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भगवा की छतरी में ठुसने की कोशिश

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on मंगलवार, 17 सितंबर 2013 | 1:01 pm

आखिर पाप तो पाप है न। हम जानते हैं वही राम चरित्र मानस समाज में ब्राह्मणों को अतिश्रेष्ठ बताती है और वही राम चरित्र मानस ब्राह्मण रावण को महापापी बताती है। यानी पाप तो पा है न? कितने ही श्रेष्ठ कोई खास वर्ग, संप्रदाय, टैग, तमगा वाले लोग हों, लेकिन वे अगर अनैतिक करेंगे तो वे पहले अनैतिक ही होंगे न?

File- When police arrested Asaram.
आसाराम बार-बार भगवा की छतरी के नीचे जा घुसने या यूं कहिए ठुसने की कोशिश में रहते हैं। कभी कहते हैं सरकार बदलेगी तो देख लूंगा, तो कभी कहते हैं मेरे समर्थकों पर मेरा वश नहीं। इधर भगवा की छतरी नैतिकता के आधार पर इतनी सिकुड़ रही है कि उसमें उसके ही लोग नहीं समा रहे। आसाराम है सच में झांसाराम। रामजेठमलानी की वकालत से केस को वे खिंचवा लेंगे साथ में उनके संघी कनेक्शन के जरिए सेफ्टी कवर भी बनवा सकते हैं। जैसा कि इंदौर के विजयवर्गीय वर्ग ने उन्हें शुरुआत में दिया था। ऐसे कवर में घुसे आसाराम ईश्वर पर जरा भी भरोसा नहीं करते, उन्हें अपनी शक्ति, अनुरक्ति और राजनैतिक संरक्षण पर ही पूरा भरोसा है।

खैर है टीवी मीडिया है देश में

आसाराम बार-बार इस छतरी की आस में बोलते हैं, ललकारते हैं। नितांत व्यक्तिगत वासना की इस लड़ाई को वे राजनैतिक रंग, धर्म का रंग, संप्रदाय का रंग, संत का रंग, भक्ति का रंग, समर्थकों का रंग जो भी रंग चढ़े, देना चाहते हैं। बस उनकी रंग रंगीली तासीर पर असर न पड़े। वो तो खैर है देश में टीवी मीडिया है (खासकर इंडिया न्यूज), जिसने इनके नकली संतत्व को उभारा। वरना तो वे इस खोल में ही पूरी जिंदगी जी गए होते।

भरोसा कहां से लाओगे

यह किसी भी धर्म, सपं्रदाय के लिए भारी वेदना और पीड़ा की बात होती है, कि उसके समुदाय के अगुवा और पहरूआ स्तर के लोग ऐसे कुकृत्य करें। कई बार इन धर्म संप्रदाय के संगठनात्मक धड़े डैमेज कंट्रोल करते हुए मामले को दवा जरूर देते हैं, लेकिन फिर भी वे उस व्यक्ति से व्यक्तिगत रूप से तो फट ही जाते हैं। यानी भरोसा तो आदमी खो ही देता है। पिछले दिनों रायपुर के बसस्टैंड एरिया में कुछ पोस्टर चिपके मिले, जिनमें आसारामनुमा हिंदू संतों की तस्वीरें थी और उनके कुकृत्यों का चिट्ठा लिखा था। थोड़ा सा लोग उत्तेजित हुए। चूंकि यहां पर भगवा की छतरी बार-बार ऐसा प्रदर्शित कर रही है, कि ऐसे लोगों को मेरी ओर से कोई छाया नहीं। फिर भी अन्य संप्रदाय के लोग ऐसी हरकते करें तो क्या होना चाहिए? वो तो खैर है कि प्रशासन ने इसे तुरंत कंट्रोल किया और असर को खत्म कर दिया। इसकी एक वजह रायपुर जैसा भगवा प्रधान शहर भी है, जो अपनी ओर से हिंसक रिएक्ट नहीं करना जानता। कुछ ऐसा ही कांची मठ के शंकराचार्य पर लगे आरोपों के दौरान हुआ था। भोपाल के जहांगीराबाद (अल्पसंख्यक प्रधान मुहल्ला) एरिया में, जहां पर द बॉस को ऐसा अधिकार किसने दिया लिखा था। इस पर भी हल्के से तनाव का माहौल बना, लेकिन बाद में वह सैटल कर लिया गया। चूंकि यह पोस्टर वहां लगे थे, जहां पर रिएक्शन नहीं बल्कि सैम एक्शन आना था।

रामायण कहती है पाप तो पाप है

आखिर पाप तो पाप है न। हम जानते हैं वही राम चरित्र मानस समाज में ब्राह्मणों को अतिश्रेष्ठ बताती है और वही राम चरित्र मानस ब्राह्मण रावण को महापापी बताती है। यानी पाप तो पा है न? कितने ही श्रेष्ठ कोई खास वर्ग, संप्रदाय, टैग, तमगा वाले लोग हों, लेकिन वे अगर अनैतिक करेंगे तो वे पहले अनैतिक ही होंगे न? रावण पापी था, व्याभिचारी था, अत्याचारी था, साथ में विद्वान और जाति से ब्राह्मण भी था। किंतु ब्राह्मण होना उसके लिए महज एक जाति भर था, सजा जाति या किसी खास टैग से होकर नहीं तय हो सकती, वह तो कर्मों से ही होगी।
आसाराम के मामले में भी यही हो रहा है और होना भी चाहिए। यह कोई अन्य संप्रदाय के कहने की न जरूरत है न उनकी नैतिकता ही कहती है कि ऐसा हो। चूंकि यह जोर जोर से उसी संप्रदाय के लोग पहले से ही कहते आए हैं और कह रहे हैं। हर मामलों में। चाहे वह किसी का भी क्यों न हो, बाद में वह पाक साफ भी निकल गए हैं, लेकिन फिर भी जांच, पड़ताल होती रहने दी है।

सही हो रहा है इस मामले में

पाप का तुलनात्मक अध्ययन भी नहीं किया जाता कि आसाराम को इतना सता रहे हैं, जामा मस्जिद के इमाम आराम फरमा रहे हैं। इमाम पर भी कई आरोप लगे हैं, लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकी। यहां तक कि दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट को भी लिखकर दे दिया था, कि वह उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकती। लेकिन यह अल्हदा बात है, एक संप्रदाय के लिए संगठनात्मक तौर से आगे बढऩा जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है कि वह स्वच्छ साफ और अपने लक्ष्य पर केंद्रित हो कर काम करे। आसाराम के मामले में भगवा वालों की छतरी कुछ ऐसा ही कर रही है, लेकिन जरूरत है साफ-साफ खुलकर करने की, कि आसाराम जो भी कहें, करें, व्यक्तिगत सीमा में ही करें, इसे न तो हिंदू रूप दें न संत। न भाजपा, न कांग्रेस न काला न गोरा, न इमाम न निजाम।
- सखाजी
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