मैं तो कहीं रहा ही नहीं
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LK Adwani, BJP Sr. Leader
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आडवाणी खांटी सियासतदां हैं, उनका इस्तीफा
पब्लिसिटी या प्रेशर टेक्टिस नहीं हो सकता। देश को भरोसा है कि कोई उनकी
गहरी सियासत रही होगी। सियासत यानी चाल नहीं, अच्छी सियासत। समझ में तो
नहीं आ रही, कि क्या सोच थी। बहरहाल लग यूं ही रहा है कि, यह महज दिखाने की
थी। इससे दो बातें सामने आईं, पहली तो यह कि क्या आडवाणी जी का कद इतना
गिर रहा है पार्टी के भीतर कि उन्हें सार्वजनिक इस प्रपंच का सहारा लेना
पड़ा। प्रपंच इसलिए कि वे मान गए और एनडीए के चेयरमैन का पद नहीं छोड़ा था।
इससे तो यही लगता है कि आडवाणी साहब अभी जो कुछ हैं उससे भी कहीं और
ज्यादा अप्रासंगिक होते, इसलिए ही उन्होंने यह किया। दूसरी बात यह लग रही
है, कि वे सबको संदेश देना चाहते थे कि भाजपा मेरी है। यह मैंने ही बनाई और
चलाई है। पहले अटल ले भागे और अब मोदी। मैं तो कहीं रहा ही नहीं।
खैर जो भी हो, किंतु जो कुछ दिख रहा है, उससे तो आडवाणी साहब को बड़ा
खामियाजा हुआ है। एक तो वे एंटी युवा साबित हुए, दूसरे वे नई पौध को
नेतृत्व न देने वाले विलैन बने, तीसरे वे लोकप्रियता के पैमाने को नकारने
वाले व्यक्तित्व बने, चौथे वे असल हृदय के सम्मान से थोड़े नीचे उतरे,
पांचवे वे मोदी जो कि डैड श्योर पॉवर में आना ही है से भी बुरे हुए। मोदी
से बुरे होने का दावा इसलिए भी सही है, क्योंकि वे यानी उनके समर्थक बाद
में संबंध सुधारने के लिए संघ के दो लोगों से नाराजगी बताते नजर आए।
- सखाजी
4 टिप्पणियाँ:
सार्थक व् सराहनीय पोस्ट . आभार
हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज बृहस्पतिवार के चर्चा मंच पर भी है!
सूचनार्थ!
बहुत शुक्रिया शिक्षा कौशिक जी। Please visit on sakhajee.blogspot.in
क्षमा कीजिए, मैं विलंब से इस पोस्ट कमेंट पर आया। शाी जी, धन्यवाद। sakhajee.blogspot.in
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Thanks for your valuable comment.