आदरणीय दिव्या जी आप बहुत ही अच्छी लेखिका हैं और इसमें कोई शक भी नहीं था मगर अब हैं, जिसके पास २७१ फोल्लोवेर हो और तमाम के तमाम आंख बंद करके कमेन्ट देने वाले ब्लोगेर हो तो वो ऐसी गलती गरेगी ही।
आप ने एसा कैसे सोच लिया कि भारत के मुंबई और दिल्ली कि सडको पर औरते नंगी होकर के विरोध करती हैं । हाँ ये जरुर होगा कि आप जिधर रहती हैं या कनाडा, अमेरिका जैसे देशो मैं आम बात हैं, मगर मोहतरमा ये तो हिंदुस्तान हैं। यहाँ कि नारी इतना भी गिरा हुआ शो नहीं कर सकती क्योंकि ये हिंदुस्तान कि संस्कृत हैं।
मुझे बहुत ही अफ़सोस हैं कि जिसकी रचनाये आये दिन किसी न किसी हिन्दुस्तानी मीडिया मैं छपती रहती हैं, उसके विचार बहुत ही गलत हैं।लोगो कि सुविधा के लिए जील महोदया जी का लिंक नीचे हैं।
http://zealzen.blogspot.com/2011/02/blog-post_20.html
निर्वस्त्र होने से क्रांति नहीं आती , ना ही न्याय मिलता है .
आजकल समाचारों में पढने में कों मिलता है अमुक स्त्री ने न्याय ना मिलने पर अदालत में निर्वस्त्र होकर विरोध जताया । कहीं कोई स्त्री ससुराल में प्रताड़ित होती है तो दिल्ली , मुंबई की सड़कों पर निर्वस्त्र दौड़ पड़ती है । कहीं पर समाज के ठेकेदार ( राम सेना के चीफ ) जैसे लोग मॉरल-पुलिसिंग करते हैं तो महिलाओं द्वारा 'pink chaddi campaign' चलाया जाता है । कहीं सूखा पड़ा है तो स्त्रियों के निर्वस्त्र होकर खेतों में हल चलाने से , इंद्र देव प्रसन्न होकर बारिश करायेंगे आदि।
इस तरह से न्याय नहीं मिलता । ना ही कोई क्रांति लायी जा सकती है । ये स्त्री की एक अत्यंत ही लाचार और हताश अवस्था कों इंगित करती है । इस तरह के आचरण से लाभ नहीं होगा अपितु स्त्री की गरिमा कों क्षति पहुंचेगी । इसलिए यदि अपने अधिकारों के लिए लड़ना है , तो अपनी गरिमा और मर्यादा कों कदापि नहीं भूलना है । जिस सभ्यता को पाने में युगों लग गए , उसे त्यागकर आदि-मानवों की तरह आचरण करने से क्या हासिल होगा । यह तो खुद के ऊपर अत्याचार करने जैसा हुआ ।
ऐसे आचरण जिससे, स्त्री और पुरुष सभी असहज हो जाएँ , उसे न्याय पाने का हथियार क्यों बनाना ? न्याय तो मिलेगा नहीं , मानसिक अस्पताल में भर्ती होने का आदेश ज़रूर मिल जाएगा ।
आज भी समाज में स्त्री एवं पुरुष के बीच दोहरा मापदंड है । स्त्री चाहे गरीब हो अथवा अमीर , गावं की हो अथवा शहर की , पढ़ी-लिखी हो अथवा अनपढ़ , सभी कों पुरुष से कमतर समझने की ही मानसिकता है । इसी मानसिकता का परिणाम है - कन्या भ्रूण हत्या , दहेज़ , सती प्रथा आदि ।
ऐसी मानसिकता वाले समाज से कुछ मांगो नहीं , क्यूंकि मांगने वाला सिर्फ 'भिक्षु' होता है । वो कभी भी स्वयं पर गर्व नहीं कर सकता । अपना हक माँगा नहीं जाता । साम , दाम , दंड , भेद से लड़कर हासिल किया जाता है ।
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से , मुस्कुराओ तो कोई बात बने
सर झुकाने से कुछ नहीं होता , सर उठाओ तो कोई बात बने
अपना हक संगदिल ज़माने से , छीन पाओ तो कोई बात बने ।
आप बताइए कैसे लड़ी जाए ये लड़ाई ?
इस तरह से न्याय नहीं मिलता । ना ही कोई क्रांति लायी जा सकती है । ये स्त्री की एक अत्यंत ही लाचार और हताश अवस्था कों इंगित करती है । इस तरह के आचरण से लाभ नहीं होगा अपितु स्त्री की गरिमा कों क्षति पहुंचेगी । इसलिए यदि अपने अधिकारों के लिए लड़ना है , तो अपनी गरिमा और मर्यादा कों कदापि नहीं भूलना है । जिस सभ्यता को पाने में युगों लग गए , उसे त्यागकर आदि-मानवों की तरह आचरण करने से क्या हासिल होगा । यह तो खुद के ऊपर अत्याचार करने जैसा हुआ ।
ऐसे आचरण जिससे, स्त्री और पुरुष सभी असहज हो जाएँ , उसे न्याय पाने का हथियार क्यों बनाना ? न्याय तो मिलेगा नहीं , मानसिक अस्पताल में भर्ती होने का आदेश ज़रूर मिल जाएगा ।
आज भी समाज में स्त्री एवं पुरुष के बीच दोहरा मापदंड है । स्त्री चाहे गरीब हो अथवा अमीर , गावं की हो अथवा शहर की , पढ़ी-लिखी हो अथवा अनपढ़ , सभी कों पुरुष से कमतर समझने की ही मानसिकता है । इसी मानसिकता का परिणाम है - कन्या भ्रूण हत्या , दहेज़ , सती प्रथा आदि ।
ऐसी मानसिकता वाले समाज से कुछ मांगो नहीं , क्यूंकि मांगने वाला सिर्फ 'भिक्षु' होता है । वो कभी भी स्वयं पर गर्व नहीं कर सकता । अपना हक माँगा नहीं जाता । साम , दाम , दंड , भेद से लड़कर हासिल किया जाता है ।
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से , मुस्कुराओ तो कोई बात बने
सर झुकाने से कुछ नहीं होता , सर उठाओ तो कोई बात बने
अपना हक संगदिल ज़माने से , छीन पाओ तो कोई बात बने ।
आप बताइए कैसे लड़ी जाए ये लड़ाई ?
- सबसे पहले तो अपने तन पर वस्त्रों की गरिमा कों समझिये । किसी भी हालत में स्त्री की अस्मिता की रक्षा करने वाले इन वस्त्रों का अपमान मत कीजिये । लाचारी एवं हताशा की अवस्था में भी मर्यादित रहिये । ये वस्त्र इतने गरिमामयी होने चाहियें की देखने वालों की नज़र भी श्रद्धा एवं सम्मान से भर जाए । ( अन्यथा स्त्री कों निर्वस्त्र देखने वाले उन्मादी असंख्य हैं )
- पिंक चड्ढी की जगह , मॉरल पुलिसिंग करने वालों कों ' चप्पलें ' भेजनी चाहियें।
- एकता में बल है , इसलिए किसी भी अभियान कों एकजुट होकर सफल बनाया जा सकता है ।
यदि व्यक्ति सही है तो उसे समर्थन करने वाले भी मिल जायेंगे । इसलिए खुद कों लाचार समझने की ज़रुरतनहीं है । संवेदनशील लोगों से सहयोग की अपेक्षा की जा सकती है । - खुद को इतना मज़बूत बनाइये की अन्याय करने वाला अपने ही बाल नोंच डाले ।
ग्रंथों , पुराणों और उपनिषदों में नारी को 'देवी' कह दिया गया लेकिन विरला ही कोई होगा जो स्त्री को देवी समझता होगा । इसलिए गलती से भी स्वयं को देवी की भूल-भुलैय्या में ना रखिये । और देवताओं ( पुरुषों) से किसी प्रकार की अपेक्षा मत रखिये ।
मनुष्य बने रहकर , निर्भय होकर सबसे पहले खुद में आत्मविश्वास लाइए । जब आप स्वयं का सम्मान करना सीख जायेंगी तो जमाना आपके साथ-साथ चलेगा ।
आभार
5 comments:
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bilkul sahi.........khud ki ijjat apne haath hi hoti hai
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ekdam sahii.
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आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (21-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/ -
bilkul sahi kaha aapne. yadi yesa hotaa to sabse pragti shil jangli janver hi hote!
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It is great post.
इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है कि सब से पहले अपने व्यक्तित्व की गरिमा को बचाया जाए. नारी को देवी कहना पुरुष की धूर्तता है. स्त्री अपने मानवत्व में कायम रहे इसी में बेहतरी है.
9 टिप्पणियाँ:
यह सही बात है कि औरत को नंगा नहीं होना चाहिए लेकिन यह भी सही है कि भारत में इस तरह के विरोध प्रदर्शनों का चलन तो हमने देखा नहीं और इक्का दुक्का घटनाओं को नगण्य माना जाना चाहिए ।
हिन्दुस्तान मैं तो नग्न प्रदर्शन बहुत ही ज्यादे आधुनिक महिलये फैशन शो मैं करती हैं.
tarkeshwar giri ji aap sahi kah rahe hain kintu abhi hal me kuchh ghatnayen aisee bhi hui hain jinhone zeal ji ki bat ko majbooti dee hai.abhi hal me hi supreme court me hi ek poorv mahila adhikari ne judge ke samkash apne vastr utar diye the.kintu ve dimagi roop se kuchh pareshan chal rahi thi.
तारकेश्वर भाई आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ ...........
तारकेश्वर जी!
मुझे तो लगता है कि दिव्या जी के उपरोक्त लेख से आपको कोई व्यक्तिगत समस्या उत्पन्न हुई है। अन्यथा उस लेख में कोई भी ऐसी पृथक् एवम् आपत्तिजनक बात नहीं कही गयी है कि जिसपर आप एक पोस्ट करने पर बाध्य हो जायें। किसी नियम-कायदे का उसमें उल्लंघन नहीं है।
जो कुछ भी उक्त लेख में दिव्या जी ने लिखा है वह वर्तमान की माँग है। इधर कुछ दिनों एवम् कुछ वर्षों की घटनाओं पर यदि आप दृष्टिपात करेंगे तो स्थिति स्वयमेव स्पष्ट हो जायेगी। फिर आपको अपने इस लेख की निर्थकता भी महसूस होगी।
किसी सामाजिक समस्या पर बोलना इतना आसान नहीं होता। और जो भी बोलता है उसे आप जैसे ही लोगों का प्रबल, तीक्ष्ण, कटु विरोध का सामना करना पड़ता है। यह कोई नई बात नहीं है।
निर्वस्त्र होना अथवा अपनी मर्यादा लाँघना कोई सम्माननीय कार्य नहीं है, न ही इससे कोई बहुत सबल व सक्षम बन जाता है। बस अपनी ही हँसी करवाता है एवं सम्पूर्ण स्त्री-जाति को अपमानित होंने के लिये बाध्य करता है। आजकल मीडिया में आने और चन्द दिनों के लिये छा जाने का एक यह हथकण्डा भी है।
मुझे लगता है कि गिरि जी आपने निम्न पंक्ति के कारण इतना कुछ लिख दिया है
"कहीं पर समाज के ठेकेदार ( राम सेना के चीफ ) जैसे लोग मॉरल-पुलिसिंग करते हैं तो पर .............."
गिरि जी यह बात सर्वविदित है एवम् प्रयोगों तथा इतिहास के आधार पर खरी भी है कि जिस बात, व्यक्ति या विचारधारा का विरोध किया जाता है, उसकी जड़े समाज में और अधिक गहरे तक जाने की सम्भावना बन जाती है। व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्ति को स्वतन्त्रता है कि वह कोई भी वस्त्र पहन सकता है कहीं भी जा सकता है। इसको रोकना इतना आसान नहीं है। चारित्रिक गुण एवम् चारित्रिक दृढ़ता बचपन के संस्कारों का सुफल होती है। यदि शैशव में संस्कार नहीं मिले हैं तो हम बलपूर्वक उनकी प्रतिष्ठा नहीं कर सकते।
हमारा युवा वर्ग इस तरह की हरकतें न करे इसके लिये हमें उन्हें दण्डित करने की आवश्यकता तो कदापि नहीं है। दण्ड से पहले भी कई विकल्प हैं। अर्थशास्त्र एवं स्मृति ग्रन्थों में भी इससे पहले साम-दाम-भेद का उल्लेख है। तब रामसेना वाले दण्ड का वरण ही प्रथमतः क्यों करते हैं? मेरे विचार से पहले उनको साम-दाम-भेद अपनाना चाहिये, इनकी असफलता पर ही दण्ड को अपनायें। परन्तु ये भी बात है कि साम-दाम-भेद नीति का क्रियान्वयन दण्ड जैसा सरल नहीं है, न ही इतना अल्पावधिक है। यह एक प्रक्रिया है जिसके स्थापन एवं क्रियान्वन में म्वर्षों का अथक एवं सजग श्रम लगता है। इसके साथ ही साथ साम-दाम एवं भेद के लिये एक कुशाग्र, नीतिज्ञ, विद्वान् व्यक्ति एवं एक सुदृढ़, सबल संगठन की आवश्यकता होती है, जिसके प्रत्येक सदस्य का मानस स्वार्थलिप्सा से मुक्त हो।
स्त्रियाँ अपनी बातों को मनवाने के लिये, सम्मान पाने के लिये निर्वस्त्र क्यों हो? क्या वे जीजाबाई बनकर शिवाजी जैसे व्यक्तित्व का निर्माण नहीं कर सकतीं? जो न केवल अपनी माँ को सम्मान, अधिकार दिलाये अपितु समस्त स्त्रीजाति के प्रति सम्माननीय दृष्टि रखे।
आज स्त्रीजाति को अपने मौलिक गुणों के संरक्षण एवं संवर्द्धन की आवश्यकता है, न कि निर्वस्त्र होकर इनके क्षरण की। एक विराट व्यक्तित्व का सृजन माँ के आचार, विचार एवं व्यवहार से होता है। अतः व्यक्ति, समाज एवम् राष्ट्रनिर्माण में स्त्रियों के सम्यक् आचार-विचार एवम् व्यवहार की बहुत आवश्यकता है। उनको अपने इस गुरुतर दायित्व को समझते हुए ऐसे किसी भी कार्य से दूर रहना चाहिये जो उनकी गरिमा के विरुद्ध हो।
आदरणीय ममता जी में कभी भी औरतो के खिलाफ नहीं जाता. दिव्या जी ने ये कहा हैं कि दिल्ली और मुंबई कि सडको पर औरते नग्न हो करके विरोध प्रदर्शन करती , बस ये मेरा विरोध हैं कि कब दिल्ली और मुंबई कि सडको पर महिलाये नग्न हुई.
तार्केश्वर जी...निर्वस्त्र होना व नन्गे होने में भाव-कथन का अन्तर है.....महिला का सरे बाज़ार नेकर शौर्ट्स शोर्ट स्कर्ट पहन कर जाना ही निर्वस्त्र होना है...और फ़ैशन शो व टीवी सिनेमा में तो नन्गी घूम ही रही हैं ..भारत में भी.....और क्या आप जब नन्गा मनोगे जब वे मादरजाद अवस्था में घूमें....
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जाधव फिलहाल पाकिस्तानी जेल में बंद हैं. पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने 48 वर्षीय जाधव को अप्रैल, 2017 में फांसी की सजा सुनाई थी. पाकिस्तान ने उन पर जासूसी करने के आरोप लगाए हैं, जबकि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ने उन्हें ईरान से उन्हें अगवा किया था. https://hs.news/icj-to-deliver-verdict-on-kulbhushan-jadhav-today/
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