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‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘ पर टिप्पणी

Written By DR. ANWER JAMAL on मंगलवार, 3 अप्रैल 2012 | 10:30 am

पत्नी की संतुष्टि उसका स्वाभाविक अधिकार है Women's Natural Right

वंदना गुप्ता जी ने हिंदी ब्लॉग जगत को एक पोस्ट दी है ‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘
हमने उनकी इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा है कि

वंदना गुप्ता जी ! आपने नर नारी संबंधों के क्रियात्मक पक्ष की जानकारी बहुत साफ़ शब्दों में दी है। यह सबके काम आएगी। तश्बीह, तम्सील और बिम्बों के ज़रिये कही गई बात को केवल विद्वान ही समझ पाते हैं और फिर उनके अर्थ भी हरेक आदमी अलग अलग ले लेता है। आपका साहित्य सरल है इसे हरेक आदमी समझ सकता है। पुरूषों को यह बात ज़रूर जाननी चाहिए कि शारीरिक संबंधों की अदायगी भी क़ायदे से होनी चाहिए जैसे कि धार्मिक कर्मकांड और इबादत में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कहीं भी कोई कमी न रह जाए।
ईश्वर तक पहुंचने के लिए सीढ़ी माने जाने वालों से पत्नी के लिए पति और पति के लिए पत्नी भी हैं।
ईश्वर की प्रसन्नता चाहना भारतीय संस्कृति का अभिन्न तत्व है और अरबी संस्कृति का भी। संपूर्ण विश्व की आध्यात्मिक संस्कृति का मूल तत्व यही है। पत्नी भी प्रसन्न है कि नहीं, यह भी देखना बहुत ज़रूरी है। मां बाप गुरू अतिथि और पत्नी राज़ी हैं तो समझ लीजिए कि आपसे आपका रब भी राज़ी है।
पत्नी को राज़ी करना भी निहायत ही आसान है।
पत्नी चाहती क्या है ?
सिर्फ़ दो बोल प्रशंसा के,
जैसे कि ...
जब से तुम इस घर में आई हो मेरी ज़िंदगी संवर गई है।
तुम्हारे प्यार की क़द्र मेरे दिल में बहुत गहराई तक है।

बस हो गई नारी तुम्हारी, दिल से सदा के लिए।
लेकिन यह तारीफ़ दिल से निकलनी चाहिए।
औरत समर्पण करती है और अपने आप को मिटाती है तो उसे तारीफ़ मिलनी भी चाहिए।

मर्द को अपने खान पान को भी ‘औरत ओरिएंटिड‘ रखना चाहिए। मर्द को मछली और मुर्ग़ा ज़रूर खाना चाहिए। अगर मर्द शाकाहार का अभ्यस्त हो और सीधे मांस न खा सकता हो तो उसे दूध, शहद, बादाम, पनीर, लहसुन, अदरक, आंवला और एलोवेरा का सेवन ज़रूर करना चाहिए। बदन में जितनी ज़्यादा जान होगी, वह अपने महबूब के साथ उतना ही लंबा सफ़र कर सकता है।
महबूब को चांद के पार ले जाने में एलोवेरा का जवाब नहीं है। एलोवेरा के सेवन के बाद नारी तो संतुष्ट हो ही जाती है लेकिन मर्द संतुष्टि के अहसास को रिपीट करने का बल तुरंत ही पाता है।
चरम सुख के शीर्ष पर औरत का प्राकृतिक अधिकार है, हमारा यह उदघोष सदा से ही है।

इतनी लंबी टिप्पणी सिर्फ़ इसलिए कि जो भी पढ़े उसका वैवाहिक जीवन पूरी तरह संतुष्ट हो। संतोष परम धन है और हम भारत के युवक युवकों को ही नहीं बल्कि वृद्धों और वृद्धाओं को भी परम धनी देखना चाहते हैं। विधवा और विधुर सब इस धन से समृद्ध हों।
यह परम धन पास हो तो फिर लौकिक धन मुद्रा की कमी नर नारी को परेशान नहीं करती। उच्च के सामने तुच्छ का मूल्य गौण हुआ करता है।
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10 टिप्पणियाँ:

sangita ने कहा…

achhalikha hae .par mere khyal se pati or patni ka rishta pyar or vishvas se bandha hota hae tatha usamen kahi bhi aham ka sthan nahin hota .sabse badi santushthi pyar or adhikar men hoti hae,sorry yadi koi atishiyokti ho gai ho to.

shyam gupta ने कहा…

..

--एकदम सच कहा है सन्गीता...sabse badi santushthi pyar or adhikar men hoti hae.
---सन्तुष्टि न मुर्गे-मछली मे होती है ...न एलोवीरा में,ये सब भ्रम की बाते हैं...अप्राक्रतिक..

सुज्ञ ने कहा…

सजगता के लिए आभार डॉ श्याम गुप्त जी!!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ संगीता जी लेख आपको पसंद आया , यह जानकार अच्छा लगा. आपकी बात हमने इस पोस्ट में भी कही है कि पत्नी को प्यार दो , उसके समर्पण को महसूस करो. यह किया जाये तो आपस में विश्वास आएगा और अहंकार तिरोहित होगा.

धन्यवाद.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ भाई सुज्ञ जी ! शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुष्टि इस्लाम में पत्नी का धार्मिक अधिकार है। नारी का जायज़ हक़ अदा करना उसके पति का फ़र्ज़ है। इस्लाम के ठहराए गए हक़ को अदा करना इस्लाम में इबादत ही कहलाता है।
आप भी इसे तुच्छ न समझें और इसकी अदायगी को ख़ुद पर लाज़िम जानें।
देखें यह पोस्ट-
http://allindiabloggersassociation.blogspot.in/2012/04/blog-post_05.html

सुज्ञ ने कहा…

विशिष्ट इबादतगार जमाल साहब, ग्रहस्थी के संयमित व्यवहार को हम तुच्छ तो नहीं मानते पर पर इस दैहिक उन्मादों को हम इबादत भी नहीं मानते। आपके कहे अनुसार यदि यही इबादत का मार्ग होता तो इबादतगाहों में विशाल हॉल की जगह मदोत्सक अलग अलग कमरे बने होते।
हम तो बखुबी जानते है कामुक तृष्णाएं स्थायी संतुष्टि कभी नहीं दे पाती और क्षमताएं सभी की अलग अलग होती है। यदि यही इबादत होती है तो कोई बंदा लाख शक्ति और प्रयत्नों के बाद भी अतिशय तृष्णावान साथी को संतुष्ट न कर पाए तो उसकी इबादत तो निष्फल ही हो जाएगी और वह बंदा तो नाहक ही काफिर हो जाएगा।
खैर यह जानकारी हमारे लिए चिर प्रतीक्षित कि इस्लाम में इबादत क्या है। आपने इस्लाम में इबादत को सुपरिभाषित किया, आभार!!

सुज्ञ ने कहा…

अनवर जमाल साहब,

संतति पैदा करना समाजिक उत्तरदायित्व है कोई आध्यात्मिक आवश्यकता नहीं कि उसे इबादत का सर्वोच्छ स्थान दिया जाय। और यह जरूरी भी नहीं कि इस आयोजन से इबादतगुज़ार ही पैदा हों, इसलिए भी इसे इबादत नहीं कहा जा सकता। यदि इस कथित 'इबादत' से क्रूर, हिंसक,लोभी,बे-ईमान पैदा हुए तो सोचें जरा यह इबादत किसकी हुई? ईश्वर की या शैतान की?
इसलिए भी शान्ति आराधकों की यह कथित इबादत तो हो नहीं सकती।
शारिरिक सुखों की प्रतिपूर्ति के लिए तो अस्थायी संतुष्टि पर्याप्त है। क्योंकि इन सब की अस्थायी प्रकृति ही नियमबद्ध है।
किन्तु इबादत शाश्वत सुखों के लिए की जाती है। ऐसी संतुष्टि जो आकर फिर न जाए। जिन्हें शान्ति अभिष्ट है उन विवेकीजनों की आराधना (इबादत) तो श्रेष्ठ व स्थायी सुख की चाह और मांग ही होगी।
इसलिए भी क्षणिक सुख की लालसा 'इबादत'कभी नहीं हो सकती। कभी नहीं!!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

प्यार के लम्हे चाहे कम हों लेकिन उसका प्रभाव स्थायी होता है। जिसे प्यार मिले उस पर मालिक का शुक्र वाजिब है। शुक्र करना इबादत है, इसमें किसी को कोई शक नहीं है। पति पत्नी शुक्रगुज़ार हों तो औलाद पर उनके संस्कारों का असर ज़्यादा या कम ज़रूर आता है।

सुज्ञ ने कहा…

हां अवश्य, उस तरह के लम्हों की शुक्रगुजारी का असर औलादों पर आता होगा तो हो सकता है। और यही इबादत आगे से आगे बढकर रीत ही बन जाए।

VIVEK VK JAIN ने कहा…

bahas ka ant khah?
har tarah bas yhi likha ja rha h....
koi mujhe btayega, is baat me itna sir khapaane ki kya zaroorat h?

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