मेरे साये ने कल मुझसे कहा
किसको खोजता फिरता है तू
इधर उधर
मैं तो तेरे साथ हूँ
यहाँ कोई नही है तेरा
बाहर अपना कोई नही
जो तुझे समझ सके
फिर क्यूँ ढूंढता फिरता है
तू इन परायों में अपनों को
जब मैं तो तेरे साथ हूँ
यहाँ जीवन दो दिन का मेला है
कोई न किसी का साथी है
इस परायी बस्ती में
सिर्फ़ अपना ही मिलता नही
जो है तेरा अपना
उसको तू अपनाता नही
जो है तेरे साथ हर पल
उसको तू पहचानता नही
क्या कभी कोई अपने
साये से जुदा हो पाया है
फिर क्यूँ तू
अपने साये को पुकारता नही
यहाँ सब छोड़ जायेंगे
कोई न साथ निभाएगा
एक तेरा साया ही
सिर्फ़ तेरे साथ जाएगा
फिर क्यूँ किसी को खोजता है
मैं तो तेरे साथ हूँ
किसको खोजता फिरता है तू
इधर उधर
मैं तो तेरे साथ हूँ
यहाँ कोई नही है तेरा
बाहर अपना कोई नही
जो तुझे समझ सके
फिर क्यूँ ढूंढता फिरता है
तू इन परायों में अपनों को
जब मैं तो तेरे साथ हूँ
यहाँ जीवन दो दिन का मेला है
कोई न किसी का साथी है
इस परायी बस्ती में
सिर्फ़ अपना ही मिलता नही
जो है तेरा अपना
उसको तू अपनाता नही
जो है तेरे साथ हर पल
उसको तू पहचानता नही
क्या कभी कोई अपने
साये से जुदा हो पाया है
फिर क्यूँ तू
अपने साये को पुकारता नही
यहाँ सब छोड़ जायेंगे
कोई न साथ निभाएगा
एक तेरा साया ही
सिर्फ़ तेरे साथ जाएगा
फिर क्यूँ किसी को खोजता है
मैं तो तेरे साथ हूँ
5 टिप्पणियाँ:
कहते हैं न कि अँधेरे में साया भी साथ छोड़ देता है, उसके भुलावे में मत आना. अकेले आये हैं और अकेले ही जाना है. मुट्ठी बाँध कर आये थे लेकिन खाली हाथ जाना है.
बेहतरीन प्रस्तुति ।
Rekha ji ki baat se purntah sahmat hun
sach ka byan karti kvita
--- sahityasurbhi.blogspot.com
अच्छी रचना।
अच्छे भाव।
पर साया भी साथ छोड देता है अंधेरे में।
रेखा की जी की बात से पूरी तरह सहमत।
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Thanks for your valuable comment.