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मज़दूर

Written By Bisari Raahein on रविवार, 1 मई 2016 | 8:36 am

“ मजदूर ”
सर्द हवाओं का नहीं रहता 
खौफ मुझे 
और ना ही मुझे कोई 
गर्म लू सताती है 

आंधी, वर्षा और धूप का
 मुझे डर नहीं 
मुझे तो बस ये पेट की
 आग डराती है 

उठाते होओगे तुम 
आनंद जिन्दगी के
यहां तो जवानी 
अपना खून सूखाती है 

खून पसीना बहा कर भी 
फ़िक्र रोटी की 
टिड्डियों की फौज 
यहां मौज उड़ाती है 

पसीना सूखने से पहले 
हक़ की बात ?
हक़ मांगने पर मेहनत 
खून बहाती है 

रखे होंगे इंसानों ने 
नाम अच्छे – अच्छे 
मुझे तो “कायत” 
दुनिया मजदूर बुलाती है  
                      :- कृष्ण कायत
http://krishan-kayat.blogspot.com

Founder

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Saleem Khan