*लघुत्तम विचारौषधि*
*कामनाएं*
कामनाओं में जीकर जीवन नष्ट हो रहा है। अपेक्षाओं की पूर्ति में सारी रहा विनष्ट हो रही है। इच्छाओं में लिप्तता से पल-पल सूखे पत्तों से झड़ रहे हैं। किंकर्तव्यविमूढ़ से हम भटक रहे हैं। ऐसे भीषण जंगल में जहां, विभिन्न कामनाओं, वासनाओं की धुंध है। ऐसे में निर्लिप्त होना कैसे संभव है।
*@बरुण सखाजी*
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06/06/22
©️
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