"वक़्त करता है परवरिश बरसों
हादिसा एक दम नहीं होता"
सभी जानते हैं कि हादसे एक दम जन्म नहीं लेते, एक लम्बे समय से परिस्थितियों के प्रति बरती गई लापरवाही हादसों की पैदाइश का मुख्य कारण होती है. भले ही अवैध रूप से चलाई जा रही पटाखा फैक्ट्री के हादसे हों या सड़कों में बनते जा रहे गड्ढों के कारण इ-रिक्शा पलटने के हादसे, बन्दरों के हमलों के कारण घरों में छोटी मोटी चोट लगने के हादसे, सब चलते रहते हैं और आम जनता से लेकर प्रशासन तक सभी इन्हें " बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले" कहकर टालते रहते हैं, क़दम उठाए जाते हैं तब जब पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट के कारण दो - तीन गरीब महिला या कामगार बच्चे के शरीर के चीथड़े उड़ जाते हैं, जब इ-रिक्शा पलटने से स्कूल जाती हुई बच्ची की लाश उसके घर पहुंचाई जाती है, जब बन्दरों के हमले के कारण मन्दिर से घर आई सुषमा चौहान को असमय काल का ग्रास बनना पड़ता है.
क्यूँ नहीं विचार किया जाता इन परिस्थितियों पर इनके हादसे में तब्दील होने से पहले, प्रशासन की, सरकारी विभागों की तो छोड़िए वे तो तब ध्यान देंगे जब ऊपर से इन परिस्थितियों के राजनीतिक लाभ लेने के लिए कार्रवाई किए जाने के आदेश होंगे किन्तु बड़ा सवाल यह है कि भुक्त भोगी तो हम "आम जनता" अर्थात "हम भारत के लोग" होते हैं, हम ध्यान क्यूँ नहीं देते?
बच्चों के साथ होने वाले हादसे रोज अखबारों की सुर्खियों में हैं. कितने ही बच्चे गायब हो रहे हैं, कितने ही बच्चों को दुष्ट लोगों के द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया जा रहा है. कल ही बागपत में 112 पुलिस वाहन द्वारा दो बच्चों को टक्कर मारने का मामला पब्लिक ऐप पर छाया हुआ है. कस्बा कांधला के मोहल्ला सरावज्ञान में सीता चौक पर एक चौहान डेयरी की दुकान है जहां पिछले कुछ समय से शाम को 3-4 साल से 8-10 साल तक के बच्चों की दूध की बर्नी हाथ में लिए दौड़ भाग किए जाने की भरमार रहती है. बच्चों की लड़ाई होती है, मार पीट भी होती है जिसे बहुत सी बार आने जाने वाले लोगों द्वारा डांट फटकार कर रोका जाता है. आश्चर्यजनक बात यह है कि इतने छोटे बच्चों को रात के अंधेरे में दूध लेने के लिए घर से भेज दिया जाता है और कितना ही अंधेरा हो जाए, किसी का भी कोई ध्यान भी इस ओर नहीं जाता. जो बच्चे खुद को भी ठीक तरह से नहीं सम्भाल सकते उन्हें अंधेरे रास्तों पर दूध दुकान से लेने और घर तक आने के लिए अंधेरी गलियों में दूध भरा हुआ बर्तन लाने की जिम्मेदारी दे दी गई है और कहीं कोई चिंता नहीं, कोई परवाह नहीं, साथ में किसी भी बड़े का कोई संरक्षण नहीं, क्या गारन्टी है कि आज सब कुछ ठीक है तो कल भी सब ठीक रहेगा. दुकान पर आने वाले बड़ी उम्र के किसी भी आदमी औरत को इन बच्चों की सहायता करते हुए नहीं देखा जाता, कोई नहीं कहता कि बेटा /बेटी पहले तुम ले लो. पहले शाम 7 बजे और अब शाम 6 बजे खुलने वाली दूध की दुकान पर इन बच्चों को दूध तब मिलता है जब बड़ी उम्र के ग्राहक दूध लेकर निकल चुके होते हैं और तब तक छोटे छोटे बच्चे अंधेरे में खेलते रहते हैं, लड़ते रहते हैं और कभी कभी चोट खाते रहते हैं. पर किसी का कोई ध्यान नहीं जबकि अभी 7 नवम्बर 2022 से कांधला के ही एक मोहल्ले का 15 साल का लड़का गायब है, पहले भी लगभग 2 साल पहले एक 7-8 साल की लड़की गायब हो चुकी है जिसका आज तक कोई पता नहीं चल पाया है. क्यूँ नहीं विचार करते हम इन सभी खतरों पर, एक आध दिन की मजबूरी अलग बात है कि भेजना पड़ जाए बच्चे को, किन्तु रोज रोज के लिए ऐसा करना गलत लोगों के गलत इरादों को शह देना है. ये सोचना कि आज कुछ नहीं हुआ तो कल भी नहीं होगा, बेवकूफ़ी है.
ऐसे में, न केवल प्रशासन बल्कि बच्चों के माता पिता और संरक्षकों को जागरूक होकर ध्यान देना होगा क्योंकि बच्चे तो भोले होते हैं उनके साथ कोई भी हादसा अगर होता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वतः ही बड़े पर आ जाएगी. इसलिए बडों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस ओर ध्यान देना ही होगा और बच्चों की कम उम्र को देखते हुए उन्हें इस तरह स्वतंत्र रूप से जिम्मेदारी भरे कार्य में न डाला जाए बल्कि सुरक्षित अह्सास प्रदान कर सही गलत की समझ विकसित कर ही कार्य सौंपा जाए और तब सही तरीके में बाल दिवस मनाया जाए. सभी बालक - बालिकाओं को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
2 टिप्पणियाँ:
Thanks कामिनी जी 🙏🙏
चिंतन परक सार्थक लेख।
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Thanks for your valuable comment.