भारत वह देश है जहां
विभिन्न विश्वास रखने वाले लोग विधमान हैं. इसके बावजूद वे परस्पर मिलजुल कर रहते हैं
और यही इस देश की सराहनीय विशेषता है. लेकिन कभी कभी ऐसी दुर्घटनाएं भी सामने आती हैं
जो प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देती हैं. ऐसा नहीं है कि यह घटना अचानक उत्पन्न होती है,
बल्कि उनका प्राचीन पृष्ठभूमि है. इसी प्रकार की एक घटना झुंझुनूं में खेतड़ी थाना
क्षेत्र के बड़ाऊ गांव का है. जहां दलित जाति के दो नवविवाहित जोड़ों को मंदिर से धक्केमार कर बाहर निकालने का मामला प्रकाश में आया है। पीड़ितों का आरोप है कि विरोध करने
पर उनके साथ गाली गलौच भी किया गया. इस संबंध में मंदिर के पुचारी एवं तीन महिलाओं
सहित 8
लोगों के खिलाफ मामला
दर्ज किया गया है। पुलिस ने बताया कि बड़ाउ गांव का निवासी अशोक कुमार मीघवाल और छोटे
भाई गुलाब की बारात माधव गढ़ गई थी. 25 अक्तूबर को वे शादी कर के लौटे 26 अक्तूबर की सुबह लगभग 10 बजे दोनों नवविवाहित जोड़े धोक लगाने गांव के मंदिर गए। मंदिर में पुजारी घीसाराम
स्वामी सहित कुछ लोगों ने उनको पूजा अर्चना करने से रोका. नवविवाहित जोड़ों और उनके
साथ आए लोगों ने जब इस बात का विरोद्ध किया तो पुजारी और अन्य लोगों ने उनके साथ गाली
गलौच की और धक्के मार कर मंदिर से बाहर निकाल दिया।
रविवार रात इस
सिलसिले में पीड़ित अशोक कुमार मेघवाल ने मंदिर के पुजारी घीसाराम स्वामी, गंगा स्वामी, अनिल स्वामी, पप्पू शर्मा तथा
सियाराम स्वामी के साथ ही महिलाओं के खिलाफ मामला दर्ज कराया. इस मामले में फिलहाल
किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है. पुलिस मामले की जांच कर रही है.
घटना की पृष्ठभूमि
में यह बड़ा सवाल उठता है कि मंदिरों में "भगवान" किसके हैं? मानव के या विशेष वर्ग के? जब आस्था द्वार आप हिंदू हैं और वह भी जिनको धक्के मार कर बाहर किया जा रहा है
तो ऐसा मआमला क्यों ? पता यह चला कि यह "भगवान" हिंदुओं के नहीं बल्कि विशेष जाति के हैं जो
दिन रात उनकी सेवा में लगे रहते हैं. जिनको चाहें पूजा करने की अनुमति दें और
जिनको चाहें पूजा करने से रोक दें।
ऐसी ही स्थिति में
इस्लाम की ज़रूरत महसूस होती है जो यह नारा देता है कि प्रत्येक मानव का पैदा करने
वाला एक है और एक ही माता पिता से सब की रचना हुई है। ईश्वर भी एक और माता पिता भी
एक...तो फिर जातिवाद क्यों कर। इस्लाम सारे संसार का धर्म है जहाँ कोई भेदभाव
नहीं। जो हर प्रकार के जातिवाद का खंडन करता है। जो इनसान के माथा का भी सम्मान करता
है कि इसे मात्र अपने रचयिता और पालनकर्ता के सामने टेका जाए किसी अन्य के सामने नहीं।
4 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छा आलेख मंदिरों में क्या कहीं भी भेदभाव नहीं होना चाहिए प्रशासन को उन लोगों के खिलाप कुछ करना चाहिए जो मंदिरों पर एकाधिकार समझते हैं
हिंदू धर्म से हम सब की भावनाएं जुड़ी हुई है, इस लिये इस तरह का आलेख प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिये... इस महान ब्लौग पर इस प्रकार का लेख कैसे प्रकाशित किया गया। केवल एक छोटी सी घटना से किसी धर्म को नीचा नहीं दिखाया जा सकता। इस घटना को आधार मानकर इस्लाम को हिंदू से श्रेष्ठ कहना किसी भी प्रकार उचित नहीं है। सारे संसार में इस्लामिक आतंकवाद है क्या कहेंगे। जब बकरे को हलाल कर के काटा जाता है तो उसकी पीड़ा का अनुभव किया है कभी। विवाह का पावन बंधन तीन बार त्लाक कहने से टूट जाता है। क्या ये बंधन इतना नाजुक है कि चंद शब्द कहने से ही टूट गया। मुझे गर्व है मैं हिंदू हूं। हम केवल अपने धर्म का संमान करते हैं। हमारा धर्म प्रशंसा का महौताज नही है। बड़ा बड़ाई न करे, बड़ा न बोले बोल... रहिमन हिरा कब कहे, लाख टका मेरा मोल। सनातन धर्म की जय, सनातन धर्म की जय, सनातन धर्म की जय।
अलग-अलग हैं पंथ सब, दाता सबका एक।
जग के पालनहार के, हैं कर्म अनेक।।
अलग-अलग हैं पंथ सब, दाता सबका एक।
जग के पालनहार के, हैं गुण-कर्म अनेक।।
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