जब जब तुम्हारी आत्मा तक जाना चाहा है
तुम्हारा शरीर मिला है
एक रूकावट की तरह
एक रास्ते की तरह
उससे उलझा हूँ जब जब
उलझ ही गया हूँ बस
उस पर चला हूँ जब जब
चलता ही गया हूँ बस
तुम्हारा शरीर मिला है
एक रूकावट की तरह
एक रास्ते की तरह
उससे उलझा हूँ जब जब
उलझ ही गया हूँ बस
उस पर चला हूँ जब जब
चलता ही गया हूँ बस
शरीर, आत्मा, मैं और तुम
एक दूसरे की ओर चलते रहे
और बढ़ते रहे फासले
हर कदम के साथ
कितना अजब सफ़र है
कितने अजब मुसाफिर
और कितनी अजब राह है न ये
कितने अजब मुसाफिर
और कितनी अजब राह है न ये
--अनुराग
अनंत
1 टिप्पणियाँ:
सुंदर प्रस्तुति
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