आश्चर्य है कि व्यापारी वर्ग सरकार से स्वयं के लिए विधान परिषद की सीट मांग सकता है, सांसद, विधायक की तरह वीआईपी का दर्जा मांग सकता है, हर शहर में एक चौक का नाम व्यापार शक्ति चौक करने की मांग कर सकता है और विद्धान कहे जाने वाले और देश की आजादी से लेकर आज तक देश को सर्वोत्कृष्ट विकास की राह पर पहुंचाने वाले अधिवक्ताओं का समुदाय अपने वर्चस्व और सम्मान को लेकर खामोशी अख्तियार कर रहा है. अब आए दिन वकीलों की हड़ताल को रोकने को लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा नई से नई कार्यवाहियों की तैयारियां की जा रही हैं और इस पर भी बीसीआई खामोश रहता है. कोविड-19 के ख़तरनाक दौर में अधिवक्ताओं के आर्थिक सहयोग हेतु कोई मांग नहीं रखता है और वह भी उस स्थिति में जब अधिवक्ता वक़ालत के अलावा कोई अन्य व्यवसाय कर ही नहीं सकते. क्यूँ आज का अधिवक्ता समुदाय खामोश हो गया है? क्या आज वकीलों ने सरकार के इस तानाशाही रवैये को अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया है. इस पर माननीय बीसीआई द्वारा विचार किया जाना जरूरी है और वकीलों का मनोबल ऊंचा करने और सम्मान कायम रखने के लिए देश स्तरीय सम्मेलन और आंदोलन की राह पर आगे बढ़ना जरूरी है. क्योंकि
"तू अगर चाहे झुकेगा आसमां भी सामने,
दुनिया तेरे आगे झुककर सलाम करेगी ।
जो आज न पहचान सके तेरी काबिलियत
कल उनकी पीढ़ियां तक इस्तकबाल करेंगी."
शालिनी कौशिक एडवोकेट
कैराना
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