Life is Just a Life: एक लत Ek Lat: मेट्रो भी अजीब है जितनी ज्यादा बेतरतीब आवाजें सुनाई देतीं हैं ज्ञान गंगाएँ उतना ही शांत हो जाता हूँ मैं, जितनी ज्यादा भीड़ मि...
8:08 pm
Life is Just a Life: एक लत Ek Lat
Written By नीरज द्विवेदी on बुधवार, 28 मई 2014 | 8:08 pm
10:03 am
Life is Just a Life: खिलखिलाहट Khilkhilahat
Written By नीरज द्विवेदी on रविवार, 25 मई 2014 | 10:03 am
Life is Just a Life: खिलखिलाहट Khilkhilahat: बहुत कुछ लिखा है तुमने मेरी हथेली पर रंगीन कूचियों से छितराए हैं रंग मुस्कुराते हुए खिलखिलाते हुए गुनगुनाते हुए चढ़ रह...
8:25 am
Life is Just a Life: क्षणिका - इन्तजार
Written By नीरज द्विवेदी on शुक्रवार, 23 मई 2014 | 8:25 am
Life is Just a Life: क्षणिका - इन्तजार:
क्षणिका - इन्तजार
पाना
केवल पलभर का ...
और इन्तजार की हद क्या है ?
क्यों
एक पल से
काम चलाऊं ...
सदियों के
इन्तजार से
बेहतर क्या है?
-- नीरज द्विवेदी
2:43 pm
बेवफाओं से इतना पड़ा पाला कि अब
इल्तिफ़ात से भी किनारा लेना सीख़ लिया।
झूठे कसमें वादों से अब मैं कभी ना टूटूंगा
ग़ार को पहचानने का हुनर जो सीख लिया।
वो कत्लेआम के शौक़ीन हैं तो क्या हुआ
मैंने भी तो अब मर के जीने का तरीका सीख़ लिया।
सुनसान रास्तों पर चलने से अब डर नहीं लगता
मैंने अब इन पर आना-जाना सीख लिया।
मर कर जीना सीख लिया
Written By Mithilesh dubey on गुरुवार, 15 मई 2014 | 2:43 pm
अब दुःख दर्द में भी मैने मुस्कुराना सीख लिया
जब से अज़ाब को छिपाने के सलीका सीख लिया। बेवफाओं से इतना पड़ा पाला कि अब
झूठे कसमें वादों से अब मैं कभी ना टूटूंगा
वो कत्लेआम के शौक़ीन हैं तो क्या हुआ
सुनसान रास्तों पर चलने से अब डर नहीं लगता
शब्दार्थ :::
इल्तिफ़ात- मित्रता
ग़ार- विश्वासघात
इल्तिफ़ात- मित्रता
ग़ार- विश्वासघात
अज़ाब - पीड़ा
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