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संविधान दिवस आयोजन - भारत जोड़ो यात्रा की सफ़लता

Written By Shalini kaushik on रविवार, 27 नवंबर 2022 | 12:37 pm

 



      26 नवंबर - विधि दिवस - संविधान दिवस के रूप में 1949 से स्थापित हो गया था। भारत गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया और तभी से भारत गणराज्य में 26 नवंबर का दिन "संविधान दिवस - विधि दिवस" के रूप में मनाया जाता है. 

     देश में एक लम्बे समय तक कॉंग्रेस पार्टी की ही सरकार रही है और क्योंकि कॉंग्रेस पार्टी के ही अनथक प्रयासों से देश में संविधान का शासन स्थापित हुआ है इसलिए कॉंग्रेस पार्टी के द्वारा संविधान दिवस मनाया जाना आरंभ से ही उसकी कार्यप्रणाली में सम्मिलित रहा है किन्तु आज देश में कॉंग्रेस विरोधी विचारधारा सत्ता में है और उस विचारधारा ने कॉंग्रेस की विचारधारा और कार्यप्रणाली के ही विपरीत आचरण को ही सदैव अपने आचरण में सम्मिलित किया है और इसी का परिणाम है कि आज देश में बहुत से ऐसे शासनादेश सामने आए हैं जो संवैधानिक नियमों का उल्लंघन करते हुए नजर आए हैं और इन्ही कुछ परिस्थितियों के मद्देनजर कॉंग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान सांसद श्री राहुल गांधी जी द्वारा देश में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक 7 सितंबर 2022 से भारत जोड़ो यात्रा आरंभ की गई, जिसमें उमड़े हुए अपार ज़न समूह को देखकर और राहुल गांधी के प्रति जनसमुदाय के प्यार को देखकर कॉंग्रेस पार्टी के विपक्षी  खेमे को गहरा झटका लगा है और वह कैसे भी करके, कभी महिलाओं का राहुल गांधी जी द्वारा हाथ पकड़ने को लेकर तो कभी राहुल गांधी जी की दाढ़ी को लेकर, कभी भीड़ को फोटो शॉप कहकर भारत जोड़ो यात्रा को बदनाम करने की कोशिश में लगे हुए हैं. 

     भारत जोड़ो यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण असर ही कहा जाएगा कि पिछले 8 साल से सत्ता में आया कॉंग्रेस पार्टी का विपक्षी खेमा अपनी विचारधारा के विपरीत देश के सभी महत्वपूर्ण संस्थानों - कलेक्ट्रेट, पुलिस थाने, विकास विभाग, महाविद्यालय, इंटर कॉलेज आदि सभी जगह संविधान दिवस मनाए जाने के आदेश पारित किए जाते हैं, सभी संस्थानों के अफसर संविधान की शपथ ग्रहण करते हैं. संविधान की श्रेष्ठता पर बड़े बड़े भाषण दिए जाते हैं. ये राहुल गांधी जी की भारत जोड़ो यात्रा की बहुत बड़ी सफ़लता कही जाएगी क्योंकि आज कॉंग्रेस पार्टी का विपक्षी खेमा वह सब कुछ कर रहा है जिसे उसने कभी अपनी कार्यप्रणाली, अपनी संस्कृति, अपनी विचारधारा मे कोई जगह नहीं दी. वह संविधान की शपथ ले रहे हैं जो संविधान के शासन के ही खिलाफ थे, वे हर घर तिरंगा अभियान चला रहे हैं जो कभी अपने कार्यालय तक पर तिरंगे को फहराने की ज़हमत नहीं उठाते थे. 

         आज राहुल गांधी और उनकी भारत जोड़ो यात्रा देश ही नहीं, विदेश में भी सुर्खियों में है और इसमें उमड़ता हुआ अपार ज़न समूह इसकी बुलंदियां ज़ाहिर करने के लिए पर्याप्त है. जय हिंद - जय भारत 🇮🇳🇮🇳

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 



डॉ शिखा कौशिक नूतन की पुस्तक का विमोचन


 मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल (छठा संस्करण) 25, 26, 27 नंवबर 2022 को चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के 'बृहस्पति भवन' में विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया. आयोजन समिति में नेपाल, ब्रिटेन, रूस, जापान और समस्त भारत से आने वाले अतिथियों का भारत में आयोजक डॉ विजय पंडित और पूनम पंडित द्वारा हार्दिक स्वागत किया गया. 

      देश विदेश में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके अंतरराष्ट्रीय क्रांतिधरा मेरठ साहित्यिक महाकुंभ में 26 नवंबर को आयोजित लघुकथा सत्र में डॉ शिखा कौशिक "नूतन" द्वारा लिखित लघु कथा संग्रह "काली सोच" का विमोचन बलराम अग्रवाल जी (वरिष्ठ लघुकथाकार, दिल्ली) श्री जी सी शर्मा (रिटायर्ड डिप्टी एस पी), श्रीमती अंजू खरबंदा (लघुकथाकार, दिल्ली) डॉ अलका शर्मा (दिल्ली) श्रीमती पूर्णिमा (मेरठ)  नेपाल से वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ पुष्कर राज भट्ट जी द्वारा किया गया और डॉ शिखा कौशिक नूतन को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया.डॉ शिखा कौशिक नूतन ने अपने संबोधन में लघुकथा के स्वरूप को परिभाषित करने वाले हिन्दी लघुकथा के पितामह स्व सतीश राज पुष्करणा का उल्लेख करते हुए कहा कि वास्तव में लघुकथा मंद मंद बहती हुई सरिता के समान न होकर अनायास प्रस्फुटित झरने के समान है। उन्होंने अपने लघुकथा संग्रह 'काली सोच' में संग्रहित लघुकथा ' प्रेम की अभिव्यक्ति' का वाचन भी किया। जिसमें डॉ शिखा कौशिक द्वारा प्रेम की अभिव्यक्ति - लघुकथा द्वारा प्रेम के विराट और सच्चे स्वरूप का वर्णन किया गया. लेखिका ने लघुकथा का वाचन करते हुए कहा गया कि "प्रेमी ने प्रेमिका को गुलाब का महकता फूल भेंट करते हुए कहा - मैं तुमसे प्रेम करता हूँ. प्रेमिका ने फूल स्वीकार करने से पहले अपना ओढ़ा हुआ शॉल कंधे से उतारा और ठंड से ठिठुरते हुए प्रेमी को ओढ़ा दिया." लेखिका द्वारा की गई प्रेम की उच्च अभिव्यक्ति की सभी उपस्थित अतिथियों द्वारा मुक्त कंठ से सराहना की गई.

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

भारत की शेरनी प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी - कोटि कोटि नमन 💐

Written By Shalini kaushik on शुक्रवार, 18 नवंबर 2022 | 9:52 pm



अदा रखती थी मुख्तलिफ ,इरादे नेक रखती थी ,

वतन की खातिर मिटने को सदा तैयार रहती थी .

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मोम की गुड़िया की जैसी ,वे नेता वानर दल की थी ,,

मुल्क पर कुर्बां होने का वो जज़बा दिल में रखती थी .

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पाक की खातिर नामर्दी झेली जो हिन्द ने अपने ,

वे उसका बदला लेने को मर्द बन जाया करती थी .

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मदद से सेना की जिसने कराये पाक के टुकड़े ,

शेरनी ऐसी वे नारी यहाँ कहलाया करती थी .

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बना है पञ्च-अग्नि आज छुपी है पीछे जो ताकत ,

उसी से चीन की रूहें तभी से कांपा करती थी .

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जहाँ दोयम दर्जा नारी निकल न सकती घूंघट से ,

वहीँ पर ये आगे बढ़कर हुकुम मनवाया करती थी .

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कान जो सुन न सकते थे औरतों के मुहं से कुछ बोल ,

वो इनके भाषण सुनने को दौड़कर आया करती थी .

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न चाहती थी जो बेटी का कभी भी जन्म घर में हो ,

मिले ऐसी बेटी उनको वो रब से माँगा करती थी .

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जन्मदिन ये मुबारक हो उसी इंदिरा की जनता को ,

जिसे वे जान से ज्यादा हमेशा चाहा करती थी .


शालिनी कौशिक

[एडवोकेट ]

कैराना (शामली) 

बाल दिवस विशेष - बच्चों के प्रति लापरवाही गलत

Written By Shalini kaushik on सोमवार, 14 नवंबर 2022 | 12:36 pm

  




"वक़्त करता है परवरिश बरसों 

हादिसा एक दम नहीं होता" 

सभी जानते हैं कि हादसे एक दम जन्म नहीं लेते, एक लम्बे समय से परिस्थितियों के प्रति बरती गई लापरवाही हादसों की पैदाइश का मुख्य कारण होती है. भले ही अवैध रूप से चलाई जा रही पटाखा फैक्ट्री के हादसे हों या सड़कों में बनते जा रहे गड्ढों के कारण इ-रिक्शा पलटने के हादसे, बन्दरों के हमलों के कारण घरों में छोटी मोटी चोट लगने के हादसे, सब चलते रहते हैं और आम जनता से लेकर प्रशासन तक सभी इन्हें " बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले" कहकर टालते रहते हैं, क़दम उठाए जाते हैं तब जब पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट के कारण दो - तीन गरीब महिला या कामगार बच्चे के शरीर के चीथड़े उड़ जाते हैं, जब इ-रिक्शा पलटने से स्कूल जाती हुई बच्ची की लाश उसके घर पहुंचाई जाती है, जब बन्दरों के हमले के कारण मन्दिर से घर आई सुषमा चौहान को असमय काल का ग्रास बनना पड़ता है.

     क्यूँ नहीं विचार किया जाता इन परिस्थितियों पर इनके हादसे में तब्दील होने से पहले, प्रशासन की, सरकारी विभागों की तो छोड़िए वे तो तब ध्यान देंगे जब ऊपर से इन परिस्थितियों के राजनीतिक लाभ लेने के लिए कार्रवाई किए जाने के आदेश होंगे किन्तु बड़ा सवाल यह है कि भुक्त भोगी तो हम "आम जनता" अर्थात "हम भारत के लोग" होते हैं, हम ध्यान क्यूँ नहीं देते?

      बच्चों के साथ होने वाले हादसे रोज अखबारों की सुर्खियों में हैं. कितने ही बच्चे गायब हो रहे हैं, कितने ही बच्चों को दुष्ट लोगों के द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया जा रहा है. कल ही बागपत में 112 पुलिस वाहन द्वारा दो बच्चों को टक्कर मारने का मामला पब्लिक ऐप पर छाया हुआ है. कस्बा कांधला के मोहल्ला सरावज्ञान में सीता चौक पर एक चौहान डेयरी की दुकान है जहां पिछले कुछ समय से शाम को 3-4 साल से 8-10 साल तक के बच्चों की दूध की बर्नी हाथ में लिए दौड़ भाग किए जाने की भरमार रहती है. बच्चों की लड़ाई होती है, मार पीट भी होती है जिसे बहुत सी बार आने जाने वाले लोगों द्वारा डांट फटकार कर रोका जाता है. आश्चर्यजनक बात यह है कि इतने छोटे बच्चों को रात के अंधेरे में दूध लेने के लिए घर से भेज दिया जाता है और कितना ही अंधेरा हो जाए, किसी का भी कोई ध्यान भी इस ओर नहीं जाता. जो बच्चे खुद को भी ठीक तरह से नहीं सम्भाल सकते उन्हें अंधेरे रास्तों पर दूध दुकान से लेने और घर तक आने के लिए अंधेरी गलियों में दूध भरा हुआ बर्तन लाने की जिम्मेदारी दे दी गई है और कहीं कोई चिंता नहीं, कोई परवाह नहीं, साथ में किसी भी बड़े का कोई संरक्षण नहीं, क्या गारन्टी है कि आज सब कुछ ठीक है तो कल भी सब ठीक रहेगा. दुकान पर आने वाले बड़ी उम्र के किसी भी आदमी औरत को इन बच्चों की सहायता करते हुए नहीं देखा जाता, कोई नहीं कहता कि बेटा /बेटी पहले तुम ले लो. पहले शाम 7 बजे और अब शाम 6 बजे खुलने वाली दूध की दुकान पर इन बच्चों को दूध तब मिलता है जब बड़ी उम्र के ग्राहक दूध लेकर निकल चुके होते हैं और तब तक छोटे छोटे बच्चे अंधेरे में खेलते रहते हैं, लड़ते रहते हैं और कभी कभी चोट खाते रहते हैं. पर किसी का कोई ध्यान नहीं जबकि अभी 7 नवम्बर 2022 से कांधला के ही एक मोहल्ले का 15 साल का लड़का गायब है, पहले भी लगभग 2 साल पहले एक 7-8 साल की लड़की गायब हो चुकी है जिसका आज तक कोई पता नहीं चल पाया है. क्यूँ नहीं विचार करते हम इन सभी खतरों पर, एक आध दिन की मजबूरी अलग बात है कि भेजना पड़ जाए बच्चे को, किन्तु रोज रोज के लिए ऐसा करना गलत लोगों के गलत इरादों को शह देना है. ये सोचना कि आज कुछ नहीं हुआ तो कल भी नहीं होगा, बेवकूफ़ी है. 

       ऐसे में, न केवल प्रशासन बल्कि बच्चों के माता पिता और संरक्षकों को जागरूक होकर ध्यान देना होगा क्योंकि बच्चे तो भोले होते हैं उनके साथ कोई भी हादसा अगर होता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वतः ही बड़े पर आ जाएगी. इसलिए बडों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस ओर ध्यान देना ही होगा और बच्चों की कम उम्र को देखते हुए उन्हें इस तरह स्वतंत्र रूप से जिम्मेदारी भरे कार्य में न डाला जाए बल्कि सुरक्षित अह्सास प्रदान कर सही गलत की समझ विकसित कर ही कार्य सौंपा जाए और तब सही तरीके में बाल दिवस मनाया जाए. सभी बालक - बालिकाओं को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 







कैराना की पत्रकारिता का अजीम मंसूरी दौर

Written By Shalini kaushik on सोमवार, 7 नवंबर 2022 | 11:52 am

   


  भारतीय मीडिया इतना पथभ्रष्ट कभी नहीं था, जितना अभी पिछले कुछ सालों से हुआ है. पत्रकारिता और राजनीति एक दूसरे के बहुत महत्वपूर्ण पर्याय रहे हैं , पत्रकारिता ने हमेशा राजनीति की बखिया उधेड कर रख दी हैं, राजनीतिज्ञों की कोई भी योजना रही हो, किसी भी दल की, पत्रकारों की पारखी नजरों से कोई भी राजनीतिक चाल कभी छुपी नहीं रह सकी, यही नहीं भारतीय राजनीति में एक दबदबा कायम रहा है कैराना के राजनीतिज्ञों और पत्रकारों का जिसके कारण कैराना राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर चर्चाओं का मुद्दा रहा है किन्तु ये सब तथ्य अब पुराने पड़ चुके हैं, अब राजनीति का जो स्वरूप सामने है वह चापलूसी को ऊपर रखता है और कैराना वह राजनीति के हल्के में स्व बाबू हुकुम सिंह जी और मरहूम मुनव्वर हसन के बाद से अपनी पहचान खोता जा रहा है और पत्रकारिता भटक गई है केवल एक मसखरे अजीम मंसूरी की खबरों में, जो पहले अपने निकाह कराने की दरख्वास्त को लेकर प्रशासन को तंग करता है, फिर बरात ले जाने, निकाह स्थल पर गोदी में ले जाने, फिर दुल्हन बुशरा को घर लाने, उसकी मुँह दिखाई, बुशरा की डिमांड और अब खुशी में चुन्नी ओढ़कर नाचने की खबरों को लेकर चर्चाओं में है और कैराना का मीडिया पूरी कवरेज दे रहा है एक मसखरे की मसखरी चर्चाओं को, कैराना की पत्रकारिता का स्तर इतना नीचे कभी नहीं गिरा होगा कि मात्र चर्चाओं में बने रहने के लिए पत्रकार एक मसखरे का सहारा लें. क्या कैराना अपराधियों के जंजाल से मुक्त हो गया, क्या कैराना की सडकें गड्ढा मुक्त हो गई, क्या डी. के. कॉन्वेंट स्कूल में हादसे का शिकार हुई बेटी अनुष्का को न्याय मिल गया, क्या बन्दरों के हमले में मृत सुषमा चौहान की मृत्यु के कारण से अन्य कैराना वालों को बचाने में प्रशासन ने सफलता प्राप्त कर ली? क्यूँ नहीं ध्यान दे रहे हैं कैराना के पत्रकार अपने जरूरी कर्तव्य पर क्या वास्तव में बिक चुकी है पत्रकारिता और भटक चुके हैं आज के पत्रकार, क्या फिर से किसी जामवंत को आना होगा हनुमान रूपी पत्रकारों को उनकी शक्ति याद दिलाने के लिए. 


    शालिनी कौशिक 

             एडवोकेट 

   कैराना (शामली) 

Founder

Founder
Saleem Khan