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बदनसीब है बार एसोसिएशन कैराना

Written By Shalini kaushik on बुधवार, 2 अक्तूबर 2024 | 11:43 am

   


   आज भारतीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती मना रहे है. मैं भी देश के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले देश के इन दोनों अनमोल रत्नों को सादर श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं. मैं इन दोनों महापुरुषों के योगदान को समझ सकती हूं क्योंकि मैं अपने पिता स्व बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी में इनकी छवि के एक साथ दर्शन करती हूं. कैराना में अधिवक्ताओं के उज्जवल भविष्य हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले मेरे पिता जीवन की ऐसी कोई सुविधा नहीं थी जिसे वे हासिल न कर सकते हों, जो व्यक्ति अपने संपर्कों के दम पर कैराना में सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट ले आए, ए डी जे कोर्ट ले आए, जिनके दम पर अधिवक्ता यह कह सकते हों कि हम आंदोलन करने के लिए आगे बढ़ जाते थे क्योंकि पता था कि बाबू कौशल हमें बचा ही लेंगे, वह व्यक्ति अगर केवल अपनी प्रेक्टिस पर ध्यान देता तो कितनों का ही कहना है कि वे अपनी कोठी कार बना सकते थे किंतु उन्होंने नहीं चुना यह सुख आराम, उन्होंने चुना अधिवक्ता हित और अधिवक्ताओं का उज्जवल भविष्य और इसी कारण वे शायद पहले ऐसे अध्यक्ष बार एसोसिएशन कैराना रहे होंगे जिन्होंने 26 बार बार एसोसिएशन का अध्यक्ष पद सम्भालने के बावजूद अपनी सारी जिंदगी अपनी शादी में मिले सूट में गुजार दी. जब उन्होंने अपना शरीर छोड़ा तो सूट पैंट से भरे कई संदूक छोड़कर नहीं गए बल्कि एक अटैची में कई सालों से पहनी दो पैंट, दो कमीज और दो पाजामे छोडकर गए और एक जर्जर सूट जो अपनी शादी 18 नवंबर 71 से 1 मार्च 2015 तक पहनते आ रहे थे. 

    बदनसीब है बार एसोसिएशन कैराना जिसने पूरे वेस्ट यू पी में एक मजबूत पहचान देने वाले, कैराना के अधिवक्ताओं को सुरक्षित भविष्य देने वाले और अधिवक्ताओं के दुख में साथ खड़े रहने वाले, कैराना कचहरी के अधिवक्ताओं को ही अपना परिवार समझने वाले स्व बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट के त्याग, मेहनत, ईमानदारी का अपमान कर ऐसे व्यक्तित्व के दोबारा जन्म लेने पर ही रोक लगा दी. आज पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन मैं तो यही कहूँगी कि इस धरती पर कभी भी जन्म न लें मेरे पिता जैसे लोग ताकि कभी भी किसी भी संस्था को अपना सब अर्पण कर ऊंचा उठाने वाला व्यक्ति न मिले.

शालिनी कौशिक एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

हाई कोर्ट का निर्णय अधिवक्ता एकता पर कुठाराघात

Written By Shalini kaushik on गुरुवार, 5 सितंबर 2024 | 7:55 am

 


(Shalini Kaushik Law Classes post link) 

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि किसी वकील या वकीलों के संगठन द्वारा हड़ताल पर जाना, हड़ताल का आह्वान करना या किसी वकील, न्यायालय के अधिकारी या कर्मचारी या उनके रिश्तेदारों की मृत्यु के कारण शोक संवेदना के रूप में कार्य से विरत रहना, प्रत्यक्षतः आपराधिक अवमानना ​​का कृत्य माना जाएगा।

     जहां तक माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा अधिवक्ताओं की हड़ताल के कारण न्यायालय में रुके हुए न्यायिक कार्यों पर चिंता को देखते हुए वकीलों या वकीलों के संगठन द्वारा हड़ताल पर जाने की बात सामान्य मुद्दों पर देखा जाए तो सही कहीं जाएगी, किन्तु यदि हम अधिवक्ता समुदाय द्वारा शोक जताने के लिए हड़ताल को देखते हैं तो माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद को अपने निर्णय पर पुनर्विचार किए जाने के लिए ही आग्रह करेंगे क्योंकि उच्च न्यायालय इलाहाबाद का यह फैसला देखा जाए तो अधिवक्ता सम्वेदना को आपराधिक अवमानना के दायरे में घसीट रहा है जो कतई गलत है.

      माननीय उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि शोक सभा का आयोजन किसी भी कार्य दिवस में साढ़े तीन बजे से किया जा सकता है. अब अगर हम अधिवक्ता समुदाय द्वारा शोक जताने के लिए कार्य से विरत रहने की भावना और कारण की बात करते हैं तो य़ह शोक कर अधिवक्ता समुदाय द्वारा मृतक अधिवक्ता के या उसके मृतक परिजन के दाह संस्कार या दफनाने आदि की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए किया जाता है. मेरे पिता जो कि बार एसोसिएशन कैराना के वरिष्ठ अधिवक्ता थे, की मृत्यु 1 मार्च 2015 की शाम 7 बजे हुई, हिन्दू धर्म के सिद्धांतों के अनुसार रात में दाह संस्कार नहीं किया जाता है, इसलिए दाह संस्कार 2 मार्च को होना था, मैं स्वयं अधिवक्ता हूं, पिता की मृत्यु के कारण मैं कचहरी जा ही नहीं सकती थी और मेरे पिता का जो सम्पर्क, समुदाय था, वह भी अधिवक्ता समुदाय था और उस अधिवक्ता समुदाय ने सुबह 7 बजे से ही घर पर पहुंचना आरंभ कर दिया था जो कि स्वाभाविक भी था और जरूरी भी, किन्तु बड़ी संख्या में अधिवक्ता 11 बजे तक एकत्र हो पाए और वह भी तब जब वे कचहरी में शोक व्यक्त करते हुए कार्य से पूर्ण विरत रहने की घोषणा कर पाए. पूरी तरह से दाह संस्कार के कार्य में 2 घण्टे का समय लगा और अधिवक्ताओं द्वारा उसके बाद बार भवन में शोक सभा भी की गई जिसके बारे में मुझे पापा के साथी अधिवक्ता बताकर गए थे. यही नहीं सनातन धर्म के संस्कारों में मृत्यु के बाद तेरहवीं में भी मृतक के परिजनों के दुख बांटने के लिए उसके मित्र, सखा, सम्बन्धी सभी शामिल होते हैं ऐसे ही वकीलों के मित्र, सखा, सम्बन्धी लगभग सभी वकील ही होते हैं, मेरे पिता के भी मित्र, सखा वकील ही थे, जिनका सामुदायिक नाम बार एसोसिएशन कैराना है वे सभी मेरे पिता की तेरहवीं में शामिल हुए जिसका समय सनातन धर्म में 2 बजे रखा गया है और इसके लिए वे 2 बजे से कचहरी कैराना में कार्य से विरत रहे और यह सब जो हो रहा था, यह सब अधिवक्ताओं की संवेदना थी, जिसका कोई भी संदेश माननीय उच्च न्यायालय की आपराधिक अवमानना के रूप में नहीं लिया जा सकता है. ऐसे में साढ़े तीन बजे का निर्णय अगर तब हो गया होता तो एक अधिवक्ता के दाह संस्कार में अधिवक्ता समुदाय ही गायब होता और बाद में वह उपस्थित हो भी जाए तो वह दुख व्यक्त करता हुआ भी ग्लानि अनुभव करता. 

       अधिवक्ताओं पर पहले ही बहुत से प्रतिबन्ध हैं, वे न तो अपने व्यवसाय का विज्ञापन कर सकते हैं, न ही अपना व्यक्तिगत अन्य कारोबार कर सकते हैं, भले ही उनकी वकालत कुछ भी चले या न चले, वे अपने व्यवसाय की गरिमा का सम्मान करते हुए इन सभी नियम कानूनों का पालन करते हैं किन्तु अधिवक्ताओं के शोक जताने के लिए कार्य से विरत रहने को कोर्ट की आपराधिक अवमानना की श्रेणी में लाना अधिवक्ता समुदाय के साथ अन्याय है. पहले ही उत्तर प्रदेश में एडवोकेट प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू नहीं है और ऐसे में अधिवक्ताओं पर एक दूसरे के दुख में भी साथ देने पर इस तरह से रोक लगाने पर अधिवक्ताओं को अधिवक्ताओं से अलग करने का प्रयास कर "अधिवक्ता एकता" पर कुठाराघात किया जा रहा है, जिसे किसी भी हालत में सही नहीं कहा जा सकता है. अब मृतक अधिवक्ता या उसके मृतक परिजन के दाह संस्कार, या दफनाने आदि की प्रक्रिया में शामिल होने के समय को छोड़कर बाद में साढ़े तीन बजे मात्र शोक प्रकट कर देना मात्र एक औपचारिकता ही रह जाएगी जिससे अधिवक्ता एकता खतम ही हो जाएगी. 

शालिनी कौशिक

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

अपने लिए जिए तो क्या जिए - स्व श्री प्रेमचंद गुप्ता

Written By Shalini kaushik on गुरुवार, 1 अगस्त 2024 | 11:42 am

 


राष्ट्र व समाज के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले स्व श्री प्रेमचंद गुप्ता जी एक उदारमना व्यक्तित्व थे, जिनके शब्दकोष में किसी की सहायता हेतु 'नहीं' शब्द था ही नहीं। सामान्यतः कस्बे में गुरू जी व मास्टर जी के नाम से प्रसिद्ध स्व श्री प्रेमचंद गुप्ता जी ऐसी जिजीविषा से युक्त व्यक्तित्व थे ; जिसने व्यक्तिगत जीवन संघर्षो से टकराते हुए भी समाज के हितार्थ अपना अतुलनीय योगदान किया। 

        कांधला क्षेत्र की सर्वप्रथम स्थापित अग्रणी शैक्षणिक संस्था हिन्दू इण्टर कॉलेज में तीन दशकों तक अर्थशास्त्र प्रवक्ता के सम्मानित पद पर आसीन रहते हुए हजारों विद्यार्थियों को उज्जवल भविष्य प्रदान करने के साथ-साथ उन्होंने अनेक सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी के रूप में समाज की निःस्वार्थ सेवा की कितने ही गरीबों को आर्थिक सहायता प्रदान कर संकट से उबरने में उनका सहयोग किया स्व श्री प्रेमचंद गुप्ता जी ने कांधला क्षेत्र की समस्याओं को दूर करने, अनेक संस्थाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने, गरीब - शोषित जन की सहायता करते हुए एक जागरूक नागरिक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की। 

      कांधला के उत्तर में स्थित मुक्तिधाम को एक व्यवस्थित स्वरूप प्रदान कराने के लिए उन्होंने व्यापक जन संपर्क कर दिन रात एक कर दिए। प्रगतिशील विचारधारा के धनी स्व श्री प्रेमचंद गुप्ता जी सामाजिक विषमताओं से टकराने वाले, उन्हें चुनौती देने वाले और जीवंतता के पर्याय थे। स्व श्री प्रेमचंद गुप्ता जी ने सनातन धर्म व संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अपने समस्त जीवन काल में अद्वितीय योगदान किया। कांधला क्षेत्र का हर नागरिक उनके प्रतिअपनी कृतज्ञता प्रकट करता है और उनके जन्म दिवस पर उनको सादर नमन करता है। हम उनके समस्त परिवारीजन के उत्तम स्वास्थ्य तथा उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। 

सादर 

शालिनी कौशिक एडवोकेट डॉ शिखा कौशिक नूतन

अध्यक्ष एवं महासचिव 

मन्दिर महादेव मारूफ शिवाला कांधला धर्मार्थ ट्रस्ट (रजिस्टर्ड) 

समाज की कुलदेविया गौत्र वार

Written By yayawer on गुरुवार, 18 अप्रैल 2024 | 3:09 pm

क्षत्रिय वंश की कुलदेवियां प्राचीन समय में भारत में वर्ण व्यवस्था थी, जिसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र इन चार वर्णों में बाँटा गया था। यह वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गई तथा इन वर्णों के स्थान पर कई जातियाँ व उपजातियाँ बन गई। क्षत्रियों का कार्य समाज की रक्षा करना था। भारतीय उपमहाद्वीप की बहुत प्रभावशाली जाति है। 

समाज की अपनी कुल देवियों की मान्यता है. जिनकी यह पूजा करते है और जिनसे उन्हें शक्ति मिलती है। इन सभी कुल शाखाओं ने नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रखने के लिए कुल देवियों को स्वीकार किया। 

ये कुलदेवियां कुल के अनुसार निम्नलिखित हैं- 

खंगार - गजानन माता, 

चावड़ा - चामुंडा माता, 

छोकर - चण्डी केलावती माता, 

धाकर - कालिका माता, 

निमीवंश - दुर्गा माता, 

परमार - सच्चियाय माता, 

आसोपा सांखला - जाखन माता,

 पुरु - महालक्ष्मी माता, 

बुन्देला - अन्नपूर्णा माता, 

इन्दा - चामुण्डा माता, 

उज्जेनिया - कालिका माता, 

उदमतिया - कालिका माता, 

कछवाहा - जमवाय माता, 

कणड़वार - चण्डी माता, 

कलचूरी - विंध्यवासिनी माता, 

काकतिय - चण्डी माता,

काकन - दुर्गा माता, 

किनवार - दुर्गा माता, 

केलवाडा - नंदी माता, 

कौशिक - योगेश्वरी माता, 

गर्गवंश कालिका माता, 

गोंड़ - महाकाली माता, 

गोतम - चामुण्डा माता, 

गोहिल - बाणेश्वरी माता, 

चंदेल - मेंनिया माता, 

चंदोसिया - दुर्गा माता, 

चंद्रवंशी - गायत्री माता, 

चुड़ासमा -अम्बा भवानी माता, 

चौहान - आशापूर्णा माता, 

जाडेजा - आशपुरा माता, 

जादोन - कैला देवी (करोली), 

जेठंवा - चामुण्डा माता, 

झाला - शक्ति माता, 

तंवर - चिलाय माता, 

तिलोर - दुर्गा माता, 

दहिया - कैवाय माता, 

दाहिमा - दधिमति माता, 

दीक्षित - दुर्गा माता, 

देवल - सुंधा माता, 

दोगाई - कालिका(सोखा)माता, 

नकुम - वेरीनाग बाई,

नाग - विजवासिन माता, 

निकुम्भ - कालिका माता, 

निमुडी - प्रभावती माता, 

निशान - भगवती दुर्गा माता, 

नेवतनी - अम्बिका भवानी,

 पड़िहार - चामुण्डा माता,

परिहार - योगेश्वरी माता, 

बड़गूजर - कालिका(महालक्ष्मी)माँ, 

बनाफर - शारदा माता, 

बिलादरिया - योगेश्वरी माता, 

बैस - कालका माता, 

भाटी - स्वांगिया माता, 

भारदाज - शारदा माता, 

भॉसले - जगदम्बा माता, 

यादव - योगेश्वरी माता, 

राउलजी - क्षेमकल्याणी माता, 

राठौड़ - नागणेचिया माता, 

रावत - चण्डी माता, 

लोह - थम्ब चण्डी माता, 

लोहतमी - चण्डी माता, 

लोहतमी - चण्डी माता, 

वाघेला - अम्बाजी माता, 

वाला - गात्रद माता, 

विसेन - दुर्गा माता, 

शेखावत - जमवाय माता,

सरनिहा - दुर्गा माता, 

सिंघेल - पंखनी माता, 

सिसोदिया - बाणेश्वरी माता, 

सीकरवाल - कालिका माता, 

सेंगर - विन्ध्यवासिनि माता,

 सोमवंश - महालक्ष्मी माता, 

सोलंकी - खीवज माता, 

स्वाति - कालिका माता, 

हुल - बाण माता,

 हैध्य - विंध्यवासिनी माता, 

मायला - इन्जु माता , 

सिकरवार क्षत्रियों की कुलदेवी कालिका माता.

 हरदोई के भवानीपुर गांव में कालिका माता का प्राचीन मंदिर है। सिकरवार क्षत्रियों के घरों में होने वाले मांगलिक अवसरों पर अब भी सबसे पहले कालिका माता को याद किया जाता है। यह मंदिर नैमिषारण्य से लगभग 3 किलोमीटर दूर कोथावां ब्लाक में स्थित है। कहा जाता है कि पहले गोमती नदी मंदिर से सट कर बहती थी। वर्तमान में गोमती अपना रास्ता बदल कर मंदिर से दूर हो गयी है, लेकिन नदी की पुरानी धारा अब भी एक झील के रूप में मौजूद है। बुजुर्ग बताते हैं कि पेशवा बाजीराव द्वितीय को 1761 में अहमद शाह अब्दाली ने युद्ध क्षेत्र में हरा दिया था। इसके बाद बाजीराव ने अपना शेष जीवन गोमती तट के इस निर्जन क्षेत्र में बिताया। चूंकि वह देवी के साधक थे। इस कारण मंदिर स्थल को भवानीपुर नाम दिया गया। पेशवा ने नैमिषारण्य के देव देवेश्वर मंदिर का भी जीर्णोद्धार कराया था। अब्दाली से मिली पराजय के बाद उनका शेष जीवन यहां माता कालिका की सेवा और साधना में बीता। उनकी समाधि मंदिर परिसर में ही स्थित है। यहां नवरात्र के दिनों में मेला लगता है। मेला में भवानीपुर के अलावा जियनखेड़ा, महुआ खेड़ा, काकूपुर, जरौआ, अटिया और कोथावां के ग्रामीण पहुंचते हैं। यहां सिकरवार क्षत्रिय एकत्र होकर माता कालिका की विशेष साधना करते हैं।

डी जे पर प्रतिबन्ध लगे

Written By Shalini kaushik on मंगलवार, 5 मार्च 2024 | 7:21 am

  


आजकल शादी विवाह समारोह चल रहे हैं, आज घर के पीछे स्थित एक धर्मशाला में विवाह समारोह थाऔर जैसा कि आजकल का प्रचलन है वहाँ डी.जे. बज रहा था और शायद उच्चतम ध्वनि में बज रहा था और जैसा कि डी.जे. का प्रभाव होता है वही हो रहा था ,उथल-पुथल मचा रहा था ,मानसिक शांति भंग कर रहा था और आश्चर्य की बात है कि हमारे कमरों के किवाड़ भी हिले जा रहे थे ,हमारे कमरों के किवाड़ जो कि ऐसी दीवारों में लगे हैं जो लगभग दो फुट मोटी हैं और जब हमारे घर की ये हालत थी तो आजकल के डेढ़ ईंट के दीवार वाले घरों की हालत समझी जा सकती है .बहुत मन किया कि जाकर डी.जे. बंद करा दूँ किन्तु किसी की ख़ुशी में भंग डालना न हमारी संस्कृति है न स्वभाव इसलिए तब किसी तरह बर्दाश्त किया किन्तु आगे से ऐसा न हो इसके लिए कानून में हमें मिले अधिकारों की तरफ ध्यान गया .

भारतीय दंड सहिंता का अध्याय 14 लोक स्वास्थ्य ,क्षेम ,सुविधा ,शिष्टता और सदाचार पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय में है और इस तरह से शोर मचाकर जो असुविधा जन सामान्य के लिए उत्पन्न की जाती है वह दंड सहिंता के इसी अध्याय के अंतर्गत अपराध मानी जायेगी और लोक न्यूसेंस के अंतर्गत आएगी .भारतीय दंड सहिंता की धारा 268 कहती है -
''वह व्यक्ति लोक न्यूसेंस का दोषी है जो कोई ऐसा कार्य करता है ,या किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है ,जिससे लोक को या जन साधारण को जो आस-पास रहते हों या आस-पास की संपत्ति पर अधिभोग रखते हों ,कोई सामान्य क्षति ,संकट या क्षोभ कारित हो या जिसमे उन व्यक्तियों का ,जिन्हें किसी लोक अधिकार को उपयोग में लाने का मौका पड़े ,क्षति ,बाधा ,संकट या क्षोभ कारित होना अवश्यम्भावी हो .''
कोई सामान्य न्यूसेंस इस आधार पर माफ़ी योग्य नहीं है कि उससे कुछ सुविधा या भलाई कारित होती है .
इस प्रकार न्यूसेंस या उपताप से आशय ऐसे काम से है जो किसी भी प्रकार की असुविधा ,परेशानी ,खतरा,क्षोभ [खीझ ]उत्पन्न करे या क्षति पहुंचाए .यह कोई काम करने या कोई कार्य न करने के द्वारा भी हो सकता है और धारा 290 भारतीय दंड सहिंता में इसके लिए दंड भी दिया जा सकता है .धारा 290 कहती है -
''जो कोई किसी ऐसे मामले में लोक न्यूसेंस करेगा जो इस सहिंता द्वारा अन्यथा दंडनीय नहीं है वह जुर्माने से जो दो सौ रूपये तक का हो सकेगा दण्डित किया जायेगा .''
और न केवल दाण्डिक कार्यवाही का विकल्प है बल्कि इसके लिए सिविल कार्यवाही भी हो सकती है क्योंकि यह एक अपकृत्य है और यह पीड़ित पक्ष पर निर्भर है कि वह दाण्डिक कार्यवाही संस्थित करे या क्षतिपूर्ति के लिए सिविल दावा दायर करे .
और चूँकि किसी विशिष्ट समय पर रेडियो .लाउडस्पीकर ,डीजे आदि को लोक न्यूसेंस नहीं माना जा सकता इसका मतलब यह नहीं कि इन्हें हमेशा ही इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता .वर्त्तमान में अनेक राज्यों ने अपने पुलिस अधिनियमों में इन यंत्रों से शोर मचाने को एक दंडनीय अपराध माना है क्योंकि यह लोक स्वास्थ्य को दुष्प्रभावित करता है तथा इससे जनसाधारण को क्षोभ या परेशानी उत्पन्न होती है [बम्बई पुलिस अधिनियम 1951 की धाराएं  33, 36 एवं 38 तथा कलकत्ता पुलिस अधिनियम 1866 की धारा 62 क [ड़]आदि ]
इसी तरह उ०प्र० पुलिस अधिनयम 1861 की धारा  30[4] में यह उल्लेख है कि वह त्यौहारों और समारोहों के अवसर पर मार्गों में कितना संगीत है उसको भी विनियमित कर सकेगा .

''शंकर सिंह बनाम एम्परर ए.आई.आर. 1929 all .201 के अनुसार त्यौहारों और समारोहों के अवसर पर पुलिस को यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि वह संगीत के आवाज़ की तीव्रता को सुनिश्चित करे .त्यौहारों और समारोहों के अवसर पर लोक मार्गों पर गाये गए गाने एवं संगीत की सीमा सुनिश्चित करना पुलिस का अधिकार है .''

और यहाँ मार्ग से तात्पर्य सार्वजनिक मार्ग व् स्थान से है जहाँ जनता का जमाव विधिपूर्ण रूप में होता है और इसलिए ऐसे में पुलिस भी इस तरह के समारोहों में इन यंत्रों की ध्वनि तीव्रता का विनियमन कर सकती है .

      साथ ही कानून द्वारा मिले हुए इस अधिकार के रहते ऐसे स्थानों की प्रबंध समिति का भी यह दायित्व बन जाता है कि वह जन सुविधा व् स्वास्थ्य को देखते हुए ध्वनि तीव्रता के सम्बन्ध में नियम बनाये अन्यथा वह भी भारतीय दंड सहिंता के अंतर्गत दंड के भागी हो सकते हैं क्योंकि वे प्रबंधक की हैसियत से प्रतिनिधायी दायित्व के अधीन आते हैं .
 
शालिनी कौशिक 
एडवोकेट 
कैराना (शामली) 

Founder

Founder
Saleem Khan