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कांटे फूल सदा ही संगी

Written By SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 on गुरुवार, 24 दिसंबर 2020 | 11:03 pm


कांटे फूल सदा ही संगी

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मेरा मन भी भ्रमित बहुत है

गिरगिट जैसा रंग बदलता

स्वागत को जब फूल बहुत हैं

कैक्टस फूल उगाऊं कहता

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घर आंगन फुलवारी प्यारी

खुशियों से आह्लादित सारी

और लालसा की चाहत में

बढ़ता जाऊं कंटक पथ में

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सीधी सादी भोली भाली

' तुलसी आंगन की दिवाली

कौन लगा घुन मन में मेरे

ना भाए कुछ ' दर्द ' सिवा रे !

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बहुत लोग हैं मेरे जैसे 

खुशियों का जो दंश हैं झेले,

भांति भांति के कांटे चुनते

' कैक्टस  की दीवार बनाते

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सीमित साधन या हो मरूथल,

वीराने भी सजता कैक्टस,

धैर्य और साहस का परिचय,

कांटों फूल सजाता कैक्टस

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मेहनत कांटों की शैय्या चल,

प्यारे फूल हैं लगते मनहर,

जीवन की पगडंडी ऐसी,

कांटे - फूल सदा ही संगी

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बुरा नहीं कांटा भी यारों

कांटे से कांटे को निकालो

घर अंगना जो न मन भाए

सीमा पर आ बाड़ लगाएं

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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5

प्रतापगढ़,

उत्तर प्रदेश, भारत

व्हाट्सप्प से प्रेरित

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on बुधवार, 28 अक्टूबर 2020 | 4:00 pm

*आखिर है क्या रामायण ????* 

*अगर पढ़ो तो आंसुओ पे काबू रखना...प्यारे पाठको....छोटा सा वृतांत है*

*एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन हैं ?*

*मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।नीचे बुलाया गया*

*श्रुतिकीर्ति जी, जो सबसे छोटी बहु हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं*

*माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ?*

*शत्रुघ्न कहाँ है ?*

*श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।*

*उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया ।*

*तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली ।*

*आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?*

*अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।*

*माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में* *हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी ने* *आँखें*
*खोलीं, माँ !*

*उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुलवा लिया होता ।*

*माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?"*

*शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?*

*माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।*

*देखो क्या है ये रामकथा...*

*यह भोग की नहीं....त्याग की कथा हैं, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा* 

*चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।*

*रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।*🌸🌸🌸
*भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की.. परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!*

*यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ। मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"*

*लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था। परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया। वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!*

*लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया।*

*मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं।*

*यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे। माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?*

*हनुमान जी पूछते हैं- देवी! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा। वे बोलीं- "*
*मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है। मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा। इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।"*

*राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं... कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया।*

*"जय जय सियाराम"*
*"जयश्रीराधेकृष्णा"*
*पसंद आया हो, प्रेम, त्याग, समर्थन की भावना अगर मन में हो तो इसे आगे अवश्य बढावे🙏🏻*

मानव मानवता को वर ले

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on रविवार, 3 मई 2020 | 4:34 pm


हमने मिलकर थाल बजाई,
शंख बजा फिर ज्योति जगाई,
मंत्र जाप मन शक्ति अाई,
योग ध्यान आ करें सफाई,
जंग जीत हम छा जाएंगे,
विश्व गुरु हम कहलाएंगे,
आत्मशक्ति अवलोकन करके,
एकाकी ज्यों गुफा में रह के,
जन मन का कल्याण करेंगे
द्वेष नहीं हम कहीं रखेंगे
प्रेम से सब को समझाएंगे
मानव मानवता को वर ले
पूजा प्रकृति की जी भर कर ले
मां है फिर गोदी में लेगी
पीड़ा तेरी सब हर लेगी
हाथ जोड़ बस करे नमन तू
पाप बहुत कुछ दूर रहे तू
जल जीवन कल निर्मल होगा
मन तेरा भी पावन होगा
मां फिर गले लगा लेगी जब
खेल खेलना रमना बहुविधि
सब को गले लगाना फिर तुम
हंसना खूब ठ ठा ना जग तुम।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
UTTAR PRADESH
10APRIL2020
7.11 AM
उम्र भर जलता रहा चराग़-ए-आरज़ू अपना,
लोग कहते रहे बड़ी मुख़तसर दीवाली थी !!

रंग-ओ-बू फाख्ता थे जिस गुलों की महफ़िल में,
उसी महफ़िल में मिरी सांझ ढलने वाली थी !!

इम्तहानों में गुज़ारी थी ज़िन्दगी हमनें,
ज़िन्दगी क्या थी, कोई दस्ता-ए-सवाली थी !!

लुटे पड़े थे आंधियों से दरख़्त औे, मकां,
अब न जाले थे कहीं,और न कहीं जाली थी !!

वो गया तो कर गया,मेरे हवाले मुझको,
वो नज़ाकत वो मोहब्बत, तो बस ख़याली थी !!


- सागर

Written By SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 on सोमवार, 9 मार्च 2020 | 11:44 am


नफरत की ज्वाला में,
घी का हवन देते,
कुछ लोग,
तस्वीरें बनाते,
आविष्कार करते,
आपस में उलझे हैं,
आग उसने लगाई,
इस ने लगाई,
खुद जली,
बतिया रहे,
बची हुई सांसों को,
सुलगते अंगारों से,
जहरीले धुएं में,
हवा देते,
घुट घुट के जीते हुए,
छोड़ कहीं जा रहे,
हरी भरी तस्वीरें
काली विकराल हुई
मूरत की सूरत में
आंखें बस लाल हुईं
काश कुछ बौछारें,
शीतलता की आएं,
दहकती इन लपटों की
अग्नि बुझाएं,
धुंध धुएं को हटाएं,
पथराई आंखों में आंसू तो आएं
स्नेह की , दया की ,
भूख की प्यास की ,
जीवन के चाह की,
चमक तो जगाएं
सुरेंद्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर' 5

Founder

Founder
Saleem Khan