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जौनपुर की पहली अंग्रेजी वेबसाइट अब आपके सामने है |

Written By एस एम् मासूम on शनिवार, 15 फ़रवरी 2014 | 9:05 am


जौनपुर की website दो भाषाओँ में २०१० मई से आप सब के सामने है | इसे समय समय पे  जौनपुर वासियों की आवश्यकताओं को देखते हुए नवीनीकरण किया जाता रहा है |  हिंदी की website जहां पूर्वांचल में अधिक देखी जाती है तो अंग्रेजी की वेबसाइट की आवाज़ पूरे विश्व में अधिक पहुँचती है |

आज तक कई लाख लोग इन वेबसाइट को देख चुके हैं और जौनपुर वासियों के सहयोग से इसके पाठकों में हर दिन वृधि होती जा रही है |

अंग्रेजी की नयी website अपने आपमें बहुत से नए विकल्प ले के आयी है जिसे  समय के साथ साथ जौनपुर के लोगों की सुविधा को देखते हुए जोड़ा गया है | कुछ नए विकल्प आपके सामने हैं जिन्हें आप भी देखें | इनके बारे में लोगों को बताएं और इसका इस्तेमाल करके फायदा उठाएं और इस से जुड़ के जौनपुर का गौरव बढायें |

आपकी आवाज़ और जौनपुर का इतिहास पूरी दुनिया तक पहुंचाती इस website के नए आवरण को अवश्य देखें |
हिंदी http://www.hamarajaunpur.com/
English http://jaunpurcity.in/

1. जौनपुर वासियों की सुविधा के लिए हमेशा से एक डायरेक्टरी की कमी महसूस की जाती रही है | अंग्रेजी की website में इसे yellow page option में जोड़ा गया है |

यदि आप किसी तरह का व्यापार करते हैं या सामाजिक कार्य करते हैं तो उसे  यहाँ मुफ्त में जुड़वा के दुनिया को और जौनपुर के लोगों को बताएं | यह आपके व्यापार को बढाने में सहायक होगा |

आपके  व्यापार इत्यादि को जुड़ने के लिए आप संचालक श्री एस एम् मासूम को इ मेल या एस एम् एस कर सकते है या फिर जौनपुर बाज़ार के facebook पेज पे जा के उसे लिख दें | जल्द से जल्द उसे मुफ्त सेवा के वायदे के अनुसार जल्द से जल्द जोड़ दिया जायेगा |

२)  जौनपुर की इस दो भाषाओँ में शुरू की गयी वेबसाइट का मकसद धन कमाना नहीं बल्कि जौनपुर को दुनिया से जोड़ना है इसलिए विज्ञापन  की सुविधा अभी तक नहीं दी गयी थी लेकिन जौनपुर के लोगों के अनुरोध पे इसे अभी हिंदी की वेबसाइट पे शुरू किया जा रहा है जिसमे विज्ञापन के दर बहुत कम होंगे जिससे की इस सुविधा का लाभ छोटा व्यापारी भी उठा सके | आप यहाँ इसके बारे में जान सकते हैं |

३. अंग्रेजी की website पे पहले लोगों को पुराने लेख इत्यादि तलाशने में असुविधा हुआ करती थी जिसे देखते हुए इसमें बहुत से नए section जोड़े गए हैं जैसे history, news, society,lifestyle, notable jaunpuri इत्यादि जिस से अब आप एक क्लिक से ही बहुत से जानकारी पहले पेज पे ही पा सकते हैं |


४. जौनपुर की यह दोनों website को अब आप अपने मोबाइल से भी आसानी से देख सकते हैं |

5. आपका गाँव आपको अवश्य प्यारा होगा और दुनिया तक उसकी तस्वीरें वहाँ के लोगों के बारे में दुनिया को बताने का मन भी करता होगा तो इंतज़ार आपका अब ख़त्म हुआ | फ़ौरन लिखें संचालक एस एम् मासूम को और भेजें आने गाँव के बारे में तस्वीरों के साथ |

आपके सुझावों का स्वागत है और सहयोग की आशा | आभार संचालक - एस एम् मासूम
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साभार - एस एम् मासूम

Life is Just a Life: क्षणिका – एहसास

Written By नीरज द्विवेदी on रविवार, 2 फ़रवरी 2014 | 1:21 pm

Life is Just a Life: क्षणिका – एहसास: क्षणिका – एहसास

बापस कर दो मुझे
मेरे एहसास
मेरी स्वांस
थक चुका हूँ मैं
नाचते नाचते
शब्दों के इशारों पर
पन्नों के सहारों पर
कठपुतली की तरह … नीरज 

खबरगंगा: आदिवासी पंचायतों की वैधानिकता का सवाल

Written By devendra gautam on शनिवार, 1 फ़रवरी 2014 | 10:43 pm

आदिवासी पंचायतों की वैधानिकता का सवाल

वीरभूम जिले में पंचायत के  आदेश पर घटित सामुहिक बलात्कार कांड पर पश्चिम बंगाल के  राज्यपाल एमके० नारायणन ने देश भर में इस तरह के गैर कानूनी अदालत को  बंद करने की अपील की है 

DEVENDRAउन्होंने यह अपील राज्यपाल की हैसियत से की है अथवा एक संवेदनशील भारतीय नागरिक की हैसियत से अपने अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का प्रयोग करते हुए यह तो  पता नहीं लेकिन इसके  अंदर प्रशासनिक नज़रिये की जगह इस घटना से उपजा हुआ क्षोभ और आक्रोश ही दिखाई  पड़ रहा है। यदि उनकी अपील पर देश के  तमाम राज्यों  की सरकारें  अमल करती हैं तों ¨ यह सत्ता के विकेन्द्रीकरण की अवधारणा और पंचायती राज व्यवस्था की परिकल्पना के  विपरीत होगा ।
निश्चित रूप से यह घटना अ्त्यंत निंदनीय, अमानवीय और  शर्मनाक है। इसकी जितनी भी भर्त्सना  की जाये कम है। लेकिन इस एक फैसले से किसी एक पूरी संस्था के  वजूद के   नकारा जाना उचित नहीं है। बल्कि इस संस्था की गड़बडियों के  दुरुस्त करने पर विचार किया जाना चाहिए। भुक्तभोगी आदिवासी युवती का दोष सिर्फ इतना था कि वह समुदाय के  बाहर के  युवक से प्रेम करती थी। प्रेम करना किसी मायने में अपराध की श्रेणी में नहीं आता। इक्कीसवीं सदी में भी इतनी दकियानुसी सोच  का विद्यमान होना  इस बात की अलामत है कि पिछड़े समाजों के  ऊपर उठाने की अबतक की तमाम सरकारी गैर सरकारी को¨शिशें व्यर्थ गई हैं।
युवती का मां-बाप का दोष यह था कि वे गरीब थे और पंचायत के  25 हजार रुपये का दंड भरने की उनकी हैसियत नहीं थी। जाहिर तौर  पर पंच स्थानीय थे और उन्हें भुक्तभोगी परिवार की माली हालत की जानकारी रही होगी। फिर इतनी बड़ी रकम का दंड  लगाना उनकी कुत्सित मानसिकता का ही परिचायक था। माता पिता के  दंड भरने में असमर्थता जताने पर पंचायत ने आदिवासी युवती के  साथ सामुहिक बलात्कार का फरमान जारी कर दिया गया और  उसके आस पडोस के  ग्रामीण इसे अंजाम देने लगे। यह फरमान गैर कानूनी ही नहीं क्रूर और  पूरी तरह आपराधिक माना जाना चाहिए। इसे सामंती दबंगई का एक नमूना ही कहा जा सकता है। घटना के  कई दिन¨ बाद इस अपराध के लिए बलात्कार के 13 आरोपियों  के¨ न्यायिक हिरासत में लिया गया।
गिरफ्तारी में विलंब होने पर जिले के पुलिस कप्तान का तबादला कर दिया गया। लेकिन उन पंचों के कटघरे में खड़ा नहीं किया गया जिन्होंने यह शर्मनाक फैसला सुनाया था। उनकी भी गिरफ्तारी हो¨नी चाहिए। उनपर भी मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इस घटना के लिए वे भी उतना ही दोषी हैं जितना उनके फैसले के अमली जामा पहनाने वाले युवती के आस-पडोस  के ग्राणीण। यदि राज्यपाल महोदय ने फरमान जारी करने वाले पंचों  की भी गिरफ्तारी का आदेश दिया होता तो  इसका स्वागत किया जाता। इसका संदेश दूर-दूर तक जाता। पंचायती राज के लिए यह एक नज़ीर बनता। तमा्म जातीय पंचायतों  के गैर कानूनी करार दिया जाना कहीं से भी उचित नहीं है।
आदिवासियों  की पड़हा पंचायत और  मानकी मुंडा प्रशासन के  ब्रिटिश सरकार के  जमाने में ही कानूनी मान्यता मिल गई थी। इसके लिए आदिवासी इलाके में कितने ही आंदोलन हुए। कुर्बानियां दी गईं। उन्हें एक सिरे से गैरकानूनी कहकर प्रतिबंधित कर देना न उचित है न संभव। जिस पंचायत ने यह क्रूर फैसला दिया उसकी कुछ न कुछ वैधानिक हैसियत तो अवश्य रही होगी। वे आदिवासियों  की पारंपरिक व्यवस्था के  तहत मान्यता प्राप्त पंच रहे हैं अथवा पंचायती राज व्यवस्था के  तहत चुने हुए मुखिया सरपंच। गांव समाज के खुद मुख्तार नेता रहे है अथवा ज¨ भी रहे है। उनका जो  भी स्वरूप रहा हो  लेकिन उन्हें पूरी तरह गैरकानूनी तो  नहीं करार दिया जा सकता।
आदिवासी पंचायतें कठोर  दंड देने के  लिए जरूर चर्चे में रही हैं। उनके  यहां डायन-विसाही के आरोप  में महिलाओं  को  मैला पिलाने, नंगा घुमाने का चलन रहा है लेकिन स्त्रियों की आबरू से खेलना उनकी संस्कृति या पारंपरिक दंड संहिता में शामिल नहीं रहा है। संभवतः यह पहला मौका है जब पूर्वांचल के किसी आदिवासी पंचायत ने हरियाणा की खाफ पंचायतो  की तर्ज पर फैसला किया है। इसके  पीछे कौन सी मानसिकता काम कर रही थी। आदिवासी समाज के  अंदर यह विकृति किधर से आयातित है रही है, इस पर गंभीरतापूर्वक विचार किये जाने की जरूरत है।
एक कड़वा सच यह भी है कि हमारे देश की न्याय व्यवस्था इतनी पेंचीदी है कि छोटे –छोटे  मामलें  का फैसला आने में भी कई-कई साल लग जाते हैं। न्याय मिलता भी है त¨ इतने विलंब से कि उससे संतुष्टि या असंतुष्टि के  भाव ही तिर¨हित ह¨ जाते हैं। फरियादी अदालते  के चक्कर लगाता-लगाता पूरी जवानी काटकर बूढ़ा है जाता है।
कभी-कभी तो  फैसला आने तक उसकी आयु ही समाप्त है  जाती है। आरो¨पी भी जमानत पर घूमते-घूमते दंड पाने से पहले ही स्वर्ग सिधार जाते हैं। न मुद्दई बचता है न मुदालय। बच जाते हैं सिर्फ मुकदमें ज¨ तारीख दर तारीख खिंचते चले जाते हैं। क¨यलांचल क¢ बहुर्चिर्चत दास हत्याकांड का फैसला आने आने में कई दशक निकल गए थे। तब तक सारे मुख्य आरोपियों का देहांत हो  चुका था। उनकी जगह परिवादियों  की सूची में शामिल किये उनके  भाई बंधु आजीवन कारावास के  भागी बने। ऐसे सैकडों उदाहरण हैं।
हमारी विलंबित न्याय प्रणाली के कारण ही नक्सल प्रभावित इलाका  में त्वरित फैसला करने वाली नक्सलियों  की जन अदालतें लगाकर  मान्य होती रही हैं। लोग अपनी फरियाद लेकर थाना और कोर्ट -कचहरी का चक्कर लगाने की जगह नक्सलियों  की कमेटियों  में अर्जी देने लगे हैं। उनका कई  वैधानिक अस्तित्व भले नहीं है  लेकिन उनके  इलाके में उनके प्रति एक किस्म की आस्था दिखाई देती है तो  यह हमारी न्याय प्रणाली की कमियों के  कारण ही। नक्सली न भारतीय संविधान के  मानते हैं न दंड संहिता के । उनका अपना अलग जंगल का कानून चलता है।
ग्राम स्तर पर मिल बैठकर मामलों  के  निपटाने की यह क¨ई नई व्यवस्था नहीं है। यह परंपरा प्राचीन काल से ही भारत में प्रचलित रही है। यहां पंच के  परमेश्वर का दर्जा दिया जाता रहा है। महात्मा गांधी भी पंचायती राज व्यवस्था क¨ ग्राम स्वराज का आधार मानते थे। वे सत्ता के  विकेद्रीकरण के हिमायती थे। तमाम राजनैतिक पार्टियां ग्राम पंचायतों को शक्ति संपन्न बनाने की वकालत करती हैं।
राज्यपाल महोदय ने जिस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की है वह सत्ता के केंद्रीकरण की दिशा में संकेत देता है। यह राजतंत्र अथवा तानाशाही की व्यवस्था में ही संभव है। ल¨कतांत्रिक व्यवस्था में विकेद्रीकरण का महत्व है। तब यह जरूरी है कि सत्ता की छो¨टी से छोटी इकाइयां भी एक नियम के तहत चलें। एक दंड विधान है  जिसका हर स्तर पर पालन है। अपराध और  सज़ा के बीच एक तारतम्य है । तमाम फैसले समाज के मान्य है ।
गलत, पक्षपातपूर्ण, मनमाने और  विधान के विरुद्ध फैसले सुनाने वालों  पर कार्रवाई का प्रावधान भी होना चाहिए। मेहनत मजदूरी करके  गुजारा करने वालों  पर छोटी-छोटी गल्ती के लिए बड़ी-बड़ी राशियों  का आर्थिक दंड लादा जाना अराजकता और मनमानी का प्रतीक है।
निश्चित रूप से विकेद्रीकरण अच्छी चीज है लेकिन इसके  नाम पर अराजकता और  वर्वरता के ¨ प्रश्रय नहीं दिया जा सकता। किसी युवती के  साथ सामुहिक बलात्कार करने का आदेश मध्ययुगीन बर्बर समाज¨ में भी नहीं दिया जाता था। यह पूरी तरह आपराधिक कृत्य है। ऐसा फरमान जारी करने करने वाले के  खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई तो  भविष्य में भी इस तरह के  फरमान जारी किये जा सकते हैं।
लेकिन यदि किसी एक पंचायत ने अपने ही पंचायत की बेटी के साथ इस तरह का अमानुषिक फैसला दिया तो इसके  कारण आदिवासियों  की पूरी परंपरागत स्वशासन की व्यवस्था का  गैरकानूनी करार देकर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। उस पंचायती इकाई क¨ भले भंग कर दिया जाए लेकिन पूरी व्यवस्था के  ध्वस्त नहीं किया जा सकता।
देवेंद्र गौतम 



खबरगंगा: आदिवासी पंचायतों की वैधानिकता का सवाल

Founder

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Saleem Khan