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रामलीला मैंदान में रावण दहन

Written By हरीश भट्ट on गुरुवार, 25 अगस्त 2011 | 4:30 pm


धधक रहा मनस पटल धधक रहा ये ज्वार हैं
सूत्रपात हैं रक्त क्रांति का भभक रहा विचार हैं
लोटने लगे हैं काल सर्प, छातियों पे द्रोहियों के
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं

कदम कदम हैं चल रहे नवीन स्वर हैं मिल रहे
लोकपथ पे क्रांति के.. असंख्य चिराग जल रहे
आंधियां रुकेंगी क्या. मिटाए मिट सकेंगी क्या
नहीं ये भीड़ तमाशाइ की,.. स्पष्ट जनाधार हैं
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं

दो दो हाथ कर जरा, कर न तू भी बात कर जरा
ढहती इस दीवार पर जम के तूभी लात धर जरा
वक्त हैं यही संभल, क्रूर विषधरों के फन कुचल
हैं तू ही सुर्ख़ियों में पत्र की, तेरा ही समाचार हैं
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं

उठा धनुष उठा खड्ग न दिग्भ्रमित हो वार कर
सशश्त्र लोकपाल से..... सुसज्ज हो संहार कर
यही समय हैं रक्त मांगती..खड़ी कपाल मर्दनी
घृणित ग्रसित व्यवस्था पर ये. आखरी प्रहार हैं
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं

मिट न पायेगा तिमिर अगर जो सूर्य ढल गया
फिर न हाथ आएगा. अगर समय जो टल गया
संयुक्त हो प्रबुद्ध हो तू.... आज मरण युद्ध को
तप्त दिन गुजर गया निशा के बचे प्रहर चार हैं
छुपा रहा मलीन मुख, खड़ा स्तब्ध भ्रष्टाचार हैं
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1 टिप्पणियाँ:

नीरज द्विवेदी ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्दों में बहुत ही सच्ची और अच्छी बात कही आपने.

My Blog: Life is Just A Life
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