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लोक अदालत का आज की न्याय व्यवस्था में स्थान

Written By Shalini kaushik on रविवार, 19 मार्च 2023 | 9:09 am



 राजस्थान हाइकोर्ट द्वारा अपने निर्णय 

 "श्याम बच्चन बनाम राजस्थान राज्य एस.बी. आपराधिक रिट याचिका नंबर 365/2023" में यह स्पष्ट किया गया है कि लोक अदालतों के फैसले पक्षकारों की आपसी सहमति पर ही दिए जा सकते हैं. 

    राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायनिर्णय शक्ति नहीं है और केवल पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर अवार्ड दे सकती है।

अदालत के सामने यह सवाल उठाया गया कि क्या विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अध्याय VI के तहत लोक अदालतों के पास न्यायिक शक्ति है या केवल पक्षकारों के बीच आम सहमति पर निर्णय पारित करने की आवश्यकता है।

अदालत ने कहा,

"उपर्युक्त प्रावधानों का एकमात्र अवलोकन यह स्पष्ट करता है कि जब न्यायालय के समक्ष लंबित मामला (जैसा कि वर्तमान मामले में) को लोक अदालत में भेजा जाता है तो उसके पक्षकारों को संदर्भ के लिए सहमत होना चाहिए। यदि कोई एक पक्ष केवल इस तरह के संदर्भ के लिए न्यायालय में आवेदन करता है तो दूसरे पक्ष के पास न्यायालय द्वारा निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पहले से ही सुनवाई का अवसर होना चाहिए कि मामला लोक अदालत में भेजने के लिए उपयुक्त है।

पक्षकारों के बीच समझौता होने पर ही अधिनिर्णय दिया जा सकता है और यदि पक्षकार किसी समझौते पर नहीं पहुंचते हैं तो लोक अदालत अधिनियम की धारा 20 की उप-धारा (6) के तहत मामले को न्यायालय के समक्ष वापस भेजने के लिए बाध्य है।"

इस प्रकार यह माना जा सकता है कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायिक शक्ति नहीं है किन्तु जो शक्ति लोक अदालत अपने पास रखती है वह बेहद महत्वपूर्ण है. पक्षकारों की आपसी सहमति पर आधारित लोक अदालतों के निर्णय एक डिक्री की तरह होते हैं और यही कारण है कि लोक अदालतों के निर्णय के खिलाफ कोई अपील किसी भी अन्य न्यायालय में पेश नहीं की जा सकती है. 

    उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण निःशुल्क कानूनी सहायता के क्षेत्र में प्रयासरत है.  लोक अदालतों को निःशुल्क कानूनी सहायता का एक बहुत ही सशक्त माध्यम कहा जा सकता है. जिसमें अदालतों द्वारा विवादग्रस्त मामलों को पक्षकारों की आपसी सहमति से निबटा कर मुकदमों के बोझ को तो हल्का किया ही जा रहा है साथ ही, पक्षकारों पर न्याय प्राप्ति के लिए महंगी पड़ रही न्याय व्यवस्था को भी सस्ता करने का प्रयास किया जा रहा है. अदालतों में लम्बित मुकदमों की भरमार को देखते हुए लोक अदालतों की संख्या में बढ़ोतरी की जा रही है और उनमें न केवल पहले से ही दायर मुकदमे वरन ऐसे सभी विवाद भी जो अभी न्यायालय के समक्ष नहीं आए हैं, प्री लिटिगेशन के आधार पर निबटाने के प्रयास जारी हैं और इसी को देखते हुए विशेष लोक अदालतों का आयोजन भी किया जा रहा है जिनमे चेक बाउंस, बैंक वसूली, नगरपालिका के संपत्ति कर आदि मामले निबटाये जा रहे हैं. 

प्रस्तुति

शालिनी कौशिक 

         एडवोकेट

रिसोर्स पर्सन 

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण 

शामली 


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