यूं तो माँ की ममता का कोई पर्याय नहीं है। माँ अपने आप में इतनी महान होती है, कि उसके लिए जो भी कहा जाये जो भी लिखा जाये वो हमेशा ही कम होगा। लेकिन फिर भी, उन्हीं बातों में से कुछ बातों को आज मैं दौहराना चाहूंगी।
एक माँ जिसे अपने बच्चे की ज़िंदगी की पहली पाठ शाला कहा जाता है।
एक माँ जो अपने बच्चे को हर चीज़ सिखाती है।
एक माँ जो उसे ज्ञान का पहला अक्षर सिखाती है"
फिर भाषा चाहे कोई भी हो, शुरुवात माँ की गोद में बैठकर खेल ही खेल में किताबों में रंगीन चित्र को देखते हुए ही बच्चा पहचान ना सीखता है की अ से अनार या A से Apple होता है और दो चार बार अपने बच्चे की तोतली मधुर बोली में माँ इन अक्षरों को सुन खुद फुली नहीं समाती है क्यूँ ? क्यूंकि वो अपने बच्चे को हर क्षेत्र में कुशल बनाना चाहिती है। दुनिया के कदम ताल से कदम मिलाकर कैसे चला जाता है यह सिखाना चाहती है। लेकिन जब बच्चा माँ के आँचल से निकल कर खुद अपने परों पर खड़ा हो जाता है और बहार की दुनिया से अपने आस-पास के वातावरण से प्रभावित होकर दूसरों की देखा देखी जब वही बच्चा अपनी ही माँ की हंसी उड़ाने लगता है, तो कैसा लगता हो उस माँ को जिसने उसे उंगली पड़कर चलाने से लेकर सब कुछ सिखाया और उसके बावाजूद भी जब उसका बच्चा उसे यह कहे कि अरे माँ तुम तो इतनी पढ़ी लिखी हो, फिर भी तुम्हें आज इतना भी नहीं मालूम कि अँग्रेजी में वाक्य कैसे बनाते है। अँग्रेजी में बोलते कैसे है। हाँ कैसे पता होगा तुमको, सारा दिन घर में जो रहती हो। तुम्हें तो बाहर की दुनिया के बारे में कुछ पता ही नहीं है। मेरे दोस्तों की माओं को देखो सब नौकरी करती हैं। उनको सब पता है, बस एक तुम ही हो जो घर में रहती हो।
तुमको भी नौकरी करनी चाहिए आखिर घर में रहकर तुम करती ही क्या हो सिवाए खाना बनाने और घर की साफ सफाई के आलवा तुमको तो कुछ नहीं आता। यहाँ तक कि तुम्हें तो ढंग से इंगिल्श बोलना भी नहीं आता। घर से बाहर निकलो माँ, देखो दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच रही है। मेरे दोस्तों की माओं से कुछ तो सीखो और कुछ नहीं कर सकती। तो कम से अपना रहन सहन ही बदल लो यह पुराने जामने के हिदुस्तानी कपड़े पहन कर मत आया करो मुझे लेने स्कूल, आना है तो औरों कि तरह जीन्स में आया करो और हिन्दी मत बोला करो ज्यादा, मेरे दोस्तों को लगता है, कि तुम्हें इंगिल्श बोलना नहीं आता। इसलिए बोला करो मगर कम ताकि मेरे दोस्तों को यह पता चल सके की तुमको इंगलिश बोलना आता तो है। मगर कम इसलिए ताकि उन्हे यह न पता चले की तुम्हें सही इंगलिश बोलना नही आता। मगर यहाँ बात माँ के पढे लिखे होने या अनपढ़ होने की नहीं बल्कि उसकी भावनाओं की है
कभी सोचा है क्या गुजरती होगी उस माँ के दिल पर जो अपने ही स्कूल जाने वाले बच्चे के द्वारा इस कदर लगभग रोज़ ही अपमानित होती है। पढ़ी लिखी होते हुए भी उसे जाने अंजाने उसका बच्चा यह एहसास करता रहता है, कि तुम एक गृहणी हो और तुमको अँग्रेजी कम आती है तो तुम जाहिल और गंवार से कम नहीं हो।क्यूँ आज के आधुनिक युग में भी एक बच्चे के लिए उसके पिता एक सुपर हीरो से कम नहीं और एक माँ जो शायद उसके पिता से ज्यादा न सही, मगर कम भी नहीं है, लेकिन महज़ सदा लिबास और सदा व्यवहार होने कि वजह से वही उसका अपना बच्चा, उसका अपना खून उसे सिवाए एक केयर टेकर से ज्यादा कुछ भी नहीं समझता। आखिर क्यूँ और कब तक.....खुद को यूं ही दूसरों के सामने साबित करते रहना पड़ेगा एक औरत को बचपन में आपने माता-पिता के आगे खुद को उनकी अपेक्षा के स्तर पर जाकर खुद को साबित कर के दिखाओ, शादी के बाद ससुराल में एक अच्छी बहू और एक अच्छी पत्नी के रूप में खुद को साबित करो, और जब बच्चे हो जाएँ तो उनकी नज़रों में भी खुद को एक अच्छी माँ साबित करो क्यूँ???? क्या एक औरत की ज़िंदगी में सिवाय खुद को साबित करके दिखाते रहने के आलवा और कुछ नहीं है??? क्या उसकी अपनी मर्ज़ी के कोई मायने नहीं है ??क्या उसे अपनी ज़िंदगी अपनी मर्ज़ी से गुज़ारें का भी कोई हक़ नहीं ??? आखिर क्यूँ ?
1 टिप्पणियाँ:
मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ
फ़िक्र में बच्चे की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ
नौजवाँ होते हुए बूढ़ी नज़र आती है माँ
रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ
हड्डियों का रस पिला कर अपने दिल के चैन को
कितनी ही रातों में ख़ाली पेट सो जाती है माँ
जाने कितनी बर्फ़ सी रातों में ऐसा भी हुआ
बच्चा तो छाती पे है गीले में सो जाती है माँ
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.