अब
इतना तो पक्का है कि कांग्रेस के प्रत्याशी राहुल गांधी नहीं होंगे।
कांग्रेस कुछ दांएं बाएं करेगी। जैसा कि वह करती है। पीएम के कैंडीडेशन के
लिए वह कुछ नहीं बोलेगी। माहौल राहुल के नाम का बनने देगी। चूंकि ऐसे में
अगर राहुल का नाम घोषित करती है, तो मोदी वर्सस राहुल बहुत ही औपचारिक रूप
से होने लगेगा। जबकि हालात देश में ऐसे हैं कि मोदी न भी होते तो भी
बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है। ऐसे में राहुल की हार अगर
मीडिया ने प्रचारित कर दिया, तो कांग्रेस की पारसमणि काला पत्थर बन जाएगी,
अश्वमेघ खत्म हो जाएगा, तिलिस्म टूट जाएगा, बंद मुट्ठी खुल जाएगी। अब ऐसे
में मोदी के आने से कांग्रेस थोड़ा चिंतित होगी। चूंकि लोगों के बीच वह
भरोसे के संकट से जूझ रही है। मोदी के बारे में एक ही बात बार-बार कहकर भी
चुनाव नहीं जीता जा सकता। कांग्रेस इसे यूं भी नहीं ले सकती कि जीते तो
जीते, वरना 10 साल तो राज किया ही है। यह बात सच है कि कांग्रेस इस बात को
मानकर चल भी रही है कि वह जरूरी सीटें नहीं जीतेगी, लेकिन उसका कॉन्फिडेंस
है कि भाजपा भी नहीं जीतेगी, जरूरी सीटें। ऐसे में जिसके पास जीती हुई
पार्टियां हैं, वह इनके साथ आ जाएंगे। दरअसल कांग्रेस यहां पर वोटर्स
ओरिएंटेड इलेक्शन इक्वेशन नहीं गढ़ रही, बल्कि इलेक्टेड पॉलीटिकल पार्टीज
का इक्वेशन बिठा रही है। यह भारतीय लोकतंत्र का एक ऐसा हिस्सा है, जो
जनादेश को दरकिनार तक करने के लिए काफी है। कांग्रेस यूं भी इस तरह की
जोड़ तोड़ ऐसे, जैसे, तैसे भी हो कर सकती है। बहरहाल मोदी वर्सस राहुल
रोमांच तो हमें देखने को नहीं मिलेगा।
सखाजी
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