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नुकसानों का पलड़ा नीतीश का भारी है

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on शुक्रवार, 14 जून 2013 | 9:44 pm

Neeteesh-Modi whispering among Sushma-Rajnath.
नीतीश कुमार काबिल मुख्यमंत्रियों में से एक हैं, लेकिन मोदी की खिलाफत करके  वे बुरे फंस गए हैं। शुरुआत तो कॉमन प्रेशर पीयरिंग से हुई थी, मगर वह सिलसिला इतना आगे बढ़ चला कि वे अब समझ नहीं पा रहे कि करें तो क्या? छोड़ देते हैं एनडीए तो बिहार से बाहर हो जाएंगे, नहीं छोड़ते तो मीडिया की चिल्लाई बनाई इज्जत चली जाएगी। यूं सियासी जोड़तोड़ में इज्जत, फिज्जत तभी तक रहती हैं, जब तक आप स्पष्ट बहुमत से सरकार चला रहे हों। वरना मुलायम जिन्होंने सोनिया को पीएम बनाने के लिए 1998 में एक वोट से अटल सरकार को गिरवाया था और फिर बाद में सोनिया सेना के ही फोन नहीं उठाने वाले फिर उनके साथ नहीं होते। गैर भरोसेमंद लोग ही बाद में भरोसेमंद होते हैं। चलिए जरा जानते हैं क्या हो सकता है।
एनडीए से बाहर
हंड्रैड परसेंट बाहर होने के कई खतरे हैं। नीतीश की सरकार अभी 2015 तक चलेगी। इसे कोई रोक भी नहीं सकता। भले ही वे एनडीए से बाहर आ जाएं। निर्दलीय हैं न। लेकिन बाहर आने के बाद यह भी सौ फीसदी सही है कि उन्हें हर हाल में सत्ता से बाहर होना पड़ेगा। सत्ता से बाहर होकर भी चल जाता, लेकिन संकट यह है कि वे मुख्य विपक्ष से भी बाहर हो जाएंगे। चूंकि सीट कैल्कुलेशन कहता है कि भाजपा 91 विधानसभा सीटों पर काबिज है। अलग होकर नीतीश को नुकसान करेगी। खुद को फायदा होगा। इसी बीच नीतीश भी भाजपा को नुकसान करेंगे, लेकिन मोदी वेव बिहारियों और उत्तर भारतीयों पर ज्यादा सवार है, तो यहां भी संभावित खतरे हैं। यानी ऐसे वैसे जैसे भी भाजपा अपनी 80 सीटें तो बचा ही लेगी, लेकिन जो सीटें जदयू के साथ मिलकर लड़ती हैं, उनमें से कम से कम 25 सीटों पर भाजपा जेडीयू को सीधे टक्कर दे सकने की स्थिति में है। इस बीच लालू जो 22 सीटों पर बैठकर अबतक सिर पीट रहे थे। बच्चों, भतीजों को लॉन्च करने में मशरूफ थे, वे एक बार फिर 50 क्रॉस कर सकते हैं। कांग्रेस को भी फायदा ही होना है, चूंकि मैक्सिमम नुकसान पर वह बैठी ही है। अब शरद बाबू नीतीश से सीधे भी नहीं कह पा रहे कि भाई बखेड़ा हो जाएगा और छुपा भी नहीं पा रहे। तब नुकसानों का पलड़ा नीतीश का भारी है।
एनडीए में रहते हैं
रहते हैं तो मुस्लिम वोट खिसक सकता है। लेकिन वह खिसक कर भी किसी एक पार्टी के पास नहीं जाएगा। बंटेगा, कांग्रेस, राजद और कुछ और अन्य में। यानी यहां पर भी कैल्कुलेटिवली जेडीयू को नुकसान है, किंतु उतना बड़ा फिर भी नहीं, जितना कि एनडीए छोडऩे से होगा। इधर शरद बाबू की भावनाएं हिचकोले खा रही हैं, कि हो सकता है एनडीए में ऐसी स्थिति बने कि उन्हें डेप्टी पीएम बना दिया जाए।
तब क्या करे जेडीयू
इस पूरे घमासान में जो करना है वह जेडीयू को ही करना है। लेकिन इज्जत का क्या? भाड़ में जाए इज्जत फिज्जत, अपन तो यह कहते हैं कि मोदी को पीएम बनाया तो अपन भाग जाएंगे। और शरद कहते हैं, सचमें चले जाएंगे। इज्जत भी बच निकलेगी और फिर भाजपा का भी सीधा पता चलेगा कि उसे अपनी जरूरत भी है या नहीं।
- सखाजी
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