक्तूबर 2013 | 11:36 pm

Life is Just a Life: भारत में गौहत्या - एक दंश: कल फिर अनगिन निरीह आहें निकलेंगी इसी भूमि पर फिर से धरती को सहना होगा अथाह संताप कातर चीत्कारें अस्पष्ट मार्मिक पुकारें बूचड...

Life is Just a Life: रेशे Reshe

Written By नीरज द्विवेदी on सोमवार, 7 अक्तूबर 2013 | 11:30 pm

Life is Just a Life: रेशे Reshe: रेशे कल शाम बिछुड़ गए मुझसे मेरे कई अधूरे शब्द, खो गए कुछ अस्पष्ट भाव बिखरे हुए अजन्में विचार और दूर हो गयीं मुझसे क...

(गीत) जाने कितने बेघर हो गए !

                             
                                                                 

                                                           जाने कितने बेघर हो गए ,कितने ही बेजान ,
                                                            फिर भी  सबक नहीं ले रहा  आज का इंसान !
                                                                     मिट गए सारे जंगल - पर्वत  
                                    ,                                क़त्ल हो गए झरने
                                                                     खेतों में  धुंए की बारिश ,
                                                                     फसल लगी है मरने !
                                                        खून का प्यासा युद्धखोर अब यह मानव बेईमान ,   
                                                        हिंसा-प्रतिहिंसा में जल कर  जग बनता श्मशान !
                                                                    समझे खुद को धरती और
                                                                    समन्दर का स्वामी ,
                                                                     इसीलिए तो धमका जाए
                                                                     बार-बार सुनामी !
                           
                                                      मिट जाएगा देख लेना सबका नाम-ओ-निशान
  ,                                                   कुछ लोगों की करनी से है यह दुनिया परेशान  !
                                                        
                                                                गंगा -जमुना मैली हो गयी
                                                                खुल  कर पापी मुस्काएं  ,     
                                                                पाप नहीं  मिट  पाएगा
                                                                 चाहे बार-बार   धुलवाए !
                                                  झूठ-फरेब की आदत और  एक झूठा अभिमान  ,
                                                  महासागर के रौद्र रूप से  मटियामेट  मकान  !
                                                            नदियों के  मीठे पानी को 
                                                            बना  दिया   ज़हरीला ,
                                                            सहज-सलोना गाँव मिटाया    
                                                            शहर बसा रंगीला !
                                                
                                                  महंगाई का खूनी मंज़र  रोज  निकाले प्राण ,
                                                  फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान  !
                             
                                                                                    --  स्वराज्य  करुण
                                             गीत 
                                                        जाने कितने बेघर हो गए !

                                                                                
                                                           जाने कितने बेघर हो गए ,कितने ही बेजान ,
                                                            फिर भी  सबक नहीं ले रहा  आज का इंसान !
                                                                     मिट गए सारे जंगल - पर्वत  
                                    ,                                क़त्ल हो गए झरने
                                                                     खेतों में  धुंए की बारिश ,
                                                                     फसल लगी है मरने !
                                                        खून का प्यासा युद्धखोर अब यह मानव बेईमान ,   
                                                        हिंसा-प्रतिहिंसा में जल कर  जग बनता श्मशान !
                                                                    समझे खुद को धरती और
                                                                    समन्दर का स्वामी ,
                                                                     इसीलिए तो धमका जाए
                                                                     बार-बार सुनामी !
                           
                                                      मिट जाएगा देख लेना सबका नाम-ओ-निशान
  ,                                                   कुछ लोगों की करनी से है यह दुनिया परेशान  !
                                                        
                                                                गंगा -जमुना मैली हो गयी
                                                                खुल  कर पापी मुस्काएं  ,     
                                                                पाप नहीं  मिट  पाएगा
                                                                 चाहे बार-बार   धुलवाए !
                                                  झूठ-फरेब की आदत औ एक झूठा अभिमान  ,
                                                  महासागर के रौद्र रूप से  मटियामेट  मकान  !
                                                            नदियों के  मीठे पानी को 
                                                            बना  दिया   ज़हरीला ,
                                                            सहज-सलोना गाँव मिटाया    
                                                            शहर बसा रंगीला !
                                                
                                                  महंगाई का खूनी मंज़र  रोज  निकाले प्राण ,
                                                  फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान  !
                             
                                                                                                 --  स्वराज्य  करुण

क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ,

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013 | 7:19 pm

क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ,
कुछ समझ आता नहीं,
जिन्दगी के यह हालात,
मैं किसी को बतलाता नहीं,

बड़ी बेबसी है,
बड़ी बेकसी है,
दिल में बहुत जगह है,
हर गम दिल की पनाह है,

हाज़िर न प्यार करूँ,
जाहिर न इनकार करूँ,
कैसे लिखूँ अपने मौजू को,
किस-किस का इंतज़ार करूँ,

कलम भी है, कागज़ भी है,
स्याही भी है, मेज भी है,
लिख न कुछ पा रहा हूँ,
हर गम आपसे छुपा रहा हूँ,

आँशु ही बह रहे हैं,
हालात वो सब कह रहे हैं,
पता आपका लिख रहे हैं,
चिट्ठी डाकखाने में डाल रहे हैं,

     ..........   पप्पू परिहार


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विज्ञान तो आना ही चाहिए....

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on बुधवार, 2 अक्तूबर 2013 | 2:41 am

आज के जमाने में विज्ञान आपको जरूर आना चाहिए। अगर विज्ञान नहीं आता तो, कम से कम विज्ञान समझना तो आना ही चाहिए। विज्ञान वैसा नहीं कि एक पौधे का अध्ययन करने लग गए। विज्ञान वैसा भी नहीं कि विज्ञानिक  बन गए। मुझे विज्ञान नहीं आता था। कभी नहीं आया, तो मैंने जिल्लत भी खूब झेली। इसलिए मैं चाहता हूं कि अब आने वाली हर पीढ़ी को विज्ञान आए।
एक बार तो मेरी दीदी के ससुर ने मुझे बिल्कुल ही बेज्जत कर दिया था। ऐसे नहीं कि यह कहा हो, तुम्हें विज्ञान क्यों नहीं आता, बल्कि दूसरे तरीके से। हुआ यूं कि हम लोग आंगन में बैठे थे, कि तभी बरामदे में टेलीफोन घनघनाया। तो वे गए उस पर बात करने लगे, थोड़ी देर बाद आए, तो बोले, रवि बड़े पीछे रह गए। रवि उनके छोटे भाई के छोटे बेटे हैं, उन्होंने आगे कहा, रवि ने बारहवीं तक तो मन लगाकर पढ़ाई की फिर भटक गए। बीए कर बैठे। आज कल विज्ञान के बिना होता है भला कुछ। अब मुझे काटो तो खून नहीं। क्या बोलता, इसलिए हूं...हूं करके मुस्कुराया कुछ यूं जैसे गरीब आदमी भव्यता देखकर स्माइली चेहरा लिए और दीन सा लगने लग जाता है।
इसलिए मैं कहता हूं विज्ञान जरूर समझो और सीखो। यह सोचते-सोचते मेरी आंख लग गई। यूं तो मुझे कभी सपने नहीं आते, मगर आज आ गया। यह सपना डरावना था, सुहावना था, मजेदार था, कह तो नहीं सकता। मगर देखने के बाद विज्ञान भाई का महत्व समझ लिया और यह भी जान लिया, कि विज्ञान भाई का भरपूर इस्तेमाल करने से भी वे खुश रहते हैं।
सपने में देखा, कि मैं मुंबई में हूं। वहां पहुंचने में मुझे 16 घंटों से भी ज्यादा का वक्त लगा है। वहीं मेरे साथ एक मेरे ही जैसी हैसियत वाले और भी गए थे, तो वे जरा में पंहुच गए। मुझे लगा, वे शायद फ्लाइट से आए होंगे। लेकिन मन मानने ही तैयार नहीं हुआ। चूंकि वे खटारा सी मोटरसाइकिल से ऑफिस आते हैं, और पत्रकारों की सेवा आजकल कौन करता है, अखबार मालिक ही सेवाएं लेने के लिए तत्पर हैं तो। फिर ऐसा हो कैसे सकता है, कि वे फ्लाइट से आएं।
तभी वहां किसी शख्स ने कहा वे कूदकर आए हैं। मुझे लगा ये कैसे आना हुआ। आजतक तो मैं बैलगाड़ी, घोड़े की पीठ, साइकिल, मोटरसाइकिल, ऑटो, बस, रेल या हवाई से ही सफर के बारे में सुनता आया हूं, यह कूदकर आना क्या हुआ। तब किसी ने कहा आपको नहीं पता? मैंने अज्ञानता में सिर हिलाया, ठीक वैसे ही जैसे 11वीं में रसायन पढ़ते वक्त हिलाता था। बस फर्क इतना था, कि 11वीं क्लास में जब रसायन नहीं समझ आती तो न में सिर हिलाने से भी मैडम दोबारा नहीं समझाती, बल्कि दीन, बुद्धिहीन सोचकर अगले चैप्टर की ओर बढ़ जाती। मैं भी अपनी राह पकड़ लेता, चलो अच्छा हुआ, वह समझाती भी तो कौन अपन को समझ में आने वाली थी। फिर कहीं वह यह पूछती कि क्या समझ में नहीं आया तब तो अपन मर ही जाते। क्या बताते?
किंतु यहां वाले विज्ञानी ने समझाया। उन्होंने कहा आज कल स्वप्न टेक्निक आ गई न। इसमें एक परोगराम होता है, दिमाग में। बस तो उसे एक्टिवेट कर दो फिर जैसे ही नींद लगेगी, जो कुछ भी आपने उस परोगराम में सेट किया है, उसके मुताबिक आप वहां पहुंचा जाओगे। बस इसे ही कूदना कहते हैं।
हमें यकीन नहीं हुआ, तो उन्होंने एक्सपैरीमेंट करके बताया। वे सोफे पर बैठे और हाथ माथे पर लगाकर कुछ करने लगे और अगले 5 मिनट में वैपोराइज होने लगे। बस क्या था, देखते ही देखते वहां सोफे पर बैठा वह पूरा खासा आदमी गायब हो गया। वह देखकर मैंने भी माथा रगड़ा, कुछ नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद वह भाई सामने रखे एक सोफे पर जमने लगा। मुझे याद आया जैसे धार्मिक धारावाहिकों में लोग गायब होते हैं, वैसे ही कुछ हुआ। तब वे पूरे आ चुके थे, तो बोले, देखा। इसे कोई चमत्कार न समझें, बस एक छोटा सा एप मैं दूंगा उसे आप कान में डराप की तरह डाल लेना, वह दिमाग में जाएगा और इंस्टॉल हो जाएगा। फिर मैं आपको ऑपरेटिंग बता दूंगा।
हमारा मुंह खुला है तो बंद नहीं हो रहा था। दिमाग मे एक एप्लीकेशन कान से डरॉप के जरिए भी इंस्टॉल हो सकती है।
हमने उन सज्जन से कहा आप तो महान हैं, तो वे बोले। इसमें महान कैसा? मैंने थोड़े ही बनाया है, यह तो बाजार में मिलता है। बस हमें यूज करना है। तब मुझे समझ में आया कि विज्ञान को यूज करना भी एक तरह का विज्ञानी बनने जैसा है। हमें इस एप के बारे में बताने वाला शख्स हमें कुछ पलों के लिए तो भगवान लगा, ठीक उसी तरह जैसे बॉयो पढ़ाने वाले व्यासजी लगते थे। चूंकि उन्हें वह आता था, जो हमें नहीं आता था और हमें जो आता था, वह उन्हें न आए यह हो नहीं सकता था। यानी गाली, क्लास बंक,बहाने, स्कूल न जाने के 100 तरीके आदि। व्यासजी के बारे में ऐसी ही किंवदंतियां थी, उस वक्त कि वे बहुत बड़े विज्ञानी होते, अगर स्टेशन पर सोए नहीं होते। हमें लगता था सही होगा, चूंकि उन्हें बॉयो आती भी थी। विज्ञानी और किसे कहते हैं? अब करीब 15 सालों बाद क्लियर हो रहा है, कि विज्ञान को मानना ही उसे समझना है, सीखना है, इस्तेमाल ही उसका सही ज्ञान है।
- सखाजी


दो मुसीबतें और आन पड़ी कांग्रेस पर

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on सोमवार, 30 सितंबर 2013 | 1:39 pm

कांग्रेस के लिए दो मुसीबतें और आन पड़ी हैं। अपने 9.6 सालों के कार्यकाल में कांग्रेस ने जितनी मुसीबतें नहीं फेस की होंगी, उतनी वे इसके अंतिम महीनों में फेस करने जा रही है। 

पूरे देश में बने एंटी कांग्रेस माहौल के साथ ही अभी तक कांग्रेस को उम्मीद थी, कि उसकी सहयोगी पार्टियां और छोटे-छोटे दल, निर्दलीय आदि मिलाकर वह दम भर सकती है। लेकिन अब अध्यादेश का वापस होना और लालू को सजा कांग्रेस के लिए उल्टे पड़ रहे हैं। इन दो मुसीबतों से कांग्रेस कैसे निपटेगी और क्या होगा उसका अब राजनैतिक पैंतरा, चलिए जानते हैं।

ऐसे जीत सकती है कांग्रेस

कांग्रेस को 2014 आम चुनाव में अपनी 150 सीटें जरूर मिलने की उम्मीद है, साथ में सपा भी 15 के ऊपर रह सकती है, बसपा भी इतनी ही सीटों पर रह सकती है, एनसीपी भी करीब इतनी ही सीटों पर जीत सकती है। यानी भरोसेमंद एनसीपी और सौदेबाज सपा, बसपा को मिलाकर कांग्रेस 200 तक पहुंचने का कैल्कुलेशन लिए बैठी है। अब उसे जेडीयू और भाजपा की तकरार से थोड़ी बहुत उम्मीद यानी दहाई अंकों की उम्मीद लालू और पासवान से भी है। यानी वह 210 तक पहुंच जाती है। तमिल में एंटी गवर्नमेंट फैक्टर के चलते थोड़े बहुत आंकड़े डीएमके के फेवर में आते हैं, तो वहां भी वह दहाई अंकों के साथ आ सकती है। यानी कांग्रेस पहुंचती है करीब 220 तक। अब आंध्रा में जाकर देखें तो कांग्रेस के अपने परखे हुए अस्त्र सीबीआई पर भरोसा है, खुदा न खास्ता जगन रेड्डी दहाई अंकों तक पहुंच गए तो फिर वह 230 तक पहुंच जाएगी। जगन अस न बस, इधर उधर से कांग्रेस को ही समर्थन देने में भलाई समझेंगे। चूंकि भाजपा उन्हें सीबीआई के चंगुल से मुक्त करवाने का वादा नहीं कर सकती, कांग्रेस ऐसा कर सकती है। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस बहुतम से करीब 42 सीटें दूर रहेगी। कांग्रेस को उम्मीद है कि बीजू जनता दल भी दहाई अंकों तक पहुंचेगी, चूंकि वहां कोई एंटी गवर्नमेंट फैक्टर नहीं है और नवीन पटनायक  की छवि भी अच्छी है। इन सबसे ऊपर सेकुलर नवीन का झुकाव भी कांग्रेसी ही है। ऐसे करके कांग्रेस अभी के आंकड़ों के हिसाब से 240 का आंकड़ा पार कर सकती है।
आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन के जरिए (पिछड़े राज्यों का फॉर्मूला) जेडीयू की दहाई सीटें भी आती हैं, तो वह कांग्रेस के पाले में आ ही सकती हैं, भले ही बाहर से समर्थन जैसे ड्रामे ही क्यों न हों। यानी कांग्रेस पहुंचती है 250 सीटों तक। अब उसे 22 सीटों के लिए या तो लेफ्ट का सहारा लेना है या निर्दलीयों के साथ ममता को मनाना होगा। यह तो रहा कांग्रेस का कैल्कुलेशन। जो यह साबित करता है, कि कांग्रेस खुद से ज्यादा अपने सहयोगियों और संभावित सहयोगियों को जिताने पर ध्यान दे रही है।

नहीं तो होवित्जर तोप है ही

इसके बाद कांग्रेस के पास एक होवित्जर तोप तो है ही, कि आइए शरदजी, नवीन पटनायकजी, करुणानिधिजी, ममताजी, नीतीशजी, मुलायमजी, मायावतीजी। बनिए बारी-बारी से 3-3 महीनें प्रधानमंत्री, कांग्रेस आपको समर्थन देगी बाहर से। ठीक गुजराल और देवगौड़ा की तरह। चंद्रशेखर और वीपी सिंह की तरह। सबकी बारी आएगी। सबको पीएम बनना है। कांग्रेस इस वक्त अपनी सीटों से ज्यादा आशान्वित नहीं है, बल्कि यह ज्यादा ध्यान दे रही है, कि भाजपा किसी सूरत में न आ पाए। ताकि करप्शन, अनिर्णय जैसी  बात थोथा प्रचार साबित हो सकें।

हाय ये दो मुसीबतें

लेकिन अब दो बड़ी मुसीबतें आन पड़ी हैं। पहली तो अध्यादेश को लेकर बने माहौल और राहुल की सियासी ड्रामाई एक्टिविटी। दूसरी लालू जैसे लोगों को सजा। पहला कारण अध्यादेश अगर वापस आता है, तो सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के हिसाब से सजायाफ्ता सारे प्रत्याशी चुनाव से बाहर हो जाएंगे। ऐसे में कांग्रेस के सहयोगियों को ज्यादा नुकसान होना है। यानी वह सारे प्रत्याशी जो जीतने का दमखम रखते हैं, टिकटों से ही महरूम रह जाएंगे। ऐसे में भाजपा को फायदा मिल सकता है। वहीं लालू को हुई सजा के बाद से आम लोगों में क्षेत्रीय क्षत्रपों पर से भरोसा भी पूरी तरह से उठेगा और विरोधी प्रचारित भी खूब कर सकेंगे कि माया का कॉरीडोर आज नहीं तो कल ले जाएगा जेल, तो आय से अधिक संपत्ति मुलायम को आज नहीं कल दिलाएगी सजा। यानी भाजपा को लाभ। मोदी की आंधी चल ही रही है, तब भाजपा के लिए बल्ले बल्ले है। बशर्ते भाजपा कोई गलती न करे।
- सखाजी

भगवा की छतरी में ठुसने की कोशिश

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on मंगलवार, 17 सितंबर 2013 | 1:01 pm

आखिर पाप तो पाप है न। हम जानते हैं वही राम चरित्र मानस समाज में ब्राह्मणों को अतिश्रेष्ठ बताती है और वही राम चरित्र मानस ब्राह्मण रावण को महापापी बताती है। यानी पाप तो पा है न? कितने ही श्रेष्ठ कोई खास वर्ग, संप्रदाय, टैग, तमगा वाले लोग हों, लेकिन वे अगर अनैतिक करेंगे तो वे पहले अनैतिक ही होंगे न?

File- When police arrested Asaram.
आसाराम बार-बार भगवा की छतरी के नीचे जा घुसने या यूं कहिए ठुसने की कोशिश में रहते हैं। कभी कहते हैं सरकार बदलेगी तो देख लूंगा, तो कभी कहते हैं मेरे समर्थकों पर मेरा वश नहीं। इधर भगवा की छतरी नैतिकता के आधार पर इतनी सिकुड़ रही है कि उसमें उसके ही लोग नहीं समा रहे। आसाराम है सच में झांसाराम। रामजेठमलानी की वकालत से केस को वे खिंचवा लेंगे साथ में उनके संघी कनेक्शन के जरिए सेफ्टी कवर भी बनवा सकते हैं। जैसा कि इंदौर के विजयवर्गीय वर्ग ने उन्हें शुरुआत में दिया था। ऐसे कवर में घुसे आसाराम ईश्वर पर जरा भी भरोसा नहीं करते, उन्हें अपनी शक्ति, अनुरक्ति और राजनैतिक संरक्षण पर ही पूरा भरोसा है।

खैर है टीवी मीडिया है देश में

आसाराम बार-बार इस छतरी की आस में बोलते हैं, ललकारते हैं। नितांत व्यक्तिगत वासना की इस लड़ाई को वे राजनैतिक रंग, धर्म का रंग, संप्रदाय का रंग, संत का रंग, भक्ति का रंग, समर्थकों का रंग जो भी रंग चढ़े, देना चाहते हैं। बस उनकी रंग रंगीली तासीर पर असर न पड़े। वो तो खैर है देश में टीवी मीडिया है (खासकर इंडिया न्यूज), जिसने इनके नकली संतत्व को उभारा। वरना तो वे इस खोल में ही पूरी जिंदगी जी गए होते।

भरोसा कहां से लाओगे

यह किसी भी धर्म, सपं्रदाय के लिए भारी वेदना और पीड़ा की बात होती है, कि उसके समुदाय के अगुवा और पहरूआ स्तर के लोग ऐसे कुकृत्य करें। कई बार इन धर्म संप्रदाय के संगठनात्मक धड़े डैमेज कंट्रोल करते हुए मामले को दवा जरूर देते हैं, लेकिन फिर भी वे उस व्यक्ति से व्यक्तिगत रूप से तो फट ही जाते हैं। यानी भरोसा तो आदमी खो ही देता है। पिछले दिनों रायपुर के बसस्टैंड एरिया में कुछ पोस्टर चिपके मिले, जिनमें आसारामनुमा हिंदू संतों की तस्वीरें थी और उनके कुकृत्यों का चिट्ठा लिखा था। थोड़ा सा लोग उत्तेजित हुए। चूंकि यहां पर भगवा की छतरी बार-बार ऐसा प्रदर्शित कर रही है, कि ऐसे लोगों को मेरी ओर से कोई छाया नहीं। फिर भी अन्य संप्रदाय के लोग ऐसी हरकते करें तो क्या होना चाहिए? वो तो खैर है कि प्रशासन ने इसे तुरंत कंट्रोल किया और असर को खत्म कर दिया। इसकी एक वजह रायपुर जैसा भगवा प्रधान शहर भी है, जो अपनी ओर से हिंसक रिएक्ट नहीं करना जानता। कुछ ऐसा ही कांची मठ के शंकराचार्य पर लगे आरोपों के दौरान हुआ था। भोपाल के जहांगीराबाद (अल्पसंख्यक प्रधान मुहल्ला) एरिया में, जहां पर द बॉस को ऐसा अधिकार किसने दिया लिखा था। इस पर भी हल्के से तनाव का माहौल बना, लेकिन बाद में वह सैटल कर लिया गया। चूंकि यह पोस्टर वहां लगे थे, जहां पर रिएक्शन नहीं बल्कि सैम एक्शन आना था।

रामायण कहती है पाप तो पाप है

आखिर पाप तो पाप है न। हम जानते हैं वही राम चरित्र मानस समाज में ब्राह्मणों को अतिश्रेष्ठ बताती है और वही राम चरित्र मानस ब्राह्मण रावण को महापापी बताती है। यानी पाप तो पा है न? कितने ही श्रेष्ठ कोई खास वर्ग, संप्रदाय, टैग, तमगा वाले लोग हों, लेकिन वे अगर अनैतिक करेंगे तो वे पहले अनैतिक ही होंगे न? रावण पापी था, व्याभिचारी था, अत्याचारी था, साथ में विद्वान और जाति से ब्राह्मण भी था। किंतु ब्राह्मण होना उसके लिए महज एक जाति भर था, सजा जाति या किसी खास टैग से होकर नहीं तय हो सकती, वह तो कर्मों से ही होगी।
आसाराम के मामले में भी यही हो रहा है और होना भी चाहिए। यह कोई अन्य संप्रदाय के कहने की न जरूरत है न उनकी नैतिकता ही कहती है कि ऐसा हो। चूंकि यह जोर जोर से उसी संप्रदाय के लोग पहले से ही कहते आए हैं और कह रहे हैं। हर मामलों में। चाहे वह किसी का भी क्यों न हो, बाद में वह पाक साफ भी निकल गए हैं, लेकिन फिर भी जांच, पड़ताल होती रहने दी है।

सही हो रहा है इस मामले में

पाप का तुलनात्मक अध्ययन भी नहीं किया जाता कि आसाराम को इतना सता रहे हैं, जामा मस्जिद के इमाम आराम फरमा रहे हैं। इमाम पर भी कई आरोप लगे हैं, लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकी। यहां तक कि दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट को भी लिखकर दे दिया था, कि वह उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकती। लेकिन यह अल्हदा बात है, एक संप्रदाय के लिए संगठनात्मक तौर से आगे बढऩा जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है कि वह स्वच्छ साफ और अपने लक्ष्य पर केंद्रित हो कर काम करे। आसाराम के मामले में भगवा वालों की छतरी कुछ ऐसा ही कर रही है, लेकिन जरूरत है साफ-साफ खुलकर करने की, कि आसाराम जो भी कहें, करें, व्यक्तिगत सीमा में ही करें, इसे न तो हिंदू रूप दें न संत। न भाजपा, न कांग्रेस न काला न गोरा, न इमाम न निजाम।
- सखाजी

Life is Just a Life: तू मुरली का संगीत नहीं तो क्या होगी Tu murali ka s...

Written By नीरज द्विवेदी on रविवार, 15 सितंबर 2013 | 3:51 pm

Life is Just a Life: तू मुरली का संगीत नहीं तो क्या होगी Tu murali ka s...: मैं गायक , तू प्यार भरा एक गीत नहीं तो क्या होगी , मैं बंशीधर , तू मुरली का संगीत नहीं तो क्या होगी ? तू तारापति ...

मोदी-राहुल रोमांच से महरूम रह जाएंगे हम

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on शुक्रवार, 13 सितंबर 2013 | 10:00 pm

अब इतना तो पक्का है कि कांग्रेस के प्रत्याशी राहुल गांधी नहीं होंगे। कांग्रेस कुछ दांएं बाएं करेगी। जैसा कि वह करती है। पीएम के कैंडीडेशन के लिए वह कुछ नहीं बोलेगी। माहौल राहुल के नाम का बनने देगी। चूंकि ऐसे में अगर राहुल का नाम घोषित करती है, तो मोदी वर्सस राहुल बहुत ही औपचारिक रूप से होने लगेगा। जबकि हालात देश में ऐसे हैं कि मोदी न भी होते तो भी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है। ऐसे में राहुल की हार अगर मीडिया ने प्रचारित कर दिया, तो कांग्रेस की पारसमणि काला पत्थर बन जाएगी, अश्वमेघ खत्म हो जाएगा, तिलिस्म टूट जाएगा, बंद मुट्ठी खुल जाएगी। अब ऐसे में मोदी के आने से कांग्रेस थोड़ा चिंतित होगी। चूंकि लोगों के बीच वह भरोसे के संकट से जूझ रही है। मोदी के बारे में एक ही बात बार-बार कहकर भी चुनाव नहीं जीता जा सकता। कांग्रेस इसे यूं भी नहीं ले सकती कि जीते तो जीते, वरना 10 साल तो राज किया ही है। यह बात सच है कि कांग्रेस इस बात को मानकर चल भी रही है कि वह जरूरी सीटें नहीं जीतेगी, लेकिन उसका कॉन्फिडेंस है कि भाजपा भी नहीं जीतेगी, जरूरी सीटें। ऐसे में जिसके पास जीती हुई पार्टियां हैं, वह इनके साथ आ जाएंगे। दरअसल कांग्रेस यहां पर वोटर्स ओरिएंटेड  इलेक्शन इक्वेशन नहीं गढ़ रही, बल्कि इलेक्टेड पॉलीटिकल पार्टीज का इक्वेशन बिठा रही है। यह भारतीय लोकतंत्र का एक ऐसा हिस्सा है, जो जनादेश को दरकिनार तक करने के लिए काफी है। कांग्रेस यूं भी इस तरह की जोड़ तोड़ ऐसे, जैसे, तैसे भी हो कर सकती है। बहरहाल मोदी वर्सस राहुल रोमांच तो हमें देखने को नहीं मिलेगा।
सखाजी

बीच बस्ती में जरजर पीपल का पेड़ आडवाणी...

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on गुरुवार, 12 सितंबर 2013 | 1:47 pm

आखिरकार मोदी भाजपा के पर्याय तो बन ही गए हैं, फिर चाहे पार्टी लोकसभा हारे या जीते। मोदी कम से कम पार्टी की दर्द हरने वाली बूटी न बन पाएं तो न सही, दर्द कम करने वाली और विरोधी को दर्द देने वाली मजबूत और परखी हुई जड़ी तो बन ही गए हैं।

Courtesy: Majul's creative caricature.
अब आडवाणी भाजपा में एक पीपल का पेड़ हैं। इस पीपल के पेड़ के आसपास घनी बस्ती है। यह पेड़ खतरनाक है। जरजर भी हो रहा है और आंधी तूफान में गिरकर बड़ा नुकसान भी पहुंचा सकता है। संघ एक तरह का प्रशासक है, जिसकी जिम्मेदारी है कि इस पेड़ के आसपास से वह या तो घनी बस्ती कहीं शिफ्ट करे या इस पेड़ का कद छोटा करे। घनी बस्ती को शिफ्ट करना नामुमकिन है। पीपल के पेड़ को छोटा करना कठिन। यानी दोनों ही चीजें हैं मुश्किल ही, किंतु फिर भी नामुमकिन से अच्छा है कठिन को चुना जाए। मोदी गोवा, मोदी दिल्ली दोनों ही आंधियां थी।

गिर रहीं हैं डालियां

आडवाणी नाम के पीपल की कुछ डालें गिरीं या गिर रही हैं। बस्ती में अभी तक कोई हताहत नहीं हुआ, पर लोग आशंकित हैं। हां एक शत्रुघ्न सिन्हा नाम की झोपड़ी ने जरूर शिकायत की थी, कि पीपल की डगाल यहां गिर रही है। लेकिन बड़ा कोई नुकसान नहीं हुआ।

डालियां काटना है, ताकि बंदर न बैठें

अगले दो महीनों में आडवाणी के कद को कतरना संघ की और भाजपा की दोनों की मजबूरी है। ये जितने बड़े रहेंगे, उतने बंदर (समर्थक) इनकी डालियों पर बैठे रहेंगे। इनकी डालियां काटना होंगी। चूंकि पीपल जन्मजात भारी भरकम और बड़ा होता है, लेकिन इमारती लकड़ी नहीं दे पाता। पूज्यनीय होता है, छायादार होता है, खूबसूरत नागरीय वनों की शोभा होता है, जन्म जन्मांतर तक हाईली ऑक्सीजेनरेटर रहता है, लेकिन घरों के पास फिर भी शाों में यह वर्जित है।

क्या करेंगे, कैसे करेंगे

अगले विधानसभा चुनावों में आडवाणी को पार्टी कम से कम प्रचार सभाएं देगी। कम रैलियां देगी। भाजपा की अंदरूनी एकाधिक मीटिंग में मार्जनाइज करेगी। चूंकि पार्टी को एक सुपर हिट रीजन भी मिल गया, कि आडवाणी स्वयं नहीं आए कहेंगे तो मीडिया मान भी जाएगा। अब जब विधानसभा की आंधी चलेगी, जिसमें एक के बाद एक सभाएं मोदी करेंगे। सतत बोलेंगे, यहां, वहां, ये वो। लोग मोदी की खुमारी में डूब जाएंगे। जब विधानसभा की धुंधलापन, कुहांसा छटेगा, तब तक आडवाणी जी का कद इतनाभर रह जाएगा कि वे अगर गिरे तो 100 मीटर भी प्रभावित नहीं कर पाएंगे।

मोदी तो नेता बन ही गए, अब हारो या जीतो

मोदी का भाजपा की ओर से पीएम प्रत्याशी बनना तय है। अब इसका औपचारिक एलान आज हो या आज से महीनों बाद। फर्क नहीं पड़ता। मोदी के सामने खुद को साबित करने से लेकर सबको लेकर चलने, विरोधियों का मुंह बंद करने, दंगों के दाग को छुड़ाने जैसी कई सारी विकराल चुनौतियां बराबर ही रहेंगी। हां अगर उन्हें ठेका दे दिया जाता है, तो शायद कुछ कम हो सकती हैं। आखिरकार मोदी भाजपा के पर्याय तो बन ही गए हैं, फिर चाहे पार्टी लोकसभा हारे या जीते। मोदी कम से कम पार्टी की दर्द हरने वाली बूटी न बन पाएं तो न सही, दर्द कम करने वाली और विरोधी को दर्द देने वाली मजबूत और परखी हुई जड़ी तो बन ही गए हैं।

वे कहते हैं कि वे समर्थक हैं, पर कैसे मानें?

बहरहाल आडवाणी बड़ा रोड़ा हैं। पिछले दिनों आडवाणी के एक करीबी मित्र और सिंधी समाज के बड़े नेता के बारे में जानने का मौका मिला, उनके मुताबिक आडवाणी भी चाहते हैं कि मोदी ही पीएम के लिए एप्रोप्रिएट हैं। लेकिन वक्त थोड़ा अभी वैसा नहीं है, कि उन्हें घोषित किया जाए। यह उनका एक तरह से न्यूट्रल टाइप का बयान था। मसलन वे आडवाणी को छोडऩा नहीं चाहते थे और मोदी भाजपा के भविष्य हैं तो उनसे पंगा लेना नहीं चाहते थे। तभी शायद उन्होंने आडवाणी के एक स्पोक्समैन की तरह यह बोला। किंतु सवाल है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के शीर्ष नेता और दुनिया के सबसे बड़े वैचारिक संगठन के शीर्षतम व्यक्ति आडवाणीजी इतना भी कम्युनिकेट नहीं कर  पा रहे हैं कि मैं पीएम की रेस में नहीं हूं, बल्कि सिर्फ इतना कह रहा हूं, कि मोदी की घोषणा इतने जल्दी मत करो और इसलिए मत करो। अगर इतना साफ वे कम्युनिकेट नहीं कर पा रहे हैं, तो यह बात सही हो ही नहीं सकती कि वे चाहते हैं पीएम मोदी बनें। खैर।
-सखाजी

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श्याम हमारे नान्हे कान्हा मनमोहन हैं भाई

Written By SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 on बुधवार, 28 अगस्त 2013 | 8:42 pm





श्याम हमारे नान्हे कान्हा मनमोहन हैं भाई

हमारे सभी प्यारे दुलारे कान्हा गोपियों राधे माँ  को प्रभु कृष्ण के  जन्म पर ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं सब मंगल हो
आइये एक बार खुले दिल से जोर से बोलें 
प्रभु श्री कृष्ण की जय
हरे कृष्ण -हरे राम राम राम हरे हरे
और रात के बारह बजे तक कान्हा के संग बाल गोपाल बन के  ध्यान और आराधना में डूब जाएँ


श्याम हमारे नान्हे कान्हा मनमोहन हैं भाई
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मोर पंख संग रत्न जड़े हैं
कारे घुंघराले हैं बाल
माथे तिलक चाँद सोहे है
सूरज सम चमके है भाल
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सुन्दर भृकुटी मन-मोहक है
मोर पंख ज्यों घेरे नैना
तीन लोक दर्शन अँखियन में
अजब जादुई वशीकरण कान्हा के नैना
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मुख-मण्डल यों आभा बिखरी
मन-मोहन खिंचते सब आयें
कोई दधि  ले माखन कोई
आतुर छू लें कैसे दर्शन पायें
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कर्ण कपोल गाल पे कुण्डल
हहर -हहर जाए भक्तन  मन
लाल होंठ ज्यों बोल पड़ेंगे
खुले दिखे मुख जीव जगत सब
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दमकत लपकत हार गले है
ज्यों दामिनि  छवि धरती -अम्बर
दर्द मोह माया सब भूले
प्रभु चरणों सब मिलता सम्बल
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रंग -बिरंगे पट आच्छादित
मुरली  खोंसे हैं करधन
गायग्वाल सखियाँ आह्लादित
पुलकि-पुलकि हैं  खिले सभी मन
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श्याम हमारे नान्हे कान्हा मन-मोहन हैं भाई
मातु देवकी यसुदा माता आज धन्य हर माई
पूत जने ललना यों लायक घर घर बाजे थाली
गद-गद ढोल नगाड़े तासेमथुरा वृन्दावन काशी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
५ .० ५ - ५ . ३ ५ मध्याह्न
कृष्ण जन्माष्टमी
प्रतापगढ़

कुल्लू हिमाचल



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Founder

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Saleem Khan