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गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन

Written By SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 on शुक्रवार, 19 मार्च 2021 | 2:44 pm

 गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन

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आम्र मंजरी बौराए तन देख देख के

बौराया मेरा निश्च्छल मन

फूटा अंकुर कोंपल फूटी

टूटे तारों से झंकृत हो आया फिर से मन

कोयल कूकी बुलबुल झूली

सरसों फूली मधुवन महका मेरा मन

छुयी मुई सी नशा नैन का 

यादों वादों का झूला वो फूला मन

हंसती और लजाती छुपती बदली जैसी

सोच बसंती सिहर उठे है कोमल मन

लगता कोई जोह रही विरहन है बादल को

पथराई आंखे हैं चातक सी ले चितवन

फूट पड़े गीत कोई अधरों पे कोई छुवन

कलियों से खेल खेल पुलकित हो आज भ्रमर

मादक सी गंध है होली के रंग लिए

कान्हा को खींच रही प्यार पगी ग्वालन

पीपल है पनघट है घुंघरू की छमछम से

गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन

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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश भारत

19.3.2021

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3 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को    "फागुन की सौगात"    (चर्चा अंक- 4012)    पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
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सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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Kamini Sinha ने कहा…

मादक सी गंध है होली के रंग लिए

कान्हा को खींच रही प्यार पगी ग्वालन

पीपल है पनघट है घुंघरू की छमछम से

गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन
बहुत सुंदर सृजन, सादर नमन आपको

मन की वीणा ने कहा…

सुंदर श्रृंगार रचना।
होली रंगों में रंगी।

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