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वक्त

Written By Rahul Paliwal on बुधवार, 17 अक्तूबर 2012 | 10:09 am


वक्त के पन्ने उड़ते जाते हैं.
जो लिखे नहीं, खाली रह जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते जाते हैं.

आंधीया तो गुजरी हैं, मेरे भी घर से.
कुछ चिराग हैं, फिर भी जले रह जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते........

मैने तो कुछ पन्ने सिर्फ काले किये.
वो खुदा ही हैं, जो कुछ कह जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते........

बड़ी मुद्दत के बाद ये यकीं हुआ हैं.
पराये शहर में, अपने भी मिल जाते हैं.
वक्त के पन्ने उड़ते........


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