नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » » ग़ज़लगंगा.dg: अंधी नगरी चौपट राजा

ग़ज़लगंगा.dg: अंधी नगरी चौपट राजा

Written By devendra gautam on शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012 | 11:21 pm

राखे बासी त्यागे ताज़ा.
अंधी नगरी चौपट राजा.

वो देखो लब चाट रहा है
खून मिला है ताज़ा-ताज़ा.

फटे बांस के बोल सुनाये
कोई राग न कोई बाजा.

अंदर-अंदर सुलग रही है
इक चिंगारी, आ! भड़का जा.

बूढा बरगद बोल रहा है
धूप कड़ी है छावं में आ जा.

जाने किस हिकमत से खुलेगा
अपनी किस्मत का दरवाज़ा.

हम और उनके शीशमहल में?
पैदल से पिट जाये राजा?

वक़्त से पहले हो जाता है
वक़्त की करवट का अंदाज़ा.

---देवेंद्र गौतम

Read more: http://www.gazalganga.in/2012/09/blog-post_30.html#ixzz28SheNRrv

ग़ज़लगंगा.dg: अंधी नगरी चौपट राजा:

'via Blog this'
Share this article :

2 टिप्पणियाँ:

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

behtareen,vkt ke pahle ho jata hai........andajz,

रविकर ने कहा…

गजब गजल गंगा पढ़ी, गौतम जी आभार |
ऐसी ही उत्कृष्ट नित, मिले गजल हर बार ||

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.