यह काली और सफेद पोशाक, जो कानूनी पेशेवरों द्वारा पहनी जाती है, इस ड्रेस कोड के विकास का इतिहास मध्य युग का है जब वकीलों को बैरिस्टर, सॉलिसिटर, अधिवक्ता या पार्षद के रूप में भी जाना जाता था, तब उनका ड्रेस कोड जजों के समान था.
भारत में कानूनी व्यवस्था का आरम्भ ब्रिटेन द्वारा किया गया और क्योंकि जब भारत में कानूनी व्यवस्था का आरम्भ हुआ, भारत पर अंग्रेजों का शासन था तो अधिवक्ताओं की ड्रेस पर भी ब्रिटेन की व्यवस्था हावी होनी अवश्यंभावी थी. तब से लेकर अब तक बहुत से परिवर्तन होते रहे और अब भारत में वकीलों का ड्रेस कोड अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों द्वारा शासित होता है. जो इस प्रकार है -
" उपरोक्त नियमों की धारा 49 सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालयों, न्यायाधिकरणों या प्राधिकरणों में उपस्थित होने वाले अधिवक्ताओं के लिए ड्रेस कोड को नियंत्रित करती है। वे अपनी पोशाक के भाग के रूप में निम्नलिखित पहनेंगे, जो शांत और प्रतिष्ठित होंगे।
I. भारत में अधिवक्ताओं के लिए ड्रेस कोड भाग
VI: अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 49(1)(gg) के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम/नियमों का अध्याय IV। अधिवक्ताओं द्वारा पहना जाता है, जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, किसी भी अदालत या न्यायाधिकरण के समक्ष पेश होता है। ”
1- कोट
(ए) एक काले बटन-अप कोट, चापकन, अचकन, काला शेरवानी और वकील के गाउन के साथ सफेद बैंड, या
(बी) एक काला खुला स्तन कोट, सफेद कॉलर, कठोर या मुलायम, और वकील के गाउन के साथ सफेद बैंड .
किसी भी मामले में जींस को छोड़कर लंबी पतलून (सफेद, काली, धारीदार या ग्रे) या धोती:
2- काली टाई
परन्तु यह और कि उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, जिला न्यायालयों, सत्र न्यायालयों या नगर सिविल न्यायालयों के अलावा अन्य न्यायालयों में बैंड के स्थान पर काली टाई पहनी जा सकती है।
द्वितीय. लेडी एडवोकेट्स:
(ए) ब्लैक फुल स्लीव जैकेट या ब्लाउज, व्हाइट कॉलर स्टिफ या सॉफ्ट व्हाइट बैंड्स और एडवोकेट्स गाउन। सफेद ब्लाउज, कॉलर के साथ या बिना कॉलर के, सफेद बैंड के साथ और काले खुले ब्रेस्टेड कोट के साथ।
या
(बी) साड़ी या लंबी स्कर्ट (सफेद या काला या बिना किसी प्रिंट या डिज़ाइन के कोई भी मधुर या मंद रंग) या फ्लेयर्स (सफेद, काली या काली-धारीदार या ग्रे) या पंजाबी पोशाक चूड़ीदार-कुर्ता या सलवार-कुर्ता के साथ या बिना दुपट्टा (सफेद या काला) या काले कोट और बैंड के साथ पारंपरिक पोशाक।
III. बशर्ते कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में पेश होने के अलावा अधिवक्ता का गाउन पहनना वैकल्पिक होगा।
चतुर्थ। परन्तु यह और कि उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय, सत्र न्यायालय या नगर सिविल न्यायालय के अलावा अन्य न्यायालयों में बैंड के स्थान पर काली टाई पहनी जा सकती है।"
न्यायाधीशों का ड्रेस कोड वरिष्ठ अधिवक्ताओं के समान ही होता है। पुरुष न्यायाधीश सफेद शर्ट और पतलून के साथ एक सफेद गर्दन बैंड और एक काले कोट के साथ एक गाउन पहनते हैं, जबकि महिला न्यायाधीश आमतौर पर पारंपरिक साड़ी पहनना पसंद करती हैं, और इसे एक सफेद गर्दन बैंड, एक काला कोट और एक गाउन के साथ जोड़ती हैं।
नियमों के अनुसार, एक अधिवक्ता को न्यायालयों के अलावा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बैंड या गाउन नहीं पहनना चाहिए, सिवाय ऐसे औपचारिक अवसरों पर और ऐसे स्थानों पर जैसे कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया या कोर्ट द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
COVID-19 के प्रकोप के बीच जब न्यायालयों को अपने कामकाज के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्रणाली का पालन करना पड़ा है, तो वकीलों के लिए अदालत के सामने पेश होने के लिए ड्रेस कोड में भी बदलाव लाया गया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिवक्ताओं को निर्देश दिया है कि वे वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से की जा रही सुनवाई के दौरान "सादे सफेद शर्ट / सलवार-कमीज / साड़ी, सादे सफेद गले में पट्टी" पहन सकते हैं। इसी आधार पर देश भर के उच्च न्यायालयों ने वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से पेश होने के लिए वकीलों के नए ड्रेस कोड में बदलाव को अधिसूचित किया है। इसमें कहा गया है कि यह प्रणाली तब तक बनी रहेगी जब तक कि "चिकित्सा अनिवार्यताएं मौजूद न हों या अगले आदेश तक।"
इसी ड्रेस कोड पर आपत्ति जताई गई है और इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष इसे बदलने के लिए याचिका दायर की गई है, जिस पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को सूचित किया कि उसने वकीलों के लिए ड्रेस कोड के मुद्दे पर बार और न्यायपालिका के साथ विचार-विमर्श करने के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। बीसीआई ने यह सबमिशन हाईकोर्ट द्वारा उसे जारी एक नोटिस के जवाब में दिया है, जो अदालत के समक्ष दायर याचिका पर वकीलों के लिए निर्धारित काले कोट और पोशाक के मौजूदा ड्रेस कोड पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहा है। इसमें आरोप लगाया गया कि यह भारत की जलवायु परिस्थितियों के खिलाफ है।
याचिका में किए गए अभिकथनों का उल्लेख करते हुए बीसीआई ने कहा: "वास्तव में याचिकाकर्ता ने कहा है कि बैंड ईसाई धर्म का प्रतीक है। उनके बयान के अनुसार इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। गैर ईसाइयों को इसे पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कोट और गाउन पहनने पर भी सवाल उठाया है। ड्रेस फ्रेमिंग के समय नियमों को बनाते वक्त और न ही उसके बाद से आज तक इस तरह की व्याख्या की गई है। इस मुद्दे पर निर्णय लेने से पहले बार और न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्यों सहित सभी हितधारकों के साथ इस मुद्दे पर विस्तृत विचार-विमर्श की आवश्यकता है।"
याचिका में आगे कहा गया, "एडवोकेट्स के लिए निर्धारित ड्रेस कोड जहां उन्हें कोट और गाउन पहनना है और एक बैंड के माध्यम से अपनी गर्दन बांधना है, जलवायु परिस्थितियों के अनुसार नहीं है ... एडवोकेट्स बैंड ईसाई धर्म का धार्मिक प्रतीक है। इसलिए गैर-ईसाइयों को इसे पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है… सफेद साड़ी और सलवार-कमीज पहनना हिंदू संस्कृति और परंपरा के अनुसार विधवा महिलाओं का प्रतीक है, इसलिए बीसीबी की ओर से इस संबंध में भी विवेक का प्रयोग नहीं किया गया।.
इसे लेकर जब आम जनता और अधिवक्ताओं की राय ली गई तो कुछ इस तरह के विचार सामने आए - एक संजू बाबा कहते हैं कि
"वर्तमान में वकीलों का ड्रेस किसी धरम के आधार पर नहीं है , भारत के जलवायु के विपरीत भी नहीं है ,याचिकाकर्ता को बाहरी चीजों पर ध्यान न देकर न्यायिक प्रणाली और न्याय पर ध्यान केंद्रित करनी चाहिए ड्रेस कोड बदलने से न्याय पर असर नहीं पड़ेगा बल्कि ड्रेस कोड के चक्कर में भेद भाव पैदा होगा ,कोई कहेगा ये ड्रेस मुझमें सूट नहीं करता, इसका रंग मेरे ग्रह के अनुसार नहीं है, ऐसी रंग की ड्रेस पहनने से केस में हार होती है इत्यादि,.........…"
अधिवक्ता अर्चित पंवार: बार एसोसिएशन, कैराना (शामली) कहते हैं कि
"ड्रेस कोड का ठीक पालन करना बहुत ज्यादा जरुरी है… उचित ड्रेस कोड का ना होना एक तरह की अवमानना ही है मेरी राय में और रही बात ड्रेस कोड में तबदीली करने की… मेरी राय में मौजूदा ड्रेस कोड पर्याप्त है और इसमें कोई बदलाव की आवश्यकता नहीं है।"
सुरेन्द्र कुमार मलिक एडवोकेट: बार एसोसिएशन, कैराना (शामली) को ड्रेस आरामदायक भी चाहिए और वे कहते हैं कि
" बैंड और गाउन को हटाना चाहिए
कोट व टाई होनी चाहिए"
और मैं स्वयं एक अधिवक्ता हूं और मुझे स्वयँ पर गर्व भी होता है और मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ता है जब मैं यह ड्रेस पहनती हूं, समाज में सम्मान प्राप्त होता है इस ड्रेस को धारण करने पर, यह कहना कि यह भारत की धार्मिक रीति रिवाजों के विपरीत है, गलत है क्योंकि ये भारतीय संस्कृति में पाखण्ड परोसने वालों के कारनामे हैं जिन्होंने एक विधवा के लिए ड्रेस कोड का सृजन किया, नारी पर जितने अत्याचार पुरुष प्रधान समाज कर सकता है हमेशा से करता आया है और करता ही रहेगा, उन्होंने सफेद रंग को विधवाओं के लिए लागू किया, पुरुष का विवाह हो जाए या पत्नी मर जाये, वह वैसे का वैसा ही रहेगा, उसके रहन सहन, पहनावे में कोई अन्तर नहीं आएगा किन्तु नारी की जिंदगी में दोनों ही स्थितियों में बंदिशें लागू हो जाती हैं किन्तु यह पिछड़ेपन की सोच न्याय के पैरोकारों पर लागू नहीं हो सकती. इस ड्रेस कोड ने एक लम्बे समय से हमारे समाज, देश, विदेश में एक पहचान बनाई है और हम नहीं चाहते हैं कि यह पहचान हमसे छिन जाए. आज स्थिति यह है कि पहले पहल युवा पीढ़ी इस ड्रेस कोड के आकर्षण में ही वक़ालत व्यवसाय को अपनाते हैं और बाद में अपनी योग्यता से आगे बढ़ते जाते हैं.
इसलिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया से हमारा विनम्र निवेदन है कि अधिवक्ताओं के ड्रेस कोड को भारतीय पुरातनवादी सोच के कारण परिवर्तन की ओर न धकेला जाए और इसे जस का तस ही रखा जाए.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
सीट नंबर 29
बार एसोसिएशन
कैराना
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