आज भारतीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती मना रहे है. मैं भी देश के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले देश के इन दोनों अनमोल रत्नों को सादर श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं. मैं इन दोनों महापुरुषों के योगदान को समझ सकती हूं क्योंकि मैं अपने पिता स्व बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी में इनकी छवि के एक साथ दर्शन करती हूं. कैराना में अधिवक्ताओं के उज्जवल भविष्य हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले मेरे पिता जीवन की ऐसी कोई सुविधा नहीं थी जिसे वे हासिल न कर सकते हों, जो व्यक्ति अपने संपर्कों के दम पर कैराना में सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट ले आए, ए डी जे कोर्ट ले आए, जिनके दम पर अधिवक्ता यह कह सकते हों कि हम आंदोलन करने के लिए आगे बढ़ जाते थे क्योंकि पता था कि बाबू कौशल हमें बचा ही लेंगे, वह व्यक्ति अगर केवल अपनी प्रेक्टिस पर ध्यान देता तो कितनों का ही कहना है कि वे अपनी कोठी कार बना सकते थे किंतु उन्होंने नहीं चुना यह सुख आराम, उन्होंने चुना अधिवक्ता हित और अधिवक्ताओं का उज्जवल भविष्य और इसी कारण वे शायद पहले ऐसे अध्यक्ष बार एसोसिएशन कैराना रहे होंगे जिन्होंने 26 बार बार एसोसिएशन का अध्यक्ष पद सम्भालने के बावजूद अपनी सारी जिंदगी अपनी शादी में मिले सूट में गुजार दी. जब उन्होंने अपना शरीर छोड़ा तो सूट पैंट से भरे कई संदूक छोड़कर नहीं गए बल्कि एक अटैची में कई सालों से पहनी दो पैंट, दो कमीज और दो पाजामे छोडकर गए और एक जर्जर सूट जो अपनी शादी 18 नवंबर 71 से 1 मार्च 2015 तक पहनते आ रहे थे.
बदनसीब है बार एसोसिएशन कैराना जिसने पूरे वेस्ट यू पी में एक मजबूत पहचान देने वाले, कैराना के अधिवक्ताओं को सुरक्षित भविष्य देने वाले और अधिवक्ताओं के दुख में साथ खड़े रहने वाले, कैराना कचहरी के अधिवक्ताओं को ही अपना परिवार समझने वाले स्व बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट के त्याग, मेहनत, ईमानदारी का अपमान कर ऐसे व्यक्तित्व के दोबारा जन्म लेने पर ही रोक लगा दी. आज पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन मैं तो यही कहूँगी कि इस धरती पर कभी भी जन्म न लें मेरे पिता जैसे लोग ताकि कभी भी किसी भी संस्था को अपना सब अर्पण कर ऊंचा उठाने वाला व्यक्ति न मिले.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
कैराना (शामली)