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श्री राहुल गांधी - एक महान राष्ट्रनायक

Written By Shalini kaushik on सोमवार, 26 दिसंबर 2022 | 5:49 pm

 



        श्री राहुल गांधी जी आज भारत में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक आम भारतीयों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ चुके हैं. भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से राहुल गांधी ने भारत को तोड़ने का इरादा रखने वालों के दिलों को बहुत तगड़ा झटका दिया है और इसी कारण राहुल गांधी जी के विरोधी कभी राहुल गांधी द्वारा महिलाओं, ल़डकियों से हाथ मिलाने को लेकर उन पर कटाक्ष करते हैं तो कभी यात्रा में मात्र सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी बताकर राहुल गांधी जी के भारत जोड़ने के प्रयास की हँसी उड़ाते हैं ऊपर से गोदी मीडिया के द्वारा भरसक कोशिश की जाती है कि भारत जोड़ो यात्रा को भारत में कोई प्रचार न मिले किन्तु आज भारत जोड़ो यात्रा एक क्रांति बन चुकी है और इतिहास गवाह है कि क्रांति कभी दबाई नहीं जा सकती है बल्कि क्रांति को जितना दबाया जाता है वह उतना ही रौद्र रूप लेकर उभरती है. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम इसकी गवाही देता है और आज भारत जोड़ो यात्रा भी एक ऐसी ही क्रांति बन गई है जिसमें कॉंग्रेस पार्टी के युवा नेता पूर्व कॉंग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी जी ने अपनी पूरी जीवन शक्ति लगा दी है.

                  कन्याकुमारी से आरंभ होकर भारत जोड़ो यात्रा जैसे ही उत्तर की ओर बढ़ी, सियासी हल्कों में हलचल आरंभ हो गई और राजस्थान में उमड़ पड़े जनसमुदाय ने राहुल गांधी जी के विरोधियों में आग सी लग गई और शुरू हो गई कोरोना के फैलने की खबरें. जिस भारत जोड़ो यात्रा में अब तक विरोधियों के अनुसार इक्का-दुक्का ही लोग आ रहे थे उसे रोकने के लिए स्वास्थ्य मंत्री राहुल गांधी जी को भारत जोड़ो यात्रा रोकने के लिए पत्र लिखने बैठ गए.

      यही नहीं राहुल गांधी जी की राष्ट्रीयता यहीं पर नहीं रुकी बल्कि यात्रा के दिल्ली आने पर वे सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के समाधि स्थल पर गए और यहां उन्होंने एक बार फिर दिखा दिया कि उनमें है वह भावना-जो एक सच्चे और महान राष्ट्रनायक में होनी चाहिए.

      राहुल गांधी सर्वप्रथम अपने पिता और देश के सातवें प्रधान मंत्री स्व श्री राजीव गांधी जी की समाधि स्थल वीर भूमि पर गए, इंदिरा गांधी जी की समाधि शक्ति स्थल, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि राजघाट, पंडित नेहरू की समाधि शांति वन, लाल बहादुर शास्त्री जी की समाधि विजय घाट, चौधरी चरण सिंह जी की समाधि स्थल किसान घाट पर गए, पर यह कोई महान कार्य नहीं था क्योंकि ये सभी कॉंग्रेस पार्टी के आदर्श चरित्र और नेता रहे हैं, राहुल गांधी जी की महानता कही जाएगी उनका भाजपा नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी जी की समाधि स्थल सदैव अटल पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित करना. ऐसा नहीं है कि स्व अटल बिहारी वाजपेयी जी उनकी श्रद्धांजली के पात्र नहीं थे, अटल बिहारी वाजपेयी जी सदैव भारतीयों के हृदय में सम्मान के पात्र हैं और रहेंगे किन्तु देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने वाले पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जी क्या भाजपाई प्रधानमंत्री और भाजपाई राष्ट्रपति के द्वारा सम्मान के पात्र नहीं होने चाहिए. वर्तमान और  वर्ष 2000 के बाद का देश का इतिहास गवाह है भाजपा द्वारा बनाए गए पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जी के जयंती और पुण्यतिथि के अवसर पर देश में कहीं और का प्रवास कार्यक्रम तय कर लेते थे और इनकी समाधि स्थल पर जाकर अपनी पुष्पांजलि अर्पित नहीं करते थे और यही रवैय्या भाजपा के वर्तमान नेतृत्व का है जो देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले कॉंग्रेस पार्टी के इन महान प्रधानमंत्रियों की जयंती और पुण्यतिथि पर ट्विटर पर ट्वीट द्वारा ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं.

        ऐसे में, एक राष्ट्रनायक वही होना चाहिए जो दलगत राजनीति से परे रहता हो, केवल राष्ट्र का सम्मान ही सर्वोपरि रखता हो और कॉंग्रेस पार्टी से जुड़े होने पर भी राहुल गांधी के द्वारा भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री स्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की समाधि पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित करना उन्हें राष्ट्रनायक की छवि प्रदान करता है और एक आम भारतीय आज उनमें अपने भारत राष्ट्र का महान नायक होने का अक्स देख रहा है. राहुल गांधी जिंदाबाद 🇮🇳

शालिनी कौशिक

 एडवोकेट 

कैराना (शामली) 


हिन्दू बड़े दिलवाले - Marry Christmas 🌲🌹🌲

Written By Shalini kaushik on शनिवार, 24 दिसंबर 2022 | 2:35 pm

   


 व्हाटसएप और ट्विटर पर आज राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में लगभग हर किसी के खाते नज़र आते हैं और इसीलिए मन की हर बात को इन पर साझा किया जाना एक आम चलन बनता जा रहा है और इसी कारण ये अकाउंट सामाजिक सौहार्द और भारतीय संस्कृति के लिए काफी हद तक, अगर सच ही कहा जाए तो, खतरनाक बनते जा रहे हैं. 

     पिछले कुछ दिनों से ट्विटर और व्हाटसएप के स्टेटस पर 25 दिसंबर के लिए कट्टर हिन्दुत्व, स्वयंसेवक बनने और तुलसी पूजन जैसे संदेश प्रसारित किए जा रहे हैं और वह मात्र इसलिए कि 25 दिसंबर को ईसाई धर्मावलंबियों का पवित्र त्यौहार "क्रिसमस" मनाया जाता है. ऐसी ट्वीट, ऐसे स्टेटस एक चिंता सी पैदा कर रहे हैं कि क्या यही लिखा है हमारे महान भारत की महान संस्कृति में कि हम दूसरे की खुशियों में आग लगाने का कार्य करें. वह संस्कृति जो कबीरदास की पन्क्तियों में हमें प्रेरित करती है 

"ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए, 

  औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होय." 

      आज उसी भारतीय संस्कृति को मैला करने का, दूषित करने का आगाज हो रहा है और यह कहना भी देरी ही होगी कि आज ऐसा करना आरंभ किया गया है जबकि बीते भारत के कुछ साल एक खास वर्ग इसी साज़िश को अंजाम दे रहा है जिससे निबटने के लिए देश के एक प्रमुख राजनेता श्री राहुल गांधी जी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा की सफल शुरूआत की है. 

       भारतीय संस्कृति के महान विद्वान् डाॅ. रामधारी सिंह जी दिनकर ने भारतीय संस्कृति की व्याख्या करते हुए लिखा है, कि भारतीय संस्कृति का महत्व स्वयं सिद्ध है। यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की धरोहर है। संस्कृति के वरदहस्त से ही हमारा राष्ट्र निरंतर प्रगति के पथ पर प्रशस्त है। भारतीय संस्कृति आंतरिक भावना है। इसके अंतर्गत व्यक्ति के आचार विचार उसके जीवन मूल्य, उसकी नैतिकता, संस्कार, आदर्श, शिक्षा, धर्म, साहित्य और कला का समावेश होता है अतः भारतीय संस्कृति एक व्यापक तत्व है। निश्चित ही भारतीय संस्कृति मानव की साधना की सर्वोत्तम परिणति है।"

‘‘भारतीय संस्कृति में धर्म की स्वीकृति है, किन्तु धर्म किसी संकीणर्ता या अंधविश्वास का पर्याय नहीं है।’’ वर्तमान समय ही नहीं बल्कि प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति का आधार धार्मिक एकता व सहिष्णुता रहा है। राम, कृष्ण, शिव तथा बुद्ध, महावीर इत्यादि की मान्यताओं के अलावा भारत में देवी-देवताओं की संख्या अनगिनत है। फिर भी इनकी विचारधाराओं में एकता का मूल है, क्योंकि विभिन्न रूप स्वीकार करने पर भी एक-ईश्वर में भारतीय मानस का विश्वास सुदृढ़ है। 

ऋग्वदे की प्रसिद्ध ऋचा - ‘एक सद्धिप्रा बहुधा वदन्ति’ के अनुसार एक शक्ति के स्वरूप अनेक है। सगुण रूप मे इष्टदेव के नामभेद होने पर भी निराकार ब्रह्म की सत्ता सब हिन्दू मतो में मान्य है। अहिंसा, दया, तप आदि सभी गृहस्थ और वैराग्य धर्मों का सिद्धान्त है। चाहे वे बौद्ध, जैन या वैष्णव किसी भी मत के मानने वाले हों। 

भारतीय संस्कृति मे सहनशीलता का भी बड़ा विशिष्ट गुण है। इसी का परिणाम है कि देश में अनेक जातियाँ और धर्मों के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं फिर भी भारतीय संस्कृति विलीन नहीं हुई है। आदान-प्रदान की प्रक्रिया द्वारा भारतीय संस्कृति अपने स्वरूप को संजोये हुए ‘अनेकता में एकता’ की स्थापना प्रकट करती है। भारत की धर्म परायणता से न तो इस्लाम को ठेस पहुँची और न ईसाईयत को कोई हानि हुई। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई भारत में केवल एक धर्म ही नहीं हैं बल्कि भारत की पहचान के चार मजबूत स्तंभ हैं. धर्म और अध्यात्म द्वारा भारतीय संस्कृति जन-जीवन को आश्वस्त बनाने में सफल हैं। 

        भारतीय संस्कृति के इस गुण को बताते हुए पृथ्वी कुमार अग्रवाल लिखते हैं - ‘आपसी भेद का कारण भारतीय संस्कृति में धर्म कभी नहीं बन सका। एक-दो उदाहरण हो तो उसके मूल में अन्य तथ्य प्रमुख है। संस्कृति की एक विशेषता को न केवल विचारक दार्शनिकों ने स्थापित किया, बल्कि राजनयिकों और सम्राटो ने भी समझा। 

स्वयं अशोक का कथन है कि उसने धार्मिक मेल-जोल को बढ़ावा देने का सफल प्रयत्न किया है। इस सहिष्णुतापूर्ण समन्वय भावना को मुगल बादशाह अकबर ने भी स्वीकार किया और तदनुसार इस्लाम जैसा विपरीत मत भी भारतीयता का अंग बन गया।’ विश्व इतिहास में हम धर्म के नाम पर अनेक अत्याचारों का होना पाते हैं। यूनान में सुकरात, फिलिस्तीन में ईसा मसीह को बलि होना पड़ा। परन्तु भारतीय संस्कृति में हिंसा धर्मान्धता के वशीभूत नही हुई। सहिष्णुता भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है।

   खुली दृष्टि और ग्रहण शीलता भारतीय संस्कृति का एक मन्त्र है। बाह्य संस्कृतियों और जातियों से आदान-प्रदान प्रभावों को आत्मसात करना, नए लक्ष्य की प्राप्ति आदि उसी विचारधारा के अंग है। सामाजिक व्यवस्था की उदारता और ग्रहण क्षमता उसके लक्षण है। डॉ विजयेन्द्र स्नातक लिखते हैं कि भारतीय संस्कृति का मूलाधार - ‘‘जीयो और जीने दो है। हमारी संस्कृति की यही खुली विचारधारा है। समय-समय पर अनेक जातियाँ भारतवर्ष में आकर यही  घुल-मिल गई। राजनीतिक विजय के बावजूद भी ये भारत की संस्कृति पर विजय नहीं पा सकी। इनकी अच्छी विचारधारा को भारतीय संस्कृति ने अपने अन्दर समाहित कर लिया।

इसी प्रकार की विचारधारा को दिनकर जी ने भी व्यक्त किया है - ‘भारतीय संस्कृति में जो एक प्रकार की विश्वसनीयता उत्पन्न हुई, वह संसार के लिए सचमुच वरदान है। इसके लिए सारा संसार उसका प्रशंसक रहा है। निःसंदेह वर्तमान में भी यही विचारधारा भारतीय संस्कृति को संपोषित कर रही है।

भारतवर्ष में भौगोलिक व सांस्कृतिक विविधता होते हुए भी यह देश अपनी एकता के लिए विख्यात है। इस देश को ’संसार का संक्षिप्त प्रतिरूप’ कहा गया है। यह धरती अनेक जनो वाली विविध भाषा, अनेक धर्म और यथेच्छ घरो वाली है। भाषा और धर्म देश में विविधता के आज भी लक्षण है। किन्तु वे एक सूत्रबद्ध है। भारतीय संस्कृति की ‘विविधता में एकता’ की विचारधारा पर रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं - ‘‘भारतवर्ष मे सभी जाति मिलकर एक अलग समाज का निर्माण करती हैं जैसे - कई प्रकार की औषधियों को कड़ाही में डालकर जब काढ़ा बनाते हैं तब उस काढ़ा  का स्वाद दूर एक औषधि के अलग स्वाद से सर्वथा भिन्न हो जाता है। असल में उस काढ़ा  का स्वाद सभी औषधियों के स्वादों के मिश्रण का परिणाम होता है। 

     भारतीय संस्कृति ने विश्व की किसी भी संस्कृति को हेय दृष्टि से नहीं देखा है। किसी को भी स्वयं से तुच्छ आंकना हमारी संस्कृति में सिखाया ही नहीं गया है. इसने अन्य सभ्यताओं के गुणों को आत्मसात करने के साथ-साथ उनके अवगुणों का परिष्कार भी किया है। यह हमारी ही संस्कृति है जो सच्चाई के लिए अगर मिटना जानती है तो अपनों का साथ देने के लिए मिटा देना भी जानती है. शायद यही कारण है कि हमारी संस्कृति वर्तमान में भी ज्यो की त्यों अपनी प्रसिद्धि बनाये हुए हैं। इस प्रकार हमारी संस्कृति विश्व की ओजस्वी संस्कृति है।

      

       डाॅ. हरिनारायण दुबे ने भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, कि ‘‘भारतीय संस्कृति का प्राणतत्व आध्यात्मिक है। इसमें ऐहिक एवं भौतिक सुखों की तुलना में आत्मिक अथवा पारलौकिक सुख के प्रति आग्रह देखा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में धर्मान्धता का कोई स्थान नहीं है। इस संस्कृति की मूल विशेषता यह रही है कि व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुरूप मूल्यों की रक्षा करते हुए कोई भी मत, विचार अथवा धर्म अपना सकता है।"

" भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण विरासत इसमें अंतर्निहित सहिष्णुता की भावना मानी जा सकती है। यद्यपि प्राचीन काल से ही भारत में अनेक धर्म एवं सम्प्रदाय रहे हैं किंतु इतिहास साक्षी है कि धर्म के नाम पर अत्याचार और रक्तपात प्राचीन भारत में नहीं हुआ. इस प्रकार भारत भूमि का यह सतत् सौभाग्य रहा है कि यहां अनादिकाल से मानवमात्र को ही नहीं वरन प्राणिमात्र को एकता एवं भाईचारे की भावना में जोड़ने की प्रबल संस्कृति प्रवाहमान है।"

   महान् साहित्यकार कवि और विद्वान् श्री रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार ‘‘भारतीय संस्कृति की आध्यात्म और मानवता की भावना अनुकरणीय है। भारतीय संस्कृति का दृष्टिकोण उदार और विशाल है क्योंकि मूलतः उसका विकास प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में और उसके साथ सहयोग करते हुए हुआ है। इसी कारण भारतीय संस्कृति में सहयोग समन्वय, उदारता तथा समझौते की प्रवृत्ति मूलरूप से विद्यमान है।"

       " डाॅ. एल. पी. शर्मा ने भारतीय संस्कृति की व्याख्या करते हुए उसकी निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है-          

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम् संस्कृति है। 

भारतीय संस्कृति में विविधता होते हुए भी एकता विद्यमान है। 

भारतीय संस्कृति में धार्मिक सहिष्णुता सदैव रही है।

 भारतीय संस्कृति एक धर्म प्रधान संस्कृति है। 

भारतीय संस्कृति सदैव प्रगतिशील रही है। 

भारतीय संस्कृति में भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति का मिश्रण है। 

भारतीय संस्कृति में विश्व बंधुत्व की भावना निहित है। 

भारतीय संस्कृति की प्रकृति सहयोगात्मक है.   

       

           इस प्रकार, विश्व बंधुत्व का संदेश देने वाली, वसुधैव कुटुंबकम की भावना संजोने वाली भारतीय संस्कृति आज स्वार्थ की राजनीति का शिकार होकर क्या इतना नीचे गिर जाएगी कि दूसरे की खुशियों को आग लगाकर अपनी दुनिया को रोशन करेगी. जिस संस्कृति में अतिथि तक को देवता का स्थान दिया गया है, उस संस्कृति में अपनी आने वाली पीढ़ी को अपने भाइयों के ही साथ भेदभाव की सीख दी जाएगी. तुलसी पूजन दिवस कह कर हिन्दुओं की भावनाएं उद्वेलित करने वाले धर्म के ठेकेदारों ने क्या अभी कार्तिक माह के पूरे महीने में माँ तुलसी की आराधना नहीं की है और फिर तुलसी हमारे लिए पूजनीय पौधा है क्या इसके लिए हम मात्र 25 दिसंबर को ही चुनेंगे और वो भी इसलिए कि क्रिसमस पर एक ट्री को सजा कर ईसाई अपनी खुशियाँ मनाते हैं. क्यूँ छोटा कर रहे हैं हिन्दू अपने हृदय की विशालता को, जो साल भर सत्कार पाने वाली माँ तुलसी को एक क्रिसमस ट्री के समक्ष खड़ा कर छोटा कर रहे हैं. संता के रूप में ईसाईयों के छोटे मासूम बच्चों की मासूमियत को क्यूँ अपनी राजनीति के लिए अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं? कहाँ तो विद्यालयों में राजनीति के प्रवेश तक का विरोध किया जाता था और कहां आज सत्ता के लिए, अपनी राजनीति चमकाने के लिए छोटे छोटे मासूम बच्चों की मासूमियत को कट्टरता में बदलने की कोशिश की जा रही है. इस तरह खतम हो जाएगा ये बचपन, ये समाज, ये देश और इस तरह ये सारी सभ्यता. 

          इसलिए मत संकीर्ण कीजिए खुद की सोच को, खुद के दिल के दरवाजे बंद मत कीजिए, हवाओं को आने दीजिए और सामाजिक समरसता, धार्मिक सौहार्दपूर्ण वातावरण बना रहने दीजिए, हिन्दू धर्मावलंबियों ने अभी श्री कृष्ण जन्माष्टमी, नवरात्रि, विजयादशमी, दीपावली आदि बहुत से त्योहार मनाए हैं और उसमें अपने ईसाई, मुस्लिम, सिख भाई - बहनों से बहुत सी हार्दिक शुभकामनाएं प्राप्त की हैं. तो अब अपना भी दिल खुला रखिए और खुले दिल से अपने ईसाई भाई बहनों को भी क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित कीजिए. 

🌲🌹HAPPY CHRISTMAS 🌹🌲

द्वारा 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली)






संविधान दिवस आयोजन - भारत जोड़ो यात्रा की सफ़लता

Written By Shalini kaushik on रविवार, 27 नवंबर 2022 | 12:37 pm

 



      26 नवंबर - विधि दिवस - संविधान दिवस के रूप में 1949 से स्थापित हो गया था। भारत गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया और तभी से भारत गणराज्य में 26 नवंबर का दिन "संविधान दिवस - विधि दिवस" के रूप में मनाया जाता है. 

     देश में एक लम्बे समय तक कॉंग्रेस पार्टी की ही सरकार रही है और क्योंकि कॉंग्रेस पार्टी के ही अनथक प्रयासों से देश में संविधान का शासन स्थापित हुआ है इसलिए कॉंग्रेस पार्टी के द्वारा संविधान दिवस मनाया जाना आरंभ से ही उसकी कार्यप्रणाली में सम्मिलित रहा है किन्तु आज देश में कॉंग्रेस विरोधी विचारधारा सत्ता में है और उस विचारधारा ने कॉंग्रेस की विचारधारा और कार्यप्रणाली के ही विपरीत आचरण को ही सदैव अपने आचरण में सम्मिलित किया है और इसी का परिणाम है कि आज देश में बहुत से ऐसे शासनादेश सामने आए हैं जो संवैधानिक नियमों का उल्लंघन करते हुए नजर आए हैं और इन्ही कुछ परिस्थितियों के मद्देनजर कॉंग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान सांसद श्री राहुल गांधी जी द्वारा देश में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक 7 सितंबर 2022 से भारत जोड़ो यात्रा आरंभ की गई, जिसमें उमड़े हुए अपार ज़न समूह को देखकर और राहुल गांधी के प्रति जनसमुदाय के प्यार को देखकर कॉंग्रेस पार्टी के विपक्षी  खेमे को गहरा झटका लगा है और वह कैसे भी करके, कभी महिलाओं का राहुल गांधी जी द्वारा हाथ पकड़ने को लेकर तो कभी राहुल गांधी जी की दाढ़ी को लेकर, कभी भीड़ को फोटो शॉप कहकर भारत जोड़ो यात्रा को बदनाम करने की कोशिश में लगे हुए हैं. 

     भारत जोड़ो यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण असर ही कहा जाएगा कि पिछले 8 साल से सत्ता में आया कॉंग्रेस पार्टी का विपक्षी खेमा अपनी विचारधारा के विपरीत देश के सभी महत्वपूर्ण संस्थानों - कलेक्ट्रेट, पुलिस थाने, विकास विभाग, महाविद्यालय, इंटर कॉलेज आदि सभी जगह संविधान दिवस मनाए जाने के आदेश पारित किए जाते हैं, सभी संस्थानों के अफसर संविधान की शपथ ग्रहण करते हैं. संविधान की श्रेष्ठता पर बड़े बड़े भाषण दिए जाते हैं. ये राहुल गांधी जी की भारत जोड़ो यात्रा की बहुत बड़ी सफ़लता कही जाएगी क्योंकि आज कॉंग्रेस पार्टी का विपक्षी खेमा वह सब कुछ कर रहा है जिसे उसने कभी अपनी कार्यप्रणाली, अपनी संस्कृति, अपनी विचारधारा मे कोई जगह नहीं दी. वह संविधान की शपथ ले रहे हैं जो संविधान के शासन के ही खिलाफ थे, वे हर घर तिरंगा अभियान चला रहे हैं जो कभी अपने कार्यालय तक पर तिरंगे को फहराने की ज़हमत नहीं उठाते थे. 

         आज राहुल गांधी और उनकी भारत जोड़ो यात्रा देश ही नहीं, विदेश में भी सुर्खियों में है और इसमें उमड़ता हुआ अपार ज़न समूह इसकी बुलंदियां ज़ाहिर करने के लिए पर्याप्त है. जय हिंद - जय भारत 🇮🇳🇮🇳

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 



डॉ शिखा कौशिक नूतन की पुस्तक का विमोचन


 मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल (छठा संस्करण) 25, 26, 27 नंवबर 2022 को चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के 'बृहस्पति भवन' में विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया. आयोजन समिति में नेपाल, ब्रिटेन, रूस, जापान और समस्त भारत से आने वाले अतिथियों का भारत में आयोजक डॉ विजय पंडित और पूनम पंडित द्वारा हार्दिक स्वागत किया गया. 

      देश विदेश में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके अंतरराष्ट्रीय क्रांतिधरा मेरठ साहित्यिक महाकुंभ में 26 नवंबर को आयोजित लघुकथा सत्र में डॉ शिखा कौशिक "नूतन" द्वारा लिखित लघु कथा संग्रह "काली सोच" का विमोचन बलराम अग्रवाल जी (वरिष्ठ लघुकथाकार, दिल्ली) श्री जी सी शर्मा (रिटायर्ड डिप्टी एस पी), श्रीमती अंजू खरबंदा (लघुकथाकार, दिल्ली) डॉ अलका शर्मा (दिल्ली) श्रीमती पूर्णिमा (मेरठ)  नेपाल से वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ पुष्कर राज भट्ट जी द्वारा किया गया और डॉ शिखा कौशिक नूतन को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया.डॉ शिखा कौशिक नूतन ने अपने संबोधन में लघुकथा के स्वरूप को परिभाषित करने वाले हिन्दी लघुकथा के पितामह स्व सतीश राज पुष्करणा का उल्लेख करते हुए कहा कि वास्तव में लघुकथा मंद मंद बहती हुई सरिता के समान न होकर अनायास प्रस्फुटित झरने के समान है। उन्होंने अपने लघुकथा संग्रह 'काली सोच' में संग्रहित लघुकथा ' प्रेम की अभिव्यक्ति' का वाचन भी किया। जिसमें डॉ शिखा कौशिक द्वारा प्रेम की अभिव्यक्ति - लघुकथा द्वारा प्रेम के विराट और सच्चे स्वरूप का वर्णन किया गया. लेखिका ने लघुकथा का वाचन करते हुए कहा गया कि "प्रेमी ने प्रेमिका को गुलाब का महकता फूल भेंट करते हुए कहा - मैं तुमसे प्रेम करता हूँ. प्रेमिका ने फूल स्वीकार करने से पहले अपना ओढ़ा हुआ शॉल कंधे से उतारा और ठंड से ठिठुरते हुए प्रेमी को ओढ़ा दिया." लेखिका द्वारा की गई प्रेम की उच्च अभिव्यक्ति की सभी उपस्थित अतिथियों द्वारा मुक्त कंठ से सराहना की गई.

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

भारत की शेरनी प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी - कोटि कोटि नमन 💐

Written By Shalini kaushik on शुक्रवार, 18 नवंबर 2022 | 9:52 pm



अदा रखती थी मुख्तलिफ ,इरादे नेक रखती थी ,

वतन की खातिर मिटने को सदा तैयार रहती थी .

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मोम की गुड़िया की जैसी ,वे नेता वानर दल की थी ,,

मुल्क पर कुर्बां होने का वो जज़बा दिल में रखती थी .

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पाक की खातिर नामर्दी झेली जो हिन्द ने अपने ,

वे उसका बदला लेने को मर्द बन जाया करती थी .

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मदद से सेना की जिसने कराये पाक के टुकड़े ,

शेरनी ऐसी वे नारी यहाँ कहलाया करती थी .

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बना है पञ्च-अग्नि आज छुपी है पीछे जो ताकत ,

उसी से चीन की रूहें तभी से कांपा करती थी .

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जहाँ दोयम दर्जा नारी निकल न सकती घूंघट से ,

वहीँ पर ये आगे बढ़कर हुकुम मनवाया करती थी .

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कान जो सुन न सकते थे औरतों के मुहं से कुछ बोल ,

वो इनके भाषण सुनने को दौड़कर आया करती थी .

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न चाहती थी जो बेटी का कभी भी जन्म घर में हो ,

मिले ऐसी बेटी उनको वो रब से माँगा करती थी .

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जन्मदिन ये मुबारक हो उसी इंदिरा की जनता को ,

जिसे वे जान से ज्यादा हमेशा चाहा करती थी .


शालिनी कौशिक

[एडवोकेट ]

कैराना (शामली) 

बाल दिवस विशेष - बच्चों के प्रति लापरवाही गलत

Written By Shalini kaushik on सोमवार, 14 नवंबर 2022 | 12:36 pm

  




"वक़्त करता है परवरिश बरसों 

हादिसा एक दम नहीं होता" 

सभी जानते हैं कि हादसे एक दम जन्म नहीं लेते, एक लम्बे समय से परिस्थितियों के प्रति बरती गई लापरवाही हादसों की पैदाइश का मुख्य कारण होती है. भले ही अवैध रूप से चलाई जा रही पटाखा फैक्ट्री के हादसे हों या सड़कों में बनते जा रहे गड्ढों के कारण इ-रिक्शा पलटने के हादसे, बन्दरों के हमलों के कारण घरों में छोटी मोटी चोट लगने के हादसे, सब चलते रहते हैं और आम जनता से लेकर प्रशासन तक सभी इन्हें " बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले" कहकर टालते रहते हैं, क़दम उठाए जाते हैं तब जब पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट के कारण दो - तीन गरीब महिला या कामगार बच्चे के शरीर के चीथड़े उड़ जाते हैं, जब इ-रिक्शा पलटने से स्कूल जाती हुई बच्ची की लाश उसके घर पहुंचाई जाती है, जब बन्दरों के हमले के कारण मन्दिर से घर आई सुषमा चौहान को असमय काल का ग्रास बनना पड़ता है.

     क्यूँ नहीं विचार किया जाता इन परिस्थितियों पर इनके हादसे में तब्दील होने से पहले, प्रशासन की, सरकारी विभागों की तो छोड़िए वे तो तब ध्यान देंगे जब ऊपर से इन परिस्थितियों के राजनीतिक लाभ लेने के लिए कार्रवाई किए जाने के आदेश होंगे किन्तु बड़ा सवाल यह है कि भुक्त भोगी तो हम "आम जनता" अर्थात "हम भारत के लोग" होते हैं, हम ध्यान क्यूँ नहीं देते?

      बच्चों के साथ होने वाले हादसे रोज अखबारों की सुर्खियों में हैं. कितने ही बच्चे गायब हो रहे हैं, कितने ही बच्चों को दुष्ट लोगों के द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया जा रहा है. कल ही बागपत में 112 पुलिस वाहन द्वारा दो बच्चों को टक्कर मारने का मामला पब्लिक ऐप पर छाया हुआ है. कस्बा कांधला के मोहल्ला सरावज्ञान में सीता चौक पर एक चौहान डेयरी की दुकान है जहां पिछले कुछ समय से शाम को 3-4 साल से 8-10 साल तक के बच्चों की दूध की बर्नी हाथ में लिए दौड़ भाग किए जाने की भरमार रहती है. बच्चों की लड़ाई होती है, मार पीट भी होती है जिसे बहुत सी बार आने जाने वाले लोगों द्वारा डांट फटकार कर रोका जाता है. आश्चर्यजनक बात यह है कि इतने छोटे बच्चों को रात के अंधेरे में दूध लेने के लिए घर से भेज दिया जाता है और कितना ही अंधेरा हो जाए, किसी का भी कोई ध्यान भी इस ओर नहीं जाता. जो बच्चे खुद को भी ठीक तरह से नहीं सम्भाल सकते उन्हें अंधेरे रास्तों पर दूध दुकान से लेने और घर तक आने के लिए अंधेरी गलियों में दूध भरा हुआ बर्तन लाने की जिम्मेदारी दे दी गई है और कहीं कोई चिंता नहीं, कोई परवाह नहीं, साथ में किसी भी बड़े का कोई संरक्षण नहीं, क्या गारन्टी है कि आज सब कुछ ठीक है तो कल भी सब ठीक रहेगा. दुकान पर आने वाले बड़ी उम्र के किसी भी आदमी औरत को इन बच्चों की सहायता करते हुए नहीं देखा जाता, कोई नहीं कहता कि बेटा /बेटी पहले तुम ले लो. पहले शाम 7 बजे और अब शाम 6 बजे खुलने वाली दूध की दुकान पर इन बच्चों को दूध तब मिलता है जब बड़ी उम्र के ग्राहक दूध लेकर निकल चुके होते हैं और तब तक छोटे छोटे बच्चे अंधेरे में खेलते रहते हैं, लड़ते रहते हैं और कभी कभी चोट खाते रहते हैं. पर किसी का कोई ध्यान नहीं जबकि अभी 7 नवम्बर 2022 से कांधला के ही एक मोहल्ले का 15 साल का लड़का गायब है, पहले भी लगभग 2 साल पहले एक 7-8 साल की लड़की गायब हो चुकी है जिसका आज तक कोई पता नहीं चल पाया है. क्यूँ नहीं विचार करते हम इन सभी खतरों पर, एक आध दिन की मजबूरी अलग बात है कि भेजना पड़ जाए बच्चे को, किन्तु रोज रोज के लिए ऐसा करना गलत लोगों के गलत इरादों को शह देना है. ये सोचना कि आज कुछ नहीं हुआ तो कल भी नहीं होगा, बेवकूफ़ी है. 

       ऐसे में, न केवल प्रशासन बल्कि बच्चों के माता पिता और संरक्षकों को जागरूक होकर ध्यान देना होगा क्योंकि बच्चे तो भोले होते हैं उनके साथ कोई भी हादसा अगर होता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वतः ही बड़े पर आ जाएगी. इसलिए बडों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस ओर ध्यान देना ही होगा और बच्चों की कम उम्र को देखते हुए उन्हें इस तरह स्वतंत्र रूप से जिम्मेदारी भरे कार्य में न डाला जाए बल्कि सुरक्षित अह्सास प्रदान कर सही गलत की समझ विकसित कर ही कार्य सौंपा जाए और तब सही तरीके में बाल दिवस मनाया जाए. सभी बालक - बालिकाओं को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 







कैराना की पत्रकारिता का अजीम मंसूरी दौर

Written By Shalini kaushik on सोमवार, 7 नवंबर 2022 | 11:52 am

   


  भारतीय मीडिया इतना पथभ्रष्ट कभी नहीं था, जितना अभी पिछले कुछ सालों से हुआ है. पत्रकारिता और राजनीति एक दूसरे के बहुत महत्वपूर्ण पर्याय रहे हैं , पत्रकारिता ने हमेशा राजनीति की बखिया उधेड कर रख दी हैं, राजनीतिज्ञों की कोई भी योजना रही हो, किसी भी दल की, पत्रकारों की पारखी नजरों से कोई भी राजनीतिक चाल कभी छुपी नहीं रह सकी, यही नहीं भारतीय राजनीति में एक दबदबा कायम रहा है कैराना के राजनीतिज्ञों और पत्रकारों का जिसके कारण कैराना राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर चर्चाओं का मुद्दा रहा है किन्तु ये सब तथ्य अब पुराने पड़ चुके हैं, अब राजनीति का जो स्वरूप सामने है वह चापलूसी को ऊपर रखता है और कैराना वह राजनीति के हल्के में स्व बाबू हुकुम सिंह जी और मरहूम मुनव्वर हसन के बाद से अपनी पहचान खोता जा रहा है और पत्रकारिता भटक गई है केवल एक मसखरे अजीम मंसूरी की खबरों में, जो पहले अपने निकाह कराने की दरख्वास्त को लेकर प्रशासन को तंग करता है, फिर बरात ले जाने, निकाह स्थल पर गोदी में ले जाने, फिर दुल्हन बुशरा को घर लाने, उसकी मुँह दिखाई, बुशरा की डिमांड और अब खुशी में चुन्नी ओढ़कर नाचने की खबरों को लेकर चर्चाओं में है और कैराना का मीडिया पूरी कवरेज दे रहा है एक मसखरे की मसखरी चर्चाओं को, कैराना की पत्रकारिता का स्तर इतना नीचे कभी नहीं गिरा होगा कि मात्र चर्चाओं में बने रहने के लिए पत्रकार एक मसखरे का सहारा लें. क्या कैराना अपराधियों के जंजाल से मुक्त हो गया, क्या कैराना की सडकें गड्ढा मुक्त हो गई, क्या डी. के. कॉन्वेंट स्कूल में हादसे का शिकार हुई बेटी अनुष्का को न्याय मिल गया, क्या बन्दरों के हमले में मृत सुषमा चौहान की मृत्यु के कारण से अन्य कैराना वालों को बचाने में प्रशासन ने सफलता प्राप्त कर ली? क्यूँ नहीं ध्यान दे रहे हैं कैराना के पत्रकार अपने जरूरी कर्तव्य पर क्या वास्तव में बिक चुकी है पत्रकारिता और भटक चुके हैं आज के पत्रकार, क्या फिर से किसी जामवंत को आना होगा हनुमान रूपी पत्रकारों को उनकी शक्ति याद दिलाने के लिए. 


    शालिनी कौशिक 

             एडवोकेट 

   कैराना (शामली) 

ध्रुव तारा भारत का - इंदिरा गांधी जी

Written By Shalini kaushik on सोमवार, 31 अक्तूबर 2022 | 11:50 am



"ध्रुव तारा भारत का" जब ये शीर्षक मेरे मन में आया तो मन का एक कोना जो सम्पूर्ण विश्व में पुरुष सत्ता के अस्तित्व को महसूस करता है कह उठा कि यह उक्ति  तो किसी पुरुष विभूति को ही प्राप्त हो सकती है  किन्तु तभी आँखों के समक्ष प्रस्तुत हुआ वह व्यक्तित्व जिसने समस्त  विश्व में पुरुष वर्चस्व को अपनी दूरदर्शिता व् सूक्ष्म सूझ बूझ से चुनौती दे सिर झुकाने को विवश किया है .वंश बेल को बढ़ाने ,कुल का नाम रोशन करने आदि न जाने कितने ही अरमानों को पूरा करने के लिए पुत्र की ही कामना की जाती है किन्तु इंदिरा जी ऐसी पुत्री साबित हुई जिनसे न केवल एक परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र गौरवान्वित अनुभव करता है  और  इसी कारण मेरा मन उन्हें ध्रुवतारा की उपाधि से नवाज़ने का हो गया और मैंने इस पोस्ट का ये शीर्षक बना दिया क्योंकि जैसे संसार के आकाश पर ध्रुवतारा सदा चमकता रहेगा वैसे ही इंदिरा प्रियदर्शिनी  ऐसा  ध्रुवतारा थी जिनकी यशोगाथा से हमारा भारतीय आकाश सदैव दैदीप्यमान  रहेगा।

19 नवम्बर 1917 को इलाहाबाद के आनंद भवन में जन्म लेने वाली इंदिरा जी के लिए श्रीमती सरोजनी नायडू जी ने एक तार भेजकर कहा था -

''वह भारत की नई आत्मा है .''

गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने उनकी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् शांति निकेतन से विदाई के समय नेहरु जी को पत्र में लिखा था -

''हमने भारी मन से इंदिरा को  विदा  किया है .वह इस स्थान की शोभा थी  .मैंने उसे निकट से देखा है  और आपने जिस प्रकार उसका लालन पालन किया है उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जा सकता .''  

   सन 1962 में चीन ने विश्वासघात करके भारत  पर आक्रमण किया था तब देश  के कर्णधारों की स्वर्णदान की पुकार पर वह प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपने समस्त पैतृक  आभूषणों को देश की बलिवेदी पर चढ़ा दिया था इन आभूषणों में न जाने कितनी ही जीवन की मधुरिम स्मृतियाँ  जुडी हुई थी और इन्हें संजोये इंदिरा जी कभी कभी प्रसन्न हो उठती थी .पाकिस्तान युद्ध के समय भी वे सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु युद्ध के अंतिम मोर्चों तक निर्भीक होकर गयी .

आज देश अग्नि -5 के संरक्षण  में अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा है इसकी नीव में भी इंदिरा जी की भूमिका को हम सच्चे भारतीय ही महसूस कर सकते हैं .भूतपूर्व राष्ट्रपति और भारत में मिसाइल कार्यक्रम  के जनक डॉ.ऐ.पी.जे अब्दुल कलाम बताते हैं -

   ''1983 में केबिनेट ने 400 करोड़ की लगत वाला एकीकृत मिसाइल कार्यक्रम स्वीकृत किया .इसके बाद 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी डी.आर.डी एल .लैब  हैदराबाद में आई .हम उन्हें प्रैजन्टेशन दे रहे थे.सामने विश्व का मैप टंगा था .इंदिरा जी ने बीच में प्रेजेंटेशन रोक दिया और कहा -

''कलाम ! पूरब की तरफ का यह स्थान देखो .उन्होंने एक जगह पर हाथ रखा ,यहाँ तक पहुँचने वाली मिसाइल कब बना सकते हैं ?"

     जिस स्थान पर उन्होंने हाथ रखा था वह भारतीय सीमा से 5000 किलोमीटर दूर था .

इस तरह की इंदिरा जी की देश प्रेम से ओत-प्रोत घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और हम आज देश की सरजमीं पर उनके प्रयत्नों से किये गए सुधारों को स्वयं अनुभव करते है,उनके खून की एक एक बूँद हमारे देश को नित नई ऊँचाइयों पर पहुंचा रही है और आगे भी पहुंचाती रहेगी.

 आज का ये दिन हमारे देश के लिए एक अश्रु पूर्ण श्रद्धांजली का दिवस है और इस दिन हम सभी  इंदिरा जी को श्रृद्धापूर्वक नमन करते है और उनके हौसलों की उडान को दिल से सलाम करते हैं. इंदिरा गांधी अमर रहें 💐🙏💐

शालिनी कौशिक

[एडवोकेट ]


धनतेरस संबधी सूचना

Written By Shalini kaushik on शनिवार, 22 अक्तूबर 2022 | 11:33 am

 


  आज 22 अक्टूबर 2022 को सभी सनातन धर्मावलंबियों द्वारा धनतेरस का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. यह बहुत ही पावन पर्व है और हिन्दुओं की आस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है किन्तु कुछ भ्रम के कारण और कुछ 25 अक्टूबर 2022 को सूर्य ग्रहण होने के कारण आज प्रातः काल से ही धनतेरस की खरीदारी आरंभ हो गई है जबकि धनतेरस की शुभ खरीदारी की बेला 22 अक्टूबर 2022 को सांय काल 6 बजकर 2 मिनट से आरंभ होगी. 

         अधिकांश रूप से धनतेरस के दिन प्रदोष व्रत का भी विधान होता है और उसका कारण यह है कि प्रदोष व्रत द्वादशी तिथि में आरम्भ होता है और त्रयोदशी तिथि में व्रत का परायण होता है. सांय काल 6 बजकर 2 मिनट पर त्रयोदशी तिथि आरंभ होने के कारण आज शनि प्रदोष व्रत किया जा रहा है. धनतेरस त्रयोदशी तिथि में मनाया जाता है और त्रयोदशी तिथि  सांय काल में 6 बजकर 2 मिनट से आरंभ हो रही है. जो कि कल दिनाँक 23 अक्टूबर 2022 को सांय काल 6 बजकर 3 मिनट तक रहेगी और हिन्दू धर्म में सूर्योदय कालीन तिथि से ही  तिथि की मान्यता होती है ऐसे में धनतेरस का पर्व कल दिनाँक 23 अक्टूबर 2022 को ही मनाया जाना सही और मान्य कहा जाएगा किन्तु यदि कोई श्रद्धालु गण रात्री में ही धनतेरस की खरीदारी कर सकते हैं तो वे 22 अक्टूबर 2022 को सांय काल 6 बजकर 2 मिनट के बाद के ही समय का चयन कर सकते हैं जो कि धार्मिक और मांगलिक दृष्टि से उत्तम और शुभ दायक रहेगा . सभी सनातन धर्मावलंबियों को पांच दिवसीय महापर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹

🌹


द्वारा 

शालिनी कौशिक एडवोकेट 

अध्यक्ष 

मंदिर महादेव मारूफ शिवाला कांधला धर्मार्थ ट्रस्ट (रजिस्टर्ड) 
 

कृतज्ञ दुनिया इस दिन की

Written By Shalini kaushik on शनिवार, 1 अक्तूबर 2022 | 8:58 pm



एक की लाठी सत्य अहिंसा एक मूर्ति सादगी की,

दोनों ने ही अलख जगाई देश की खातिर मरने की .

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जेल में जाते बापू बढ़कर सहते मार अहिंसा में ,

आखिर में आवाज़ बुलंद की कुछ करने या मरने की .

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लाल बहादुर सेनानी थे गाँधी जी से थे प्रेरित ,

देश प्रेम में छोड़ के शिक्षा थामी डोर आज़ादी की .

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सत्य अहिंसा की लाठी ले फिरंगियों को भगा दिया ,

बापू ने अपनी लाठी से नीव जमाई भारत की .

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आज़ादी के लिए लड़े वे देश का नव निर्माण किया ,

सर्व सम्मति से ही संभाली कुर्सी प्रधानमंत्री की .

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मिटे गुलामी देश की अपने बढ़ें सभी मिलकर आगे ,

स्व-प्रयत्नों से दी है बढ़कर साँस हमें आज़ादी की .

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दृढ निश्चय से इन दोनों ने देश का सफल नेतृत्व किया

ऐसी विभूतियाँ दी हैं हमको कृतज्ञ दुनिया इस दिन की .

शालिनी कौशिक

(एडवोकेट) 

कैराना फिर अपराधियों के घेरे में

Written By Shalini kaushik on मंगलवार, 30 अगस्त 2022 | 10:08 am

 


कैराना वह कस्बा जो संगीत के क्षेत्र में किराना घराने की उपाधि से, धर्म के क्षेत्र में कांवड़ियों की मुख्य मध्यस्थ राह के रूप में, कानून के क्षेत्र में शामली जिले की जिला कोर्ट शामली स्थित कैराना के नाम से, राजनीतिक हल्कों में स्व बाबू हुकुम सिंह और मरहूम मुनव्वर हसन की कार्यस्थली और आपराधिक मामलों में व्यापारियों के भारी उत्पीड़न - हत्याओं के चलते कैराना पलायन से विश्व विख्यात रहा है और अपनी इसी खूबी के चलते राजनेताओं और सत्ता की धमक यहां नजर आती ही रहती है, इसी कारण वर्तमान योगी सरकार द्वारा कैराना क्षेत्र को लेकर खास ध्यान दिया गया और यहां पी ए सी कैंप की स्थापना की घोषणा की गई किन्तु पी ए सी कैंप की भूमि के शिलान्यास के कई माह बीतने के बावजूद सरकारी अन्य योजनाओं की भांति यह योजना भी ठंडे बस्ते में नजर आ रही है और इसका खासा असर दिखाई दे रहा है. 

कैराना के प्राचीन सिद्ध पीठ मन्दिरों पर, जहां 1 सप्ताह के भीतर ही दो सिद्ध पीठ मन्दिरों में बहुत बड़ी चोरी की वारदातों को अंजाम दिया जाता है और पुलिस प्रशासन उन्हें खोलने में नाकाम दिखाई देता है.

     ये चोरियां एक साधारण घटना के रूप में नहीं ली जा सकती हैं क्योंकि पहले तो अभी प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी की सरकार है जिनकी अपराधियों के लिए जीरो टॉलरेंस की नीति है और ऐसे में योगी जी के राज्य में धर्म के प्रमुख प्रतिष्ठान मन्दिरों पर हमले सीधे सीधे उत्तर प्रदेश सरकार को चुनौती कही जा सकती है क्योंकि सिद्ध पीठ बरखंडी महादेव मंदिर कैराना में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि मन्दिर में और जगह तांबे के घण्टे लगे हुए हैं ऐसे में तांबे के शेषनाग को तोड़ना निश्चित रूप से उनकी आस्था पर गहरा प्रहार करना है.

             योगी आदित्यनाथ जी की सरकार के द्वितीय कार्यकाल में शामली जिले में अपराध की घटनाएँ बढ़ी हैं न केवल मन्दिरों पर बल्कि व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर हमले बढ़े हैं, ऐसे में सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपाय अमल में लाने होंगे.

शालिनी कौशिक

        एडवोकेट

कैराना (शामली) 

बन्दरों के आतंक से दहला जिला शामली

Written By Shalini kaushik on शनिवार, 16 जुलाई 2022 | 4:10 pm

 


 बन्दरों का आतंक, उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक लम्बे समय से फैला हुआ है, शामली, कैराना, कांधला, थाना भवन में बन्दरों के हमले में आम आदमी को घातक दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ रहा है, 8 सितंबर 2021 को कैराना के भाजपा नेता अनिल चौहान की पत्नी सुषमा चौहान बन्दरों के हमले में छत से गिरी थी और मृत्यु का शिकार हुई थी, शामली के काका नगर में एक युवक को 9 मार्च 2020 को बन्दरों ने नोच नोच कर घायल कर दिया था जिससे बचने के लिए युवक ऊंचाई से गिरकर मृत्यु का शिकार हो गया था, थाना भवन में एक बच्ची को बन्दरों ने बुरी तरह घायल कर दिया था. प्रतिदिन क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में बन्दरों के हमले में घायल लोगों द्वारा बहुत बड़ी संख्या में जाकर एंटी रेबीज के इंजेक्शन लगवाए जा रहे हैं. 



     बीच बीच में प्रशासन द्वारा बन्दरों को पकड़ने के लिए टीम लगाई जाती हैं किन्तु नतीज़ा ढाक के तीन पात ही नज़र आ रहा है. निरंतर जनता की मांग के बावजूद बंदरों की संख्या और उनके हमले बढ़ते जा रहे हैं और आज ही शामली जिले के सिक्का गाँव में एक महिला जसवंती कपड़े सुखाने के लिए छत पर गई और बन्दरों के हमले के कारण छत से गिर गई जिसे स्थानीय चिकित्सक द्वारा जिला अस्पताल के लिए रैफर किया गया है.

      अब दो - एक दिन फिर स्थानीय जनता की भीड़ जिलाधिकारी कार्यालय पर लगेगी और मांग की जाएगी बन्दरों को पकड़ने के लिए टीम बुलाने की, प्रशासन द्वारा जनता की मांग पर टीम बुलाई जाएगी, बन्दर पकड़े जाएंगे और सिक्का गाँव से दो चार गाँव छोडकर किसी अन्य गाँव में छोड़ दिए जाएंगे.

    क्या समस्या का यह समाधान सही है? क्या फायदा है इसका? क्या इससे पूरे शामली जिले से बन्दरों का आतंक समाप्त हो जाएगा? क्या इससे आम आदमी अपने घर पर बिना किसी डर या दहशत के रह पाएगा? प्रशासन द्वारा वर्तमान में कभी हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव कायम रखने के लिए तो कभी कांवड़ यात्रा सकुशल सम्पन्न कराने के लिए कड़े बंदोबस्त किए जा रहे हैं किन्तु इस समस्या का क्या जो घर के अंदर ही परिवार पर विशेषकर औरतों और बच्चों पर भारी पड़ रही है? क्या इसके लिए प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है? 

     हम स्वयं अपने घर में बन्दरों के आतंक से बचने के लिए एक कुत्ते को पाल रहे हैं किन्तु 20 से 30 बन्दरों के सामने अकेला कुत्ता भी कमजोर पड़ जाता है ऐसे में बन्दरों का जाने का समय नोट कर ही घर के खुले हिस्से में निकल पाते हैं जबकि बन्दर दिन भर वहां रहकर घर पर लगाए गए पेड़ पौधों और घर की दीवारों को नुकसान पहुंचाने का कार्य तल्लीनता के साथ करते रहते हैं.

    अतः शामली जिला प्रशासन से सादर अनुरोध है कि वह जिले में बंदरों के आतंक की समस्या को गम्भीरता से लेते हुए अति शीघ्र उचित कदम उठाए जाने की कृपा करें.

निवेदक

शालिनी कौशिक एडवोकेट

 कांधला (शामली) 

आशियाना.....the home

Written By Anamikaghatak on बुधवार, 13 जुलाई 2022 | 11:21 am



Khwab nahin hai unche mahlon ka 
Jahan band darvaje aur khidkiyan paband 
mujhe chahie aashiyana char diwaron ka khuli Ho khidkiyan ghar mein basa ho Anand
ख्वाब नहीं है मुझे ऊंचे महलों का 
जहां बंद दरवाजा और खिड़कियां पाबंद 
मुझे चाहिए आशियाना उन दीवारों का
जिसमें खुली हो खिड़कियां और बसता हो आनंद 
© अनामिका 

हर घर वृक्ष

Written By Shalini kaushik on शनिवार, 9 जुलाई 2022 | 6:17 pm

 


माननीय श्री योगी आदित्यनाथ जी, 
मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश) 
       विनम्र निवेदन है कि प्रदेश में जिस तरह " हर घर तिरंगा" अभियान प्रतिबद्धता से चलाया जा रहा है उसी तरह प्रदेश में "हर घर वृक्ष" अभियान भी चलाया जाये और हर घर को एक पेड़ के संवर्धन और संरक्षण की जिम्मेदारी सौंपी जाए, तभी हमारा पर्यावरण स्वस्थ होगा और हमारी आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित. जिस तरह से आज प्रदेश में पेड़ लगाये जा रहे हैं उस तरह उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है क्योंकि आज प्रशासन के आदेश पर लगातार नेता, समाजसेवी आदि पेड़ लगाकर सेल्फी ले रहे हैं इससे आगे कुछ नहीं, अगर पिछले वर्ष लगाए गए पेड़ों की सरकार द्वारा रिपोर्ट मंगाई जाए तो मुश्किल से 10 या 20 प्रतिशत पेड़ ही जीवन पथ पर आगे बढ़े होंगे.
   अतः पर्यावरण संरक्षण के हित में "हर घर वृक्ष" अभियान के संचालन पर भी विचार किया जाए. जय हिंद 🇮🇳

शालिनी कौशिक
         एडवोकेट
कैराना (शामली)


चलो भोले लेकर कांवड़ - बम बम भोले

Written By Shalini kaushik on गुरुवार, 7 जुलाई 2022 | 4:53 pm

 


सावन का महीना आरंभ होने जा रहा है और इसी के साथ आरंभ होने जा रही है भोले के प्रिय भक्तजनों की चिरप्रतीक्षित कांवड़ यात्रा. इस बार कांवड़ यात्रा की महत्ता कुछ अधिक है क्योंकि दो साल से कोरोना के प्रतिबंधों के साये में भक्तजनों की आस्था को भी बाँध दिया गया था, उनके स्वास्थ्य की परवाह किए जाने के मद्देनजर देश - प्रदेश के प्रशासन द्वारा, पर इस बार कोरोना की लहर भी कमजोर है भारतीय सरकार द्वारा वैक्सीनेशन के कारण और कुछ भोले के भक्तों के हौसलों के कारण. 
       माना जाता है कि इस यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन से हुई थी. मंथन से निकले विष को पीने की वजह से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया था. विष का बुरा असर शिव पर ऐसा हुआ कि उनके भक्त रावण ने उस प्रभाव को कम करने के लिए तप किया. दशानन रावण कांवड़ में जल भरकर लाया और शिव का जलाभिषेक किया. यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई.

       केवल यही कहानी नहीं है, आस्था और विश्वास की कई कहानियां होती हैं जिनकी जड़ें इतनी मजबूत होती हैं जो समय के साथ साथ पीढ़ी दर पीढ़ी हृदय में अपनी जगह जमाती ही रहती हैं नहीं तो क्या सम्भव है हरिद्वार से पैदल उत्तर प्रदेश के दूरस्थ जिलों में लौटना, अन्य राज्यों में जाना और वह भी एक बार नहीं, 10-20 और न जाने कितनी कितनी बार. कांवड़ लाने का संकल्प लेने वालों को भोला और भोली कहा जाता है, उनके पैर सूज जाते हैं, उनमें जख्म हो जाते हैं किन्तु मजाल है कि हौसला टूट जाए, बल्कि जैसे जैसे उनके भोले का निवास शिवालय पास आता जाता है उनके द्वारा "बम बम भोले" का नाद तेज होता जाता है.

 किन्तु ऐसा नहीं है कि आपने कांवड़ लाने की सोची और चल दिये कांवड़ लाने. कांवड़ लाने के कुछ नियम हैं जिनका पालन आपकी आस्था में विश्वास जगाता है और इनका उल्लंघन आपके मन में अनिष्ट की आशंका पैदा कर देता है. इसलिए इससे जुड़े कुछ नियमों का ध्यान ज़रूर रखें और अपनी कांवड़ यात्रा सफल बनाते हुए भोले को गंगाजल चढ़ाएं - नियम इस प्रकार हैं - 

1-कांवड़ यात्रियों के लिए नशा वर्जित बताया गया है. इस दौरान तामसी भोजन यानी मांस, मदिरा आदि का सेवन भी नहीं किया जाता.

2-बिना स्नान किए कावड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते. तेल, साबुन, कंघी करने व अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग भी कावड़ यात्रा के दौरान नहीं किया जाता.

3-कांवड़ यात्रियों के लिए चारपाई पर बैठना मना है. चमड़े से बनी वस्तु का स्पर्श एवं रास्ते में किसी वृक्ष या पौधे के नीचे कावड़ रखने की भी मनाही है.

4-.कांवड़ यात्रा में बोल बम एवं जय शिव-शंकर घोष का उच्चारण करना तथा कावड़ को सिर के ऊपर से लेने तथा जहां कावड़ रखी हो उसके आगे बगैर कावड़ के नहीं जाने के नियम पालनीय होती हैं.



     तिथि पर्व पत्रिका संवत 2079 विक्रमी प्रेरक हरविलास पाराशर अनुराग प्रिंटिंग प्रैस, कांधला (शामली) के अनुसार रूद्राभिषेक शिवरात्रि का पर्व 27 जुलाई 2022 को मनाया जाएगा और तभी करोड़ों की संख्या में भोले के भक्तों द्वारा शिवालयों में जल चढ़ाया जाएगा. तो कीजिए नियमों का पालन और हरिद्वार से कांवड़ में गंगाजल लाकर अपने भोले को चढ़ाईये. हर हर महादेव 🌼🌼 बम बम भोले 🌼🌼

शालिनी कौशिक एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

         

 

क्या भटक गए हैं योगी - साध्वी

Written By Shalini kaushik on शुक्रवार, 1 जुलाई 2022 | 6:59 pm

  






साधु (पुरुष), साध्वी (महिला)), जिसे साधु भी कहा जाता है , एक धार्मिक तपस्वी , भिक्षु या हिंदू धर्म , बौद्ध धर्म और जैन धर्म में कोई भी पवित्र व्यक्ति है जिसने सांसारिक जीवन को त्याग दिया है। उन्हें कभी-कभी वैकल्पिक रूप से योगी , संन्यासी या वैरागी के रूप में जाना जाता है ।

         संस्कृत शब्द साधु (अच्छे आदमी) और साध्वी (अच्छी महिला) उन त्यागियों को संदर्भित करते हैं जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समाज के किनारों से अलग जीवन जीने का विकल्प चुना है।

          साधु का अर्थ है जो ' साधना ' का अभ्यास करता है या आध्यात्मिक अनुशासन के मार्ग का उत्सुकता से अनुसरण करता है। हालांकि अधिकांश साधु योगी हैं , सभी योगी साधु नहीं हैं। एक साधु का जीवन पूरी तरह से मोक्ष (मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति), चौथा और अंतिम आश्रम ( जीवन का चरण), ध्यान और ब्रह्म के चिंतन के माध्यम से प्राप्त करने के लिए समर्पित है । साधु अक्सर साधारण कपड़े पहनते हैं, जैसे हिंदू धर्म में भगवा रंग के कपड़े और जैन धर्म में सफेद या कुछ भी नहीं, जो उनके संन्यास (सांसारिक संपत्ति का त्याग) का प्रतीक है । हिंदू धर्म और जैन धर्म में एक महिला भिक्षुणी को साध्वी कहा जाता है और कुछ ग्रंथों में आर्यिका के रूप में ।

        साधु बनना लाखों लोगों द्वारा अनुसरण किया जाने वाला मार्ग है। एक पिता और तीर्थयात्री होने के नाते, यह एक हिंदू के जीवन में चौथा चरण माना जाता है, पढ़ाई के बाद, लेकिन अधिकांश के लिए यह एक व्यावहारिक विकल्प नहीं है। एक व्यक्ति को साधु बनने के लिए वैराग्य की आवश्यकता होती है । वैराग्य का अर्थ है दुनिया को छोड़कर कुछ हासिल करने की इच्छा (पारिवारिक, सामाजिक और सांसारिक लगाव को तोड़ना)। 

      साधू परंपरा के भीतर कई संप्रदाय और उप-संप्रदाय हैं, जो विभिन्न वंशों और दार्शनिक स्कूलों और परंपराओं को दर्शाते हैं जिन्हें अक्सर " संप्रदाय " कहा जाता है। प्रत्येक संप्रदाय में कई "आदेश" होते हैं जिन्हें परम्परा कहा जाता है आदेश के संस्थापक के वंश के आधार पर। प्रत्येक संप्रदाय और परम्परा में कई मठवासी और युद्ध अखाड़े हो सकते हैं । साधु बनने की प्रक्रिया और अनुष्ठान संप्रदाय के अनुसार भिन्न होते हैं; लगभग सभी संप्रदायों में, एक साधु को एक गुरु द्वारा दीक्षा दी जाती है , जो दीक्षा को एक नया नाम, साथ ही एक मंत्र, (या पवित्र ध्वनि या वाक्यांश) प्रदान करता है, जो आमतौर पर केवल साधु और गुरु के लिए जाना जाता है और हो सकता है ध्यान अभ्यास के भाग के रूप में दीक्षा द्वारा दोहराया गया।

कई संप्रदायों में महिला साधु ( साध्वी ) मौजूद हैं। कई मामलों में, त्याग का जीवन लेने वाली महिलाएं विधवा होती हैं, और इस प्रकार की साध्वी अक्सर तपस्वी यौगिकों में एकांत जीवन जीती हैं। साध्वी को कभी-कभी कुछ लोगों द्वारा देवी, या देवी के रूपों के रूप में माना जाता है, और उन्हें इस तरह सम्मानित किया जाता है। ऐसी कई करिश्माई साध्वी हैं जो समकालीन भारत में धार्मिक शिक्षकों के रूप में प्रसिद्धि के लिए बढ़ी हैं, जैसे आनंदमयी मां , शारदा देवी , माता अमृतानंदमयी और करुणामयी।

    ये होता है साधू और साध्वी का जीवन, जो सांसारिक मोह-माया से दूर, एकांत में भगवद्-भक्ति में लीन रहते हैं और कभी कभी धर्म के, शास्त्रों के प्रवचन द्वारा हम अज्ञानी मनुष्यों का मार्गदर्शन करते हैं, किन्तु आज के साधू - संत और साध्वी एक नई राह का ही अनुसरण करते हुए नजर आ रहे हैं और वह राह है घोर प्रपंचों से, कुटिलताओं से भरी राजनीति की राह.

        भारतीय संविधान में उल्लेखनीय है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री या कोई भी सांसद /विधायक वह व्यक्ति होगा जो भारत का नागरिक हो और आज साधू - संन्यासी मंत्री बन रहे हैं, मुख्यमंत्री बन रहे हैं जबकि एक संन्यासी वह होता है जो अपनी देह को सांसारिक रूप से त्यागकर वैराग्य को ग्रहण कर चुका है और एक साधु को एक गुरु द्वारा दीक्षा दी जाती है , जो दीक्षा को एक नया नाम, साथ ही एक मंत्र, (या पवित्र ध्वनि या वाक्यांश) प्रदान करता है, जो आमतौर पर केवल साधु और गुरु के लिए जाना जाता है, अर्थात अब वैराग्य ग्रहण करने पर साधू हो या साध्वी का कोई सांसारिक व्यक्तित्व रह ही नहीं गया है फिर वह राजनीतिक पद को कैसे ग्रहण कर सकता है?

            ऐसे ही, देवी, धार्मिक शिक्षिका का दर्जा पाने वाली साध्वी वैराग्य एकांत जीवन जीने के लिए और मोक्ष की प्राप्ति की राह सुगम बनाने हेतु भगवान की भक्ति में लीन रहने के लिए संन्यास का मार्ग अपनाती हैं, जैन साधू - साध्वी तो यात्रा के लिए वाहन का प्रयोग भी अनुचित समझते हैं फिर आज की बदलती जा रही राजनीतिक परिस्थितियों में साध्वी द्वारा मोबाइल फोन का और उस पर ट्विटर जैसी आलोचनात्मक एप्प का इस्तेमाल कर विरोधी दलों के नेताओं पर अशोभनीय टिप्पणियों का प्रयोग क्या हिन्दू धर्म का पतन काल नहीं कहा जा सकता है जबकि ये सभी जानते हैं कि ज्ञान का सही दिशा में इस्तेमाल ही देश और समाज को उन्नति की राह पर पहुंचा सकता है और हिन्दू धर्म सदैव से ही ज्ञान की राह पर चलने वाला रहा है और निश्चित रूप से आगे भी विश्वास है कि यह भटकाव खत्म होगा और हिन्दू धर्म ज्ञान की ही राह का अनुसरण करेगा और सनातन धर्म की अपनी छवि को बरकरार रखेगा. 

🌹🌻सनातन धर्म की जय हो 🌻🌹

शालिनी कौशिक 

      एडवोकेट 

कैराना (शामली) 


Eknath Shinde को CM बनाकर BJP ने साधे 10 लक्ष्य | Maharashtra CM | Deven...

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on गुरुवार, 30 जून 2022 | 5:52 pm

पुरुषों का सम्मान और कानून

 


[False dowry case? Man kills self

Express news service Posted: Feb 07, 2008 at 0321 hrs
Lucknow, February 6 A 30-year-old man, Pushkar Singh, committed suicide by hanging himself from a ceiling fan at his home in Jankipuram area of Vikas Nagar, on Wednesday.In a suicide note, addressed to the Allahabad High Court, Singh alleges that he was framed in a dowry case by his wife Vinita and her relatives, due to which he had to spend time in judicial custody for four months.
The Vikas Nagar police registered a case later in the day.
“During the investigation, if we find it necessary to question Vinita, we will definitely record her statement,” said BP Singh, Station Officer, Vikas Nagar.
Pleading innocence and holding his wife responsible for the extreme step he was taking, Singh’s note states: “I was sent to jail after a false dowry case was lodged against me by Vinita and her family, who had demanded Rs 14 lakh as a compensation. Neither my father nor I had seen such a big amount in our lives. We even sold our house to contest the case.”
According to reports, Singh married Vinita about two years ago and lived in Allahabad since.
Early last year, his wife left him and started living with her family.
A case under Sections 323 (voluntarily causing hurt), 498 (A) (cruelty by husband or relatives of husband) and 504 (intentional insult) was lodged by Vinita and her relatives before she left him.
In the note, Singh wrote he was in the Naini Central Jail from “September 29 to December 24, 2007”.
Shishupal Singh, Singh's brother-in-law, said he was disturbed ever since he released from jail. The court case constantly haunted him.
“After he was bailed out, he was living with his mother, younger sister and a physically-challenged brother in a rented house in Jankipuram.” The family had their own house in Indira Nagar, which was recently sold to meet the legal expenses, he added.
“While he searched for a job, he drove a three-wheeler for a living. A few days ago, he received a notice from the court and since then, he stopped stepping out of the house,” he said.
In the note, Singh further wrote: “I would also like to request Vinita not to harass my family in future. It was my mistake to marry her and I am repenting it by sacrificing my life.”]

''मुझे दहेज़ कानून की धारा ४९८-ए,३२३ और ५०४ के तहत जेल जाना पड़ा ,मेरी पत्नी विनीता ने शादी के 2 साल बाद हमारे परिवार के खिलाफ दहेज़ के रूप में 14 लाख रुपये मांगने का झूठा मुकदमा लिखाया था .इतनी रकम कभी मेरे पिता ने नहीं कमाई ,मैं इतना पैसा मांगने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकता था ,मेरी भी बहने हैं ,इस मुक़दमे के चलते मेरा पूरा परिवार तबाह हो गया है ,हम आर्थिक तंगी के शिकार हो गए ,मकान बिक गया ,अब मैं ज़िंदा नहीं रहना चाहता हूँ ख़ुदकुशी करना चाहता हूँ ,मेरी मौत के लिए मेरी ससुराल के लोग जिम्मेदार होंगे .''
       ये था उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के जानकीपुरम सेक्टर -सी में रहने वाले पुष्कर सिंह का ख़ुदकुशी से पहले लिखा गया पत्र ,जिसे लिखने के बाद ६ फरवरी २००८ को पुष्कर ने फांसी का फंदा गले में डाल कर ख़ुदकुशी कर ली .
       दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक  'पवित्र बंधन 'में एक पात्र मीनाक्षी ,जो कि एक एडवोकेट है और धारावाहिक के नायक गिरीश रॉय चौधरी की मृतक पत्नी की सहेली ,वह गिरीश राय चौधरी से एकतरफा पागलपन की हद तक प्यार करती है और उसे पाने के लिए किसी भी हद तक गुज़र जाने को तैयार है .अपने इस प्रयास में विफल रहने पर वह स्वयं को चोटें मारती है ,स्वयं के कपडे फाड़ती है और पुलिस लेकर पहुँच जाती है गिरीश राय चौधरी के घर ,ये इलज़ाम लेकर कि गिरीश ने उसके साथ 'बलात्कार का प्रयास किया है '.
     ये दोनों ही मामले ऐसे हैं जो संविधान द्वारा दिए गए प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण के मूल अधिकार से एक हद तक पुरुष जाति को वंचित करते हैं .पुरुषों ने महिलाओं पर अत्याचार किये हैं ,उनके साथ बर्बर व्यवहार किये हैं किन्तु ये आंकड़ा अधिकांशतया होते हुए भी पूर्णतया के दायरे में नहीं आता .अधिकांश पुरुषों ने अधिकांश महिलाओं के जीवन को कष्ट पहुँचाया है किन्तु इसका तात्पर्य यह तो नहीं कि सभी पुरुषों ने महिलाओं को कष्ट पहुँचाया है .अधिकांश महिलाएं पुरुषों के द्वारा पीड़ित रही हैं किन्तु इस बात से ये तो नहीं कहा जा सकता कि सभी महिलाएं पुरुषों के द्वारा पीड़ित रही हैं और इसीलिए अधिकांश के किये की सजा अगर सभी को दी जाती है तो ये कैसे कहा जा सकता है कि संविधान द्वारा सभी को जीने का अधिकार दिया जा रहा है .जीने का अधिकार भी वह जिसके बारे में स्वयं संविधान के संरक्षक उच्चतम न्यायालय ने मेनका गांधी बनाम भारत संघ ए.आई.आर.१९७८ एस.सी.५९७ में कहा है -
''प्राण का अधिकार केवल भौतिक अस्तित्व तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें मानव गरिमा को बनाये रखते हुए जीने का अधिकार है .''
 फ्रेंसिसी कोरेली बनाम भारत संघ ए.आई.आर.१९८१ एस.सी. ७४६ में इसी निर्णय का अनुसरण करते हुए उच्चतम न्यायालय  ने कहा -''अनुच्छेद २१ के अधीन प्राण शब्द से तात्पर्य पशुवत जीवन से नहीं वरन मानव जीवन से है इसका भौतिक अस्तित्व ही नहीं वरन आध्यात्मिक अस्तित्व है .प्राण का अधिकार शरीर के अंगों की संरक्षा तक ही सीमित नहीं है जिससे जीवन का आनंद मिलता है या आत्मा वही जीवन से संपर्क स्थापित करती है वरन इसमें मानव गरिमा के साथ  जीने का अधिकार भी सम्मिलित है जो मानव जीवन को पूर्ण बनाने के लिए आवश्यक है .''
     और ऐसे मामले जहाँ कानून से मिली छूट के आधार पर शादी के सात साल के अंदर के विवाह को दहेज़ से जोड़ देना और नारी के द्वारा स्वयं ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करने पर पुरुष से धिक्कार पाने पर उसे बलात्कार के प्रयास का रूप दे दिया जाना सीधे तौर पर पुरुष की गरिमा पर ,जीने के अधिकार पर हमले कहें जायेंगें क्योंकि इन मामलों में नारी का पक्ष न्यायालय के सामने मजबूत रहता है और एक यह पक्ष भी न्यायालय के सामने रहता है कि नारी ऐसे मामलों में शिकायत की पहल नहीं करती है और इसका खामियाजा पुरुषों को भुगतना पड़ता है .ऐसे मामलों में सबूतों ,गवाहों की कमी यदि महिलाओं को रहती है तो पुरुषों को भी इसका सामना करना पड़ता है और अपने मामलों को साबित करना दोनों के लिए ही कठिन हो जाता है किन्तु महिला के लिए न्यायालय का कोमल रुख यहाँ पुरुषों के लिए और भी बड़ी कठिनाई बन कर उभरता है .यूँ तो अधिकांशतया नारियों पर ही अत्याचार होते हैं किन्तु जहाँ एक तरफ ख़राब चरित्र के पुरुष हैं वहीँ ख़राब चरित्र की नारियां भी हैं और इसका फायदा वे ले जाती हैं क्योंकि ख़राब चरित्र का पुरुष ऐसे जाल में नहीं फंसता वह पहले से ही अपने बचाव के उपाय किये रहता है जबकि अच्छे चरित्र का पुरुष उन बातों के बारे में सोच भी नहीं पाता जो इस तरह की तिकड़मबाज नारियां सोचे रहती हैं और अमल में लाती हैं .
       जैसे कि हमारे ही एक परिचित के लड़के से ब्याही लड़की विवाह के कुछ समय तो अपनी ससुराल में रही और बाद में अपने मायके चली गयी और वहां से ये बात पक्की करके ही ससुराल में आई कि लड़का ससुराल से अलग घर लेकर रहेगा .लड़के के अलग रहने पर वह आई और कुछ समय रही और बाद में एक दिन जब लड़का कहीं बाहर गया था तो घर से अपना सामान उठाकर अपने भाइयों के साथ चली गयी और अपने घर जाकर अपने पति पर दहेज़ का मुकदमा दायर कर दिया ,सबसे अलग रहने के बावजूद घर के अन्य सभी को भी पति के साथ ४९८-ए के अंतर्गत क्रूरता के घेरे में ले लिया .स्थिति ये आ गयी कि लड़के के मुंह से यह निकल गया -''कि बस अब तो ऊपर जाने के मन करता है .''वह तो बस भगवान की कृपा कही जाएगी या फिर उसके घरवालों का साथ कि अपनी कोई जमीन बेचकर उन्होंने लड़की वालों को १० लाख रूपये दिए और लड़के को ख़ुदकुशी और खुद को जेल जाने से बचाया किन्तु अफ़सोस यही रहा कि कानून कहीं भी साथ में खड़ा नज़र नहीं आया .
        ऐसे ही ये बलात्कार या बलात्कार का प्रयास का आरोप है जिसमे या तो लम्बी कानूनी कार्यवाही या लम्बी जेल और या फिर ख़ुदकुशी ही बहुत सी बार निर्दोष चरित्रवान पुरुषों का भाग्य बनती है .हमारी जानकारी के ही एक महोदय का अपनी संपत्ति को लेकर एक महिला से दीवानी मुकदमा चल रहा है और वह महिला जब अपने सारे हथकंडे आज़मा कर भी उन्हें मुक़दमे में पीछे न हटा पायी तो उसने वह हथकंडा चला जिसे सभ्य समाज की कोई भी महिला कभी भी नहीं आज़माएगी .उसने इन महोदय के एकमात्र पुत्र पर जो कि उससे लगभग १५ साल छोटा होगा ,पर यह आरोप लगा दिया कि उसने मेरे घर में घुसकर मेरे साथ 'बलात्कार का प्रयास 'किया .वह तो इन महोदय का साथ समाज के लोगों ने दिया और कुछ राजनीतिक रिश्तेदारी ने जो इनका एकमात्र पुत्र जेल जाने से बच गया और उसका जीवन तबाह होने से बच गया किन्तु कानून के नारी के प्रति कोमल रुख ने इस नारी के हौसलों को ,जितने दिन भी वह इन्हें इस तरह परेशान रख सकी से इतने बुलंद कर दिए कि वह आये दिन जिस किसी से भी उसका कोई विवाद होता है उसे बलात्कार का प्रयास का आरोप लगाने की ही धमकी देती है और कानून कहीं भी उसके खिलाफ खड़ा नहीं होता बल्कि उसे और भी ज्यादा छूट देता है .भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा १४६[३] में अधिनियम संख्या ४ सं २००३ द्वारा परन्तुक अंतःस्थापित कर कानून ने ऐसी ही छूट दी है .जिसमे कहा गया है -
   [बशर्ते कि बलात्कार या बलात्कार करने के प्रयास के अभियोजन में अभियोक्त्री से प्रतिपरीक्षा में उसके सामान्य अनैतिक चरित्र के विषय में प्रश्नों को करने की  अनुज्ञा नहीं होगी .]
        क्या यही है कानून कि एक निर्दोष चरित्रवान मात्र इसलिए अपमानित हो ,जेल काटे कि वह एक पुरुष है .अगर बाद में कानूनी दांवपेंच के जरिये वह अपने ऊपर लगे आरोपों से मुक्ति पा भी लेता है तब भी क्या कानून उसके उस टुकड़े-टुकड़े हुए आत्मसम्मान की भरपाई कर पाता है जो उसे इस तरह के निराधार आरोपों से भुगतनी पड़ती है ?क्या ज़रूरी नहीं है ऐसे में गिरफ़्तारी से पहले उन मेडिकल परीक्षण ,सबूत ,गवाह आदि का लिया जाना जिससे ये साबित होता हो कि पीड़िता के साथ यदि कुछ भी गलत हुआ है तो वह उसी ने किया है जिस पर वह आरोप लगा रही है .ऐसे ही दहेज़ के मामले ,क्रूरता के मामले जिस तरह एकतरफा होकर महिला का पक्ष लेते हैं क्या ये कानून के अंतर्गत सही कहा जायेगा कि निर्दोष सजा पाये और दोषी खुला घूमता रहे .आज कितने ही मामलों में महिलाएं ही पहले घर वालों के द्वारा की गयी जबरदस्ती में शादी कर लेती हैं और बाद में उस विवाह को न निभा कर वापस आ जाती हैं और दहेज़ कानून का दुरूपयोग करती हैं .कानून को गंभीरता से इन मुद्दों को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के लिए सही व्यवस्था करनी ही होगी अन्यथा इस देश में मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार पुरुषों को भी है यह बात भूलनी ही होगी .

शालिनी कौशिक 
  (एडवोकेट) 

10 से 5 - कौन खरीदता /पीता शराब

Written By Shalini kaushik on रविवार, 26 जून 2022 | 10:00 am

 


       यूपी में आज नहीं मिलेगी शराब, सरकार ने घोषित किया ड्राई डे, आबकारी विभाग में अपर आयुक्त हरिश्चंद्र ने बताया कि आज ड्राई डे घोषित किया गया है, जिसके चलते शराब की दुकानों को सुबह 10 से शाम 5 बजे तक पूरी तरह से बंद रखा जाएगा. इसके अलावा सरकारी भांग की दुकानें भी आज पूरी तरह से बंद रखी जाएंगी. अगर उत्तर प्रदेश सरकार के इस आदेश की गुणवत्ता की जांच की जाए तो इसे शून्य प्रभावी ही कहा जाएगा क्योंकि शराब आज के पुरुष समाज की एक आवश्यक आवश्यकता के रूप में जगह बना चुकी है और यह एक आम चलन बन चुका है कि गरीब और मजदूर वर्ग का व्यक्ति दिन भर मजदूरी करता है और शाम होते ही चल देता है शराब की दुकान की तरफ, मयखाने की शरण में, शाम मतलब 5 बजे के बाद और शराब की दुकानों और मयखाने के खुलने के समय के बारे में तो हमारे महान कवि डॉ हरिवंशराय बच्चन भी अपनी विश्व प्रसिद्ध रचना " मधुशाला" तक में इशारा कर कह गए हैं -

"अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला
किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला,
पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी
तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।"
               ऐसे में, जो कार्य आरंभ ही अंधेरे के आगाज से होता है उसके लिए दिन में दुकानों को बंद कर देने से" ड्राई डे " कैसे रहेगा. वास्तव में सरकार अगर नशा विरोधी मुहिम चलाने के लिए प्रतिबद्ध है तो कम से कम शराब की दुकानों और मयखाने के लिए एक सप्ताह का तो "लॉक डाउन" घोषित करे.

शालिनी कौशिक 
          एडवोकेट
कैराना (शामली) 


द्रौपदी मुर्मू - महिलाओं का गौरव

Written By Shalini kaushik on बुधवार, 22 जून 2022 | 10:35 am

  


आज भारत में बहुत परिवर्तन आये हैं. बहुत से परिवर्तन दुःखद हैं तो कुछ सुखद भी हैं और उन परिवर्तनों में सबसे बड़े परिवर्तन ये हैं कि आज भारत का वह समाज, जो हमेशा से हमारे आदिवासी समाज के अधिकार छीनने का कार्य करता था, आज वह उसे समाज में अग्रणी का अधिकार देने के लिए आगे आ रहा है और यही नहीं कि आदिवासी समाज को बल्कि आदिवासी समाज की महिला को देश का सर्वोच्च पद देने की तैयारी की जा रही है और वह भी उस दल द्वारा, जिसने कभी उच्च पद के लिए अपने दल की ही बहुत सी श्रेष्ठ व्यक्तित्व की धनी महिलाओं की अनदेखी की, वह भी मात्र इसलिए कि वे महिलाएं थी, पर आज ये परिवर्तन आ रहे हैं भले ही राजनीतिक लाभ लेने के लिए आ रहे हैं, किन्तु सुखद हैं क्योंकि इनसे सदियों से दबे कुचले आदिवासी समुदाय और महिलाओं को आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सुअवसर प्राप्त हो रहे हैं. एक संघर्षशील  महिला, आदिवासी समुदाय की महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को एनडीए का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है और जहां तक आज संसद में और भारतीय राज्यों की विधानसभाओं में एनडीए का प्रतिनिधित्व है, द्रौपदी मुर्मू जी का भारत का राष्ट्रपति चुना जाना लगभग तय है. ऐसे में, भले ही राजनीतिक लाभ के लिए, महिला सशक्तिकरण के एक और नए युग के आरंभ के लिए भारतीय जनता पार्टी, एनडीए का बहुत बहुत धन्यवाद और देश की आगामी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी और समस्त भारतीय महिलाओं को हार्दिक शुभकामनाएं.

शालिनी कौशिक

         एडवोकेट

कैराना (शामली) 

कर्मवीर पिता -स्व बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट - सादर नमन

Written By Shalini kaushik on शनिवार, 18 जून 2022 | 10:12 pm

 


झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,
ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .
.......................................................
बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं .
..........................................................
शिक्षा दिलाई हमें बढाया साथ दे आगे ,
मुसीबतों से हमें लड़ना सिखलाते हैं .
......................................................
मिथ्या अभिमान से दूर रखकर हमें ,
सादगी सभ्यता का पाठ वे पढ़ाते हैं .
......................................................
कर्मवीरों की महत्ता जग में है चहुँ ओर,
सही काम करने में वे आगे बढ़ाते हैं .
.....................................................
जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,
अनायास दिल से ये शब्द निकल आते हैं .
....................................
शालिनी कौशिक
(एडवोकेट)

बाल श्रम पर रोक लगे

Written By Shalini kaushik on रविवार, 12 जून 2022 | 9:59 am


”बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,
उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .”
........................................................................
”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको ,
हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .”
.......................................................................
”खड़े हैं सुनते आवाज़ें ,कहें जो मालिक ले आएं ,
दुकानों पर इन्हीं हाथों ने थामा बढ़के ग्राहक को .”
...........................................................................
”होना चाहिए बस्ता किताबों,कापियों का जिनके हाथों में ,
ठेली खींचकर ले जा रहे वे बांधकर खुद को .”
.......................................................................
”सुनहरे ख्वाबों की खातिर ये आँखें देखें सबकी ओर ,
समर्थन ‘शालिनी ‘ का कर इन्हीं से जोड़ें अब खुद को .”
................................................................

शालिनी कौशिक
एडवोकेट 
कैराना 

भाग लें - पुरुस्कार जीतें-जय श्री राम 🙏🌹🙏

Written By Shalini kaushik on गुरुवार, 9 जून 2022 | 2:27 pm

 


श्री राम हम सनातन धर्मावलंबियों के आदर्श चरित्र हैं और मंदिर महादेव मारूफ शिवाला कांधला धर्मार्थ ट्रस्ट (रजिस्टर्ड) निरंतर प्रयासरत है सनातन धर्म के उच्च आदर्शों की स्थापना में - क्या आप मानते हैं श्री राम को आदर्श चरित्र - तो तुरंत उठाईये अपनी क़लम और पुरस्कार भी पाईये. 
#श्री_राम_आदर्श_चरित्र 
🙏🌹जय श्री राम 🌹🙏
प्रस्तुति 
शालिनी कौशिक एडवोकेट 

Written By yayawer on बुधवार, 8 जून 2022 | 12:21 pm

 "कुलदेवी कुलदेवता वर्णन"

पुस्तक के प्रष्ठ का अवलोकन 








कुलदेवी कुलदेवता वर्णन

यह पुस्तक महत्वपूर्ण और हर घर में रखने और सबके पढने लायक है, 

कुलदेवी व इष्टदेवी के रूप में ओसियां की महिषमर्दिनी स्वरूपा सच्चियाय माता, परमार उपलदा द्वारा ओसियां बसाने से लेकर परमार व सांखला वंश का माता सचियाय के साथ सम्बंध के बारे में विवरण दिया है।


साथ ही इसमें सच्चियायमाता कथामाहात्म्य भी पाठकों के लिये प्रस्तुत किया है। सांखला बंधुओं की परमार के रूप में उत्पति के समय प्रथम आराध्या देवी के रूप में कात्यायनी शक्तिपीठ माउंट आबू की अर्बुदादेवी-अधर माता और उनके मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथायें भी दी गई हैं। अर्बुदांचल की प्रतिरक्षक अधर देवी के मंदिर की प्राचीनता, देवी के अधर और पादुका आदि के बारे में बताया गया है। सांखलाओं की कुलदेवी के मंदिर आसोप के जाखळ माता मंदिर के बारे में पूर्ण जानकारी और साथ में रेण के जाखण माता मंदिर और यक्षिणी के बारे में जानकारी के साथ उनकी पूजा पद्धति के बारे में बताया गया है। पंवार वंश की इष्टदेवी उज्जैन की गढ़कालिका माँ हरसिद्धिभवानी और हमारे पूर्वज महान सम्राट विक्रमादित्य से जुड़ी कहानी बताई गई है।

प्रकाशक- कलम कला प्रकाशन, लाडनूं - ३४१३०६ 

पुस्तक का मूल्य- ५०० रुपैये 

एक दिन ..

Written By mridula pradhan on सोमवार, 6 जून 2022 | 1:48 pm

 एक दिन..

अकेली मैं उदास

बुलाने बैठी

आसमान में उड़ते हुए

चिड़ियों को 

चिड़ियों ने कहा-

'रात होनेवाली है

घर जाने की

जल्दी है'.

सूरज को गोद में लिए

पश्चिम की लाली से

बोली मैं

कुछ देर के लिए

मेरे पास

आओ तो 

'विदा करनी है

सूरज को,

कैसे आऊंगी इस वख्त

कहो तो?'..

थोड़ी ही देर बाद

आहट हुई

रात के आने की

दरवाज़े पर ही

खड़ी-खड़ी

रोकने लगी रात को

कि ठहर कर जाना 

'अभी-अभी आयी हूँ '

रात ने कहा-

'मुश्किल है इन दिनों

बरसता है शबनम

सारी-सारी रात

भींगने का मौसम है'..

चाँद से बोली

आओ सितारों के साथ

कुछ बात करें 

चाँद ने कहा-

'घूमना है तारों के साथ

आज की रात

कैसे बात करें?'..

फूलों,भौरों ,तितलियों ने

रचाया था उत्सव

स्वच्छंद  विचरते हुए

मेघ-मालाओं ने कहा-

'बरसना है अभी और'..

हवाओं को जाना था

खुशबू लेकर

दूर-दराज़..

नदियों,झीलों को

करनी थी अठखेलियाँ ..

और..पहाड़ पर जमी हुई

बर्फ़ ने कहा-

'बहुत दूर है तुम्हारा घर'..

झरनों से गिरता हुआ

कल-कल

दूबों पर फैली

हरियाली

ताड़,खजूर ,युक्लिप्टस

और चिनारों ने

सुना दी अपनी-अपनी..

और हारकर  कहा मैंने 

अपने मन से

तुम मेरे पास रहना..

'मुझे नहीं रहना'

झुँझलाकर बोला-

मेरा अपना ही मन

'मैं जा रहा  हूँ

बच्चों के पास 

आ जाऊँगा मिल-मिलाकर

'तुम यहीं रहो'..

लेकिन..कितने दिन हो गये

मन तो

लौटा ही नहीं..

मेरे बच्चों,

तुमलोग ऐसा करना

वापस भेज देना

समझा-बुझाकर मेरा मन

कि..मैं यहाँ

अकेली रह गयी हूँ..

लघुत्तम विचारौषधि: कामनाएं

*लघुत्तम विचारौषधि*

*कामनाएं*

कामनाओं में जीकर जीवन नष्ट हो रहा है। अपेक्षाओं की पूर्ति में सारी रहा विनष्ट हो रही है। इच्छाओं में लिप्तता से पल-पल सूखे पत्तों से झड़ रहे हैं। किंकर्तव्यविमूढ़ से हम भटक रहे हैं। ऐसे भीषण जंगल में जहां, विभिन्न कामनाओं, वासनाओं की धुंध है। ऐसे में निर्लिप्त होना कैसे संभव है।
*@बरुण सखाजी*
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06/06/22
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योगी जी और पर्यावरण दिवस - गहरा नाता

Written By Shalini kaushik on रविवार, 5 जून 2022 | 8:15 am

माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश श्री योगी आदित्यनाथ जी और पर्यावरण दिवस का एक दूसरे से बहुत गहरा नाता है. संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए पांच जून साल 1972 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा की. इस तरह दोनों का ही जन्म दिवस एक ही दिन, एक ही साल हुआ ये अलग बात है कि पर्यावरण दिवस पहली बार 5 जून 1974 को मनाया गया. आज हमारी धरती तप रही है और इस तपन का मुख्य असर हम अपने पेड़ पौधों पर देख सकते हैं, सुबह पानी से अच्छी सिंचाई के बाद भी वे शाम तक सूख जाते हैं, पनपने का तो सवाल ही नहीं है बस किसी तरह वे जिंदा ही बच जाएं. कारण इसके हम खुद हैं, सामान्य पँखों से काम नहीं चलता है अब हर किसी को ए सी चाहिए, एक बार बताइए सच्चे मन से - कितने ए सी वालों ने एक भी पौधा अपनी जिंदगी में इस धरती पर लगाया है. योगी आदित्यनाथ जी द्वारा हर साल लाखों पौधे लगाए जा रहे हैं हमारी धरती की रक्षा के लिए, क्या आपका कोई दायित्व नहीं है उस धरती के लिए जिस पर आपका घर बनता है, आपका परिवार रहता है. अगर कोई दायित्व स्वीकार करते हैं तो आगे आइए और कम से कम एक पौधा अवश्य लगाएं और धरती माँ का कर्ज चुकाएं और हाँ पौधा लगाते हुए अपना फोटो लेकर सोशल मीडिया पर अवश्य शेयर करें ताकि आप अन्यों की प्रेरणा का स्रोत बनें. 

    माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी को जन्म दिवस की और आप सभी को विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏

द्वारा

शालिनी कौशिक एडवोकेट

कैराना /कांधला

Founder

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Saleem Khan