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शायद कभी सुलग उठें राख में दबे विचार ...!

Written By Swarajya karun on शनिवार, 2 सितंबर 2017 | 11:41 am

                                                                                                  -स्वराज करुण
क्या टेक्नॉलॉजी में बदलाव से भी इंसान की मानसिकता बदल जाती है ? माहौल देखकर तो ऐसा ही कुछ महसूस हो रहा है ! कुछ बरस पहले तक चिट्ठी - पत्री के जमाने में लोग जिस आत्मीयता से एक - दूसरे के साथ अपने मनोभावों की अदला - बदली करते थे और उस आदान -प्रदान में जो संवेदनाएं होती थी , आज मोबाइल और स्मार्ट फोन जैसे बेजान औजारों एसएमएस ,ट्विटर इंटरनेट और वाट्सएप जैसी बेजान अमूर्त मशीनों से निकलने वाले शब्दों में उन संवेदनाओं को महसूस कर पाना असंभव नहीं तो कठिन जरूर हो गया है !
    गाँव में हायर सेकेण्डरी की पढ़ाई पूरी होने के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए शहर आकर हॉस्टल या किराये के मकान में रहने वाले बच्चे का अपने माता - पिता , भाई - बहन और यार दोस्तों को पोस्ट कार्ड या अंतर्देशीय पत्र में चिट्ठी लिखना , किशोर वय में एक - दूसरे के प्रति आकर्षित होकर किताब - कापियों के पन्नों के बीच चिट्ठी रखकर एक -दूजे की भावनाओं को साझा करना , लेखकीय अभिरुचि वाले युवाओं का किसी भी सम - सामयिक विषय पर अख़बारों में सम्पादक के नाम पत्र लिखना , रेडियो के शौकीन युवाओं का किसी आकाशवाणी केंद्र को फ़िल्मी गानों के लिए फरमाइशी पोस्ट कार्ड भेजना ..... अब कहाँ ?
अब तो अत्याधुनिक सूचना और संचार क्रांति ने इस प्रकार की बहुत सारी परम्पराओं को हमारे जीवन से विस्थापित कर दिया है । कवि और लेखक पहले अपनी रचनाएँ हाथ से लिखकर और डाकघरों से खरीदे गए पीले रंग के लिफाफे में सम्पादक को भेजा करते थे । पत्रकार भी अब अपने समाचार आनन - फानन में अपने अखबारों को इंटरनेट से भेज देते हैं । आम नागरिकों के लिए भी इंटरनेट जैसे तेज संचार संसाधनों से सूचनाओं का त्वरित आदान-प्रदान बहुत आसान हो गया है . नई टेक्नोलॉजी का उपयोग गलत नहीं है , लोग हाईटेक हो रहे हैं लेकिन कई तरह के खतरे उठाकर और नैतिक-अनैतिक के फर्क को भूलकर हाईटेक होने के दुष्परिणाम हो सकते हैं ,उनसे अनजान रहना ,या जानबूझ कर अनजान बने रहना गलत है । ब्लू-व्हेल जैसे मोबाइल गेम से आकर्षित होकर कई बच्चों और युवाओं ने आत्म हत्या जैसे घातक कदम उठा लिए हैं !
बड़े-बड़े सेठ-साहूकारों के प्राइवेट टेलीविजन चैनलों में उपभोक्ता वस्तुओं के भ्रामक विज्ञापनों की भरमार जनता को भ्रमित कर रही है ,इन चैनलों में अपराध-कथाओं पर आधारित कार्यक्रम लोगों की मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव डालने लगे हैं । टेलीविजन चैनलो में नेताओं और अफसरों के बयान देखकर आसानी से समझ में नहीं आता कि कौन सही और कौन गलत बोल रहा है ? नई टेक्नॉलॉजी ने मनुष्य को सुविधाएं तो दी है लेकिन उसे दुविधा में भी डाल दिया है ! सही - गलत की पहचान मुश्किल होती जा रही है ! देश और दुनिया के नब्बे प्रतिशत लोगों में यह धारणा बन गई है कि गलत आचरण ही आज सदाचरण है । समाज में कथित रूप से प्रभावशाली बनने के लिए शार्ट कट से कोई राजनीतिक पद हासिल करना या किसी उच्च प्रशासनिक पद पर पहुंचना आज के युवाओं का लक्ष्य बन गया है । लोग ऊंची कुर्सियों तक पहुँच तो जाते हैं ,लेकिन उच्च नैतिकता को छू भी नहीं पाते !
      निरंतर परिवर्तनशील नई टेक्नोलॉजी से लोगों की मानसिकता में लगातार आ रहे बदलाव का एक बड़ा असर धार्मिक आस्था केन्द्रों में भी देखा जा सकता है ! मन्दिरों में पूजा -अर्चना के लिए अब स्वयं भजन गाने की जरूरत नही होती । भक्तों की सुविधा के लिए म्यूजिक सिस्टम पर भजनों की सीडी चालू कर दी जाती है । वहाँ भक्ति मनुष्य नही करता । उसका यह काम मशीन कर देती है । आपकी इच्छा हो तो मशीन से चल रहे भजनों पर आप खामोशी से अपने होंठ हिलाते रहिए । नई टेक्नोलॉजी से तरह-तरह के नये-नये उद्योग लगाना और नई-नई लम्बी-चौड़ी सडकें बनाना आसान हो गया है .इसके फलस्वरूप लोगों की मानसिकता में भी अजीब-ओ -गरीब बदलाव आ गया है ! लोग सब कुछ बहुत जल्द होते देखना चाहते हैं ,लेकिन इस हड़बड़ी में हरे-भरे वनों का विनाश भी तेजी से हो रहा है ! ! नई टेक्नोलॉजी से समाज की मानसिकता में बदलाव के साथ-साथ मौसम में भी खतरनाक बदलाव देखा जा रहा है ! दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं ! कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे के हालात बन रहे हैं.! उद्योग भी जरूरी हैं ,लेकिन सिर्फ लोहे बनाने वाले उद्योग नहीं ,बल्कि खेती और वनोपज पर आधारित उद्योग लगें तो किसानों की भी आमदनी बढ़ेगी और जनता को तरह-तरह की खाद्य-वस्तुएं आसानी से मिल सकेंगी . वनोपज आधारित उद्योग लगने पर वनों की सुरक्षा पर भी लोगों का ध्यान जाएगा .इससे पर्यावरण को बचाने में भी मदद मिलेगी ! लेकिन इस पर कौन ध्यान दे रहा है ?
साफ़ दिखाई द रहा है कि परमाणु बम और अन्य विनाशकारी आधुनिक हथियार बनाने वाले लोग और ऐसे कई देश भी विध्वंसक मानसिकता के शिकार हो चले हैं । दुनिया में परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र की अवधारणा को महिमामंडित किया जा रहा है ,जबकि द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों में अमेरिकी परमाणु बमों से हुई तबाही का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है .यह सिर्फबहत्तर साल पहले की बात है .सब जानते हैं कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल मानवता के लिए कितना घातक हो सकता है ! जितनी ज्यादा साक्षरता बढ़ रही है , शिक्षा का जितना ज्यादा प्रसार हो रहा है , नैतिक दृष्टि से उतना ही ज्यादा पतन इंसानों का हो रहा है । सड़क हादसे में घायल होकर तड़फ रहे इन्सान की मदद के लिए शायद ही कोई इन्सान आगे आता हो ! समाज जीवन के किसी भी क्षेत्र में मनुष्य नहीं ,बल्कि मशीनों से चलने वाले ह्रदय विहीन मानव शरीरों की भीड़ नज़र आती है !
शायद ऐसा होना बहुत स्वाभाविक है ,क्योंकि समय के साथ सब कुछ बदल जाता है ,या फिर बदलने की प्रक्रिया में आ जाता है ! सामाजिक बदलाव का एक चक्र होता है । वह घूमकर फिर अपनी पुरानी जगह पर लौट सकता है । पुराने दिन लौट सकते हैं । फिलहाल तो इसके आसार नज़र नहीं आ रहे , लेकिन कुछ सच्चे दिलों के अच्छे विचार आज भी राख में चिंगारी की तरह दबे हुए हैं । शायद कभी सुलग उठें !
   (swaraj-karun.blogspot.com)                                                                                                                              
  

पत्रकार प्रेस क्लब (पीपीसी)की प्रदेश स्तरीय बैठक सम्पन्न

Written By हरीश सिंह on सोमवार, 28 अगस्त 2017 | 2:53 pm


पत्रकार प्रेस क्लब (उत्तर प्रदेश) की प्रदेश स्तरीय बैठक आज दिनांक 27ध्08ध्17 को वाराणसी स्थित वाराणसी के जिलाण्यक्ष पवन पाण्डेय के आवास शिवम पैलेस पर सम्पन्न हुई। बैठक के मुख्य अतिथि प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम पाठक रहे तथा अध्क्षता क्लब के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष हरीश सिंह ने की। 
कार्यक्रम का शुभरम्भ वरिष्ठ पदाधिकारियों के माल्यर्पण व स्वागत के उपरान्त हुआ। 

पत्रकार प्रेस क्लब की उत्तर प्रदेश इकाई के समस्त पदाधिकारिगण जिसमे प्रदेश, मंडल एवम सभी जिलों के पदाधिकारियों के औपचारिक स्वागत सत्कार, आपसी परिचय, अतिथियों के उदबोधन के बाद , हिंदुस्तान समाचार पत्र के छायाकार स्व0 विजय यादव जी की असायमिक निधन पर शोक प्रकट करते हुए 2 मिनट का मौन रखकर उनकी दिवंगत आत्मा की शान्ति की प्रार्थना की गई। उसके उपरांत संगठन की रीति नीति, वर्तमान में पत्रकार जगत के हितार्थ किये जा रहे उल्लेखनीय कार्य, पत्रकार जगत के भविष्य एवं पत्रकारों और उनके परिवार की सुरक्षा हेतु विस्तृत चर्चा की गई। 

प्रदेश अध्यक्ष श्री घनश्याम पाठक जी द्वारा कई नवागत पत्रकारों की जिज्ञासा को सरल तरीके से जानकारी देते हुए संतुष्ट किया गया। इस अवसर पर संगठन के समस्त पदाधिकारी एवम कई विशिष्ट सदस्य उपस्थित रहे।
बैठक का आयोजन जिला अध्यक्ष वाराणसी श्री पवन पांडेय जी द्वारा किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पीपीसी के प्रदेश उपाध्यक्ष श्री हरीश सिंह जी के साथ मंच संचालन प्रदेश अध्यक्ष श्री घनश्याम पाठक जी द्वारा किया गया।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री घनश्याम पाठक जी ने पत्रकारों से जुडी कई समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, पत्रकारों के हित एवम सुरक्षा के लिए कई सुझाव एवं उपाय निर्देशित किये। पत्रकार साथियों को हर सम्भव सहायता का भरोसा दिलाने के साथ ही उन्होंने ऐसे पत्रकारों को सलाह एवम चेतावनी भी दी की कोई भी साथी अपने व्यक्तिगत स्वार्थों या दुर्भावनाओं से ग्रसित होकर पत्रकारिता या संगठन का उपयोग करने की कोशिश ना करे।
प्रदेश अध्यक्ष जी के साथ बैठक में मौजूद प्रदेश संयोजक श्री विनय मौर्या जी, प्रदेश उपाध्यक्षगण श्री हरीश सिंह जी, श्री संतोष पांडेय,श्री कृष्ण कुमार द्विवेदी, श्री सोनू सिंह, प्रदेश संगठन मंत्री श्री मदन मोहन शर्मा, पूर्वांचल प्रभारी श्री प्रवीण यादव(यश), प्रदेश सचिव श्री गौरव शुक्ला जी ने जिलेवार सभी पदाधिकारियों एवम सदस्यों की समस्याओं एवम उनकी सलाह पर विचार विमर्श किया।
बैठक में कई वक्ताओं ने अपना अपना मत और विचार मंच पर लघु वाक्यों में प्रस्तुत किया। ऐसे ही वक्ताओं की कड़ी में प्रदेश उपाध्यक्ष श्री सोनू सिंह द्वारा पंचकुला में हुई वीभत्स घटना में मीडियाकर्मियों के साथ हुए हिंसक व्यवहार को देखते हुए समाचार संकलन करते समय स्वयं की सुरक्षा का पूरा ध्यान देने की सलाह दी। जिलाउपाध्यक्ष जौनपुर अखिलेश सिंह जी में कहा कि संगठन के प्रत्येक सदस्य सबको एक परिवार के रूप लेकर चलना होगा तभी संगठन का सही अर्थ होगा। इसी तरह पीपीसी यूपी के प्रदेश संयोजक श्री विनय मौर्या जी, पूर्वांचल संयोजक श्री प्रवीण यश जी, प्रदेश उपाध्यक्ष श्री सन्तोष पांडेय जी, समेत संगठन कई के सदस्यों एवम पदाधिकारियों द्वारा पत्रकार हित के अपनी बातें रखीं।
इस प्रादेशिक बैठक में प्रदेश अध्यक्ष जी श्री घनश्याम पाठक जी के साथ संगठन के प्रदेश संगठन मंत्री श्री मदन मोहन शर्मा जी, वाराणसी मंडल अध्यक्ष श्री पवन त्रिपाठी जी, मंडल अध्यक्ष मिर्जापुर श्री राहुल सिंह जी,जिला संरक्षक वाराणसी श्री सकल देव सिंह जी, जिला उपाध्यक्ष वाराणसी श्री नवीन प्रधान जी  जिला अध्यक्ष चंदौली श्री आशुतोष तिवारी जी, जिला संयोजक चंदौली श्री मुकेश मौर्या जी, जिला अध्यक्ष जौनपुर श्री कृपाशंकर यादव जी,जिला संयोजक जौनपुर
 श्री लालचंद निषाद जी, जिला संयोजक भदोही श्री 
समीर वर्मा जी, आशीष सोनी जी, रामलाल साहनी जी, 
संजीव शर्मा चंद्रप्रकाश तिवारी, अनूप शुक्ला, विक्रम 
मल्होत्रा, रेवती रमण शर्मा, नीरज कुमार मौर्या, 
उमेश कुमार उपाध्याय, उपेंद्र कुमार यादव, कैलाश 
प्रसाद साहनी, दिनानाथ, राजेंद्र प्रसाद सिंह, पुष्कर मिश्र, 
सुधीर कुमार विश्वकर्मा, संजीव शर्मा, विवेक कुमार,
 गोविंद कुमार श्रीवास्तव, दिलीप कुमार मौर्या,
 मिथिलेश कुमार सिंह, चंद्र प्रकाश तिवारी, प्रभु नारायण प्रजापति, जितेंद्र कुमार अग्रहरि, आनंद चतुर्वेदी, मदन मोहन मिश्रा, योगेश श्रीवास्तव, डॉक्टर बीपी यादव, आशीष भूषण सिंह, मनीष तिवारी, प्रभात रस्तोगी, अरुण पटेल, संतोष सिंह, राजीव सेठ, अमरदीप, राजकुमार, केएल शाही, मुकेश मिश्रा, धर्मेंद्र पांडेय, पिंकू सरदार, कृष्णकांत मिश्रा, अभिनव कुमार पांडेय, वीरेंद्र पांडेय, पंकज पांडेय, संजय कुमार मिश्रा, राजेंद्र कुमार पांडेय, राजेश कुमार मिश्र, अवनीश कुमार दुबे, संतोष कुमार दुबे, मुहम्मद जावेद, ओम प्रकाश,  दिलीप सिंह, भरत निधि तिवारी, सुरेंद्र सिंह, वली अहमद, रामकृष्ण पांडेय, शुभम सिंह, दीपक तिवारी, सुनील प्रजापति, रामाज्ञा यादव, शशिकांत मौर्य, कमलेश यादव, राजेश मिश्र, गुलजार अली, विनोद कुमार सिंह, अजीत सिंह, संतोष नागवंशी, मोहम्मद इरफान हाशमी, मंजीत कुमार पटेल, बजरंगी प्रसाद, कृष्णा सिंह, विवेक यादव, विकी मध्यानी, पंकज कुमार पांडेय, रामलाल साहनी, महेश कुमार मिश्रा समेत सैंकड़ो पत्रकार साथी पुरे जोश के साथ शामिल हुए। 





खण्डित आज़ादी का जश्न और एक ज्वलंत प्रश्न ?

Written By Swarajya karun on बुधवार, 16 अगस्त 2017 | 11:31 pm

            दिल पर हाथ रखकर बताना - क्या कभी ऐसी इच्छा नहीं हुई कि भारत ,पाकिस्तान और बांगला देश मिलकर एक बार फिर अखण्ड भारत बन जाएं ? आज के दौर में चाहे 14 अगस्त को पाकिस्तान और 15 अगस्त को भारत अपनी आज़ादी का जश्न मनाए ,क्या वह हमारे उस अखण्ड भारत की आज़ादी का जश्न होता है ,जो आज से 70 साल पहले था ? वह तो जिन्ना नामक किसी सिरफ़िरे जिन्न की औलाद की जिद्द और कुटिल अंग्रेजों की क्रूर कूटनीति का ही नतीजा था ,जिसके चलते भारत माता के पूर्वी और पश्चिमी आँचल में विभाजन की काल्पनिक रेखाएं खींच दी गई और भारत खण्डित हो गया ।
       देश में  आज़ादी के तीव्र होते  संघर्षों ने अंग्रेजों को भयभीत कर दिया था । तब ब्रिटिश हुक्मरानों ने जिन्ना को ढाल बनाकर विभाजन की पटकथा तैयार कर ली और लाखों बेगुनाहों के प्राणों की बलि लेकर पाकिस्तान नामक नाजायज राष्ट्र पैदा हो गया ,जिसका एक हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान और दूसरा हिस्सा पश्चिमी पाकिस्तान कहलाया ।यह एक बेडौल विभाजन था । एक ही देश के दोनों हिस्सों के बीच हजारों किलोमीटर का फासला समुद्री या हवाई मार्ग से तय करना पड़ता था । बहरहाल पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर स्वतन्त्र बंगला देश बन गया और उधर पश्चिमी पाकिस्तान अब सिर्फ पाकिस्तान कहलाता है । उस वक्त के किसी अंग्रेज हुक्मरान का इरादा था कि वह पाकिस्तान और भारत दोनों की आज़ादी के जश्न में शामिल हो ,इसलिए उसने सिर्फ अपनी सुविधा के लिए 14 अगस्त को पाकिस्तान और 15 अगस्त को भारत की आज़ादी का दिन तय कर दिया । हमारे तत्कालीन नेताओं ने अंग्रेजों के इस प्रस्ताव को सिर झुकाकर स्वीकार भी कर लिया ।
उनकी इसी मूर्खता का खामियाज़ा 70 साल बाद भी हम भुगत रहे हैं । आतंकवाद, सम्प्रदायवाद और अलगाववाद के दंश झेलना हमारी नियति, बन गई है ।समय आ गया है कि इस बीमारी का इलाज किया जाए । भारत ,पाकिस्तान और बांग्लादेश का एकीकरण ही इसका सर्वश्रेष्ठ और चिरस्थायी इलाज होगा ! आखिर 70 साल पहले कहाँ था कोई पाकिस्तान और कहाँ था कोई बांग्लादेश ? खण्डित आज़ादी के इस जश्न के बीच एक ज्वलन्त प्रश्न है यह !   -स्वराज करुण

अब मच्छर ही नहीं राजनेता भी खून चूसते हैं.

Written By Taarkeshwar Giri on रविवार, 13 अगस्त 2017 | 10:05 am

जापानी बुखार (एन्सेफलीटीस) मूलतः पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिम बिहार में अपना प्रकोप दिखता है वो भी  खाश करके 6 महीने से लेकर 15 साल तक के बच्चों के ऊपर / मानसून के समय जापानी बुखार के जिम्मेदार मच्छर बहुत ही ज्यादा मात्रा  में पैदा होते हैं और छोटे बच्चो को अपना शिकार बनाते हैं. 

बच्चो को मच्छरों से बचाये ; क्योंकि अब मच्छर ही नहीं राजनेता भी खून चूसते हैं. बच्चो को हमेशा पुरे कपडे पहनाये।  शहर के और गॉंव के अमीर लोग तो मच्छरों से बचने का तरीका निकाल  लेते हैं क्योंकि उनके पास पैसा और साधन है, मगर गॉंव के गरीबो के पास दो वक्त की रोटी मिल जाये वही बहुत है.

मंदिरो में धन दौलत दान करने से तो अच्छा है की पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिमी बिहार में गरीबो  मच्छरदानी दान दी जाये , जिसे उनके बच्चो को बीमार होने से बचाया जाय।  

गोरखपुर में ये पहली बार नहीं हुआ है , पहले योगी जी , सरकार के खिलाफ आवाज उठाते रहते थे , तो अब विरोधी योगी सरकार के खिलाफ. जनता को ये समझना चाहिए की ये राजनेता भी किसी मच्छर  नहीं , जिसको भी मौका मिलेगा वो अपनी राजीनीति की रोटी तो सकेगा ही, आप अपने आप तो तवा मत बनाइये।  खुद आगे बढिये और अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाइये।   

Free MyCuteBaby Contest-Like,Share And Vote For Prabhav

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on मंगलवार, 27 जून 2017 | 7:11 pm

Free MyCuteBaby Contest-Like,Share And Vote For Prabhav: Prizes For Top 103 Participants,Entries Open For Everyone,Upto 12yrs Old Kids Allowed,Participate Now Free

खेल- खेल मै खेल रहा हूँ


खेल- खेल मै खेल रहा हूँ
कितने पौधे हमने पाले
नन्ही मेरी क्यारी में
सुंदर सी फुलवारी में !
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सूखी रूखी धरती मिटटी
ढो ढो कर जल लाता हूँ
सींच सींच कर हरियाली ला
खुश मै भी हो जाता हूँ !
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छोटे छोटे झूम झूम कर
खेल खेल मन हर लेते
बिन बोले भी पलक नैन में
दिल में ये घर कर लेते !
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प्रेम छलकता इनसे पल-पल
दर्द थकन हर-हर लेते
अपनी भाव भंगिमा बदले
चंद्र-कला सृज हंस देते !
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खिल-खिल खिलते हँसते -रोते
रोते-हँसते मृदुल गात ले
विश्व रूप ज्यों मुख कान्हा के
जीवन धन्य ये कर देते
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इनके नैनों में जादू है
प्यार भरे अमृत घट से हैं
लगता जैसे लक्ष्मी -माया
धन -कुबेर ईश्वर मुठ्ठी हैं
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कभी न ऊबे मन इनके संग
घंटों खेलो बात करो
अपनापन भरता हर अंग -अंग
प्रेम श्रेष्ठ जग मान रखो
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कभी प्रेम से कोई लेता
इन पौधों को अपने पास
ले जाता जब दूर देश में
व्याकुल मन -न पाता पास !
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छलक उठे आंसू तब मेरे
विरह व्यथा कुछ टीस उठे
सपने मेरे जैसे उसके
ज्ञान चक्षु खुल मीत बनें
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फिर हँसता बढ़ता जाता मै
कर्मक्षेत्र पगडण्डी में
खेल-खेल मै खेल रहा हूँ
नन्ही अपनी क्यारी में
सुन्दर सी फुलवारी में !
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्र्मर ५
शिमला हिमाचल प्रदेश
२.३० - ३.०५ मध्याह्न
९ जून १७ शुक्रवार
सौ -सौ रूप धरे ये बादल





मेरी कलम रुक जाती है...

Written By Neeraj Kumar on शुक्रवार, 24 मार्च 2017 | 5:28 pm

मित्रों, 
पहली बार मैं इस ब्लॉग पर अपना योगदान दे रहा हूँ. मुझे माफ़ करेंगे आप सभी साथी और पाठकगण, ऐसी आशा है. 

जीवन की उलझनों में ऐसा उलझा कि कविता को समय ही नहीं दे पाया. जाने कहाँ गए वो दिन? जाने कहाँ गया वो जूनून? जाने कहाँ गयी वो लगन? शब्द ही खो गए मेरे ह्रदय के. 

एक नए जोश के साथ आया हूँ इस बार, इस संकल्प के साथ कि अब तो लिखूंगा, बहुत लिखूंगा, निरंतर लिखुंगा। हिंदी का दास हूँ चाहे अपने नाम से पूर्वजों के "दास" टाइटल को हटा दिया है मैंने. 

इस बार मैं एक पुरानी कविता "मेरी कलम रुक जाती है" को विडियो के रूप में पुनः जीवित किया है जो यहाँ शेयर कर रहा हूँ. विनम्र निवेदन है की इसे सुने, गुणे और मेरा मार्गदर्शन करें... 



मेरी कलम रुक जाती है

जब

कोई कहता है

भूख लगी है

पैसे दे दो...


मेरी कलम रुक जाती है

जब

मैं देखता हूँ

छोटे से बच्चे को

चाय की दूकान पे

काम करते...


मेरी कलम रुक जाती है

जब

कोई सिमटी सिकुडी लड़की

किनारे से गुजरती है

सर झुका कर

भीड़ से बचकर...


मेरी कलम रुक जाती है

जब

कोई रिक्शा वाला

दस के बदले पाँच पाकर

खड़े होकर

देखता है चमकते सूट को...


मेरी कलम रुक जाती है

जब

एक पुलिस वाला

सलाम करता है

किसी गाड़ी वाले को...


मेरी कलम रुक जाती है

जब

अखबार में छपती है

हत्या, लूट, बलात्कार की

युद्ध, राजनीति, उठा-पटक की

रोज-रोज खबरे एक-सी...


मेरी कलम रुक जाती है

जब

लगता है

शब्दों के बाण

कविता का मलहम

या गीत के सरगम

बदल नहीं सकते

तुझे, मुझे या उन्हें

न आत्मा, न परमात्मा

न भूत को, न भविष्य को...

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Saleem Khan