राहुल गांधी ने लोगों को भावुक करने के लिए जहां दादी, नाना, पापा के मरने के घिसे पिटे अस्त्र का इस्तेमाल किया, तो वहीं मोदी ने पुराने पड़े औजार को नए सिरे से पजा (धार बनाना) लिया। राहुल कह रहे थे, मेरी दादी मरी, पापा को मार डाला एक दिन मुझे भी मार डालेंगे। इसमें यह कहीं नहीं रिफ्लेक्ट हुआ हर मरने वाले को सत्ता मिलनी चाहिए। फिर कोई कसर रही तो आईएसआई के जरिए साधने के चक्कर में खुद भेद दिए गए।
इसके काउंटर के लिए नरेंद्र मोदी ने जो किया वह सबका था। पहले दिन झांसी की रानी का टच निकाला तो अगली पटना की रैली में सिंकदर को निपटाने वाले बिहारियों का सीना फुला दिया। इतना ही नहीं, बातों ही बातों में किंग मेकर चाणक्य का भी जिक्र कर दिया। यानी बिहार मोदी के लिए बेहद जरूरी है। फिर नीवनतम इतिहास जेपी और बीजेपी का जिक्र भी बड़ी ही सावधानी और आम आदमी से जुडऩे वाले लहजे में किया।
साबित होता है, कि राहुल के लिए प्राग इतिहास मोतीलाल नेहरू हैं, तो आजादी का इतिहास जवाहरलाल नेहरू। देश में प्रगति का इतिहास इंदिरा गांधी हैं, तो तकनीकी विकास का इतिहास राजीव गांधी। देश को, चीत्कार करते हिंदू मुस्लिमों के आपसी टकराव से बचाने वाला इतिहास उनकी पार्टी है। अंत में देश की इतनी दुर्दशा के बावजूद अगर कोई आशा की किरण है, तो वे स्वयं हैं।
यह है राहुल का इतिहासबोध और उसका इस्तेमाल। इसके ठीक उलट, मोदी ने सार्वजनिक सीना फुलाऊ इतिहास को पकड़ा, जकड़ा और इस्तेमाल किया। सिंकदर जो विश्वविजयी था, उसे हराने पर किसका सीना न फूलेगा, चाणक्य जो हिंदुस्तान के स्वर्ण युग के महागुरु हैं, जिनकी सीखें हर कोई अंधा होकर मानता है, उनके बिहारी कनेक्शन से कौन हरजाई होगा, जो रूठेगा। जेपी जैसे आधुनिक समाजवाद के आधुनिक संस्करण पर कौन बिहार का नेता होगा जो न रीझेगा। ये सब वे बातें हैं, जो सबका सीना फुलाती हैं। यह अल्हदा बात है, कि नरेंद्र मोदी का इतिहास टच कोई नया नहीं है, यह 90 के दशक में भाजपाइयों ने खूब यूज किया है। बड़ी लंबी लच्छेदार बातें करके लोगों के सीने फुलाए और उनपर आज तक राज कर रहे हैं। अभी तो मोदी को प्राग इतिहास में जाना बाकी है, जहां से राजा, ऋषि, मुनि, वेद, शा, ग्रंथों से उद्धरण लिए जाते हैं। धार्मिक कथानकों का विज्ञानिक आधार दिया जाता है। जबकि राहुल फिर से कांग्रेसी बलिदान की खोल में घुसते नजर आ सकते हैं, लेकिन यह बहुत पुराना अ और उदाहरण हो चला है, अब कुछ नया करना पड़ेगा। अपने खास होने वाले चोले से बाहर आना एक कलावती के घर में खाने से संभव नहीं हैं, तो वहीं नरेंद्र मोदी ने फिर से रेल के डिब्बे में चाय बेचने की बात कहकर आम लोगों से कनेक्शन स्थापित किया। तो अपनी इमेज के इतर, गुजरात में कच्छ और भरूंच का उदाहरण देते हुए मुसलमानों को भी साधा। गरीबी के नाम धागे से हिंदू मुस्लिमों को बांधने की देश में पहली और नायाब कोशिश भी की। चूंकि अब कोई यूं तो निबंधों से इकट्ठा होगा नहीं, कि हिंदू मुस्लिम भाई-भाई कह दो और सब एक हो जाएं। इसलिए परखा हुआ, जाना, समझा और 100 टका सही तरीका अपनाया।
यहां से मोदी के जरिए हम देश में आ रही सकारात्मक राजनीतिक बयार को भी महसूस कर सकते हैं। चूंकि एक दम से सबकुछ सतयुग जैसा हो जाए, आपस में विरोधी राजनेता कजलियों की तरह एक दूसरे को आप लीजिए वोट आप लीजिए कहने लगे यह मुमकिन नहीं है। इसलिए मोदी ने इक्का दुक्का बातें और विषय वस्तु आम भी रखी। नीतीश पर भी बहुत सख्त या खराब तरीके से नहीं बरसे, सामान्य विरोधी होने के नाते वैचारिक भिन्नता को दिखाया। ये सब कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें हम सकारात्मक सियासत का सूत्रपात कह सकते हैं। साथ ही मोदी का गुड मिक्स ऑफ हिस्ट्री टच कह सकते हैं।
-सखाजी
6 टिप्पणियाँ:
सुन्दर प्रस्तुति।
साझा करने के लिए धन्यवाद।
sahi aaklan kiya hai
रूपचंद जी हमेशा प्रेरित करने के लिए शुक्रिया.
वंदना जी आभारी हूँ
तुषार जी ने कुछ कहा ज़रूर पर हटा लिया ब्लॉग पे आने के लिए धन्यवाद...
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Thanks for your valuable comment.