Raghawjee |
संग्रहणीय पत्र, रवीश जी का राघवजी के नाम पत्र। अद्भुत लाइन अपने मूसली पावर को वैचारिक धार दो। वास्तव में रवीश के गुपचुप समलैंगिकता के विरोध को दर्शाता है। शोज भी किए हैं आपने, समर्थन या विरोध के लिए नहीं, बल्कि कम से कम एक विचार कायम करने के लिए। जानने के लिए कि आखिर यह बीमारी है या वृत्ति या फिर वास्तव में 11वां रस है। खैर राघव जी मेरे लिए इसलिए सम्मानिय हैं, क्योंकि जब सबसे पहली राजनैतिक जागरुकता मैंने हासिल की थी, उस वक्त राघवजी हमारे सांसद हुआ करते थे। चुनावों में हम क्लासें छोडक़र झंडे लिए नारे लगाते फिरते थे, वह भी बहुत शौक से। नारा था राघवजी ने खेली कबड्डी प्रतापभानु की फट गई चड्डी। (प्रतापभानु शर्मा उस वक्त के राघवजी के सामने खड़े कांग्रेसी प्रत्याशी थे) मजे की बात यह है कि यह नारा बिल्कुल घर वालों या किसी महिला से छुपकर ही लगाया जाता था। जिस समाज में चड्डी फटना कहना तक वर्जित हो, उस समाज के राघवजी आप प्रतिनिधि थे। अजब। गजब। सर। और एक और नारा हम लोग राघवजी के समर्थन में लगाते थे। कमस राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे। मैंने सुना और अपनी मां से पूछा, कि यह कहां मंदिर बनाने की बात कह रहे हैं, चूंकि मेरे लिए वह सिर्फ नारा नहीं था, नतीजे था। मां जानती थी, तो उसने कहा कुछ नहीं बेटा अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। यब बात 1990 के पहले की है।
राघवजी इसलिए भी खास हैं, चूंकि वे उस दौर के नेता हैं, जब बीजेपी के पास देशभर में सीटें नहीं हुआ करती थीं। यानी गिनी चुनी बस। उस वक्त राघवजी के पद पूजन किए जाते थे। हालांकि वे उस समय नौजवान थे। नौजवान तो आज भी हैं!
- सखाजी
http://naisadak.blogspot.in/2013/07/blog-post_9.html
8 टिप्पणियाँ:
अस्सी में रस्सी कसी, हँसी हसारत होय |
छिपी नहीं खाँसी-ख़ुशी, रहे रोटियां पोय |
रहे रोटियां पोय, वाह जी राघव रसिया |
बुड्ढा होगा बाप, फसल खुब काटे हँसिया |
सेवक बक बकवास, बधाये हाथों रस्सी |
अलबेला यह शौक, उमर चाहे हो अस्सी ||
आपकी निकृष्ट उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए आभार!
रविकर जी, बहुत खूब, सचमें बहुत खूब।
मयंकजी बहुत धन्यवाद आपका।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
Perm ke phool jee and Darshan Jangra jee....ka dhanywad
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Thanks for your valuable comment.