कांटे फूल सदा ही संगी
-----------------------------
मेरा मन भी भ्रमित बहुत है
गिरगिट जैसा रंग बदलता
स्वागत को जब फूल बहुत हैं
कैक्टस फूल उगाऊं कहता
-------------------------------
घर आंगन फुलवारी प्यारी
खुशियों से आह्लादित सारी
और लालसा की चाहत में
बढ़ता जाऊं कंटक पथ में
------------------------------
सीधी सादी भोली भाली
' तुलसी आंगन की दिवाली
कौन लगा घुन मन में मेरे
ना भाए कुछ ' दर्द ' सिवा रे !
_____________________
बहुत लोग हैं मेरे जैसे
खुशियों का जो दंश हैं झेले,
भांति भांति के कांटे चुनते
' कैक्टस की दीवार बनाते
----------------------------------
सीमित साधन या हो मरूथल,
वीराने भी सजता कैक्टस,
धैर्य और साहस का परिचय,
कांटों फूल सजाता कैक्टस
--------------------------------
मेहनत कांटों की शैय्या चल,
प्यारे फूल हैं लगते मनहर,
जीवन की पगडंडी ऐसी,
कांटे - फूल सदा ही संगी
__________________
बुरा नहीं कांटा भी यारों
कांटे से कांटे को निकालो
घर अंगना जो न मन भाए
सीमा पर आ बाड़ लगाएं
_________________
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़,
उत्तर प्रदेश, भारत
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.