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ब्लोगर्स डाइरेक्ट्री

Written By तरूण जोशी " नारद" on शनिवार, 31 दिसंबर 2011 | 9:32 am


आगामी नव वर्ष २०१२ की हार्दिक बधाइयां
तरुण जोशी नारद


इस नव वर्ष के अवसर पर मेरी इच्छा हुई की एक ब्लोगर्स डाइरेक्ट्री का प्रकाशन का प्रयास किया जाए.
जिसमे ब्लॉगर का नाम पता फ़ोन नंबर, ब्लॉग पता जीवन परिचय, फोटो प्रकाशित किया जाये, साथ में कुछ विशेष ब्लोगरों के साक्षात्कार के साथ उनकी विशेष कृतियां

इस हेतु आप सभी से अनुरोध है की मेरा सहयोग करें और उक्त जानकारिय मुझे भेजने का कष्ट करें

नाम
पता
टेलीफोन नम्बर
ई मेल पता
ब्लॉग पता

जीवन परिचय
कृतिया


कृपया ये सूचनाये मुझे मेल से  blogger@naradnetwork.in or 
bloggerdirectory@naradnetwork.in पर या मुझे भेजे मेरे पते पर 
तरुण जोशी नारद
पंचायत समिति के पीछे 
केनपुरा रोड 
रानी (पाली) ३०६११५
mobile  8946890812
 
आपके सुझाव भी आमंत्रित है 
कृपया इस पोस्ट को और सुचना को आगे से आगे प्रेषित करते रहे.



नया साल अच्छा होगा !!

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011 | 6:41 pm



हरियाली हो
 वर्षा होगी
लहराएगी खेती 
पेट भरेगा छत भी होगी
शेर -भेंड एक घाट पियेंगे पानी 
मन मयूर भी नाच उठेगा 
नया साल अच्छा होगा !!
आशु-आशा पढ़े लिखें 
रोजगार भी पाएंगे 
आशा की आशा सच होगी
सास –बहू- माँ बेटी होगी
मन कुसुम सदा मुस्काएगा  
नया साल अच्छा होगा !!
रिश्ते नाते गंगा जल से
पूत-सपूत नया रचते
बापू-माँ के सपने सजते
ज्ञान ध्यान विज्ञानं बढेगा
मन परचम लहराएगा
नया साल अच्छा होगा !!
खून के छींटे कहीं न हो
रावन होली जल जायेगा
घी के दीपक डगर नगर में
राम -राज्य फिर आएगा
मन -सागर में ज्वर उठेगा
नया साल अच्छा होगा !!


सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
30.12.2011
6.35 P.M., U.P.

दर्द-ए-आवाज़

दर्द-ए-आवाज़, बयान कर दिया,
किसी का नगमा था, अपना कर लिया,


---- बेतखल्लुस 


This is real Kolaveri di

 

आसमान पर थूकने वाले लोगों का थूक उनके मुंह पर ही आन गिरा ...बेईमान सांसदों को जनता से धोखे के लियें दंड कोन देगा ..अन्ना अपने आस्तीन के साँपों को मारे


संसद के अंदर और संसद के बाहर अन्ना की आलोचना करने वाले सत्ताधारी लोगों के चेहरे पर कल लोकपाल के बहुत का जो तमाचा पढ़ा है उससे वोह सभी हमेशां के लियें लडखडा गए हैं और अब उनका राजनीति में सम्भाल पाना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन लग रहा है जो गलती अन्ना के खिलाफ सत्ता पक्ष ने की वही गलती अन्ना ने आखरी लम्हों में कुछ अपनों के हाथों गुमराह होकर सत्ता के खिलाफ घुटने टेक कर की लेकिन फिर भी अन्ना तो हीरो थे और हार कर भी हीरो बन कर उभरे है सरकार के पास तो अब सम्भलने का वक्त नहीं लेकिन अन्ना के पास अभी सम्भलने का बहुत वक्त है अगर वोह ज़िम्मेदारी से सम्भले तो एक बार फिर वोह २०१२ के जनता हीरो साबित होंगे .......... दोस्तों आप सभी जानते है के देश में लोकपाल के नाम पर कोंग्रेस हो चाहे भाजपा हो सभी दलों ने नोटंकी की है और खासकर कोंग्रेस और सहयोगी दलों की नोटंकी तो देश को कभी माफ़ नहीं करना चाहिए .सब जानते हैं के अन्ना के आन्दोलन के बाद कथित ठंडे बसते में पढ़े लोकपाल बिल से धूल छंटी कमजोर लोकपाल बिल को और कमजोर बनाया गया अन्ना और समर्थकों ने वकीलों ने इसका जब विरोध किया तो कोंग्रेस और समर्थित दलों ने सभी का मजाक उढ़ाया ..अन्ना और समर्थकों को डराया धमकाया और यहाँ तक के उन पर हमले करवाने की साजिशें तक रचीं अन्ना के खिलाफ जनता को भडकाया गया उनकी टीम में फुट डाली गयी और आखिर आखरी लम्हों में जब लोकसभा में लंगडा और कमजोर लोकपाल बिल पेश हुआ तो अन्ना ने हुनकर भरी लेकिन उन्हें उनके समर्थकों ने कोंग्रेस से इन्टरनल पेक्ट कर दिल्ली से महाराष्ट्र भेज दिया उनकी दलील थी दिल्ली में ठंड है अन्ना नहीं माने तो अन्ना को समझाया गया के आपका और आपके लोकपाल का शिवसेना खुला विरोध कर रही है इसलियें अगर महाराष्ट्र मुंबई शिवसेना के गढ़ में यह अनशन होगा तो देश देखेगा और सरकार पर दबाव बढ़ेगा लेकिन सब बेकार लोकसभा में बिल पेश हुआ अन्ना अनशन पर बेठे बीमार हुए भीड़ जमा नहीं हुई और लोकसभा में कोग्न्रेस के सांसदों के नहीं पहुंचने पर भी यह बिल सपा और बसपा के सांसदों के वाक् आउट के बाद पारित कर दिया गया अन्ना घबरा गये उनके समर्थक जो पहले से ही कोंग्रेस से मेच फिक्सिंग कर चुके थे फिर अन्ना को अनशन तोड़ने और जेल भरो आन्दोलन खत्म करने का एलान करवाने में कामयाब हुए बस यहीं अन्ना से चुक हो गयी उन्होंने अपने आस्तीन में पलने वाले साँपों को नहीं पहचाना और वोह खुद जो शेर कहलाते थे सरकार के सामने मेमने से नज़र आने लगे निराश हताश अन्ना घबरा गये थे लेकिन कहते हैं के जनहित में लोकहित में इश्वर खुदा अल्लाह का नाम लेकर अगर कोई काम किया जाए तो गेब से उसमे खुदा मदद करता है यहाँ भी यही सब हुआ ..हरे थके अन्ना रालेगन पहुंच कर हताशा और निराशा के दोर में थे वोह असमंजस में चल रहे थे लेकिन अचानक कोंग्रेस और सत्ता पक्ष का सुख भोग रहे साथी दलों के दिल और दिमाग में खुदा आने कोंग्रेस को पांच राज्यों के चुनाव की राजनीती के तहत पटखनी देने की बात डाल दी ...दोस्तों कितनी अजीब बात है के जो तुन मूल ..जो राष्ट्रीय जनता दल ..जो सपा जो भाजपा इस सरकारी लोकपाल को लोकसभा में पारित करवाने में मदद गार थे वही लोग सोदेबाज़ी फेल हो जाने पर राज्यसभा में बदल गये एक ही दल का लोकसभा और राज्यसभा में अलग अलग चेहरे नज़र आया तुन्मुल और लालू दल सरकार के और लोकपाल के खिलाफ सरकार का ब्लड प्रेशर हाई था दिन भर सभी कोंग्रेसी नेताओं का ब्लड प्रेशर बढ़ा रहा और खुद कोंग्रेस अपने ही आस्तीन में पलने वाले साँपों के हाथों ढ्सी गयी करोड़ों करोड़ रूपये इस बिल के पारित होने में सांसदों के भत्तों पर खर्च हुए अन्ना के आन्दोलन में खर्च हुए और नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात ...जरा सोचो अगर अन्ना का अनशन जारी रहता अगर जेल भरो आन्दोलन की तय्यारी रहती तो आज अन्ना को जो लोग रणछोड़ दास मेच फिक्सिंग का आरोपी समझ रहे है वोह नहीं समझा जाता .खेर कहावत है के आसमान पर थूकने वाले का थूक उसी के मुंह पर आकर गिरता है और सत्ता पक्ष उनके समर्थित दलों का थूक उन्हीं के मुंह पर आन गिरा लालू ने बिहार में कोंग्रेस के कारण अपनी हर का बदला ले लिया तो बसपा और सपा ने एक बार फिर उत्तरप्रदेश में अपनी रणनीति पक्की कर ली ...नुकसान हुआ तो कोंग्रेस को और अन्ना की छवि को कोंग्रेस के पास तो अब सम्भलने का वक्त नहीं है लेकिन अन्ना के पास अभी वक्त ही वक्त है अन्ना को अब फिर एक बार खुद की टीम का शुद्धिकरण करना होगा आस्तीन के साँपों को खत्म करना होगा और फिर जो कहा है वोह करके दिखने के लियें आगामी चुनावों में लोकपाल के मामले में सभी राजनितिक दलों को पटखनी देने के लीयें साफ छवि वाले निर्दलीय प्र्त्याक्षियो को आगामी चुनाव में खड़ा कर जरा कुछ ऐसा कर दिखाना होगा के देश को पता लग जाये के यहाँ लोकतंत्र है यहाँ संसद में जीत कर जाने वाले लोग गुंडा गर्दी के बल पर अगर जनता की भावनाओं को नज़र अंदाज़ कर मनमानी करना चाहते हैं तो जनता उन्हें सबक सिखाना चाहती है हमे बताना होगा के यह मेरा भारत महान है यहाँ जनता जनार्दन थी ..जनार्दन है और जनार्दन रहेगी जय भारत जय जवान जय किसान जय हिंदुस्तान ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

साहित्य सुरभि: अग़ज़ल - 31

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on गुरुवार, 29 दिसंबर 2011 | 8:03 pm

साहित्य सुरभि: अग़ज़ल - 31: ऐसे लगता है जैसे यह जिन्दगी देवदासी है बाँट दी हैं सब खुशियाँ, मेरे पास सिर्फ उदासी है । बड़े अरमानों से देखा था तेरी ...

नए साल की मुबारकबाद 2012

आप सभी को नए साल २०१२ की मुबारकबाद .
मालिक हम सबको हर मुसीबत से बचाए और हरेक नेकी का रास्ता दिखाए ताकि हमारा अंजाम अच्छा हो.
आमीन .

अब कुछ अच्छे संदेसे

Something in your smile which speaks to me,
Something in your voice which sings to me,
Something in your eyes which says to me,
That you are the dearest to me.
“Happy New Year”


Another day, another month, another year.
Another smile, another tear, another winter.
A summer too, But there will never be another you!
Wishing a very HAPPY N BLESSED New Year to You!!


We will open the new book.
Its pages are blank.
We are going to put words on them ourselves.
The book is called Opportunity
and
its first chapter is New Year's Day.


When the mid-nite bell rings tonight..
Let it signify new and better things for you,
Let it signify a realisation of all things you wish for,
Wishing you a very...very...very prosperous new year.


Like birds, let us, leave behind what we don’t need to carry…
GRUDGES, SADNESS, PAIN, FEAR and REGRETS.
Life is beautiful.. Enjoy it.
HAPPY NEW YEAR


Beauty..
Freshness..
Dreams..
Truth..
Imagination..
Feeling..
Faith..
Trust..
This is begining of a new year!

बुराई जब जलने लगती है

बुराई जब जलने लगती है, तो उसकी बू सबको आती है,
बुराई जलते-जलते खत्म हो जाती है, पर रौशनी छोड़ जाती है,
बू तो कब की उड़ जाती है, आसमान में समां जाती है,
बची हुई रौशनी में, अब सबको अच्छाई नज़र आने लग जाती है,

................................................ ---- बेतखल्लुस


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किस कदर नाजिर हुआ वक्त

Written By Brahmachari Prahladanand on बुधवार, 28 दिसंबर 2011 | 8:18 am

 
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किस कदर नाजिर हुआ वक्त, नजूमी को इत्तला किया,
भाग-भाग कर दर-ओ-शहर नजूमी से मशविरा लिया,
                                             ------- बेतखल्लुस

तखल्लुस क्या रखें, इसलिए बेतखल्लुस रख लिया,
कमबख्त साधु बनने के बाद, क्यों शायर बन लिया,
                                           ------- बेतखल्लुस



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एक नज़र इधर भी डालिये ………चूक गये तो फिर ना कहना

Written By vandana gupta on रविवार, 25 दिसंबर 2011 | 12:13 pm


अनोखी यात्रा ………अनोखे पल

वन्दना at ज़ख्म…जो फूलों ने दिये - 21 seconds ago
चलिए मेरे साथ एक सफ़र पर अरे ये क्या ये पिलर ४२० बीच में कहाँ से आ गया कसम से टू मच हो गया ये तो उफ़ ...........ब्लोगर मिलन के मारे बेचारे पिलर ४२० पर ही अटक गए आधी ब्लोगर मीट तो नांगलोई में सिमट गयी ब्लोगर्स की मस्ती तो यहीं शुरू हो गयी चाय काफी की चुस्की साथ में मौसम सुहाना ये सफ़र तो रहा बड़ा मस्ताना ये सांपला में कौन पधारे देखें सारे सांपला वाले कोई इच्छाधारी तो नहीं आया हाँ हाँ ..........आया न सारे ही तो इच्छाधारी थे .........हा हा हा हमने दी नहीं कोई झूठी खबर देख लो अंतर्राष्ट्रीय मिलन ही था बोर्ड लगवा दिया गया स्वागत समारोह में ब्लोगर्स ने धमाल किया अब जाट देवता सं... more »

सजती महफ़िल को बेनूर कर दिया

सजती महफ़िल को बेनूर कर दिया,
आज किसी ने तुझे मशहूर कर दिया,
हूर ही तो थी मेनका वो स्वर्ग की,
विश्वामित्र को जिसने मशहूर कर दिया,

न मेनका आती, न विश्वामित्र को कोई जानता,
न जाने कितने तपस्वियों की तरह वन में रामता,

शुक्र है मेनका का, इन्द्र का कहा माना,
आ गयी विश्वामित्र के पास, विश्वामित्र को देखने लगा जमाना,

दोनों की वजह से आज भारत का नाम भारत पड़ा है,
दोनों न होते तो शकुंतला का कौन सा घड़ा है,
शकुन्तला और दुष्यंत की गाथा न होती,
भरत और शेर के बच्चों की गाथा न होती,

                                                   ------- बेतखल्लुस
 

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जब संताक्लोज़ भी गिफ्ट (रिश्वत) दे रहा है

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गिफ्ट देकर, वह संताक्लोज़ कहलाता है,
क्या दुनिया में, गिफ्ट देकर ही किसी को करीब लाया जाता है,

गिफ्ट का आलम बड़ा, अच्छा लगता है,
गिफ्ट देकर अजनबी को पटाना अच्छा लगता है,

गिफ्ट देकर, बड़े से बड़े गुनाह छुप जाते हैं,
गिफ्ट देकर, बड़े से बड़े गुनाहगार भी संत बन जाते हैं,

गिफ्ट का ज़माना है, जो गिफ्ट का फ़साना है,
गिफ्ट देते जाओ, गिफ्ट देकर हर किसी को फ़साना है,

गिफ्ट देकर अब इस संत को भी संताक्लोज़ बनना है,
गिफ्ट देकर हर किसी को, गिले शिकवे दूर करना है,

क्या बात है गिफ्ट की, भुला देती है सब गम,
जिससे भी हो रुसवा, पिला देती है उसे रम,

गिफ्ट-ए-गिफ्ट कल छा जाएगा,
कोई संताक्लोज़ बन कर जिन्दगी में गिफ्ट लेकर आ जाएगा,

                                                               ------- बेतखल्लुस
 

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कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क

बहुरंगी ये तोहफे , बांटे सांता क्लॉज ।
यीशू के जन्म दिन की , याद दिलाए आज ।।
याद दिलाए आज , मिली थी सच को सूली ।
थी बहुत बड़ी बात, न थी घटना मामूली ।।
सच कब है आसान , है तलवार ये नंगी ।
पर सच से ही विर्क , बने जीवन बहुरंगी ।।


                   * * * * *

बेचारे मजबूर प्रधानमंत्री ...

Written By महेन्द्र श्रीवास्तव on शनिवार, 24 दिसंबर 2011 | 12:05 pm

सेवा में
प्रधानमंत्री जी
भारत सरकार

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी, मैं पिछले कई दिनों से नहीं बल्कि महीनों से देख रहा हूं कि गल्ती कोई और कर रहा है, लेकिन निशाने पर आप हैं। इसके कारणों पर नजर डालें, तो लगता है कि है इन सबके लिए जिम्मेदार भी आप खुद ही हैं। दरअसल आप देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जो आज तक खुद स्वीकार ही नहीं कर पाया है कि वो देश का प्रधानमंत्री है। आपकी कार्यशैली से लगता है, जैसे "प्रधानमंत्री" एक सरकारी पद है, जिस पर आपको तैनात किया गया और आप प्रधानमंत्री का महज कामकाज निपटा रहे हैं। आपको डर भी लगा रहता है कि कहीं कोई गल्ती ना हो जाए। इसलिए कदम इतना ज्यादा फूंक फूंक कर रख रहे हैं कि आपके अधीनस्थ आपको डरपोक कहने लगे हैं।

प्रधानमंत्री जी आपकी कुछ मजबूरियों को मैं समझ सकता हूं, जिसकी वजह से आप पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं। आपके हाव भाव से ये लगता है कि आप इस बात का हमेशा ध्यान रखते हैं कि आपको देश ने तो प्रधानमंत्री बनाया नहीं, प्रधानमंत्री तो सोनिया गाधी ने बनाया है। इसीलिए आप देश से कहीं ज्यादा सोनिया के प्रति वफादार रहते हैं। देखता हूं कि जब आप सोनिया गांधी के साथ होते हैं तो बिल्कुल निरीह दिखाई देते हैं। कई बार तो सच में ऐसा लगता है कि आपसे प्रधानमंत्री का काम जबर्दस्ती लिया जा रहा है। वैसे भी आपको मुश्किल तो होती ही होगी, क्योंकि जो वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी आज आपके मंत्रिमंडल के सदस्य हैं, कभी आप उनके अधीन काम कर चुके हैं। इस सच्चाई को भले आप स्वीकार ना करें, लेकिन मुश्किल तो होती ही है। मुझे तो लगता है कि इन्हीं सब वजहों से आप मजबूत नहीं हो पा रहे हैं और देश को मजबूर प्रधानमंत्री से काम चलाना पड़ रहा है।

प्रधानमंत्री जी अन्ना की अगुवाई में कुछ लोग सड़कों पर आकर देश में आराजकता की स्थिति पैदा कर रहे हैं। आपको पता है ना कि भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा जाता है, जिनको हम सब पूजते हैं। मर्यादा को मानने वाला भगवान राम से बढ़कर मुझे कोई और नजर नहीं आता। लेकिन भगवान राम को ही अगर हम उदाहरण मान लें तो हम देखते हैं कि वो भी तानाशाही को ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं कर पाए। लंका पर चढाई करने जा रहे भगवान श्रीराम ने समुंद्र से रास्ता मांगा, भगवान राम को लगा कि शायद मैं समुद्र से प्रार्थना करुं तो वो मान जाएं और हमें खुद ही रास्ता दे दे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ..

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिन होत ना प्रीत ।। 

मतलब साफ है कि विनय यानि प्रार्थना से काम नहीं बनने वाला है, ये सोच कर जब भगवान राम ने चेतावनी दी अगर अब रास्ता नहीं दिया तो एक वाण चलाकर पूरे समुद्र को सुखा दूंगा। जैसे ही भगवान ने क्रोध धारण किया, समुद्र देव प्रगट हुए और भगवान राम से माफी मांगने के साथ ही तुरंत रास्ता देने को तैयार हो गए। मेरा सवाल प्रधानमंत्री जी आप से ये है कि भगवान राम को तीन दिन में गुस्सा आ गया और आप को तेरह दिन में गुस्सा नहीं आया। कुछ लोग देश में आराजकता का माहौल बनाए हुए हैं, आप उनसे सख्ती से क्यों नहीं निपट पा रहे हैं। अगर आपने  शुरू  में ही सख्त रुख अपनाया होता, तो ये नौबत ना आती। आपकी पार्टी के एक युवा सांसद जब भी जनता के बीच में होते हैं, वो गुस्से की बात करते हैं, उन्हें देश की हालात पर गुस्सा आता है, लेकिन जिस बात पर गुस्सा आता है , उसका निराकरण करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती।
प्रधानमंत्री जी देश में ऐसा संदेश जा रहा है कि ये सरकार भ्रष्ट तो है ही, कमजोर भी है। कुछ लोगों की बंदरघुड़की से पूरा मंत्रिमंडल घुटनों पर नजर आता है। आप प्रधानमंत्री हैं और आपकी छवि साफ सुथरी है, आप पर किसी को शक भी नहीं है, फिर आप किस दबाव में हैं जो सही गलत का फैसला नहीं कर पा रहे हैं। अब समय आ गया है कि आप इस पर ध्यान ना दें कि कौन सड़क पर उतर रहा है, कौन जेल भर रहा है, इससे निपटने के लिए कानून में व्यवस्था है, वो अपना काम करेगी। आप सिर्फ ये देखें की कौन सा कानून देश के हित मे है। मैं तो इस बात के भी खिलाफ हूं कि देश के प्रधानमंत्री को इसके दायरे में लाया जाए।

प्रधानमंत्री जी दरअसल आपका काफिला जब सड़क पर आता है तो लोगों से रास्ता खाली करा लिया जाता है, इसलिए आपको पता नहीं है, जनता क्या चाहती है। जो जनता  रामलीला मैदान और जंतर मंतर पर आती है, उसमें ज्यादातर लोग तफरी के लिए आते हैं। ये ऐसे लोग है, जो वोटिंग का महत्व भी नहीं जानते और चुनाव के दौरान दिल्ली से बाहर घूमने चले जाते हैं। देश के लोग भ्रष्टाचार से ज्यादा मंहगाई से परेशान हैं। आज जरूरत है मंहगाई को कैसे नियंत्रित किया जाए।

प्रधानमंत्री जी पूरा मंत्रिमंडल चार ऐसे लोगों को मनाने में जुटा है, जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है। वो एक राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं। विपक्षी दल खासतौर पर बीजेपी की इस पूरे आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका है। जब सरकार लोकपाल  बिल पर काम करती नजर आ रही थी, उस समय भी टीम अन्ना एक राजनीति के तहत कांग्रेस का विरोध करती रही। इस टीम की स्क्रिप्ट कहीं और लिखी जा रही है, इसलिए आप टीम को संतुष्ट करने के बजाए देश को संतुष्ट करने के लिए काम करें।

प्रधानमंत्री जी आपको तो पता है ना टीम अन्ना संघर्ष तेज करने और जब तक शरीर में जान है, तब तक लड़ने की बात करती हैं। लेकिन दिल्ली से महज इसलिए भाग खड़े हुए कि यहां ठंड बहुत है। जो लड़ाके ठंड़ से डरते हों, वो जान की बाजी की बात करते हैं तो हंसी ही आती है।  लोग संघर्ष की शुरुआत अपने गांव से करते हैं, फिर जिले, राज्य से  होते हुए केंद्र यानि दिल्ली आते हैं। अन्ना की लड़ाई उल्टी शुरू हुई। सीधे दिल्ली आ गए, यहां से अब अपने राज्य महाराष्ट्र वापस चले गए, अब जिले में जेल भरते हुए अपने गांव पहुंच जाएंगे। देश की जनता भी इस टीम की हकीकत को समझने लगी है। मैं गारंटी के साथ आपको बताना चाहता हूं कि लोकपाल के मामले में इनकी पूरी बातें मान भी ली जाएं तो ये दूसरी मांग को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ सड़कों पर रहेंगे।

चलते चलते एक गुजारिश है प्रधानमंत्री जी,  आप लोकपाल बिल में एनजीओ को जरूर शामिल करें। क्योंकि देश में एक बड़ा तपका खासतौर पर सफेद पोश लोग एनजीओ की आड़ में गोरखधधा कर रहे हैं। ये कुछ विदेशी संस्थाओं से जुड़ कर बाहर से पैसे लाते हैं और उनका दुरुपयोग किया जाता है। इसी पैसे से ये राजनेताओं, सरकारी तंत्र को कमजोर करते हैं। मुझे पक्का भरोसा है कि इस मामले में भी एक ग्रुप आफ मीनिस्टर का गठन कर देशहित में आप सही निर्णय लेंगे। आज बस इतना ही।

धन्यवाद

महेन्द्र श्रीवास्तव
दिल्ली 

सावधान ! हिन्दी पर हुआ बेशर्मों का हमला !

Written By Swarajya karun on शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011 | 9:57 am



                           
  

                                                    हैं कितने खुश हिन्दी के हत्यारों को देखिये
                                                    लगा रहे जो 'हिंग्लिश ' के नारों को देखिये !
                                                    खा कर हिंद का दाना ,गाते  हैं अंग्रेजी गाना
                                                    खुले आम नाच रहे इन गद्दारों को देखिये !
 
बेशर्मों ने हिन्दी पर इस बार बड़ी बेरहमी से हमला किया है. हमें सावधान और सचेत होकर उनका मुकाबला करना होगा .दिल्ली की अंग्रेजी शीर्षक वाली एक पत्रिका ने अपने २८ दिसम्बर २०११ के हिन्दी संस्करण में 'हिंग्लिश'  यानी कथित अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी की तरफदारी करते हुए प्रकाशित आवरण कथा में बड़ी बेशर्मी से ऐलान कर दिया है कि सरकारी हिन्दी का ज़नाजा उठ गया है .इसके साथ ही नीचे और भी बेशर्मी से नारा लिखा गया है-इंग्लिश हिन्दी जिंदाबाद .इतने पर भी जब जी नहीं भरा तो इसने आवरण कथा का शीर्षक दे दिया -वाह ! हिंग्लिश  बोलिए ! नरेंद्र सैनी की  आवरण कथा के  इस वाक्य पर भी जरा गौर करें-- 'देश के युवाओं के बीच खासी लोकप्रिय हो रही भाषा  को केन्द्र सरकार ने भी अपनाया ' यहाँ कथित रूप से इस लोकप्रिय भाषा का आशय हिन्दी और अंग्रेजी की बेमेल और बेस्वाद खिचड़ी यानी 'हिंग्लिश' से है. ज़रा सोचिये  क्या वाकई यह तथा कथित 'हिंग्लिश' भारत के युवाओं में लोकप्रिय हो रही है ? इसके बावजूद इस वाक्य में ऐसा लिखना और छापना  देश के युवाओं को भाषा के नाम पर गुमराह करने की   कोशिश  और साजिश  नहीं, तो और क्या है ? पत्रिका के इसी अंक में 'हिन्दी मरेगी नहीं,बढ़ेगी ' शीर्षक से मनीषा पाण्डेय ने अपने आलेख में फरमाया है- ''हिंग्लिश को लेकर साहित्यिक गलियारों में स्वीकृति के स्वर मज़बूत होने लगे हैं ''.ऐसा लिख कर क्या हिन्दी साहित्य और हिन्दी के साहित्यकारों को अपमानित नहीं किया जा रहा है ? क्या हमारे हिन्दी लेखकों को चुनौती नहीं दी जा रही है ?
राष्ट्र भाषा हिन्दी को एक मरणासन्न भाषा बताने का दुस्साहस करते हुए संतोष कुमार का एक लेख भी इस  पत्रिका में  'सरकारी हिन्दी की अंतिम हिचकियाँ 'शीर्षक से छपा है,जिसमे भारत सरकार के गृह मंत्रालय से सम्बन्धित राज भाषा विभाग के २६ सितम्बर २०११ के उस परिपत्र की छायाप्रति भी छापी गयी है,जिसमें सरकारी काम-काज के पत्रों में सरल हिन्दी के नाम पर अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी के इस्तेमाल की सलाह दी गयी है. यह सरकारी परिपत्र भी हास्यास्पद है ,जिसमें काम काजी हिन्दी  लिखने के लिए अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए एक उदाहरण भी दिया गया है ,जो इस प्रकार है-  
     'कॉलेज में एक रि-फारेस्टेशन अभियान है, जो रेगुलर चलता रहता है .इसका इस साल से एक और प्रोग्राम शुरू हुआ है, जिसमें हर स्टूडेंट एक पेड़ लगाएगा ' 
           अब इन्हें कौन समझाए कि 'रि-फारेस्टेशन' के बजाय अगर 'वृक्षारोपण' , 'रेगुलर'  के बजाय 'नियमित'  'प्रोग्राम' के बजाय 'कार्यक्रम' और 'स्टूडेंट'' के बजाय 'विद्यार्थी ' अथवा 'छात्र'   कहा और लिखा जाए तो भी हिन्दी का सामान्य ज्ञान रखने वाले  लोग हिन्दी के इन शब्दों को  आसानी से  समझ जाएंगे, लेकिन लगता है कि   दिल्ली के गलियारों में घूमने और पलने-बढ़ने वालों को हिन्दी भाषा अब किसी दुश्मन की तरह लगने लगी है.तभी तो उन्होंने ऐसा फरमान जारी किया है. तभी तो अंग्रेजी मानसिकता वाले हमारे देशी अंग्रेजों का दिल खूब  उछल-कूद  मचाए हुए  है .यही कारण है कि अंग्रेजी शीर्षक वाली पत्रिका के हिन्दी संस्करण में   भी  इतनी ज़ोरदार खुशी का इज़हार किया जा रहा है. भारत को भाषाई रूप से पहले अंग्रेजी का और आगे चलकर अंग्रेजों का गुलाम बनाने की साजिश भी इसमें साफ़ झलकती है. मिसाल के तौर पर इस पत्रिका में नरेंद्र सैनी की  आवरण कथा के शुरुआती वाक्यों को देखिये--  ''यह पार्टी टाइम है. जश्न मनाइए कि भारत सरकार ने आपके आगे हार मान ली है. पिछले ६० साल से सरकार आप पर ऐसी हिन्दी थोपने की कोशिश कर रही थी ,जिसे आप बोलते तक नहीं . ....सरकारी प्रोटीन और विटामिन खिलाने से हिन्दी नाम का बच्चा जवान नहीं हो सकता था .अब केन्द्र सरकार ने कहा है कि हिन्दी को सरल बनाना समय की मांग है और इसलिए 'हिंग्लिश 'भी चलाओ .  '' हैरत की बात यह है कि  राजभाषा विभाग के जिस परिपत्र की फोटोकापी इसी पत्रिका के पृष्ठ १८ पर 'सरकारी हिन्दी की अंतिम हिचकियाँ ;शीर्षक से संतोष कुमार के लेख के साथ छपी है,उसमें कहीं भी हिंग्लिश' शब्द का उल्लेख नहीं है .इसके बावजूद सैनी ने अपने आलेख में लिख दिया है कि सरकार ने 'हिंग्लिश' भी चलाने के लिए कहा है. यह ज़रूर है कि परिपत्र में सरकारी काम-काज में सरल और सहज हिन्दी के प्रयोग के लिए नीति- निर्देश दिए गए हैं पर 'हिंग्लिश ' का कोई ज़िक्र नहीं है.हाँ, कठिन हिन्दी के बदले अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग की गैरज़रूरी सलाह ज़रूर दी गयी है , जिससे मेरे जैसे आम नागरिक सहमत नहीं हो सकते .
      भारत २८ प्रदेशों  और ७ केन्द्र शासित राज्यों का एक आज़ाद मुल्क है ,जहां हर प्रदेश ,हर राज्य की अपनी अपनी लोकप्रिय भाषाएँ हैं,जो अपने आप में काफी समृद्ध हैं . हिन्दी इन सभी प्रादेशिक भाषाओं को परस्पर जोड़ने का काम करती है .हिन्दी को भारतीय संविधान में राज भाषा का दर्जा प्राप्त है . हिन्दी भारत की एक सम्पन्न    भाषा है . उसका शब्द भंडार बहुत विशाल है . इसलिए उसे सरकारी पत्र व्यवहार के लिए जब तक  कठिन हिन्दी शब्दों के आसान विकल्प उपलब्ध हैं ,तब तक  अंग्रेजी से उधारी में शब्द मांगने की ज़रूरत नहीं है. अगर  सरकारी काम-काज में, शासकीय पत्राचार में हिन्दी को आसान बनाने के लिए अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग की सलाह दी जा सकती है,तो सरकारी दफ्तरों को इसके लिए अन्य भारतीय भाषाओं से शब्दों  चयन के लिए क्यों नहीं कहा जा सकता ? इसमें दो राय नहीं कि आज सरकारी हिन्दी  के सरलीकरण की ज़रूरत है,  सर्वोच्च न्यायालय और   उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी भाषा का ही दबदबा है ,जबकि  निचली अदालतों में  बहुत कठिन उर्दू मिश्रित हिन्दी का प्रचलन है.  राज भाषा विभाग को सामान्य प्रशासनिक दफ्तरों के साथ-साथ सम्पूर्ण न्यायिक प्रक्रिया में भी राज भाषा के रूप में हिन्दी के प्रचलन को बढ़ावा देना चाहिए.  इसके लिए अगर  हिन्दी में सरल शब्द नहीं मिल रहे हों ,तो हम अपने ही देश  की प्रादेशिक  भाषाओं से शब्द ग्रहण कर सकते हैं.  इससे जहां हिन्दी और भी ज्यादा धनवान होगी, वहीं  राष्ट्रीय एकता  को  भी बढ़ावा मिलेगा. हिन्दी  साहित्य  की  विकास यात्रा के लिए वर्षों पहले मील का पत्थर रखने वाले महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने कभी लिखा था-
                                         निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल
                                         बिनु निज भाषा ज्ञान बिनु मिटे  न  हिय को शूल !

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने  कहा था - ''  हिन्दी ही भारत की राष्ट्र भाषा हो सकती है,अमर शहीद भगत सिंह  सिंह का भी कहना था  -'' हिन्दी में राष्ट्र भाषा  होने की सारी काबिलियत है .जबकि  प्रसिद्ध साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय'  ने देशवासियों को सतर्क करते हुए लिखा था - ''हिन्दी पर अनेक दिशाओं से कुठाराघात की तैयारी है ,ताकि उसकी अटूट शक्ति को कमज़ोर किया जा सके''   .
   भाषा चाहे देशी हो ,या विदेशी , हर भाषा की अपनी खूबियाँ  होती हैं . किसी भी भाषा से , चाहे वह अंग्रेजी ही क्यों न हो, व्यक्तिगत बैर भाव नहीं होना चाहिए ,लेकिन अगर कोई भाषा किसी देश की संस्कृति को और उसके राष्ट्रीय स्वाभिमान को ही नष्ट करने की कोशिश में जुट जाए , तो उसका प्रतिकार तो करना ही होगा . अंग्रेजी के साथ भी कुछ ऐसा ही मामला है. क्या हम इतनी जल्दी भूल गए कि देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने के लिए लाखों हिंदुस्तानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी ,जेल की यातनाएं झेलीं ,तब कहीं करीब चौंसठ साल पहले १५ अगस्त १९४७  को  बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों को यहाँ से भगाया जा सका ?  भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए आज ज़रूरत इस बात की है कि  हम हिन्दी सहित तमाम भारतीय भाषाओं के समग्र विकास के लिए चिन्तन करें और इस दिशा में काम करें , भारतीय भाषाओं में भरपूर साहित्य सृजन हो , हर भारतीय अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के बजाय अपनी भाषा के स्कूलों में दाखिला दिलवाए .
    मुझे लगता है कि आज एक बार फिर इंग्लिस्तान से एक नहीं ,बल्कि हजारों बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ   ईस्ट इंडिया कम्पनी के नए अवतार के रूप में   'हिंग्लिश  ' भाषा के साथ भारत को गुलाम बनाने के लिए आ रही हैं , और हमारे ही देश के छिपे हुए नहीं , बल्कि खुले आम घूमते कुछ गद्दार किस्म के लोग उनके क़दमों में बिछ कर  और अंग्रेजी की हिमायत में पूंछ हिलाकर उनका स्वागत कर रहे हैं .हिन्दुस्तान के ऐसे दुश्मनों और हिन्दी भाषा पर प्राणघातक हमला करने और उसकी हत्या की कोशिश करने वालों से हमें सावधान रहना होगा. .                                                                                                                              --                                                                                                             ----स्वराज्य करुण 

विश्व में दो ही तरह के लोग होते हैं

विश्व में दो ही तरह के लोग होते हैं,
एक जो अपनी जिन्दगी खुद बनाते हैं,
के जो अपनी जिन्दगी दूसरों से बनवाते हैं,

यानी एक जो तपस्या करते हैं, मेहनत करते हैं,
या एक जो खुशामद करते हैं, प्रसंशा करते हैं,

तपस्या वाले की सिद्धयाँ उनकी अपनी होती हैं,
स्तुति करने वाले दूसरों की जूठन की होती हैं,

तपस्या वाला अपनी तपस्या में लगा रहता है,
स्तुति करने वाला किसी न किसी को खुश करने में लगा रहता है,

तपस्या करनेवला स्तुति करने वाले से कभी नहीं चिडता है,
स्तुति करनेवला तपस्या करने वाले से हमेशा इर्षा द्वेष रखता है,

तपस्या करने वाला अपनी तपस्या करता है,
स्तुति करने वाला तपस्या करने वाली की तपस्या भंग करने की सोचता रहता है,

                                                                                                   ------- बेतखल्लुस


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कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


       अफजल- कसाब से कई , ठूंसे हमने जेल ।
       फाँसी लटकाए नहीं , देश रहा है झेल ।।
       देश रहा है झेल , किया खर्च करोड़ों में ।
       पारा बनकर बैठ , ये गए हैं जोड़ों में ।।
       कहे विर्क कविराय , मिले ऐसा इनको फल ।
       फिर भारत की तरफ , न देखे कोई अफजल ।।

                         * * * * *

रोटी का परमात्मा तक पहुचना

Written By Brahmachari Prahladanand on बुधवार, 21 दिसंबर 2011 | 9:37 am

"रोटी से रस, रक्त, मांस, मेदा, अस्थी, मज्जा, वीर्य, मन, बुद्धी, चित, अहंकार, प्राण, आत्मा, माया, परमात्मा यह पूरा हुआ |" यह मेरा कथन है | अब यह यात्रा कैसे होती हैं बताते हैं - रोटी से रस बनता है | रस से खून बनता है | खून से मांस बनता है | मॉस से हड्डी बनती है | हड्डी से बोन मेरो बनता है | बोन मेरो से वीर्य बनता है | वीर्य जो कुंड में इक्कठा होता है | जब वीर्य का शोधन किया जाता है तो वह मन बनता है | इसलिए कहते है जैसा खाए अन्न वैसा हो मन | मन का शोधन होने के बाद बुद्धी बनती है | बुद्धी का शोधन होने से चित्त बनता है | चित्त का शोधन होने से अहंकार बनता है | अहंकार का शोधन होने से प्राण बनता है | प्राण का शोधन होने से आत्मा बनती है | आत्मा का शोधन होने से माया |  माया का शोधन होने से परमात्मा बनता है | यह सभी की रोटी के साथ होता है | 

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कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


 दफ्तर लगते दस बजे , औ ' आठ बजे स्कूल ।
 अजब नीति सरकार की , टेढ़े बहुत असूल  ।
 टेढ़े बहुत असूल , फ़िक्र ना मासूमों की 
 ए.सी. में बैठकर , बात हो कानूनों की ।
 न सुनें हैं फरियाद , न दर्द जानते अफ़सर
 जमीं के साथ विर्क , कब जुड़ेंगे ये दफ्तर ?
                  
                                         दिलबाग विर्क 

सोनिया को नहीं जानती मुनिया ...

Written By महेन्द्र श्रीवास्तव on मंगलवार, 20 दिसंबर 2011 | 2:04 pm


इस लड़की को नहीं पता कि देश की राजधानी दिल्ली में किस बात की जंग अन्ना छेड़े हुए हैं। इसे ये पता है कि अगर शाम तक उसकी लकड़ी ना बिकी तो घर में चूल्हा नहीं जलेगा। पूरे शरीर पर लकडी की बोझ तले दबी इस लड़की की कहानी वाकई मन को हिला देने वाली है। मुझे लगता है कि देश की तरक्की को मापने का जो पैमाना दिल्ली में अपनाया जा रहा है, उसे सिरे से बदलने की जरूरत है। 
ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, मैं आफिस के टूर पर उत्तराखंड गया हुआ था। घने जंगलो के बीच गुजरते हुए मैने देखा कि जंगल में कुछ लड़कियां पेड़ की छोटी छोटी डालियां काट रहीं थी और वो इन्हें इकठ्ठा कर कुछ इस तरह समेट रहीं थीं, जिससे वो उसे आसानी से अपनी पीठ पर रख कर घर ले जा सकें। दिल्ली से काफी लंबा सफर तय कर चुका था, तो वैसे भी कुछ देर गाड़ी रोक कर टहलने की इच्छा थी, जिससे थोड़ा थकान कम हो सके।
हमने गाड़ी यहीं रुकवा दी, गाड़ी रुकते ही ये लड़कियां जंगल में कहां गायब हो गईं, पता नहीं चला। बहरहाल मैं गाड़ी से उतरा और जंगल की ओर कुछ आगे बढा। हमारे कैमरा मैन ने जंगल की कुछ तस्वीरें लेनी शुरू कीं, तो इन लड़कियों को समझ में आ गया कि हम कोई वन विभाग के अफसर नहीं, बल्कि टूरिस्ट हैं। दरअसल लकड़ी काटने पर इन लड़कियों को वन विभाग के अधिकारी परेशान करते हैं। इसके लिए इनसे पैसे की तो मांग की ही जाती है, कई बार दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है। लिहाजा ये कोई भी गाड़ी देख जंगल में ही छिप जाती हैं।
हमें थोडा वक्त यहां गुजारना था, लिहाजा मैं इन लड़कियों के पास गया और उनसे सामान्य बातचीत शुरू की। बातचीत में इन लड़कियों ने बताया कि वो दिल्ली का नाम तो सुनी हैं, पर कभी गई नहीं हैं। बात नेताओं की चली तो वो सोनिया, राहुल या फिर आडवाणी किसी को नहीं जानती हैं। हां उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का नाम इन्हें पता है। मैने सोचा आज कल अन्ना का आंदोलन देश दुनिया में छाया हुआ है, शायद ये अन्ना के बारे में कुछ जानती हों। मैने अन्ना के बारे में बात की, ये एक दूसरे की शकल देखने लगीं।
खैर इनसे मेरी बात चल ही रही थी कि जेब में रखे मेरे मोबाइल पर घर से फोन आ गया, मै फोन पर बातें करने लगा। इस बीच मैं देख रहा था कि ये लड़कियां हैरान थीं कि मैं कर क्या रहा हूं। मेरी बात खत्म हुई तो मैने पूछा कि तुम लोग नहीं जानते कि मेरे हाथ में ये क्या है, उन सभी ने नहीं में सिर हिलाया। बहरहाल अब मुझे आगे बढना था, लेकिन मैने सोचा कि अगर इन्हें मोबाइल के बारे में थोड़ी जानकारी दे दूं, तो शायद इन्हें अच्छा लगेगा। मैने बताया कि ये मोबाइल फोन है, हम कहीं भी रहें, मुझसे जो चाहे मेरा नंबर मिलाकर बात कर सकता है। मैं भी जिससे चाहूं बात कर सकता हूं। मैने उन्हें कहा कि तुम लोगों की बात मैं अपनी बेटी से कराता हूं, ठीक है।
मैने घर का नंबर मिलाया और बेटी से कहा कि तुम इन लड़कियों से बात करो, फिर मैं बात में तुम्हें बताऊंगा कि किससे तुम्हारी बात हो रही थी। बहरहाल फोन से बेटी की आवाज सुन कर ये लड़कियां हैरान थीं। ये लड़कियां कुछ बातें तो नहीं कर रही थीं,लेकिन दूसरी ओर से मेरी बेटी के हैलो हैलो ही सुनकर खुश हो रही थीं।
अब मुझे आगे बढना था, लेकिन मैने देखा कि इन लड़कियों ने लकड़ी के जो गट्ठे तैयार किए हैं, वो बहुत भारी हैं। मैने पूछा कि ये लकड़ी का गट्ठर तुम अकेले उठा लोगी, उन सभी ने हां में सिर हिलाया। मैने उठाने की कोशिश की,  मैं देखना  चाहता था कि इसे मैं उठा सकता हूं या नहीं। मैने काफी कोशिश की पर मैं उठा नहीं पाया। इसके पहले कि मै इन सबसे विदा लेता, मेरी गाड़ी में खाने पीने के बहुत सारे सामान थे, जो मैं इनके हवाले करके आगे बढ गया।
मैं इन्हें पीछे छोड़ आगे तो बढ गया, पर सच ये है कि इनके साथ हुई बातें मेरा पीछा नहीं छोड़ रही हैं। मैं बार बार ये सोच रहा हूं कि पहाड़ों पर रहने वाली एक बड़ी आवादी किस सूरत-ए-हाल में रह रही है। ये बाकी देश से कितना पीछे हैं। इन्हें नहीं पता देश कौन चला रहा है, इन्हें नहीं पता देश में किस पार्टी की सरकार है। राहुल गांधी और केंद्र सरकार अपनी सरकारी योजना नरेगा की कितनी प्रशंसा कर खुद ही वाहवाही लूटने की कोशिश करें, पर हकीकत ये कि जरूरतमंदो से जितनी दूरी नेताओं की है, उससे बहुत दूर सरकारी योजनाएं भी हैं।
अन्ना के साथ ही उनकी टीम अपने आंदोलन को शहर में मिल रहे समर्थन से भले ही गदगद हो और खुद ही अपनी पीठ भले ही थपथपाए, पर असल लड़ाई जो लड़ी जानी चाहिए, उससे हम सब अभी बहुत दूर हैं। हम 21 सदी की बात करें और गांव गांव मोबाइल फोन पहुंचाने का दावा भी करते हैं, लेकिन रास्ते में हुए अनुभव ये बताने  के लिए काफी हैं कि सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही मजबूत हैं।      

मनु स्मृति के इसी 8 वें अध्याय में जार कर्म और बलात्कार आदि के लिए दंड का पूरा विवरण मौजूद है

अवैध यौन संबंधों में कानून द्वारा लिंग भेद - एक परिचर्चा ! 

-डा. टी. एस. दराल जी 

धार्मिक पहलू :

सभी धर्मों में इसे पाप माना जाता है । इस्लाम में तो इसके लिए सख्त सज़ा का प्रावधान है ।

अब कुछ सवाल उठते हैं आम आदमी के लिए :

* क्या इस मामले में स्त्री पुरुष में भेद भाव करना चाहिए ?
* यदि पति की रज़ामंदी से उसकी पत्नी से रखे गए सम्बन्ध गैर कानूनी नहीं हैं तो क्या वाइफ स्वेपिंग जायज़ है ?
* क्या इस कानून में बदलाव की ज़रुरत है ?

पति पत्नी के सम्बन्ध आपसी विश्वास पर कायम रहते हैं । कानून भले ही ऐसे मामले में पत्नी को दोषी न मानता हो , लेकिन व्यक्तिगत , पारिवारिक , सामाजिक और नैतिक तौर पर ऐसे में दोनों को बराबर का गुनहगार माना जाना चाहिए ।

हमारा स्वस्थ नैतिक दृष्टिकोण ही हमारे समाज के विकास में सहायक सिद्ध हो सकता है ।
 

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हमने इस पोस्ट पर कहा है कि

आपने कहा है कि
'जहाँ तक मैं समझता हूँ , हिन्दू धर्म में इसे पाप समझा जाता है लेकिन सज़ा के लिए कोई प्रावधान नहीं है ।'
के बारे में

@ डा. टी. एस. दराल जी ! जिस बात को धर्मानुसार पाप कहा जाता है उसके लिए धार्मिक व्यवस्था में दण्ड का विधान भी होता है।
यह बात आपको जाननी चाहिए कि मनु स्मृति में बलात्कार और अवैध यौन संबंधों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था है।

मनु स्मृति में अवैध यौन संबंध के लिए दंड

कन्यां भजन्तीमुत्कृष्टं न किंचिदपि दापयेत् ।
जघन्य सेवमानां तु संयतां वासयेद्गृहे ।।
-मनु स्मृति, 8, 365
अर्थात उच्चजाति के पुरूष की सकाम सेवा करने वाली कन्या दण्डनीय नहीं है किंतु हीन जाति के पास जाने वाली को प्रयत्नपूर्वक रोके।

भर्तारं लंघयेद्या तु स्त्री ज्ञातिगुणदर्पिता ।
तां श्वभिः खादयेद्राजा संस्थाने बहुसंस्थिते ।।
-मनु स्मृति, 8, 371
जो स्त्री अपने पैतृक धन और रूप के अहंकार से पर पुरूष सेवन और अपने पति का तिरस्कार करे उसे राजा कुत्तों से नुचवा दे। उस पापी जार पुरूष को भी तप्त लौह शय्या पर लिटाकर ऊपर से लकड़ी रखकर भस्म करा दे।

मनु स्मृति के इसी 8 वें अध्याय में जार कर्म और बलात्कार आदि के लिए दंड का पूरा विवरण मौजूद है।

http://deepakbapukahin.wordpress.com/2011/08/20/men-and-women-in-manu-smruti-hindi-lekh/
 

मेरी नज़र से भी देखिये ……" टूटते सितारों की उड़ान " एक दृष्टिकोण

Written By vandana gupta on सोमवार, 19 दिसंबर 2011 | 12:16 pm


मेरी नज़र से चलिये इस सफ़र पर ……

वन्दना at ज़ख्म…जो फूलों ने दिये - 6 hours ago
दोस्तों अभी अभी हमारे ब्लोगर मित्र सत्यम शिवम् ने अपना पहला काव्य संग्रह "साहित्य प्रेमी संघ " के तत्वाधान में " टूटते सितारों की उड़ान " निकाला है जिसमे उन्होंने २० कवियों की कविताओं को शामिल किया है . पेशे से इंजिनियर सत्यम ने इस पुस्तक का संपादन स्वयं किया है और उम्र में तो अभी हमारे बेटे जैसा है मगर फिर भी इतनी लगन और निष्ठा से कार्य को अंजाम दिया है कि लगता ही नहीं ये कार्य किसी नवागंतुक ने किया है . शायद तभी कहते हैं प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती. इस काव्य संग्रह में बीस कवियों की रचनाएँ हैं जिनमें पांच कविताएँ मेरे द्वारा रचित हैं जिन्हें ससम्मान स्थान प्रदान किया ह... more 

चेहरे बदल रहे हैं


Image from funnnygalary.blogspot.com

बदल रहे हैं शायद लोगों के चेहरे बदल रहे हैं,
गिरगिट के रंगो संग उनके मोहरे बदल रहे हैं।

कभी प्यार इतना होता है कि दुनिया जोड़ रहे हैं,
कभी किसी बात पर रूठे तो रिश्ते तोड़ रहे हैं।

न जाने किन शर्तों पर जीने ..चेहरे बदल रहे हैं(Complete)

सूफ़ियों ने विश्व-प्रेम का पाठ पढ़ाया Soofi

Welcome to

Blogger's Meet Weekly 22

http://hbfint.blogspot.com/2011/12/22-ramayana.html

किसी भी रमणीय सुन्दर रास्ते को अच्छा नही कहा जा सकता यदि वह लक्ष्य तक नही पहुंचाता है।

और ...
सूफ़ियों ने विश्व-प्रेम का पाठ पढ़ाया अंक-1
सूफ़ी शब्द का अर्थ
th_sufisधार्मिक सहिष्णुता और उदारता आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता रही है। मध्यकालीन भारत में मुसलमानों के आगमन से और खासकर दिल्ली सलतनत की स्थापना के साथ-साथ हिन्दू और इसलाम धर्म के बीच गहन संपर्क हुआ। इस दीर्घकालीन संपर्क ने दोनों धर्मों के अनुयाइयों को न सिर्फ़ परस्पर प्रभावित किया, बल्कि उनके बीच धारणाओं, धार्मिक विचारों और प्रथाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान भी हुआ। भक्ति और प्रेम की भावना पर आधारित जिस पंथ ने इसलाम धर्म में लोकप्रियता प्राप्त की उसे सूफ़ी पंथ कहते हैं। सूफ़ी संप्रदाय का उदय इसलाम के उदय के साथ ही हुआ, किन्तु एक आन्दोलन के रूप में इसलाम की नीतिगत ढांचे के तहत इसे मध्य काल में बहुत लोकप्रियता मिली। सूफ़ी फ़क़ीरों ने अपने प्रेमाख्यानों द्वारा हिन्दू-मुस्लिम हृदय के अजनबीपन को मनोवैज्ञानिक ढंग से दूर किया और साथ-साथ खण्डनात्मकता के स्थान पर दोनों संस्कृतियों का सुन्दर सामंजस्य प्रस्तुत किया। सूफी चिंतन वस्तुतः उस सत्य का उदघाटन है जिसमें जीवात्मा और परमात्मा की अंतरंगता के अनेक रहस्य गुम्फित हैं।
- मनोज  कुमार 

जीवन के रंग .....: भरोसे का प्रतिक

Written By mark rai on रविवार, 18 दिसंबर 2011 | 8:00 pm

किसे अजनबी कहूँ

किसे अजनबी कहूँ, किसे पहचाना कहूँ,
नज़र जिससे मिली, कैसे बेगाना कहूँ,

असर दिल पर हुआ, इश्क उनसे हुआ,
कैसे अनजाना कहूँ, कैसे बेगाना कहूँ,

नज़र आने लगे, दिल में सामने लगे,
बात अब होने लगी, कैसे बेगाना कहूँ,

दिन जाने लगे, रात जाने लगी,
शादी होने लगी, कैसे बेगाना कहूँ,



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अभिव्यक्ति के नाम पर भड़ास की छूट दे दी जाए?

Written By तेजवानी गिरधर on शनिवार, 17 दिसंबर 2011 | 3:49 pm

इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लगाम कसे जाने की खबर पर हंगामा मचा हुआ है। खासकर बुद्धिजीवियों में अंतहीन बहस छिड़ी हुई है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की दुहाई देते हुए जहां कई लोग इसे संविधान की मूल भावना के विपरीत और तानाशाही की संज्ञा दे रहे हैं, वहीं कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने चाहे जिस का चरित्र हनन करने और अश्लीलता की हदें पार किए जाने पर नियंत्रण पर जोर दे रहे हैं।
यह सर्वविदित ही है कि इन दिनों हमारे देश में इंटरनेट व सोशल नेटवर्किंग साइट्स का चलन बढ़ रहा है। आम तौर पर प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर जो सामग्री प्रतिबंधित है अथवा शिष्टाचार के नाते नहीं दिखाई जाती, वह इन साइट्स पर धड़ल्ले से उजागर हो रही है। किसी भी प्रकार का नियंत्रण न होने के कारण जायज-नाजायज आईडी के जरिए जिसके मन जो कुछ आता है, वह इन साइट्स पर जारी कर अपनी कुंठा शांत कर रहा है। अश्लील चित्र और वीडियो तो चलन में हैं ही, धार्मिक उन्माद फैलाने वाली सामग्री भी पसरती जा रही है। राजनीति और नेताओं के प्रति उपजती नफरत के चलते सोनिया गांधी, राजीव गांधी, मनमोहन सिंह, कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह सहित अनेक नेताओं के बारे में शिष्टाचार की सारी सीमाएं पार करने वाली टिप्पणियां और चित्र भी धड़ल्ले से डाले जा रहे हैं। प्रतिस्पद्र्धात्मक छींटाकशी का शौक इस कदर बढ़ गया है कि कुछ लोग अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के बारे में भी टिप्पणियां करने से नहीं चूक रहे। ऐसे में केन्द्रीय दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने जैसे ही यह कहा कि उनका मंत्रालय इंटरनेट में लोगों की छवि खराब करने वाली सामग्री पर रोक लगाने की व्यवस्था विकसित कर रहा है और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स से आपत्तिजनक सामग्री को हटाने के लिए एक नियामक व्यवस्था बना रहा है तो बवाल हो गया। इसे तुरंत इसी अर्थ में लिया गया कि वे सोनिया व मनमोहन सिंह के बारे में आपत्तिजनक सामग्री हटाने के मकसद से ऐसा कर रहे हैं। एक न्यूज चैनल ने तो बाकायदा न्यूज फ्लैश में इसे ही हाइलाइट करना शुरू कर दिया, हालांकि दो मिनट बाद ही उसने संशोधन किया कि सिब्बल ने दोनों का नाम लेकर आपत्तिजनक सामग्री हटाने की बात नहीं कही है।
बहरहाल, सिब्बल के इस कदम की देशभर में आलोचना शुरू हो गई। बुद्धिजीवी इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश के रूप में परिभाषित करने लगे, वहीं मौके का फायदा उठा कर विपक्ष ने इसे आपातकाल का आगाज बताना शुरू कर दिया। हालांकि सिब्बल ने स्पष्ट किया कि सरकार का मीडिया पर सेंसर लगाने का कोई इरादा नहीं है। सरकार ने ऐसी वेबसाइट्स से संबंधित सभी पक्षों से बातचीत की है और उनसे इस तरह की सामग्री पर काबू पाने के लिए अपने पर खुद निगरानी रखने का अनुरोध किया, लेकिन सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के संचालकों ने इस बारे में कोई ठोस जवाब नहीं दिया। उनका तर्क ये था कि साइट्स के यूजर्स के इतने अधिक हैं कि ऐसी सामग्री को हटाना बेहद मुश्किल काम है। अलबत्ता ये आश्वासन जरूर दिया कि जानकारी में आते ही आपत्तिजनक सामग्री को हटा दिया जाएगा।
जहां तक अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल है, मोटे तौर पर यह सही है कि ऐसे नियंत्रण से लोकतंत्र प्रभावित होगा। इसकी आड़ में सरकार अपने खिलाफ चला जा रहे अभियान को कुचलने की कोशिश कर सकती है, जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक होगा। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के मायने यह हैं कि फेसबुक, ट्विटर, गूगल, याहू और यू-ट्यूब जैसी वेबसाइट्स पर लोगों की धार्मिक भावनाओं, विचारों और व्यक्तिगत भावना से खेलने तथा अश्लील तस्वीरें पोस्ट करने की छूट दे दी जाए? व्यक्ति विशेष के प्रति अमर्यादित टिप्पणियां और अश्लील फोटो जारी करने दिए जाएं? किसी के खिलाफ भड़ास निकालने की खुली आजादी दे दी जाए? सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इन दिनों जो कुछ हो रहा है, क्या उसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर स्वीकार कर लिया जाये?
चूंकि ऐसी स्वच्छंदता पर काबू पाने का काम सरकार के ही जिम्मे है, इस कारण जैसे ही नियंत्रण की बात आई, उसने राजनीतिक लबादा ओढ लिया। राजनीतिक दृष्टिकोण से हट कर भी बात करें तो यह सवाल तो उठता ही है कि क्या हमारा सामाजिक परिवेश और संस्कृति ऐसी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आ रही अपसंस्कृति को स्वीकार करने को राजी है? माना कि इंटरनेट के जरिए सोशल नेटवर्किंग के फैलते जाल में दुनिया सिमटती जा रही है और इसके अनेक फायदे भी हैं, मगर यह भी कम सच नहीं है कि इसका नशा बच्चे, बूढ़े और खासकर युवाओं के ऊपर इस कदर चढ़ चुका है कि वह मर्यादाओं की सीमाएं लांघने लगा है। अश्लीलता व अपराध का बढ़ता मायाजाल अपसंस्कृति को खुलेआम बढ़ावा दे रहा है। जवान तो क्या, बूढ़े भी पोर्न मसाले के दीवाने होने लगे हैं। इतना ही नहीं फर्जी आर्थिक आकर्षण के जरिए धोखाधड़ी का गोरखधंधा भी खूब फल-फूल रहा है। साइबर क्राइम होने की खबरें हम आए दिन देख-सुन रहे हैं। जिन देशों के लोग इंटरनेट का उपयोग अरसे से कर रहे हैं, वे तो अलबत्ता सावधान हैं, मगर हम भारतीय मानसिक रूप से इतने सशक्त नहीं हैं। ऐसे में हमें सतर्क रहना होगा। सोशल नेटवर्किंग की  सकारात्मकता के बीच ज्यादा प्रतिशत में बढ़ रही नकारात्मकता से कैसे निपटा जाए, इस पर गौर करना होगा।
-tejwanig@gmail.com

नज़र खुद से जब आईने में मिलाता हूँ

Written By Brahmachari Prahladanand on गुरुवार, 15 दिसंबर 2011 | 6:27 pm

नज़र खुद से जब आईने में मिलाता हूँ,
अपने पर खुद ही मुस्कराता हूँ,
देखता हूँ बदलते चेहरे को,
न बदलते देखता हूँ, देखने वाले को,

चेहरा बदलता जाता है,
आईना बदलता जाता है,
देखने वाला वही रहता है,
वो कभी न बदल पाता  है,

रूह का यही तो आलम है,
चेहरा बदलता जाता है,
देह बदलती जाती है,
रूह न बदल कर आती है,

रूह की इतनी फिजा है,
देखो गौर से न खिजा है,
पर भर चेहरे की लगी है,
रूह तो सामने खड़ी है,

आखों के पीछे से झांकती है,
मुँह के पीछे से बोलती है,
कान के पीछे से सुनती है,
नाक के पीछे से सूंघती है,

रूह के बल पर ही देह खड़ी है,
बिन रूह देह हमेशा गिर पड़ी है,
रूह का निशान पहचान लो,
देह के पीछे रूह को जान लो,

                                  ------- बेतखल्लुस


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आहार व्यवहार की पवित्रता

Written By DR. ANWER JAMAL on बुधवार, 14 दिसंबर 2011 | 7:12 pm

एक तथ्यपरक चर्चा बेहतर भविष्य के लिए

हमारी भूलें : आहार व्यवहार की अपवित्रता - 2



व्यवहार में पवित्रतता लाने के लिए आहार की पवित्रता अत्यंत आवश्यक है| कहा गया है कि – “ जैसा अन्न वैसा मन”| जिस प्रकार का हम आहार करते है उसी प्रकार का मन बनने का आशय है कि यदि हमारा आहार तामस है तो मन उससे प्रभावित होकर अहंकार के पक्ष में निर्णय करेगा व यदि आहार सात्विक है तो मन सदा बुद्धि के अनुकूल रहकर हमको तर्क संगत विकासशील मार्ग अग्रसर करता रहेगा| 

इसी विषय पर यहां भी चर्चा जारी है.
देखिए Facebook पर
यह लिंक :
http://www.facebook.com/himanshijain18/posts/260672843987658?cmntid=260738030647806

हिप्नोटिज्म - सम्मोहन


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हिप्नोटिज्म की शुरुवात, हिप से होती है, जब कोई चलता है, और उसके हिप पर जब कोई नज़र रखता है तो वह व्यक्ति हिप्नोटिज्म का शिकार हो जाता है, शिकार इसलिए कहा क्यूंकि वह अब खुद के काबू में नहीं रहता है, और उस हिप वाले के जाल में फंसता चला जाता है, और उसे सारे रस्ते में पता भी नहीं चलता है की उसे कितना रास्ता पार कर लिया और कितने लोगों ने उसे इस हालत में देख लिया, जैसे हिप्नोटिज्म वाले पेंडुलम घुमा कर, हिप्नोटिज्म में ले जाते हैं, उसी तरह से हिप के पेंडुलम में वह अपने आप हिप्नोटिज्म में चला जाता है, यह है हिप्नोटिज्म की बात |

यहाँ पर है हिप्नोटिज्म का उदहारण : -





सम्मोहन वो चीज़ है जब किसी के कोई सम हो जाता है यानी की बराबर हो जाता है, और फिर उससे उसे मोह हो जाता है, उस मोह में उसको हन किया जाता है, वह है सम्मोहन | यानी जब किसी के ऊपर कोई अस्त्र काम नहीं करता है, तो फिर उसके सामने उसे समकक्ष वाला व्यक्ति रखा जाता है, जिससे वह एक दूसरे में खोते से जाते हैं, और फिर इससे में वह दुनिया को भूलते से जाते हैं, और इसी सम्मोहन का फायदा उठा कर तीसरा व्यक्ति अपना काम कर जाता है |

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आयुर्वेद शास्त्र बताता है कि महान आर्य पूर्वजों की शक्ति का रहस्य क्या था ?

Written By DR. ANWER JAMAL on मंगलवार, 13 दिसंबर 2011 | 9:42 am

### पं. डी. के. शर्मा 'वत्स' ने कहा है और वास्तव में बिल्कुल सही कहा है कि
आयुर्वेद शास्त्र, उसके निघण्टु कोष तथा पाकशास्त्र भी मानव जाति के आहार के विषय में पर्याप्त प्रकाश डालने वाले ग्रन्थ हैं.

आयुर्वेद शास्त्र बताता है कि महान आर्य पूर्वजों की शक्ति का रहस्य क्या था ?

विचार मंथन के लिए प्रेरणा देती उनकी पोस्ट देखिये :

वैदिक संस्कृति और माँसाहार ???


Founder

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Saleem Khan