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नारी का श्रृंगार तो पति है

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on शनिवार, 30 अप्रैल 2022 | 12:37 pm

BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: नारी का श्रृंगार तो पति है: नारी का श्रृंगार तो पति है पति पर जान लुटाए एक एक गुण देख सोचकर कली फूल सी खिलती जाए प्रेम ही बोती प्रेम उगाती नारी प्यारी रचती जाए *****
 नारी का श्रृंगार तो पति है
पति पर जान लुटाए
एक एक गुण देख सोचकर
कली फूल सी खिलती जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*****
प्रेम के वशीभूत है नारी
पति परमेश्वर पर वारी
व्रत संकल्प अडिग कष्टों से
सौ सौ जन्म ले शिव को पाए
कर सेवा पूजा श्रद्धा से
फूली नहीं समाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*******
चाहत से मुस्काए गजरा
बल पौरुष से केश सजे
नेह प्रेम पर माथ की बिंदिया
झूम झूम नव गीत रचे
नैनों से पति के बतिया के
हहर हहर लव चूमे जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
****
जहां समर्पण प्यार साथ है
नारी अद्भुत बलशाली
नही कठिन कुछ काज है जग में
सीता सावित्री या अपनी गौरी काली
मंगल सूत्र गले में धारे
मंगल लक्ष्मी करती जाये
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
निज बल अभिमान चूरकर
चरण वंदना में रत रहती
हो अथाह सागर भी घर में
त्याग _ प्रेम दिल लक्ष्मी रहती
विष्णु पालते जग को सारे
लक्ष्मी ममता ही बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
पति के प्रेम की रची मेंहदी
देख भाग्य मुस्काती मन में
वहीं अंगूठी संकल्पों की
रहे चेताती सात वचन की
दंभ द्वेष पाखण्ड व छल से
दूर खड़ी, अमृत बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
गौरी लक्ष्मी सीता पाए
सरस्वती का साथ निभाए
पुरुष भी क्यों ना देव कहाए??
क्यों ना वो जग पूजा जाए?
प्रकृति शक्ति की पूजा करके
निज गौरव नारी को माने
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*********
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत। 29.04.2022
3.33_4.33 पूर्वाह्न

कचहरी को बाजार न बनाया जाए

Written By Shalini kaushik on शनिवार, 23 अप्रैल 2022 | 12:21 pm

  



22 अप्रैल 2022 को सोनीपत कोर्ट परिसर में दिनदहाड़े गवाह वेद प्रकाश की हत्या हो जाती है और कहा जाता है कि हत्यारे पेशेवर नहीं थे, सतर्क होता तो बच सकती थी वेद प्रकाश की जान.

      ऐसा नहीं है कि न्यायालय परिसर में यह कोई पहली घटना हो. उत्तर प्रदेश में तो ये घटनाएं आम हैं. कभी शाहजहांपुर में अधिवक्ता की हत्या हो जाती है तो कभी गोरखपुर में दुष्कर्म आरोपी की, गाजियाबाद में कचहरी में कड़ी सुरक्षा के बावजूद वाहनों की चोरी हो जाती हैं किन्तु दो चार दिन महीने सुरक्षा मजबूत कर कचहरी फिर वापस लौट आती है लापरवाही की तरफ, किसी अगली घटना के इंतजार में.

     देखा जाए तो कचहरी न्याय पाने का एक केंद्र है और वहां न्यायाधीशों, वकीलों, मुन्शी, न्यायालयों के कर्मचारियों, स्टाम्प वेंडर्स, बैनामा लेखकों आदि न्यायालय कार्य करने वाले और वकीलों के कार्य करने वालों का और कचहरी में आने जाने वालों के चाय नाश्ते आदि का प्रबंध करने वालों का होना एक अनिवार्य आवश्यकता है किन्तु कचहरी में भीख मांगने वालों का आना, मेवे आदि बेचने वालों का आना, कान साफ करने वालों का आना कचहरी को सामान्य बाजार की श्रेणी में ला देता है और उसकी सुरक्षा को खतरे में डाल देता है और सबसे खतरनाक है ऐसे में बगैर किसी जांच - पड़ताल पूछताछ के गैर जरूरी लोगों का कचहरी परिसर में प्रवेश. क्या ज़रूरी नहीं है ऐसे में ये उपाय -

1 - सभी वकीलों, मुंशियों आदि के लिए आई कार्ड हों.

2- वकील अपने मुवक्किल और गवाहों को कचहरी परिसर में आने का पत्र जारी करें, जिसे गेट पर तैनात पुलिस को दिखाकर ही मुवक्किल और गवाह कचहरी में प्रवेश कर सकें.

3- जिन लोगों का कचहरी के किसी कार्य से ताल्लुक नहीं है, उन्हें केवल सामान या सेवा बेचने के लिए या भीख मांगने के लिए ही कचहरी में आना है, उनका कचहरी में प्रवेश प्रतिबंधित किया जाए.

4- कचहरी में प्रवेश करने वाले की जांच पड़ताल कर ही प्रवेश कराया जाए और यदि उसके पास हथियार या कोई भी घातक वस्तु हों तो उसके लाने का कारण पता कर गेट पर ही रजिस्टर में दर्ज कर हथियार जमा कराया जाए और गैर जरूरी होने पर हथियार सहित कचहरी में प्रवेश न करने दिया जाए. 

       हमें ये प्रतिबंध नागवार गुजर सकते हैं किन्तु ये सब जरूरी हैं न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ और सुरक्षित रूप से कायम रखने के लिए और मैं समझती हूं कि सतर्कता के तौर पर इन्हें अपनाया जाना चाहिए.

शालिनी कौशिक एडवोकेट

कैराना 

बाल मजदूरी - भारत का कलंक

Written By Shalini kaushik on बुधवार, 20 अप्रैल 2022 | 11:23 pm

 


”बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,
उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .”
........................................................................
”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको ,
हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .”
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”खड़े हैं सुनते आवाज़ें ,कहें जो मालिक ले आएं ,
दुकानों पर इन्हीं हाथों ने थामा बढ़के ग्राहक को .”
...........................................................................
”होना चाहिए बस्ता किताबों,कापियों का जिनके हाथों में ,
ठेली खींचकर ले जा रहे वे बांधकर खुद को .”
.......................................................................
”सुनहरे ख्वाबों की खातिर ये आँखें देखें सबकी ओर ,
समर्थन ‘शालिनी ‘ का कर इन्हीं से जोड़ें अब खुद को .”
................................................................

शालिनी कौशिक
       एडवोकेट 
कैराना (शामली) 

वकीलों का ड्रेस कोड

Written By Shalini kaushik on मंगलवार, 19 अप्रैल 2022 | 12:01 pm

  


प्रत्येक पेशे का एक निश्चित ड्रेस कोड होता है जो एक पेशे से जुड़े हुए लोगों की पहचान से गहरा ताल्लुक रखता है. यही ड्रेस कोड आम जनता में सफेद शर्ट, नेक बैंड और काले कोट पहने व्यक्ति के लिए तुरंत कानूनी पेशे से जुड़े व्यक्तित्व का परिचय देता है. जहां यह ड्रेस कोड अधिवक्ताओं को आम जनता में " ऑफिसर ऑफ द कोर्ट" के रूप में पहचान देता है वहीं यह ड्रेस कोड अधिवक्ताओं में आत्मविश्वास और अनुशासन को भी जन्म देता है. 
        यह काली और सफेद पोशाक, जो कानूनी पेशेवरों द्वारा पहनी जाती है, इस ड्रेस कोड के विकास का इतिहास मध्य युग का है जब वकीलों को बैरिस्टर, सॉलिसिटर, अधिवक्ता या पार्षद के रूप में भी जाना जाता था, तब उनका ड्रेस कोड जजों के समान था.
           भारत में कानूनी व्यवस्था का आरम्भ ब्रिटेन द्वारा किया गया और क्योंकि जब भारत में कानूनी व्यवस्था का आरम्भ हुआ, भारत पर अंग्रेजों का शासन था तो अधिवक्ताओं की ड्रेस पर भी ब्रिटेन की व्यवस्था हावी होनी अवश्यंभावी थी. तब से लेकर अब तक बहुत से परिवर्तन होते रहे और अब भारत में वकीलों का ड्रेस कोड अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों द्वारा शासित होता है. जो इस प्रकार है - 
" उपरोक्त नियमों की धारा 49 सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालयों, न्यायाधिकरणों या प्राधिकरणों में उपस्थित होने वाले अधिवक्ताओं के लिए ड्रेस कोड को नियंत्रित करती है। वे अपनी पोशाक के भाग के रूप में निम्नलिखित पहनेंगे, जो शांत और प्रतिष्ठित होंगे। 
I. भारत में अधिवक्ताओं के लिए ड्रेस कोड भाग
VI: अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 49(1)(gg) के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम/नियमों का अध्याय IV। अधिवक्ताओं द्वारा पहना जाता है, जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, किसी भी अदालत या न्यायाधिकरण के समक्ष पेश होता है। ”

1- कोट

(ए) एक काले बटन-अप कोट, चापकन, अचकन, काला शेरवानी और वकील के गाउन के साथ सफेद बैंड, या
(बी) एक काला खुला स्तन कोट, सफेद कॉलर, कठोर या मुलायम, और वकील के गाउन के साथ सफेद बैंड .
किसी भी मामले में जींस को छोड़कर लंबी पतलून (सफेद, काली, धारीदार या ग्रे) या धोती:
2- काली टाई

परन्तु यह और कि उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, जिला न्यायालयों, सत्र न्यायालयों या नगर सिविल न्यायालयों के अलावा अन्य न्यायालयों में बैंड के स्थान पर काली टाई पहनी जा सकती है।
द्वितीय. लेडी एडवोकेट्स:
(ए) ब्लैक फुल स्लीव जैकेट या ब्लाउज, व्हाइट कॉलर स्टिफ या सॉफ्ट व्हाइट बैंड्स और एडवोकेट्स गाउन। सफेद ब्लाउज, कॉलर के साथ या बिना कॉलर के, सफेद बैंड के साथ और काले खुले ब्रेस्टेड कोट के साथ।
या
(बी) साड़ी या लंबी स्कर्ट (सफेद या काला या बिना किसी प्रिंट या डिज़ाइन के कोई भी मधुर या मंद रंग) या फ्लेयर्स (सफेद, काली या काली-धारीदार या ग्रे) या पंजाबी पोशाक चूड़ीदार-कुर्ता या सलवार-कुर्ता के साथ या बिना दुपट्टा (सफेद या काला) या काले कोट और बैंड के साथ पारंपरिक पोशाक।

III. बशर्ते कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में पेश होने के अलावा अधिवक्ता का गाउन पहनना वैकल्पिक होगा।

चतुर्थ। परन्तु यह और कि उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय, सत्र न्यायालय या नगर सिविल न्यायालय के अलावा अन्य न्यायालयों में बैंड के स्थान पर काली टाई पहनी जा सकती है।"
न्यायाधीशों का ड्रेस कोड वरिष्ठ अधिवक्ताओं के समान ही होता है। पुरुष न्यायाधीश सफेद शर्ट और पतलून के साथ एक सफेद गर्दन बैंड और एक काले कोट के साथ एक गाउन पहनते हैं, जबकि महिला न्यायाधीश आमतौर पर पारंपरिक साड़ी पहनना पसंद करती हैं, और इसे एक सफेद गर्दन बैंड, एक काला कोट और एक गाउन के साथ जोड़ती हैं।

नियमों के अनुसार, एक अधिवक्ता को न्यायालयों के अलावा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बैंड या गाउन नहीं पहनना चाहिए, सिवाय ऐसे औपचारिक अवसरों पर और ऐसे स्थानों पर जैसे कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया या कोर्ट द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
COVID-19 के प्रकोप के बीच जब न्यायालयों को अपने कामकाज के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्रणाली का पालन करना पड़ा है, तो वकीलों के लिए अदालत के सामने पेश होने के लिए ड्रेस कोड में भी बदलाव लाया गया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिवक्ताओं को निर्देश दिया है कि वे वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से की जा रही सुनवाई के दौरान "सादे सफेद शर्ट / सलवार-कमीज / साड़ी, सादे सफेद गले में पट्टी" पहन सकते हैं। इसी आधार पर देश भर के उच्च न्यायालयों ने वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से पेश होने के लिए वकीलों के नए ड्रेस कोड में बदलाव को अधिसूचित किया है। इसमें कहा गया है कि यह प्रणाली तब तक बनी रहेगी जब तक कि "चिकित्सा अनिवार्यताएं मौजूद न हों या अगले आदेश तक।"
      इसी ड्रेस कोड पर आपत्ति जताई गई है और इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष इसे बदलने के लिए याचिका दायर की गई है, जिस पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को सूचित किया कि उसने वकीलों के लिए ड्रेस कोड के मुद्दे पर बार और न्यायपालिका के साथ विचार-विमर्श करने के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। बीसीआई ने यह सबमिशन हाईकोर्ट द्वारा उसे जारी एक नोटिस के जवाब में दिया है, जो अदालत के समक्ष दायर याचिका पर वकीलों के लिए निर्धारित काले कोट और पोशाक के मौजूदा ड्रेस कोड पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहा है। इसमें आरोप लगाया गया कि यह भारत की जलवायु परिस्थितियों के खिलाफ है।
     याचिका में किए गए अभिकथनों का उल्लेख करते हुए बीसीआई ने कहा: "वास्तव में याचिकाकर्ता ने कहा है कि बैंड ईसाई धर्म का प्रतीक है। उनके बयान के अनुसार इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। गैर ईसाइयों को इसे पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कोट और गाउन पहनने पर भी सवाल उठाया है। ड्रेस फ्रेमिंग के समय नियमों को बनाते वक्त और न ही उसके बाद से आज तक इस तरह की व्याख्या की गई है। इस मुद्दे पर निर्णय लेने से पहले बार और न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्यों सहित सभी हितधारकों के साथ इस मुद्दे पर विस्तृत विचार-विमर्श की आवश्यकता है।"
 याचिका में आगे कहा गया, "एडवोकेट्स के लिए निर्धारित ड्रेस कोड जहां उन्हें कोट और गाउन पहनना है और एक बैंड के माध्यम से अपनी गर्दन बांधना है, जलवायु परिस्थितियों के अनुसार नहीं है ... एडवोकेट्स बैंड ईसाई धर्म का धार्मिक प्रतीक है। इसलिए गैर-ईसाइयों को इसे पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है… सफेद साड़ी और सलवार-कमीज पहनना हिंदू संस्कृति और परंपरा के अनुसार विधवा महिलाओं का प्रतीक है, इसलिए बीसीबी की ओर से इस संबंध में भी विवेक का प्रयोग नहीं किया गया।.  
       इसे लेकर जब आम जनता और अधिवक्ताओं की राय ली गई तो कुछ इस तरह के विचार सामने आए -  एक संजू बाबा कहते हैं कि 
"वर्तमान में वकीलों का ड्रेस किसी धरम के आधार पर नहीं है , भारत के जलवायु के विपरीत भी नहीं है ,याचिकाकर्ता को बाहरी चीजों पर ध्यान न देकर न्यायिक प्रणाली और न्याय पर ध्यान केंद्रित करनी चाहिए ड्रेस कोड बदलने से न्याय पर असर नहीं पड़ेगा बल्कि ड्रेस कोड के चक्कर में भेद भाव पैदा होगा ,कोई कहेगा ये ड्रेस मुझमें सूट नहीं करता, इसका रंग मेरे ग्रह के अनुसार नहीं है, ऐसी रंग की ड्रेस पहनने से केस में हार होती है इत्यादि,.........…"
अधिवक्ता अर्चित पंवार:  बार एसोसिएशन, कैराना (शामली) कहते हैं कि 
     "ड्रेस कोड का ठीक पालन करना बहुत ज्यादा जरुरी है… उचित ड्रेस कोड का ना होना एक तरह की अवमानना ​​ही है मेरी राय में और रही बात ड्रेस कोड में तबदीली करने की… मेरी राय में मौजूदा ड्रेस कोड पर्याप्त है और इसमें कोई बदलाव की आवश्यकता नहीं है।" 
सुरेन्द्र  कुमार मलिक एडवोकेट: बार एसोसिएशन, कैराना (शामली) को ड्रेस आरामदायक भी चाहिए और वे कहते हैं कि 
" बैंड और गाउन को हटाना चाहिए
कोट व टाई होनी चाहिए" 
       और मैं स्वयं एक अधिवक्ता हूं और मुझे स्वयँ पर गर्व भी होता है और मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ता है जब मैं यह ड्रेस पहनती हूं, समाज में सम्मान प्राप्त होता है इस ड्रेस को धारण करने पर, यह कहना कि यह भारत की धार्मिक रीति रिवाजों के विपरीत है, गलत है क्योंकि ये भारतीय संस्कृति में पाखण्ड परोसने वालों के कारनामे हैं जिन्होंने एक विधवा के लिए ड्रेस कोड का सृजन किया, नारी पर जितने अत्याचार पुरुष प्रधान समाज कर सकता है हमेशा से करता आया है और करता ही रहेगा, उन्होंने सफेद रंग को विधवाओं के लिए लागू किया, पुरुष का विवाह हो जाए या पत्नी मर जाये, वह वैसे का वैसा ही रहेगा, उसके रहन सहन, पहनावे में कोई अन्तर नहीं आएगा किन्तु नारी की जिंदगी में दोनों ही स्थितियों में बंदिशें लागू हो जाती हैं किन्तु यह पिछड़ेपन की सोच न्याय के पैरोकारों पर लागू नहीं हो सकती. इस ड्रेस कोड ने एक लम्बे समय से हमारे समाज, देश, विदेश में एक पहचान बनाई है और हम नहीं चाहते हैं कि यह पहचान हमसे छिन जाए. आज स्थिति यह है कि पहले पहल युवा पीढ़ी इस ड्रेस कोड के आकर्षण में ही वक़ालत व्यवसाय को अपनाते हैं और बाद में अपनी योग्यता से आगे बढ़ते जाते हैं. 
   इसलिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया से हमारा विनम्र निवेदन है कि अधिवक्ताओं के ड्रेस कोड को भारतीय पुरातनवादी सोच के कारण परिवर्तन की ओर न धकेला जाए और इसे जस का तस ही रखा जाए. 
शालिनी कौशिक एडवोकेट 
सीट नंबर 29 
बार एसोसिएशन 
कैराना 

           

अंदोसर शिवालय कांधला विश्व धरोहर घोषित हो

Written By Shalini kaushik on सोमवार, 18 अप्रैल 2022 | 8:46 am

  



18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस के रूप में मनाया जाता है. पुरसीवाडा (पंजाब) से आए पंडित रामचंद्र जी के तीन पुत्रों हकीम शिवनाथ जी, पंडित शिव प्रसाद जी और पंडित शिव सिंह जी द्वारा वर्ष 1800 में कस्बा कांधला के उत्तरी भाग में शिवालय की स्थापना की गई. यह शिवालय कांधला के सबसे बड़े क्षेत्र में स्थापित शिवालय है और 200 साल से पूरे भारत के भक्तों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र है. साधू - संतों की शरण स्थली के रूप में रहा यह मन्दिर आज भी स्वामी सत्यनारायण गिरी महाराज जी की शरण स्थली है और यहां हकीम शिवनाथ जी द्वारा साधू संतों के ठहरने के लिए मुसाफिर खानों का निर्माण भी कराया गया है. सूर्य की पहली किरण आकर प्रभु गौरी नाथ के सिद्ध पीठ को नमन करती है और प्रभु भोलेनाथ का श्वेत शिवलिंग भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं. 

   माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश श्री योगी आदित्यनाथ जी से विनम्र निवेदन है कि पुश्तैनी शिवालय अंदोसर मंदिर नई बस्ती कांधला के शिवालय मन्दिर महादेव मारूफ शिवाला, कांधला को विश्व धरोहर स्थल की सूची में सम्मिलित किया जाए. 

सभी सनातन धर्मावलंबियों को ‼️विश्व धरोहर दिवस ‼️की हार्दिक शुभकामनाएं 

हर हर महादेव 🙏🌼🙏

निवेदन

शालिनी कौशिक एडवोकेट

अध्यक्ष

मन्दिर महादेव मारूफ शिवाला कांधला धर्मार्थ ट्रस्ट (रजिस्टर्ड)

व्यापारी वर्ग " पाप से घृणा" का उदाहरण प्रस्तुत करता.

Written By Shalini kaushik on सोमवार, 4 अप्रैल 2022 | 4:14 pm

 

2 अप्रैल 2022 से विक्रम संवत 2079 का आरंभ होता है. चूंकि संवत की शुरूआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में नवरात्रों से होती है और नवरात्र के व्रतों में हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा कुट्टू के आटे का ही प्रयोग बहुतायत में किया जाता है तो यही किया गया किन्तु दुर्भाग्यवश वह आटा शामली और सहारनपुर जिले के 28 व्रती जनों को नुकसानदायक रहा और उन्हें स्वास्थ्य लाभ हेतु अस्पताल जाना पड़ गया.

      खबर तेजी से फैल गई और जिला मजिस्ट्रेट शामली सुश्री जसजीत कौर ने सतर्कता बरतते हुए तुरंत जांच के निर्देश जारी कर दिए और एसडीएम बृजेश कुमार सिंह पहुंच गए उन दुकानों पर, जहां से खाद्य पदार्थ की बिक्री हुई थी. जहां पहुँचकर उन्होंने खाद्य पदार्थों के नमूने लिए और नमूने लेते ही शुरू हो गया प्रशासन की कार्रवाई का व्यापारियों द्वारा विरोध.


सवाल ये हैं कि - 
1- व्यापारियों द्वारा प्रशासन की कार्रवाई का विरोध क्यूँ किया गया? 
2- क्या 28 लोगों की तबीयत खराब होने की खबर कोई प्रोपेगेंडा थी? 
3- क्या सामान बेचने वाले का कोई नैतिक दायित्व नहीं होता? 
4- और क्या व्यापारियों को स्वयं अपने द्वारा बेचे जा रहे खाद्य पदार्थ के विषाक्त होने का डर था? 
        ये सब सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि आज का समय कोई सामान्य समय नहीं है. आज नवरात्रि और रमजान दोनों साथ ही चल रहे हैं जो कि पहले भी चलते रहे होंगे किन्तु हमने कभी इनके सुचारू रूप से चलने के लिए पुलिस प्रशासन को बाज़ार में घूमते हुए नहीं देखा. ये तो पीड़ितों ने कुट्टू का आटा हिन्दू समुदाय के ही व्यापारी सतीश कुमार और पवन कुमार से खरीदा था, अगर कहीं यह खाद्य पदार्थ गैर समुदाय के दुकानदार से खरीदा होता तो इस मामले से साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगड़ने में क्षण भर की भी देर नहीं लगती. ऐसे में व्यापारियों को उनके द्वारा बेचे गए कुट्टू के आटे से लोगों की तबीयत खराब होने पर प्रशासन द्वारा कार्रवाई का इंतजार किए बगैर स्वयं अपने खाद्य पदार्थ लेकर प्रशासन के पास पहुंच जाना चाहिए था न कि महात्मा गांधी के धरना अस्त्र का प्रयोग करना चाहिए था. अगर व्यापारी वर्ग ऐसा करता तो आज समाज के समक्ष " पाप से घृणा" का बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत करता. 
शालिनी कौशिक
 एडवोकेट 
कांधला 


Founder

Founder
Saleem Khan