प्रिये!
जाने क्यों तुम मुझसे दूर होजाती हो,
बार बार ,
हर बार |
जाने क्यों तनहाइयां घेर लेती हैं मुझे ,
बार बार , हर बार ||
यद्यपि, तनहाइयां -
जीवन की रोमांचक अनुभूतियाँ हैं ;
जो संयोग की एकरसता से ऊबे मन को ,
विप्रलंभ -श्रृंगार रूपी अनल से -
आपलावित करती हैं , और-
जन्म देती हैं-
'मेघदूत' को ||
ये कसौटी हैं,
प्रेम रूपी धार को तेज करने की ;
क्योंकि,
दूरियां, दिलों को करीब लाती हैं ;
और लाती हैं,
इंतज़ार के बाद-
मिलन की अनूठी अनुभूति को ||
फिर भी जब इस वन-प्रांतर में ---
'संध्या-सुन्दरी'
दिवस के अवसान पर हाथ मलती है , तो-
सहसा ख्याल आता ही है, कि-
जाने क्यों तुम मुझसे दूर होजाती हो ,
बार -बार ,
हर बार ||
10 टिप्पणियाँ:
bahut khoobsurat rachna
badhai ho ||
_______________________________
राजनेता - एक परिभाषा अंतस से (^_^)
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति |
आशा
bahut khoob.....badhiya
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
हार्दिक शुभकामनायें !
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच
फिर भी जब इस वन-प्रांतर में ---
'संध्या-सुन्दरी'
दिवस के अवसान पर हाथ मलती है , तो-
सहसा ख्याल आता ही है, कि-
जाने क्यों तुम मुझसे दूर होजाती हो ,
बार -बार ,
हर बार
बहुत ख़ूबसूरत रचना
धन्यवाद...चंद्रभूषण जी,विर्क जी,खेदावत जी व आशा जी ..
--धन्यवाद अना जी व डॉ शरद जी.....आभार...
komal bhavon ki sundar abhivyakti.
फिर भी जब इस वन-प्रांतर में ---
'संध्या-सुन्दरी'
दिवस के अवसान पर हाथ मलती है , तो-
सहसा ख्याल आता ही है, कि-
जाने क्यों तुम मुझसे दूर होजाती हो ,
बार -बार ,
हर बार
संध्या को दिवस के अवसान के साथ अवसाद कुछ ज्यादा होता प्रतीत जो होता है ।
बहुत सुंदर रचना ।
धन्यवाद --सुरेन्द्र जी
व आशाजी ...सत्य बचन...
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