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आंधी के एक बवंडर ने ..नफरत के बवंडर को प्यार में बदल दिया ........

Written By आपका अख्तर खान अकेला on रविवार, 29 मई 2011 | 11:45 am

आंधी के एक बवंडर ने ..नफरत के बवंडर को प्यार में बदल दिया ........

आंधी के एक बवंडर ने ..नफरत के बवंडर को प्यार में बदल दिया ........जी हाँ दोस्तों यह कोई फ़िल्मी दास्ताँ नहीं हमारे बिल्लू बार्बर की सच्ची कहानी है ....२२ मई की रात मेरे दफ्तर में मेरे बिल्लू बार्बर जिनके आगे में अक्सर सर झुका कर कटिंग करवाता हूँ और इधर उधर के खट्टे मीठे अनुभव सुनता हूँ उनकी पत्नी के साथ खतरनाक अंदाज़ में आये ..और दोनों पति पत्नी की तू तू में में के बाद उनके प्यार का मोह भंग हो गया था वोह चाहते थे के अब इस बुडापे में वोह कानूनी रूप से अलग अलग हो जाये .....
मेने उनकी तकरार को खत्म करने और उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की ,बहुत समझाया लेकिन बिल्लू बार्बर तो मान गए उनकी पत्नी मानने को तय्यार नहीं थी जिद पर अड़ी थीं ..हमे तो कानूनी रूप से अलग होना है ..मेने कहा के सुबह में इन्दोर जा रहा हूँ तुम अगर कोई लिखा पड़ी करवाना चाहो तो मेरे साथी वकील साहब को में कह देता हूँ वोह करवा देंगे ...लेकिन बिल्लू बार्बर थे के जिद पर अड़ गए कहने लगे के भाईजान जब आप आओगे तब ही हम लिखा पड़ी आपसे करवाएंगे मेने कहा में तो २८ को आउंगा ..दोनों तब तक इन्तिज़ार के लियें तय्यार हो गये ..बिना किसी बात पर तू तू में में के बाद बात इतनी खतरनाक अलगाव पर पहुंचेगी यही सोच कर में अफ़सोस में था खेर में आज सुबह सवेरे जब इन्दोर से आया तो मेरा मन करा के ..पहले कटिंग करवाऊं और फिर देखते हैं बिल्लू बार्बर और उनकी पत्नी का क्या होता है ....
खेर में जेसे ही उनके घर पहुंचा घर इसलियें के घर के निचे ही उनकी दूकान है ..वहां नजारा ही कुछ अलग था मकान का छप्पर टूटा था और छत पर आर सी सी का काम चल रहा था बिल्लू बार्बर और उनकी पत्नी दोड़ दोड़ कर कम कर रहे थे मजदूर छत डालने का काम कर रहे थे मिक्सर में गिट्टी सीमेंट रेत की मिलावट हो रही थी ..खेर बिल्लू बार्बर और उनकी पत्नी ने कुर्सी लगाई पानी पिलाया चाय बनाई में चुप था लेकिन बिल्लू बार्बर ने हंसते हुए कहा के तुम्हारी भाभी का बवंडर तो आंधी के बवंडर में नफरत से प्यार में बदल गया और में और तुम्हारी भाभी आज नई जिंदगी लेकर तुम्हारे सामने खड़े हैं ....
बिल्लू बार्बर ने बताया के जिस दिन आप इन्दोर गए उसी दिन रात को हम इस कमरे में अलग अलग सोये थे कमरे पर पक्की छत नहीं थी . छत के स्थान पर सीमेंट की चद्दर लोहे के एंगल गाड कर ढकान  कर रखा था ..लेकिन उस रात ऐसा आंधी का बवंडर आया के बस छत उढ़ गयी और लोहे के गर्डर टूट कर निचे गिरने लगे मोत के खोफ से दोनों पति पत्नी ने एक दुसरे को बाहों में भरकर एक कोने में समेट लिया और करीब दस मिनट तक  ऐसे ही खोफ्नाक माहोल में टूट कर बिखरती लोहे की एंग्लों और टूटती इंटों से बचते रहे खेर आंधी का यह खतरनाक बवंडर तो थम गया लेकिन इस बवंडर ने पति पत्नी के बीच जो नफरत का बवंडर बना था उसे प्यार में बदल दिया था और दोनों के अलग होने के इरादों पर इस प्यार ने पानी फेर दिया था .....बिल्लुय बार्बर की पत्नी जब नाश्ता लायी तो मेने कहा के भाभी में आ गया हूँ लाओ अब क्या लिखा पढ़ी करना तो भाभी एक सोलाह साल की अल्हड जवान लडकी की तरह शरमाई इठलाई और बात गयी रात गयी मुस्कुराती हुई चली गयी ...में सोचता रहा के एक बवंडर जो तबाही का कारण भी बना है लेकिन कुदरत के खेल निराले हैं कुदरत ने इस एक बवंडर से दो नफरत करने लगे दिलों को फिर से जोड़ कर लेला मजनू के प्यार में बदल दिया ..शायद खुदा..इश्वर..अल्लाह  इसी का नाम है जो असम्ब्भव को संभव बना देता है ................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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3 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

बस यही तो खुदा की कुदरत है।

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Rajesh Kumari ने कहा…

charcha manch ke maadhyam se aapki rachna pahli bar padhi.ek sachchi ghatna ka aanand uthaya.bahut achcha laga padhkar.prakarti ke bhi khel niraale hain.kanhi khushi kanhi gam.achcha hua billu family ke liye kahar ek dua ban gaya.

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