माना जाता है कि इस यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन से हुई थी. मंथन से निकले विष को पीने की वजह से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया था. विष का बुरा असर शिव पर ऐसा हुआ कि उनके भक्त रावण ने उस प्रभाव को कम करने के लिए तप किया. दशानन रावण कांवड़ में जल भरकर लाया और शिव का जलाभिषेक किया. यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई.
केवल यही कहानी नहीं है, आस्था और विश्वास की कई कहानियां होती हैं जिनकी जड़ें इतनी मजबूत होती हैं जो समय के साथ साथ पीढ़ी दर पीढ़ी हृदय में अपनी जगह जमाती ही रहती हैं नहीं तो क्या सम्भव है हरिद्वार से पैदल उत्तर प्रदेश के दूरस्थ जिलों में लौटना, अन्य राज्यों में जाना और वह भी एक बार नहीं, 10-20 और न जाने कितनी कितनी बार. कांवड़ लाने का संकल्प लेने वालों को भोला और भोली कहा जाता है, उनके पैर सूज जाते हैं, उनमें जख्म हो जाते हैं किन्तु मजाल है कि हौसला टूट जाए, बल्कि जैसे जैसे उनके भोले का निवास शिवालय पास आता जाता है उनके द्वारा "बम बम भोले" का नाद तेज होता जाता है.
किन्तु ऐसा नहीं है कि आपने कांवड़ लाने की सोची और चल दिये कांवड़ लाने. कांवड़ लाने के कुछ नियम हैं जिनका पालन आपकी आस्था में विश्वास जगाता है और इनका उल्लंघन आपके मन में अनिष्ट की आशंका पैदा कर देता है. इसलिए इससे जुड़े कुछ नियमों का ध्यान ज़रूर रखें और अपनी कांवड़ यात्रा सफल बनाते हुए भोले को गंगाजल चढ़ाएं - नियम इस प्रकार हैं -
1-कांवड़ यात्रियों के लिए नशा वर्जित बताया गया है. इस दौरान तामसी भोजन यानी मांस, मदिरा आदि का सेवन भी नहीं किया जाता.
2-बिना स्नान किए कावड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते. तेल, साबुन, कंघी करने व अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग भी कावड़ यात्रा के दौरान नहीं किया जाता.
3-कांवड़ यात्रियों के लिए चारपाई पर बैठना मना है. चमड़े से बनी वस्तु का स्पर्श एवं रास्ते में किसी वृक्ष या पौधे के नीचे कावड़ रखने की भी मनाही है.
4-.कांवड़ यात्रा में बोल बम एवं जय शिव-शंकर घोष का उच्चारण करना तथा कावड़ को सिर के ऊपर से लेने तथा जहां कावड़ रखी हो उसके आगे बगैर कावड़ के नहीं जाने के नियम पालनीय होती हैं.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
कैराना (शामली)
2 टिप्पणियाँ:
हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी 🙏🙏
कांवड़ ले जाने के नियमों की जानकारी के लिए साधुवाद!
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Thanks for your valuable comment.