नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » » वकीलों से निरन्तर दुर्व्यवहार

वकीलों से निरन्तर दुर्व्यवहार

Written By Shalini kaushik on गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024 | 6:17 am

 



सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक वकील द्वारा गलती से न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय को "न्यायमूर्ति हृषिकेश मुखर्जी" कह दिए जाने पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने तुरंत वकील को टोका और कहा कि एक वकील को न्यायाधीशों के नाम मालूम होने चाहिए। इस मामले का जिक्र करते हुए वकील ने कहा, "यह मामला न्यायमूर्ति हृषिकेश मुखर्जी के सामने था।" इस पर चीफ जस्टिस ने तुरंत उन्हें टोकते हुए कहा, "हृषिकेश मुखर्जी या न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय? अगर आप रॉय को मुखर्जी बना देंगे तो... आपको अपने जजों के नाम मालूम होने चाहिए। यह तो हद है। कृपया वेबसाइट पर जाकर नाम चेक कीजिए।"

       अपने कार्यकाल के दौरान यह कोई पहला वाकया नहीं है जब माननीय मुख्य न्यायाधीश द्वारा वकीलों का अपमान किया गया है. जरा सी शब्दों की चूक या प्रक्रिया के पालन में थोड़ी कमी को माननीय मुख्य न्यायाधीश तुरंत नोट करते हैं और वकीलों को मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार लताड़ते या डांटते रहते हैं. वकील द्वारा जस्टिस हृषीकेश राय का नाम हृषीकेश मुखर्जी कह देना एक जरा सी संबोधन की चूक है जिसका कोई महत्त्व इतने बड़े स्तर पर नहीं होता है. न्यायालय के कार्यों के दौरान जज या न्यायाधीश के नाम का कोई स्थान नहीं होता है वहां वे केवल पद नाम से ही संबोधित किए जाते हैं इसलिए कोई जरूरी नहीं होता है कि जजों या न्यायाधीशों का नाम किसी भी वकील को आवश्यक रूप से पता होना ही चाहिए, ये अलग प्रतिभा की बात होती है जब जजों या न्यायाधीशों का नाम ही नहीं बल्कि उनकी शिक्षा, स्थाई निवास आदि का वकील को ज्ञान हो और रही बात हद की तो हद तो तब भी होनी चाहिए जब जज या न्यायाधीश वकील के किसी फार्म पर स्थानीय बार एसोसिएशन के पदाधिकारी के वकील के साथ होते हुए यह कहते हुए मना कर दे कि वह उस वकील को नहीं जानता. इस हद की ओर भी तो भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश का ध्यान जाना चाहिए कि जजों और न्यायाधीशों द्वारा ऐसा तब किया जाता है जब वकीलों के उन कागजात पर जजों या न्यायाधीशों द्वारा सत्यापन को सबंधित संस्था द्वारा आवश्यक बनाया गया है. 

शालिनी कौशिक एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

 

Share this article :

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.