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कत्रीना कैफ - 1

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on शनिवार, 8 अक्टूबर 2011 | 6:25 am

कत्रीना कैफ - Katrina Kaif
  
उफ़ ये अदा,
हो गए जिस पर फ़िदा,
न रहा गुमान,
न रहा इमान,

ये जुल्फें ये नजरें,
ये होंठ ये अदा,
ये चेहरा या खुदा,
या खुदा या खुदा,

रब यह कैसी नजाकत है,
रब यह कैसी हुश्न परि है,
रब यह कैसी तुफ्लिश है,
रब यह कैसी मोहब्बत है,

हाय यह तेरा नाज़ुक बदन,
आखों की सोखियों का चमन,
लहराती जुल्फों का दामन,
मदमस्त जावानी की उफन,

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1 टिप्पणियाँ:

Swarajya karun ने कहा…

आज के जमाने में उन फ़िल्मी नायक-नायिकाओं के बारे में कविता लिखना अपने कीमती वक्त की बर्बादी के सिवाय और क्या है,जो एक-एक फिल्म के लिए करोड़ों रुपयों का पारिश्रमिक लेते हैं. सिर्फ बंदरों जैसी उछल-कूद करने और कमर हिलाने के करोड़ों रूपए ? इस देश में सिर्फ छब्बीस रूपए रोज कमाने वाले व्यक्ति को गरीब नहीं माना जा रहा है ,जबकि बढती महंगाई ने गरीबों का जीना दुश्वार कर दिया है. क्या इस हालात पर कोई कविता नहीं लिखी जा सकती ?

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