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हर चश्म ए दीदार खुदा तेरे नूर से है

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on मंगलवार, 6 अगस्त 2013 | 12:42 pm

Durgashakti Nagpal
यह वास्तव में कांग्रेस के सेकुलरिज्म की जीत है, जो उसने भाजपा के हिंदूवाद के साथ मिलकर देश में पैदा किया है, कि हर मामले के मूल, तना, फल, पत्ती से लेकर पुंकेसर तक धर्म रमा, जमा है। यूं कहिए कि हर चश्म ए दीदार खुदा तेरे नूर से है। हर घटना, व्यक्ति, बात, विचार, आचार, खाना, मरना सब कुछ धर्म के चश्मे से ही देखा जाता है। मामला बहुत छोटा है दुर्गाशक्ति नागपाल का निलंबन। लेकिन इसने जो पैर फैलाए हैं, वह देश के लिए घातक हंै। यूपी की सरकार जैसे यह मान रही है कि यूपी उनका कोई पर्सनल राज्य है, तो वहीं केंद्र से सोनिया ने महिला अफसर होने के नाते चिमटी काटने की कोशिश भी कुछ ऐसी ही धारणा की उपज है। भाजपा इसमें क्या करे वह तय नहीं कर पा रही, सामान्य प्रोटेस्ट के अलावा कोई वैचारिक पृष्ठ इसका उसके पास है नहीं।
ऐसे में जिसको जो मिल रहा है वह किए जा रहा है। जिक्र है कि रायपुर में भी अधिकारी की जाति नागपाल के बारे में तहकीकात की जा रही है, कि वह अगर सिंधी है तो सिंधी समाज की सियासी विंग इसमें एक एंगल यह जोड़ दे या फिर वह ठाकुर है तो क्षत्रिय समाज की विंग कुछ करने लगे। यानी दुर्गाशक्ति नागपाल कम से कम यूपी राज्य सरकार की अफसर तो नहीं है। वह यूपी सरकार की नजरों में आतातायी हिंदू अफसर है, जो मुस्लिमों पर कुल्हाड़ी लेकर वार करने को तत्पर है, तो सोनिया की नजरों में पीडि़त महिला अफसर, भाजपा की नजरों में कुछ नहीं है, तो सिंधियों की नजरों में सिंधी, ठाकुरों के नजरों में ठाकुर, तो पंजाबियों की नजरों में पंजाबी है। कुछ आजीवन छात्रों की नजरों में वह चश्माधारी पढ़ाकू मैरिटोरियस है, जो उसे मैरिटोरियस कहकर यह बताना और जताना चाहते हैं कि देश में पढ़ाकुओं की कद्र नहीं है।
यह कोई नई बात नहीं है, देश में लगभग हर मामले को इसी दूरबीन से ताड़ा जाता है, फिर उसमें संभावनाएं देखी जाती हैं। ऐसा होता ही है, तो होने दीजिए। इसे रोकने के लिए कुछ तथाकथित लिख्खाड़ों और विचारों के गुब्बारों को फूटना होगा, अपने कंफर्ट से बाहर आना होगा, वह चूंकि संभव ही नहीं है, तो जाने दीजिए।
बेशक यह कांग्रेस के यूरोपियन शब्द सेकुलर से उपजी गंदगी है, लेकिन इसमें भाजपा की भूमिका भी कम नहीं है। चूंकि वे दूसरी तरफ एक अजीब सी बात रचते गए, अपने फायदे के लिए गढ़ते गए। अंतराल में सेकुलरिज्म को खतरा संप्रदायवाद से नहीं रहा, बल्कि हिंदूवाद से हो गया।
-सखाजी

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