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प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on बुधवार, 31 मार्च 2021 | 1:12 pm

 बार बार उड़ने की कोशिश

गिरती और संभलती थी

कांटों की परवाह बिना वो

गुल गुलाब सी खिलती थी

सूर्य रश्मि से तेज लिए वो

चंदा सी थी दमक रही

सरिता प्यारी कलरव करते

झरने चढ़ ज्यों गिरि पे जाती

शीतल मनहर दिव्य वायु सी

बदली बन नभ में उड़ जाती

कभी सींचती प्राण ओज वो

बिजली दुर्गा भी बन जाती

करुणा नेह गेह लक्ष्मी हे

कितने अगणित रूप दिखाती

प्रकृति रम्य नारी सृष्टि तू

प्रेम मूर्ति पर बलि बलि जाती

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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत

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5 टिप्पणियाँ:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2085...किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें ) पर गुरुवार 01 अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

प्रकृति के अनेक रूप .. सुन्दर चित्रण ..

Amrita Tanmay ने कहा…

अति सुन्दर सृजन ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण।
अन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।

Bharti Das ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना

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