आज उत्तर प्रदेश में धर्म का राज है .ऐसे में सरकार द्वारा मंदिरों को पुनरुद्धार के लिए अनुदान दिया जा रहा है .फलस्वरूप मंदिरों को लेकर राजनीति और छीना-झपटी का समय चल रहा है .जैसे भी हो ,मंदिरों में कब्जे के लिए हिंदुओं का एक विशेष वर्ग काफी हाथ-पैर मार रहा है .साथ ही एक और षड्यंत्र उस विशेष वर्ग ने किया है और वह है मंदिरों में अपने पूर्वजों के स्थान स्थापित कर मंदिरों पर अपने कब्जे दिखाने की ओर , उस पर तुर्रा ये कि इस तरह मंदिरों में भक्तों का आवागमन बढ़ेगा , मतलब ये कि अब भगवान् के दर्शन के लिए भी भक्तों को बहाने चाहिए और इसके लिए वे अपने घर के कुंवारे मृत पूर्वजों की अस्थियों की राख को मंदिर की जमीन में दबायेंगे ,उनकी जयंती ,बरसी या श्राद्ध में उन्हें श्रृद्धासुमन अर्पित करने आएंगे और तब थोड़ा समय निकालकर भगवान् के दर्शन कर उन्हें भी कृतार्थ कर देंगे और ये पूर्वजों के स्थान भी ओरिजिनल रूप से नहीं वरन अपनी उन जमीनों से स्थानांतरित कर ,जिन्हें अपने क्षेत्र को छोड़कर जाने के लिए बेचकर नोट कमाने हैं और जो वर्षों पहले खेतों की मिट्टी में दबकर भूमि में समाहित हो चुके हैं , से मंदिर में लाये जायेंगे .
पवित्र पुण्य धाम हरिद्वार [उत्तराखंड] के निवासी पंडित सत्यनारायण जी के अनुसार मंदिरों में पूर्वजों के स्थान स्थापित करना उन्हें श्मशान बना देना है और अगर हम वास्तु शास्त्र का अध्ययन करते हैं तो उसमें साफ लिखा है कि मंदिर के शीर्ष पर स्थापित कलश और ध्वजा जहाँ तक दिखाई देती है वह सब क्षेत्र मंदिर की परिधि में आता है और यदि हम मंदिर तक नहीं भी पहुँच सकते हैं किंतु मंदिर के कलश और ध्वजा का बहुत दूर से भी दर्शन कर प्रभु को नमस्कार करते हैं तब भी प्रभु दर्शन का पुण्यफल हमें प्राप्त होता है .मंदिर के कलश ध्वजा दिखाई देने की यह परिधि एक धर्मक्षेत्र होता है ,जिसमे कोई भी धर्मविरुद्ध कार्य करना घोर पाप की श्रेणी में आता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि उस क्षेत्र में परमात्मा का प्रभा मंडल अधिक सक्रिय रूप में उपस्थित होता है.
आप अगर वास्तुशास्त्र का अध्ययन करते हैं तो आप पाएंगे कि घर के मंदिर तक में पूर्वजों की तस्वीर तक रखना मंदिर में नकारात्मक ऊर्जा को प्रविष्ट करता है ,ऐसा कहा गया है ,जबकि घर के मंदिर में तो भगवान् की प्राण-प्रतिष्ठा भी नहीं की जाती ,फिर क्यों इस तथ्य पर विचार नहीं किया जा रहा है कि जहां हमने भगवान को प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापित किया है, हम वहां उनके बराबर में मृत शरीरों की अस्थियों की राख को दबाकर उन्हें क्यूँ असहज कर रहे हैं, क्यूँ वहां नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश द्वार खोल रहे हैं, क्यूँ मन्दिर को श्मशान बना रहे हैं?
ऐसे में, सम्मानीय योगी आदित्यनाथ जी से विनम्र निवेदन है कि धर्म के राज में अधर्म न होने दें और मन्दिरों की पवित्र भूमि पर पूर्वजों के स्थान स्थापित किए जाने पर रोक लगाने के लिए कानून लाने की कृपा करें और जिन परिवारों ने मंदिरों में अपने पूर्वजों के स्थान दबंगई दिखाकर स्थापित कर लिए हैं उन्हें निश्चित समय में हटाने के लिए सरकार द्वारा नोटिस जारी किए जाएं क्योंकि ये पितृ स्थान स्थानीय मान्यताओं के अनुसार परिवारों द्वारा अपनी निजी भूमि में बनाए जाते हैं और ये व्यक्तिगत आस्था का विषय हैं इस तरह से मंदिरों की सार्वजनिक भूमि में इनका स्थापित किया जाना इन्हें जनसाधारण की पूजा का पात्र बना देता है जिसका बाद में पता चलने पर जिनके ये पितृ स्थान होते हैं और जो अनदेखी या अज्ञानता मे इन्हें पूजते हैं दोनों पक्षों के मध्य में घोर रोष की वज़ह बन जाता है. इसलिए मंदिरों में परिवारों के पितृ स्थानों पर रोक लगनी चाहिए साथ ही जो मन्दिर की देखरेख करने वाले या मन्दिर के ट्रस्ट या कमेटी के लोग ऐसी अनाधिकृत चेष्टा करते हैं उन्हें दण्डित भी किया जाना चाहिए.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
अध्यक्ष
मंदिर महादेव मारूफ शिवाला
कांधला धर्मार्थ ट्रस्ट (रजिस्टर्ड)
7 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2022) को चर्चा मंच "कटुक वचन मत बोलना" (चर्चा अंक-4385) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चिंतनीय।
Thanks both of you 🙏🙏
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
Thanks 🙏🙏
बेहद गंभीर और चिंतनपरक विषय है इस पर रोक लगना ही चाहिए
समर्थन हेतु आभार कामिनी जी 🙏🙏
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Thanks for your valuable comment.