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“बरसात की खामोशी”

Written By Bisari Raahein on शुक्रवार, 29 अगस्त 2025 | 4:24 pm

 *कविता — “बरसात की खामोशी”*


बारिश आती है,

चुपके से, बिना आवाज के।

हर टपकन में सुकून छुपा होता है,

जैसे कोई गीत अधूरा रह गया हो।


कहीं छतों की टप-टप,

तो कहीं गलियों का सन्नाटा।

भीगी हुई मिट्टी की खुशबू में,

कुछ कहानियाँ दबी हुई हैं।


कभी पेड़ से गिरती बूंदों में,

कभी बच्चों की हँसी में,

बारिश होती है हर सवाल का जवाब,

पर वह जो अनसुना रहता है,

वही दर्द धरती पर बहता है।


जहाँ खिल उठी फसलें,

वहीं कहीं टूटे सपने भी हैं।

बरसात की वह खामोशी,

जिसे सुन पाता है कोई,

वही इस मौसम का सच

समझ पाता है।

✍️ कृष्ण कायत, मंडी डबवाली।

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3 टिप्पणियाँ:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शनिवार 30 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

Onkar Singh 'Vivek' ने कहा…

वाह

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

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