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मज़दूर

Written By Bisari Raahein on रविवार, 1 मई 2016 | 8:36 am

“ मजदूर ”
सर्द हवाओं का नहीं रहता 
खौफ मुझे 
और ना ही मुझे कोई 
गर्म लू सताती है 

आंधी, वर्षा और धूप का
 मुझे डर नहीं 
मुझे तो बस ये पेट की
 आग डराती है 

उठाते होओगे तुम 
आनंद जिन्दगी के
यहां तो जवानी 
अपना खून सूखाती है 

खून पसीना बहा कर भी 
फ़िक्र रोटी की 
टिड्डियों की फौज 
यहां मौज उड़ाती है 

पसीना सूखने से पहले 
हक़ की बात ?
हक़ मांगने पर मेहनत 
खून बहाती है 

रखे होंगे इंसानों ने 
नाम अच्छे – अच्छे 
मुझे तो “कायत” 
दुनिया मजदूर बुलाती है  
                      :- कृष्ण कायत
http://krishan-kayat.blogspot.com
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1 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-05-2016) को "हक़ मांग मजूरा" (चर्चा अंक-2330) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्रमिक दिवस की
शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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